02-01-2013, 07:18 AM | #1 |
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कभी तो मेरे सब्र पे भी ऐतबार करो
मेरी वफ़ा से ज़फ़ाओं का क़ारोबार . नित नये ऐब गिना , मुझसे दूर होते रहो ; मुझे मेरी ही निगाहों में शर्मसार करो . मुझे भी शौक़ है ग़ज़लों में नाम करने का ; मेरे भी दिल से खेल करके तार - तार करो . ज़माना मेरी तरफ़ मुड़ के देखने तो लगे ; मेरे दामन पे क़रम करके दागदार करो . अपने तलवार से काजल को ज़रा ज़ेहमत दो ; बड़ी अदा से क़लेजे के आर - पार करो . मेरी ख़्वाहिश है कि तुम और भी हसीन दिखो ; अपनी मेंहदी में मेरे खून से निख़ार करो . फूल ग़र टूट भी जाये तो ख़ुशनसीबी है ; तुम अग़र गेसुओं में टाँक कर सिंगार करो . इतने ज़ख्मों से नवाज़ो कि ग़ज़ल रिसती रहें ; अपनी फ़ितरत का मेरे ज़रिये इश्तेहार करो . ज़िन्दगी के लिए वादा भले करो न करो ; मौत पे शर्तिया आने का ही करार करो . रचयिता ~~ डॉ .राकेश श्रीवास्तव विनय खण्ड - 2 ,गोमती नगर , लखनऊ . (शब्दार्थ ~ ज़फ़ा = अन्याय , क़रम = कृपा , ज़ेहमत = कष्ट , फ़ितरत = स्वभाव )
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https://www.facebook.com/media/set/?...1&l=730169e4e8 Last edited by Dr. Rakesh Srivastava; 02-01-2013 at 12:53 PM. |
04-01-2013, 07:40 AM | #2 |
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Re: कभी तो मेरे सब्र पे भी ऐतबार करो
बहुत ही सुन्दर कविता है राकेश जी।
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अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
04-01-2013, 12:28 PM | #3 | |
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Re: कभी तो मेरे सब्र पे भी ऐतबार करो
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04-01-2013, 03:27 PM | #4 | |
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Re: कभी तो मेरे सब्र पे भी ऐतबार करो
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एक और शानदार रचना। |
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04-01-2013, 09:27 PM | #5 |
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Re: कभी तो मेरे सब्र पे भी ऐतबार करो
[QUOTE=Dr. Rakesh Srivastava;203182]
ज़माना मेरी तरफ़ मुड़ के देखने तो लगे ; मेरे दामन पे क़रम करके दागदार करो . मेरी ख़्वाहिश है कि तुम और भी हसीन दिखो ; अपनी मेंहदी में मेरे खून से निख़ार करो . बहुत सुन्दर गज़ल है, डॉ. श्रीवास्तव. विशेष रूप से उपरोक्त दोनों शे'र उल्लेखनीय हैं और गहरा असर छोड़ते हैं. |
04-01-2013, 10:27 PM | #6 |
Diligent Member
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Re: कभी तो मेरे सब्र पे भी ऐतबार करो
नित नये ऐब गिना , मुझसे दूर होते रहो ;
मुझे मेरी ही निगाहों में शर्मसार करो . sunder abhivyakti stik sabdavli nice presentation or bhavo se bhari ek adbhut kavita . very nice weldone dr sahab |
05-01-2013, 10:46 AM | #7 |
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Re: कभी तो मेरे सब्र पे भी ऐतबार करो
बेहतर सृजन है, कविवर। प्रस्तुति के लिए धन्यवाद।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
07-01-2013, 09:04 AM | #8 |
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Re: कभी तो मेरे सब्र पे भी ऐतबार करो
सर्वश्री अभिशेष जी , आवारा जी , डार्क सेंट जी , मलेथिया जी , मुल्लू जी , रजनीश माँगा जी एवं सोमवीर नामदेव जी ; आप सभी का रचना को पढ़ने , पसंद करने तथा प्रतिकिया देकर प्रोत्साहित करने हेतु विशेष आभार व्यक्त करता हूँ . अनेकों उन सम्मानित अज्ञात पाठकों का भी आभारी हूँ , जिन्होंने कोई चिन्ह विशेष नहीं छोड़े .
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