04-01-2013, 05:18 PM | #11 |
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Re: नया साल और अन्य रचनायें
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04-01-2013, 09:55 PM | #12 | |
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Re: नया साल और अन्य रचनायें
Quote:
मित्र अलैक जी, अभिषेक जी और मलेथिया जी, कविताओं के इस संकलन को पसंद करने के लिए आपका ह्रदय से आभारी हूँ. गत ३० दिसंबर से २ जनवरी तक में राजस्थान के दौरे पर गया था अतः फोरम से गैर-हाजिर रहा. आते ही नव वर्ष के उपलक्ष्य में हिंदी के कुछ प्रतिष्ठित कवियों के सनातन उद्गार प्रस्तुत करना चाहता था व आज के माहौल की तर्जुमानी करने वाली कुछ रचनाएं पाठकों के सम्मुख रखना चाहता था. सच तो यह है कि इन कविताओं ने मुझे भीतर तक उद्वेलित किया है. |
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09-01-2013, 09:14 PM | #14 |
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Re: नया साल और अन्य रचनायें
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09-01-2013, 09:32 PM | #15 |
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Re: नया साल और अन्य रचनायें
इस्तफ़सार (शायर: जगन्नाथ आज़ाद)
ए कि है अहसास की गहराई में तेरा मकाम आज फिर जज़्बात की दुनियाँ है तुझसे हमकलाम. गरचे मुबहम है मगर फिर भी ये राज़ सुन तू जहाँ भी जिस तरह भी ऐ मेरी आवाज़ सुन. जब फरेबे रंगों बू से तू जुदा होके चली इस जहाने ज़िन्दगानी से खफ़ा होकर चली. तू है जिस दुनिया में वह भी इस तरह दुनिया है क्या? यानी इन्सां की वहां भी आरज़ू रुसवा है क्या ? मरने वाली! वह जहाँ भी है जहाने-संगो-खिश्त क्या वहां भी ज़िंदगानी है असीर-ए-खूब-ओ-ज़िस्त. क्या वहां भी है बशर तारों की गर्दिश में असीर या है कोकब ज़िंदगानी का अज़ल से मुस्तबीर. वह भी क्या इसकी तरह है इक जहाने-खैर-ओ-शर क्या वहां भी ज़िन्दगी है खैर-ओ-शर से बेखबर. क्या वहां भी ज़िन्दगी का है युहीं अंजाम मौत फैंक देती है वहां भी सरखशी पर दाम मौत. तायरों की और सैय्यादों की दुनिया वह भी है शोर चीखों और फरियादों की दुनिया वह भी है. क्या वहां भी रूहे-इन्सां दर्द से आबाद है फ़िक्र-ए-इन्सां पाबै-गिल है ज़िन्दगी नाशाद है. क्या वहां भी नाला-ओ-फ़रियाद से कुहराम है क्या वहां भी आदमी नाकाम ही नाकाम है. इस्तफ़सार = किसी के बारे में कुरेद कुरेद कर पूछना/ मुबहम = संदेहपूर्ण / जहाने-संगो-खिश्त = पत्थर और ईंट से बना संसार असीर-ए-खूब-ओ-ज़िस्त = बुराई और भलाई में फंसा हुआ / बशर = आदमी / कोकब = ग्रह नक्षत्र / अज़ल = अनादि काल से / मुस्तबीर = रौशन / जहाने-खैर-ओ-शर = नेकी बदी की दुनिया / सरखशी = ख़ुशी / दाम = जाल / तायरों = पक्षियों / सैय्याद = शिकारी / फ़िक्र-ए-इन्सां = आदमी की सोच / पाबै-गिल = कीचड़ में फंसी / नाशाद = दुखी / नाला-ओ-फ़रियाद = कातर स्वर में की गयी पुकार और प्रार्थना Last edited by rajnish manga; 10-01-2013 at 11:49 AM. |
10-01-2013, 11:52 AM | #16 |
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Re: नया साल और अन्य रचनायें
गुमशुदगी
(शायर: जगन्नाथ आज़ाद) खिरद जहाने--इंतेशार में उलझ के रह गई , नज़र तलब के खारज़ार में उलझ के रह गयी, कभी खिज़ां कभी बहार में उलझ के रह गई. उस मुकाम का पता न चल सका जहाँ है तू, जो इब्तिदा में खत्म हो गई वो दास्ताँ है तू, खबर नहीं कहाँ है तू खबर नहीं कहाँ हे तू . तेरा निशाँ न मिल सका फजाए-करबो-दूर में, सितारा – ए - उम्मीद खो गया हजूमे-नूर में, चमक किरन की गर्क हो गई ज़िआए-तूर में! खिरद = बुद्धि /जहाने—इंतेशार = संघर्ष मय जीवन /तलब = मांग / खारज़ार = झाड़ झंखाड़ / फजाए-करबो-दूर = दूर और निकट के किसी भी स्थान पर / हजूमे-नूर = प्रकाश पुंज / गर्क = डूब जाना / ज़िआए-तूर = वह पर्वत जिस पर हज़रत मूसा को खुदा का जलवा प्रकाश पुंज के रूप में दिखा था |
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