03-06-2015, 02:36 AM | #1 |
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तेरे रंग
किन रंगों से बनाई ये रंगीन , तरह तरह के रंगों वाली दुनिया तुमने किसी में भरा तुमने भोलेपन का रंग तो कहीं भर दिए आंसुओं के रंग कही मुश्किलों की चादर में लिपटे सफ़ेद रंग तो कहीं भर दिए हैं तूने खुशियों के लाल रंग क्यों दिया किसी- किसी को भोलेपन का रंग कहीं मुखौटो की आड़ में देखे हमने हजारो रंग जिसे दिया ये रंग तुमने, वो इस बेरंगी दुनिया के बाज़ार में मुर्ख कहलाता रहा पीठ पीछे हसते लोग उसके, सामने वो वाह वाही पाता रहा छल , कपट से भरी इस दुनिया को देकर सीधे, और भोलेपन का रंग, नेक लोगो की हंसी तू उड़वाता रहा फिर बनाये तूमने रिश्तो के रंग जिससे आज का इंसा अब घबरा रहा . चली गई है ओजस्विता रिश्तों की और न रही है, रिश्तों में गरिमा अब कोई स्वार्थ के ज़हर से अब वो रंग फीका सा लगा फिर बना दिए दर्द के रंग जिसमे तेरा ये इंसा हरपल हर पल छटपटाता रहा हो गए अपने भी परायों के ...,इंसा के मन से जीने का मजा जाता रहा ... ..कहीं मुखौटो की आड़ में देखे हमने हजारो रंग एक अर्ज मेरी भी सुन लो , बनाओ अगली दुनिया जब बनाना तो सिर्फ पशु पंखी बनाना पर भूल से इंसा न बनाना तुम .. |
03-06-2015, 12:21 PM | #2 |
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Re: तेरे रंग
बहुत सुुन्दर कविता, सोनी पुष्पा जी। भावनाओं की बेहतरीन अभिव्यक्ति जैसे कविता में ठूँस-ठूँस कर भरी गई है। पढकर दिल प्रसन्न हो गया। इतनी बेहतरीन कविता पहले कभी नहीं पढी। बडी उम्मीद थी कि हमारी आगामी रचना 'हिचकॉक के चमचे' के बाद ही आपकी कोई रचना आएगी, किन्तु इस बार तो आपने बाजी मार दी, पहले रिलीज़ करके। हार्दिक बधाईयाँ।
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03-06-2015, 06:24 PM | #3 | |
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Re: तेरे रंग
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03-06-2015, 10:31 PM | #4 |
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Re: तेरे रंग
बहुत सुंदर .... अद्वितीय. आपकी कविता वास्तव में गैर-मामूली कही जानी चाहिए. चाहे अनजाने में सही आपने समाज के उस तबके की भावनाओं या आक्रोश को व्यक्त किया है जो आर्थिक या सामाजिक तौर पर दबे-कुचले हैं, शोषित हैं और हाशिये पर रहने के लिए अभिशप्त हैं. क्या कविता की अंतिम चार पंक्तियाँ इनकी आत्मा की पुकार प्रतीत नहीं होती?
एक अर्ज मेरी भी सुन लो, बनाओ अगली दुनिया जब बनाना तो सिर्फ पशु पंखी बनाना पर भूल से इंसा न बनाना तुम .. उक्त कविता के लिये मेरा धन्यवाद स्वीकार करें, बहन.
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04-06-2015, 02:36 AM | #5 | |
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Re: तेरे रंग
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अद्वितीय कहकर इस कविता को आपने जिस तरह सम्मानित किया हैऔर इस कविता के भावों को समझा है इससे बेहद् ख़ुशी हुई मुझे , और आगे लिखने का प्रोत्साहन भी मिला है मुझे .. हार्दिक आभार के साथ बहुत बहुत धन्यवाद भाई ... |
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05-06-2015, 01:04 PM | #6 |
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Re: तेरे रंग
गायिका राजेश्वरी लूम्बा के अल्बम के गीत 'मैंने देखे हैं सभी रंग दुनिया के... ये दुनिया बड़ी रंगीली...' के कॉन्सेप्ट की बेहतरीन काट-छाँट के बाद एक सुन्दर कविता की रचना के प्रयास में आपने सफलता अर्जित की है। बधाइयाँ।
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05-06-2015, 01:16 PM | #7 | |
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Re: तेरे रंग
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आप जेइसा की जानते ही है मुझे फिल्मो और गीतों में कोई रूचि नहीं किन्तु हरबार आपसे ही पता चलता है की मेरी कविता मेरे लेख सब फिल्मो के गीतों से लिए गए है तो मेरा ये अहोभाग्य है की मैं इतना कर सकती हूँ रजत जी बताने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद |
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05-06-2015, 04:31 PM | #8 | |
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Re: तेरे रंग
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संक्षेप में एक कहानी सुनाउंगा जो आपने शायद कहीं पर सुनी ही होगी। एक ग्वाला अपनी भेड़-बकरी को चराने के लिए पहाड पर ले जाता था। वहां एक मंदिर पर वह रोज प्रार्थना करता। एक बार एक प्रखर पण्डित वहां पुजा कर रहा था। उसने देखा की यह ग्वाला पुजा कर रहा है । पण्डित ने उसे ध्यान से सुना तो पता चला की ग्वाला कह रहा था, "भगवान, यहां पहाड पर तुम भी अकेले हो और मैं भी। मै फुरसत में अपनी भेडों के शरीर से जुंए निकालता रहता हुं। आप के ईतने लंबे बाल है तो आपके सर में भी कितनी जुंए होंगी! आप आईए मैं आपके सर से भी जुंए निकाल दुंगा " पण्डित को यह सुन क्रोध और दया दोनों आते है। उसने क्रोध को काबु कर के दयाभाव से उस ग्वाले को सिखाया की यह पुजा-प्रार्थना क्या है, कैसे करते है। उसे यह भी समझाया वह एसी निम्न प्रार्थना कर के कितना बड़ा पाप कर रहा है। ग्वाले के जाने के बाद पण्डित अपना बैलेन्स (मतलब पाप-पुण्यों का लेखाजोखा...उस समय मोबाईल नहीं हुआ करते थे) चेक करता है। उस ने देखा की ग्वाला अपनी प्रार्थना से पंण्डित से कई गुना आगे मोक्ष की तरफ पहूंच चुका था! ईसी बीच भगवान ने प्रकट हो कर पण्डित को ज्यादा हुशियारी करने के लिए डांट भी पिलाई। उसे ग्वाले की वह भोली प्रार्थना ही कर्मकाण्डी पण्डित की पुजा से अधिक लगा! आप 'भाव' को जानती है....मेरे रिप्लाय के भाव को भी जान जाईएगा ! अस्तु! Last edited by Deep_; 05-06-2015 at 04:47 PM. |
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05-06-2015, 04:44 PM | #9 |
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Re: तेरे रंग
हाँ, यह बात तो पता है और यह बडे़ ही आश्चर्य की बात है कि इस 'फिल्मयुग' में आपका फिल्मों, फिल्मी गीतों, अल्बम, टी०वी० सीरियल, विशेष तौर से कॉमेडी नाइट्स, रेडियो, रेडियो ड्रामा, हीरो-हीरोइन, डायरेक्टर, प्रोड्यूसर, संगीतकार और लेखकों से कोई नाता नहीं। किन्तु आपकी अद्वितीय लेखन-क्षमता को देखते हुए मेरा दिल कहता है कि यदि आप दिल से कोशिश करें तो अगले दस वर्षों में आप सेंसर-बोर्ड की अध्यक्ष बन सकती हैं। कड़ी मेहनत से क्या नहीं होता? आपने देखा नहीं- पवित्रा जी ने कड़ी मेहनत की और सुन्दर-सुन्दर कविताएं लिखने लगीं।
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05-06-2015, 06:33 PM | #10 |
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Re: तेरे रंग
[QUOTE=Rajat Vynar;551496]हाँ, यह बात तो पता है और यह बडे़ ही आश्चर्य की बात है कि इस 'फिल्मयुग' में आपका फिल्मों, फिल्मी गीतों, अल्बम, टी०वी० सीरियल, विशेष तौर से कॉमेडी नाइट्स, रेडियो, रेडियो ड्रामा, हीरो-हीरोइन, डायरेक्टर, प्रोड्यूसर, संगीतकार और लेखकों से कोई नाता नहीं। किन्तु आपकी अद्वितीय लेखन-क्षमता को देखते हुए मेरा दिल कहता है कि यदि आप दिल से कोशिश करें तो अगले दस वर्षों में आप सेंसर-बोर्ड की अध्यक्ष बन सकती हैं। कड़ी मेहनत से क्या नहीं होता? आपने देखा नहीं- पवित्रा जी ने कड़ी मेहनत की और सुन्दर-सुन्दर कविताएं लिखने लगीं।[/QUOTE
कहानी लिखने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ... रजत जी |
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