09-01-2011, 07:27 AM | #101 |
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,259
Rep Power: 34 |
Re: ~!!महाभारत!!~
महाभारत के युद्ध मे कई तरीके के हथियार प्रयोग मे लाये गये। प्रास, ऋष्टि, तोमर, लोहमय कणप, चक्र, मुद्गर, नाराच, फरसे, गोफन, भुशुण्डी, शतघ्नी, धनुष-बाण, गदा, भाला, तलवार, परिघ, भिन्दिपाल, शक्ति, मुसल, कम्पन, चाप, दिव्यास्त्र, एक साथ कई बाण छोड़ने वाली यांत्रिक मशीनें। प्राचीन कांस्य युग के अस्त्र-शस्त्र |
09-01-2011, 07:35 AM | #105 |
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,259
Rep Power: 34 |
Re: ~!!महाभारत!!~
सैन्य संरचनाएँ
प्राचीन समय में युद्ध के के समय में सेनापति को सेना के कई व्यूह बनाने पड़ते थे जिससे की शत्रु की सेना में आसानी से प्रवेश पाया जा सके तथा राजा और मुख्य सेनापतियों को बन्दी बनाया या मार गिराया जा सके। इसमें अपनी सम्पूर्ण सेना को व्यूह के नाम या गुण वाली एक विशेष आकृति मे व्यवस्थित किया जाता है। इस प्रकार की व्यूह रचना से छोटी से छोटी सी सेना भी विशालकाय लगने लगती है और बड़ी से बड़ी सेना का सामना कर सकती है जैसा की महाभारत के युद्ध में पाण्डवों की केवल ७ अक्षौहिणी सेना ने कौरवो की ११ अक्षौहिणी सेना का सामना करके यह सिद्ध कर दिखाया। महाभारत के १८ दिन के युद्ध में दोनों पक्ष के सेनापतियों द्वारा कई प्रकार के व्यूह बनाये गए। जो निम्नलिखित हैं- |
09-01-2011, 07:40 AM | #107 |
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,259
Rep Power: 34 |
Re: ~!!महाभारत!!~
युद्ध का प्रारम्भ और अंत
कुरुक्षेत्र की तरफ प्रस्थान करती पाण्डव और कौरव सेनाएँ,स्रोत |
09-01-2011, 07:42 AM | #108 |
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,259
Rep Power: 34 |
Re: ~!!महाभारत!!~
युद्ध के नियम बनाये जाना
पाण्डवों ने अपनी सेना का पड़ाव समन्त्र पंचक तीर्थ पास डाला और कौरवों ने उत्तम और समतल स्थान देखकर अपना पड़ाव डाला। उस संग्राम में हाथी, घोड़े और रथों की कोई गणना नहीं थी। पितामह भीष्म की सलाह पर दोनों दलों ने एकत्र होकर युद्ध के कुछ नियम बनाये। उनके बनाये हुए नियम निम्नलिखित हैं- |
09-01-2011, 07:43 AM | #109 |
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,259
Rep Power: 34 |
Re: ~!!महाभारत!!~
युद्ध से पूर्व
इस प्रकार युद्ध संबंधी नियम बना कर दोनों दल युद्ध के लिये प्रस्तुत हुए। पाण्डवों के पास सात अक्षौहिणी सेना थी और कौरवों के साथ ग्यारह अक्षौहिणी सेना थी। दोनों पक्ष की सेनाएँ पूर्व तथा पश्*चिम की ओर मुख करके खड़ी हो गयीं। कौरवों की तरफ से भीष्म और पाण्डवों की तरफ से अर्जुन सेना का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। कुरुक्षेत्र के केवल ५ योजन(४० किलोमीटर) के क्षेत्र के घेरे मे दोनों पक्ष की सेनाएँ खड़ी थीं। युद्ध से पूर्व अर्जुन श्रीकृष्ण से अपने रथ दोनों सेनाओं के मध्य में ले जाने को कहते हैं जिससे वह यह देख ले कि युद्ध में उसे किन किन योद्धाओं का सामना करना है। जब अर्जुन युद्ध क्षेत्र में अपने गुरु द्रोण, पितामह भीष्म एवं अन्य संबंधियों को देखता है तो वह बहुत शोकग्रस्त एवं उदास हो जाता है। वह श्रीकृष्ण से कहता है कि जिनके लिये हम ये सारे राजभोग प्राप्त करना चाहते हैं, वे तो यहाँ इस युद्ध क्षेत्र में उसी राजभोग की प्राप्ति के लिये हमारे विपक्ष मे खड़े हैं इन्हें मारकर हम राज प्राप्त करके भी क्या करेगें। अतएव मैं युद्ध नहीं करूँगा, ऐसा कहकर अर्जुन अपने धनुष रखकर रथ के पिछले भाग में बैठ जाता है तब श्रीकृष्ण योग में स्थित होकर उसे गीता का ज्ञान देते हैं और कहते हैं कि संसार में जो आया है उसको एक ना एक दिन जाना ही पड़ेगा। यह शरीर और संसार दोनों नश्वर हैं परन्तु इस शरीर के अन्दर रहने वाला आत्मा शरीर के मरने पर भी नहीं मरता। जिस तरह मनुष्य पुराने वस्त्र त्याग कर नये वस्त्र पहनता है उसी प्रकार आत्मा भी पुराना शरीर त्याग कर नया शरीर धारण करती है इसको तुम ऐसे समझो कि यह सब प्रकृति तुम से करवा रहीं है तुम केवल निमित्त मात्र हो। श्रीकृष्ण अर्जुन को ज्ञान योग,भक्ति योग और कर्म योग तीनों की शिक्षा देते हैं जिसे सुनकर अर्जुन युद्ध के लिये तैयार हो जाता है। |
Bookmarks |
|
|