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Old 20-03-2011, 02:48 AM   #11
amit_tiwari
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Default Re: करोड़पति बनना है तो नौकरी छोडिये.......

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"लेकिन यदि आप वाकई में ढेरों पैसे कमाना चाहते हैं तो"
सब यहीं रह जाएगा--
पूत सपूत का धन संचय
पूत कपूत का धन संचय
भाई धन कमाने का अर्थ एकमात्र पूत के लिए बचाना है क्या ?
खुद के ऊपर धन खर्च करने में क्या बुराई है ?
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Old 20-03-2011, 04:25 AM   #12
Gopal
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Originally Posted by amit_tiwari View Post
अहा भाई सब लोग इतना विरोध क्यूँ कर रहे हो!!!
कुछ गलत तो नहीं लिखा! ये संभव है की आपकी परिस्थिति में ऐसा करना संभव ना हो किन्तु उसके लिए लेखक को तो दोष ना दें !

नौकरी या बिजनेस? ये कुछ खास चीजों पर निर्भर करता है जैसे
१- आपका व्यक्तित्व! यही निर्णायक तत्व है, हर मनुष्य की अपनी प्रकृति अपना स्वभाव होता है और वो उसी के अनुरूप कार्य करना चाहता है तो यदि आपको एक नियमित १०-५ का जीवन पसंद है तो आप वही करेंगे और जिसे अनियमितता पसंद है वो वही करेगा |
२- आपका क्षेत्र! जरुरी नहीं की हर व्यक्ति की महारथ वाले क्षेत्र को एक व्यापार में बदला जा सके| जैसे एक जमाने में तलवार बनाना कोई व्यापर हो सकता था किन्तु आज नहीं!
३- महत्वकांक्षा का स्तर! यह एक विवाद का विषय हो सकता है किन्तु व्यापार या तो व्यक्ति मज़बूरी में करता है या फिर अति महत्वकांक्षा में |

@गोपाल : बन्धु लेख सही नब्ज़ पकड़ता हुआ है बस शायद इस थ्रेड का टाइटल गलत पड़ गया, लोग समझ के आये की कोई करोडपति बनने का नुस्खा मिलेगा और मिला लेख | खैर बढ़िया लिखा और बहुत सही लिखा | वैसे entrepreneurship की बात यहाँ की शिक्षा प्रणाली में वैसे ही है जैसे रेत को घिस के तेल निकालना | MBA स्कूलों से चूजे निकल रहे हैं जो बस सीधे डिग्री लेकर नौकरी ढूँढने निकल लेते हैं | किसी के मुंह से धोखे से भी एक यूनीक बिजनेस आइडिया कोई नयी शुरुआत का फंडा नहीं निकलेगा | मैं व्यक्तिगत रूप से एक ऐसी महान आत्मा से मिला जिन्होंने पहले IIT की एक सीट तबाह की और फिर आईआईएम की एक सीट स्वाहा की और अभी वेरिजोन कंपनी में सपत्नीक सेल्समैन हैं |क्या करियेगा ऐसी डिग्रियों का !!!
आपक बहुत-बहुत धन्यवाद.
आपके बताये गए तीनो बिंदु बिलकुल सही लगे. और शायद आपने सही कहा ,,,Title.. कुछ और रखना चाहिए था.. sorry for the confusion guys
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Old 20-03-2011, 01:18 PM   #13
senior
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Originally Posted by amit_tiwari View Post
भाई धन कमाने का अर्थ एकमात्र पूत के लिए बचाना है क्या ?
खुद के ऊपर धन खर्च करने में क्या बुराई है ?
हर्ज है मेरे भाई !
आवश्यकता से अधिक खर्च करने में हर्ज है।
हम जितना खर्च करते हैं, किसी ना किसी रूप में हम प्राकृतिक संसाधनों को ही खर्च करते हैं। आप जानते ही होंगे कि आजकल प्राकृतिक संसाधनों का कितना दोहन बल्कि यों कहें कि शोषण हो रहा है।
मेरा विचार है कि 1980 से पहले तक सभी(अधिकतर) भारतीयों की सोच थी बचत करो !
इसी सोच से हमारे प्राकृतिक संसाधन काफ़ी हद तक बचे हुए थे।
अगर हम यों ही खर्च करते रहे तो वो दिन दूर नहीं जब हमारे हाथ में रुपए तो बहुत होंगे लेकिन बाज़ार में सामान नहीं होगा।
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Old 20-03-2011, 01:44 PM   #14
Kumar Anil
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Originally Posted by amit_tiwari View Post
अहा भाई सब लोग इतना विरोध क्यूँ कर रहे हो!!!
कुछ गलत तो नहीं लिखा! ये संभव है की आपकी परिस्थिति में ऐसा करना संभव ना हो किन्तु उसके लिए लेखक को तो दोष ना दें !

नौकरी या बिजनेस? ये कुछ खास चीजों पर निर्भर करता है जैसे
१- आपका व्यक्तित्व! यही निर्णायक तत्व है, हर मनुष्य की अपनी प्रकृति अपना स्वभाव होता है और वो उसी के अनुरूप कार्य करना चाहता है तो यदि आपको एक नियमित १०-५ का जीवन पसंद है तो आप वही करेंगे और जिसे अनियमितता पसंद है वो वही करेगा |
२- आपका क्षेत्र! जरुरी नहीं की हर व्यक्ति की महारथ वाले क्षेत्र को एक व्यापार में बदला जा सके| जैसे एक जमाने में तलवार बनाना कोई व्यापर हो सकता था किन्तु आज नहीं!
३- महत्वकांक्षा का स्तर! यह एक विवाद का विषय हो सकता है किन्तु व्यापार या तो व्यक्ति मज़बूरी में करता है या फिर अति महत्वकांक्षा में |

@गोपाल : बन्धु लेख सही नब्ज़ पकड़ता हुआ है बस शायद इस थ्रेड का टाइटल गलत पड़ गया, लोग समझ के आये की कोई करोडपति बनने का नुस्खा मिलेगा और मिला लेख | खैर बढ़िया लिखा और बहुत सही लिखा | वैसे entrepreneurship की बात यहाँ की शिक्षा प्रणाली में वैसे ही है जैसे रेत को घिस के तेल निकालना | mba स्कूलों से चूजे निकल रहे हैं जो बस सीधे डिग्री लेकर नौकरी ढूँढने निकल लेते हैं | किसी के मुंह से धोखे से भी एक यूनीक बिजनेस आइडिया कोई नयी शुरुआत का फंडा नहीं निकलेगा | मैं व्यक्तिगत रूप से एक ऐसी महान आत्मा से मिला जिन्होंने पहले iit की एक सीट तबाह की और फिर आईआईएम की एक सीट स्वाहा की और अभी वेरिजोन कंपनी में सपत्नीक सेल्समैन हैं |क्या करियेगा ऐसी डिग्रियों का !!!
न तो कोई विरोध है न ही आपत्ति । एक लेखक ने सदस्योँ से विचारोँ की अपेक्षा की और पक्ष और विपक्ष दोनोँ मेँ ही विचार आये । लेखक को दोनोँ को ही खुले दिल से स्वीकार करते हुये अपने तर्कोँ से सन्तुष्ट करना चाहिये । लेखक एक विजन देखता है और अपने कल्पनालोक मेँ ही उसे मूर्तरूप प्रदान करते हुये पाठकोँ के सम्मुख रखता है । लेखन का धर्म विचारोँ के क्रियान्वन मेँ निहित है । हर व्यक्ति सपने देखता है , उन सपनोँ को साकार करना चाहता है । परन्तु सपनोँ को साकार करने के मध्य आने वाली कठिनाईयोँ अथवा सपनोँ को हक़ीकत से जोड़ने वाले पुल का अभाव इस लेख मेँ दिख रहा था । टाटा , बिड़ला , अम्बानी या बच्चन बनने की ख़्वाहिश तो हर कोई सँजोये रहता है लेकिन इस मुक़ाम तक पहुँचने के संघर्ष का माद्दा कितनोँ मेँ होता है और उस संघर्ष से क्या लेख ने परिचित करवाया , शायद नहीँ । मंजिल तो बतायी गयी पर रास्ता नहीँ । रास्ते की दुश्वारियाँ बताना भी पथ प्रदर्शक का कर्तव्य बनता है ।
__________________
दूसरोँ को ख़ुशी देकर अपने लिये ख़ुशी खरीद लो ।
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Old 20-03-2011, 10:47 PM   #15
Gopal
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Originally Posted by Kumar Anil View Post
न तो कोई विरोध है न ही आपत्ति । एक लेखक ने सदस्योँ से विचारोँ की अपेक्षा की और पक्ष और विपक्ष दोनोँ मेँ ही विचार आये । लेखक को दोनोँ को ही खुले दिल से स्वीकार करते हुये अपने तर्कोँ से सन्तुष्ट करना चाहिये । लेखक एक विजन देखता है और अपने कल्पनालोक मेँ ही उसे मूर्तरूप प्रदान करते हुये पाठकोँ के सम्मुख रखता है । लेखन का धर्म विचारोँ के क्रियान्वन मेँ निहित है । हर व्यक्ति सपने देखता है , उन सपनोँ को साकार करना चाहता है । परन्तु सपनोँ को साकार करने के मध्य आने वाली कठिनाईयोँ अथवा सपनोँ को हक़ीकत से जोड़ने वाले पुल का अभाव इस लेख मेँ दिख रहा था । टाटा , बिड़ला , अम्बानी या बच्चन बनने की ख़्वाहिश तो हर कोई सँजोये रहता है लेकिन इस मुक़ाम तक पहुँचने के संघर्ष का माद्दा कितनोँ मेँ होता है और उस संघर्ष से क्या लेख ने परिचित करवाया , शायद नहीँ । मंजिल तो बतायी गयी पर रास्ता नहीँ । रास्ते की दुश्वारियाँ बताना भी पथ प्रदर्शक का कर्तव्य बनता है ।
जिन लोगों का नाम मैंने लिया है उनके बारे में शायद ही कोई माननीय सदस्य ना जानता हो...हम सब उनकी सफलता और संघर्ष को पहले से जानते हैं.....
और मैं यह कहना चाहूँगा कि हर एक व्यक्ति में ये माद्द्दा होता है,,चाहे वो इस बात से परिचित हो या अपरिचित ...स्वामी विवेकानंदा ने कहा भी है....:"कभी मत सोचिये कि आत्मा के लिए कुछ असंभव है. ऐसा सोचना सबसे बड़ा विधर्म है.अगर कोई पाप है, तो वो यही है; ये कहना कि तुम निर्बल हो या अन्य निर्बल हैं."

और हम सब आत्मा ही तो हैं..हमारे लिए इस जग में कुछ भी असंभव नहीं है..हो सकता है अभी आप मेरी बात को हलके में लें..शायद हँसे भी लेकिन कल जब मैं अपनी कर्मठता से ये सच कर दिखाऊंगा तब शायद आप भी मेरे ऊपर गर्व करें.

और एक बात और मैं पथ प्रदर्शक नहीं हूँ मैं तो खुद उस मार्ग का एक पथिक हूँ. पर हाँ जब मैं एक दिन अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लूँगा तो पथ प्रदर्शक भी बन जाऊँगा.


Last edited by Gopal; 20-03-2011 at 10:50 PM.
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Old 20-03-2011, 11:23 PM   #16
amit_tiwari
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Originally Posted by Kumar Anil View Post
न तो कोई विरोध है न ही आपत्ति । एक लेखक ने सदस्योँ से विचारोँ की अपेक्षा की और पक्ष और विपक्ष दोनोँ मेँ ही विचार आये । लेखक को दोनोँ को ही खुले दिल से स्वीकार करते हुये अपने तर्कोँ से सन्तुष्ट करना चाहिये । लेखक एक विजन देखता है और अपने कल्पनालोक मेँ ही उसे मूर्तरूप प्रदान करते हुये पाठकोँ के सम्मुख रखता है । लेखन का धर्म विचारोँ के क्रियान्वन मेँ निहित है । हर व्यक्ति सपने देखता है , उन सपनोँ को साकार करना चाहता है । परन्तु सपनोँ को साकार करने के मध्य आने वाली कठिनाईयोँ अथवा सपनोँ को हक़ीकत से जोड़ने वाले पुल का अभाव इस लेख मेँ दिख रहा था । टाटा , बिड़ला , अम्बानी या बच्चन बनने की ख़्वाहिश तो हर कोई सँजोये रहता है लेकिन इस मुक़ाम तक पहुँचने के संघर्ष का माद्दा कितनोँ मेँ होता है और उस संघर्ष से क्या लेख ने परिचित करवाया , शायद नहीँ । मंजिल तो बतायी गयी पर रास्ता नहीँ । रास्ते की दुश्वारियाँ बताना भी पथ प्रदर्शक का कर्तव्य बनता है ।
अनिल जी आप आयु और अनुभव में मुझसे ज्यादा हैं अतः आप भी स्वीकारेंगे कि सफलता का सिर्फ एक तरीका होता है 'कठोर मेहनत और पक्का इरादा' | जिन्हें अपने लक्ष्य का पता है और जिन्हें वहाँ तक पहुचने से कम कुछ भी किसी भी हालत में मंजूर नहीं है उन्हें करोडपति क्या अरबपति बनने से कोई नहीं रोक सकता| अम्बानी ने रात रात सिक्के पिघला के पहली फैक्टरी के लिए धन जुटाया, सुब्रत सहारा ने टूटे स्कूटर, १ मेज और २ कुर्सी से धंधा जमाया, अमिताभ बच्चन ने एक एंकर की नौकरी के लिए ठोकर खायी, गोविंदा ने सरोज खान से विनती करके फ्री में डांस सीखा, बिल गेट्स ने झूठ बोल कर तब पहले सोफ्टवेयर बनाने का कोंट्रेक्त लिए जब उन्हें खुद पता ही नहीं था कि वो बनेगा भी या नहीं | यहाँ ये ध्यान देने योग्य नहीं है कि उन्होंने कितनी तकलीफे झेली, बिलकुल ध्यान मत दीजिये, ध्यान दीजिये सिर्फ इस बात पर कि उन्होंने जिस चीज के लिए ये सब कठिनाई देखि आज वही चीज उनकी पहचान है, अम्बानी आज भी पेट्रोलियम के रजा हैं, सुब्रत आज भी फाइनेंसिंग किंग हैं, अमिताभ कि आवाज पहचान है, गोविंदा डांस का दूसरा नाम है, बिल गेट्स को सोफ्टवेयर के लिए ही जाना जाता है | इन सबको तब अपने ऊपर भरोसा था जब उन्हें वो काम आता भी नहीं था | जिस किसी में भी इतना पागलपन है उसे कोई रोक ही नहीं सकता | गाँव में हो या शहर में, पढ़ा लिखा हो या नहीं, मौका मिले या नहीं वो सफल होगा | जो खुद को प्रतिभाशाली मानते हैं और रोना रोते हैं कि उन्हें अवसर नहीं मिला उन्हें मैं कहूँगा कि चुल्लू भर पानी तो मिला ना !!!! गोपाल जी ने एकदम ठीक उधृत किया कि असंभव सिर्फ मन कि कमजोरी को छिपाने का साधन है और कुछ भी नहीं | यदि सब कुछ करने के बाद भी सफलता नहीं मिलती तो हमें स्वीकारना चाहिए कि हमारे अन्दर वो बात ही नहीं थी कि हम सफल हो सकते|


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Originally Posted by Gopal View Post
जिन लोगों का नाम मैंने लिया है उनके बारे में शायद ही कोई माननीय सदस्य ना जानता हो...हम सब उनकी सफलता और संघर्ष को पहले से जानते हैं.....
और मैं यह कहना चाहूँगा कि हर एक व्यक्ति में ये माद्द्दा होता है,,चाहे वो इस बात से परिचित हो या अपरिचित ...स्वामी विवेकानंदा ने कहा भी है....:"कभी मत सोचिये कि आत्मा के लिए कुछ असंभव है. ऐसा सोचना सबसे बड़ा विधर्म है.अगर कोई पाप है, तो वो यही है; ये कहना कि तुम निर्बल हो या अन्य निर्बल हैं."

और हम सब आत्मा ही तो हैं..हमारे लिए इस जग में कुछ भी असंभव नहीं है..हो सकता है अभी आप मेरी बात को हलके में लें..शायद हँसे भी लेकिन कल जब मैं अपनी कर्मठता से ये सच कर दिखाऊंगा तब शायद आप भी मेरे ऊपर गर्व करें.

और एक बात और मैं पथ प्रदर्शक नहीं हूँ मैं तो खुद उस मार्ग का एक पथिक हूँ. पर हाँ जब मैं एक दिन अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लूँगा तो पथ प्रदर्शक भी बन जाऊँगा.

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Old 23-03-2011, 09:53 AM   #17
Kumar Anil
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Originally Posted by gopal View Post
जिन लोगों का नाम मैंने लिया है उनके बारे में शायद ही कोई माननीय सदस्य ना जानता हो...हम सब उनकी सफलता और संघर्ष को पहले से जानते हैं.....
और मैं यह कहना चाहूँगा कि हर एक व्यक्ति में ये माद्द्दा होता है,,चाहे वो इस बात से परिचित हो या अपरिचित ...स्वामी विवेकानंदा ने कहा भी है....:"कभी मत सोचिये कि आत्मा के लिए कुछ असंभव है. ऐसा सोचना सबसे बड़ा विधर्म है.अगर कोई पाप है, तो वो यही है; ये कहना कि तुम निर्बल हो या अन्य निर्बल हैं."

और हम सब आत्मा ही तो हैं..हमारे लिए इस जग में कुछ भी असंभव नहीं है..हो सकता है अभी आप मेरी बात को हलके में लें..शायद हँसे भी लेकिन कल जब मैं अपनी कर्मठता से ये सच कर दिखाऊंगा तब शायद आप भी मेरे ऊपर गर्व करें.

और एक बात और मैं पथ प्रदर्शक नहीं हूँ मैं तो खुद उस मार्ग का एक पथिक हूँ. पर हाँ जब मैं एक दिन अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लूँगा तो पथ प्रदर्शक भी बन जाऊँगा.

ईश्वर करे आप अपने लक्ष्य को शीघ्र हासिल कर लेँ , मेरी सद्भावनायेँ आपके साथ हैँ ।
मुझे दुःख इस बात का है कि आपने मेरी बातोँ को अन्यथा लिया । मैँ पुनः उद्धृत करना चाहूँगा कि एक लेखक ने अपने article पर विचार माँगे थे , मैँने उस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की और तदोपरान्त वह बहस के रूप मेँ परिणत हो गयी और बहस विषयपरक होनी चाहिये । जो सफलता के शीर्ष को प्राप्त करते हैँ , उनके भीतर पागलपन की हद तक की एक धुन होती है , अर्जुन की तरह लक्ष्य पर निगाहेँ रहती हैँ , लक्ष्य के लिये एकनिष्ठ भाव से समर्पण रहता है , आवेग होता है , एक जुनून होता है और यही उनको सामान्यजनोँ से भिन्न करते हुये औरोँ की अपेक्षा अतिरिक्त ऊर्जा से लबरेज़ करता है जिसकी सहायता से वे अपने लक्ष्य की प्राप्ति करते हैँ । फिर वो चाहे करोड़पति होने की उत्कंठा हो या चाँद पर जाने का उद्दाम आवेग । चूँकि आपने लेखक की हैसियत से विचार माँगे थे और लेखक हमेशा पथप्रदर्शक होता है , रहनुमा होता है चाहे क्यूँ न वो बाबा नागार्जुन की तरह फक्खड़ी जीवन बिताता हो । विवेकानन्द ने क्या कहा था , नेपोलियन ने क्या कहा था , हम सब जानते हैँ । गीता , उपनिषद जो ज्ञानपूर्ण बात करते हैँ हममेँ से कितने अपने व्यवहारिक जीवन मेँ उतार पाते हैँ । हमारे भीतर छिपी असीम ऊर्जा का कितने प्रतिशत उपभोग कर पाते हैँ , यह बहस का अलग विषय है । प्रत्येक व्यक्ति का रंग रूप एक जैसा नहीँ होता , उसके विचार भिन्न होते हैँ , चिन्तन पृथक होता है , रुचियाँ असमान होती हैँ , तो ऐसी दशा मेँ अपने अनुरूप चीजोँ का चयन करते हैँ । आत्मा की बात की है तो आत्मा माया के फेर मेँ नहीँ रहती , उसे तो बस निराकार ब्रह्म से मिलने की चाह होती है ।
आपके स्टीव जोब्स वाले प्रकरण से भिज्ञ हूँ और आप एक ब्लॉगर हैँ , ऐसा मेरे संज्ञान मेँ लाया गया , अस्तु एक विद्वजन से अपेक्षायेँ कुछ ज़्यादा ही हो जाती हैँ जो आपके इस article से पूर्ण न हो सकीँ ।
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Old 24-03-2011, 06:47 AM   #18
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अमित जी
क्या आप सोचते है कि अपना काम होना चाहिए येन केन प्रकारेण
आपने उदाहरण दिया अम्बानी का ! क्या सिक्के गला कर या झूठ बोल कर बिल गेट्स की भान्ति? या इसी प्रकार का कोई भी अवैध कार्य करके सफ़लता पाना उचित लगता है आपको?
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Old 24-03-2011, 08:18 AM   #19
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Originally Posted by amit_tiwari View Post
अनिल जी आप आयु और अनुभव में मुझसे ज्यादा हैं अतः आप भी स्वीकारेंगे कि सफलता का सिर्फ एक तरीका होता है 'कठोर मेहनत और पक्का इरादा' | जिन्हें अपने लक्ष्य का पता है और जिन्हें वहाँ तक पहुचने से कम कुछ भी किसी भी हालत में मंजूर नहीं है उन्हें करोडपति क्या अरबपति बनने से कोई नहीं रोक सकता| अम्बानी ने रात रात सिक्के पिघला के पहली फैक्टरी के लिए धन जुटाया, सुब्रत सहारा ने टूटे स्कूटर, १ मेज और २ कुर्सी से धंधा जमाया, अमिताभ बच्चन ने एक एंकर की नौकरी के लिए ठोकर खायी, गोविंदा ने सरोज खान से विनती करके फ्री में डांस सीखा, बिल गेट्स ने झूठ बोल कर तब पहले सोफ्टवेयर बनाने का कोंट्रेक्त लिए जब उन्हें खुद पता ही नहीं था कि वो बनेगा भी या नहीं | यहाँ ये ध्यान देने योग्य नहीं है कि उन्होंने कितनी तकलीफे झेली, बिलकुल ध्यान मत दीजिये, ध्यान दीजिये सिर्फ इस बात पर कि उन्होंने जिस चीज के लिए ये सब कठिनाई देखि आज वही चीज उनकी पहचान है, अम्बानी आज भी पेट्रोलियम के रजा हैं, सुब्रत आज भी फाइनेंसिंग किंग हैं, अमिताभ कि आवाज पहचान है, गोविंदा डांस का दूसरा नाम है, बिल गेट्स को सोफ्टवेयर के लिए ही जाना जाता है | इन सबको तब अपने ऊपर भरोसा था जब उन्हें वो काम आता भी नहीं था | जिस किसी में भी इतना पागलपन है उसे कोई रोक ही नहीं सकता | गाँव में हो या शहर में, पढ़ा लिखा हो या नहीं, मौका मिले या नहीं वो सफल होगा | जो खुद को प्रतिभाशाली मानते हैं और रोना रोते हैं कि उन्हें अवसर नहीं मिला उन्हें मैं कहूँगा कि चुल्लू भर पानी तो मिला ना !!!! गोपाल जी ने एकदम ठीक उधृत किया कि असंभव सिर्फ मन कि कमजोरी को छिपाने का साधन है और कुछ भी नहीं | यदि सब कुछ करने के बाद भी सफलता नहीं मिलती तो हमें स्वीकारना चाहिए कि हमारे अन्दर वो बात ही नहीं थी कि हम सफल हो सकते|




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अमित जी , निश्चय ही उम्र मेँ बड़ा हूँ , सो पाँच दस बसंत , अनुभव के कुछ अधिक होँगे और ज्ञान एक सामान्य व्यक्ति जितना । मुझे कठोर मेहनत पक्का इरादा से कभी असहमति न थी , भाग्य का निर्माता सही दिशा मेँ किया गया कर्म ही है , ऐसा मैँ जानता हूँ । लेकिन मैँने लेख की परिधि मेँ , लेखक की भावना के दृष्टिगत ही , पाठक के रूप मेँ विचार व्यक्त किये थे । बहस का मुद्दा वह लेख है न कि उसमेँ समावेश न की गयी वो बातेँ जो लेख की समग्रता / पूर्णता के लिये अपरिहार्य हैँ । शेष चीजेँ गोपाल जी को सम्बोधित प्रविष्टि से स्पष्ट हैँ ।
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amit_tiwari
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अमित जी
क्या आप सोचते है कि अपना काम होना चाहिए येन केन प्रकारेण
आपने उदाहरण दिया अम्बानी का ! क्या सिक्के गला कर या झूठ बोल कर बिल गेट्स की भान्ति? या इसी प्रकार का कोई भी अवैध कार्य करके सफ़लता पाना उचित लगता है आपको?
मैं तीन सौ रुपैये के लिए चोरी करने वाले को बेवक़ूफ़ कहूँगा और तीन सौ करोड़ की चोरी छोड़ने वाले को बड़ा बेवक़ूफ़ कहूँगा |

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अमित जी , निश्चय ही उम्र मेँ बड़ा हूँ , सो पाँच दस बसंत , अनुभव के कुछ अधिक होँगे और ज्ञान एक सामान्य व्यक्ति जितना । मुझे कठोर मेहनत पक्का इरादा से कभी असहमति न थी , भाग्य का निर्माता सही दिशा मेँ किया गया कर्म ही है , ऐसा मैँ जानता हूँ । लेकिन मैँने लेख की परिधि मेँ , लेखक की भावना के दृष्टिगत ही , पाठक के रूप मेँ विचार व्यक्त किये थे । बहस का मुद्दा वह लेख है न कि उसमेँ समावेश न की गयी वो बातेँ जो लेख की समग्रता / पूर्णता के लिये अपरिहार्य हैँ । शेष चीजेँ गोपाल जी को सम्बोधित प्रविष्टि से स्पष्ट हैँ ।
मैं आपके द्वारा प्रारंभ की गयी चर्चा को विस्तार दे रहा था अनिल जी | आपके विचारों से मेरा मतभेद नहीं है |मुझे काफी सीमित विषय पसंद आते हैं इसलिए उन्हें ही विस्तार देता हूँ जिससे ज्यादा से ज्यादा गुणीजनों के विचार मिलें | गोपाल जी के लेख मुझे अच्छे लगे और उस पर आपकी समीक्षा ने इस सूत्र को जीवंत कर दिया | निश्चित ही आपके टिपण्णी गोपाल जी को अगली बार अपना लेख सम्पूर्ण करने को प्रेरित करेगी |
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