11-09-2018, 07:43 AM | #1 |
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ग़ज़ल- ...सहारे डूब जाते हैं
★★★★★★★★★★★★★★ धरा ये चांद सूरज और तारे डूब जाते हैं नज़र के बन्द होते ही नज़ारे डूब जाते हैं ये नाते और यारी हाय दुनिया के सभी रिश्ते हमारी साँस के जाते हमारे डूब जाते हैं यहाँ कुछ भी करो कुछ भी बनाओ पर न जाने क्यूँ समय की मार पड़ते ही सहारे डूब जाते हैं सफर ये जिंदगी का एक ऐसा है सफर जैसे नदी को जीतने वाले किनारे डूब जाते हैं भला "आकाश" कोई चीज दुनिया में टिकी है क्या दिखाई दे रहे लेकिन ये सारे डूब जाते हैं ग़ज़ल- आकाश महेशपुरी ■■■■■■■■■■■■■■■ वकील कुशवाहा "आकाश महेशपुरी" ग्राम- महेशपुर पोस्ट- कुबेरस्थान जनपद- कुशीनगर उत्तर प्रदेश पिन- 274304 मोबाईल- 9919080399 |
07-10-2018, 10:34 PM | #2 | |
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Re: ग़ज़ल- ...सहारे डूब जाते हैं
Quote:
कई दिनों के बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ने को मिली. ख़ुशी हुई. बहुत बहुत धन्यवाद.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
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27-10-2018, 09:25 AM | #3 |
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Re: ग़ज़ल- ...सहारे डूब जाते हैं
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