05-11-2018, 09:05 AM | #1 |
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भूखी हैं क्या मूर्तियाँ
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ कंगाली है साथ तो, क्या मंदिर क्या धाम। पेट भरेगा क्या भला, जपने से बस नाम। जपने से बस नाम, गरीबी जायेगी क्या। कर्म-कांड की रीति, कष्ट को खायेगी क्या। बिना किये कुछ काम, यज्ञ, पूजा की थाली। कर देगी क्या दूर, यहाँ जो है कंगाली।। भूखी हैं क्या मूर्तियाँ, लगा रहे हो भोग। दुनिया में हैं बहुत से, भूखे नंगे लोग। भूखे नंगे लोग, बिलखते ठोकर खाते। मगर मान्यवर आप, मूर्ति को भोग लगाते। करना है जो धर्म, खिला दो रूखी-सूखी। उस आत्मा को बंधु, जिसे तुम समझो भूखी।। रचना- आकाश महेशपुरी ●●●●●●●●●●●●●● वकील कुशवाहा "आकाश महेशपुरी" ग्राम- महेशपुर पोस्ट- कुबेरस्थान जनपद- कुशीनगर उत्तर प्रदेश Last edited by आकाश महेशपुरी; 06-11-2018 at 04:03 AM. |
07-11-2018, 10:16 PM | #2 |
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Re: भूखी हैं क्या मूर्तियाँ
धार्मिक आडंबर को लेकर एक सशक्त कटाक्ष. बहुत सुंदर.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
24-11-2018, 01:03 PM | #3 |
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Re: भूखी हैं क्या मूर्तियाँ
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