03-01-2013, 05:48 PM | #1 |
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नया साल और अन्य रचनायें
(रचना: सीतेश आलोक) हे प्रभु ..... किसी भूखे के घर जैसे चूल्हा जले रोटी की गंध फैले और पतीली में दाल खद्बदाये हे प्रभु ..... कुछ इस तरह नया साल आये. कहीं कोई सूखा खेत दिखे तो व्यथा से उसकी आकाश का सीना भर आये गड़गड़ाहट जैसी सिसकियों के साथ आँखों का बाँध टूटे और संवेदना के निर्मल आंसुओं से हर फसल की प्यास बुझ जाए हे प्रभु --- कुछ इस तरह नया साल आये. कहीं कोई गोली न चले न धनुष से कोई बाण निकले न किसी क्रोंच की जोड़ी टूटे, और बिना कोई वध देखे ही हर वाल्मीकि को कोई नया छंद मिल जाये हे प्रभु --- कुछ इस तरह नया साल आये. (4 जनवरी 1987 के ‘धर्मयुग’ से साभार) |
03-01-2013, 06:01 PM | #2 |
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Re: नया साल और अन्य रचनायें
नए साल में
(रचना: अनिकेत) शुरू हो रहा वर्ष नया नव वर्ष मुझे मंगलमय हो जितने दिन हैं नए वर्ष में उनसे ज्यादा सूर्योदय देखूँगा मैं और कहीं ज्यादा संध्याएँ देखूँगा जाने कितने बसंत खिलेंगे वर्षा होगी, शरद-पूर्णिमाएँ आयेंगी बीजेंगे, काटेंगे फसलें कृषक न जाने कितनी-कितनी सद्विचार जागेगा जब भी कोई मन में एक नया सूर्योदय होगा द्वन्द्वमुक्त जब भी होऊंगा आँगन में स्वर्णिम संध्या उतरेगी जब भी चित्त चहकेगा मेरा देख दूसरों की खुशियों को सौरभमय बसंत आएगा करुणा से या कृतज्ञता से जब भी भीगेंगी पलकें जीवन देने वाली वर्षा उतरायेगी एक तंतु भी जब टूटेगा स्वास्थ्य वाला या फिर भय का शरद पूर्णिमा झरकेगी झर-झर-झर-झर-झर बीज बोऊंगा मैं सेवा के मैत्री की फसलें काटूँगा हर दिन, हर पल, पूरा साल अंधकार के औ प्रकाश के पल-पल का परिमाण बराबर है निसर्ग में किन्तु मेरे नए साल में बहुत अधिक उजियाला होगा लम्बे अंधकार के पल कम होंगे, छोटे होंगे. (नवनीत हिंदी डाइजेस्ट/ जनवरी २०१२ से साभार) Last edited by rajnish manga; 03-01-2013 at 06:04 PM. |
03-01-2013, 06:06 PM | #3 |
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Re: नया साल और अन्य रचनायें
नए साल के नाम
(रचना: दिनेश शुक्ल) हल्दी अक्षत नारियल, लाई बताशे पान. नए साल के आंगने, घूम रही मुस्कान. चन्दन गंध सुगंध की,दूध दुले दो पाँव, दिन के दरवाजे खड़ी, नए साल की छाँव. धान कूटते गूंजते, गीत हवा के साथ, बिछ्वे आँगन में बजे हंसाने लगे प्रभात. नए साल की सुबह का छलका छलका रूप, सूरज गलियों में खड़ा, कड़ी अटारी धूप. मिली शहर को चिट्ठियां, नए साल के नाम, लिखा गाँव की धूल ने, यादों भरा प्रणाम. नए वर्ष का स्वागतम, करता है भूगोल, दे कर मंगल कामना, बीड़ा हो गए बोल. सुख, दुःख, सपने, चाँदनी, गाँव, गली, चौपाल, शहर, कसबे, महानगर, शुभ हो सबको साल. (नवनीत हिंदी डाइजेस्ट/मार्च १९९१ से साभार) |
03-01-2013, 06:09 PM | #4 |
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Re: नया साल और अन्य रचनायें
दोहे
(रचना: सतीश आर्य) हुए नीम से दिवस अब, नागफनी सी रात, चौराहों पर हो रहे, बात बात में घात. कई दशक से दीखता, है सूरज बीमार, नित्य सवेरे भेजता, खून सना अखबार. मंदिर मस्जिद तोड़ कर, हंसते रोज गुलाब, अपनी ही माँ का यहाँ, करते दूध खराब. अधर अधर की आह जब, उठी कलेजे हूक, न्याय-नियम बौने पड़े, बड़ी हुयी बन्दूक. (नवनीत हिंदी डाइजेस्ट/ दिसंबर २००३ से साभार) |
03-01-2013, 06:11 PM | #5 |
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Re: नया साल और अन्य रचनायें
शाश्वत यात्रा
(भारत भूषण) भूकंप हो या आग हो तूफ़ान हो या बाढ़ हो सहता हुआ चलता सभी जीवन ठहरता ही नहीं .... हर त्रासदी दो चार दिन की राक्षसी मेहमान है कुछ भी ढहे कुछ भी बहे सब रास्ते के दृश्य हैं बस देखता चलता सभी जीवन ठहरता ही नहीं ..... गांडीव हो या शार्ङ्ग हो या फिर सुदर्शन, नाम हैं क्षण वर्ष बन बन खो गये रातें रहीं निष्काम हैं कब कौन आया या गया हैं होंठ क्षितिजों के सिले ठहरी हुयी है सृष्टि पर जीवन ठहरता ही नहीं है. |
03-01-2013, 06:15 PM | #6 |
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Re: नया साल और अन्य रचनायें
गज़ल
आज के जलते हुए माहौल के मंज़र न दो (रचना: राजेंद्र तिवारी) आज के जलते हुए माहौल के मंज़र न दो. ये तो खिलते फूल हैं इनको अभी पत्थर न दो. इनकी आँखों में अभी जलने हैं ख़्वाबों के दिए, इन निगाहों में अभी से आँधियों का डर न दो. ये न हों दुनिया के जंगल में भटकते ही रहें, इनको मंजिल का पता दे दो कोई रहबर न दो. ये तुम्हीं को देख कर सीखेंगे जीने का चलन, तुम विरासत में इन्हें तहजीब के खँडहर न दो. |
03-01-2013, 06:30 PM | #7 |
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Re: नया साल और अन्य रचनायें
कौमें
(रचना: संतोख सिंह धीर) वह महा बेवक़ूफ़ था या वह बेईमान था या वह शैतान था जिसने कौमे बनायीं रूसी और चीनी अंग्रेज और अमरीकी यह भी कौमें नहीं है! कौमे तो सिर्फ दो ही है: एक कौम इंसान की दूसरी कौम हैवान की एक कौम कविता की, राग की और नाच की, दूसरी बर्बरीयत की. (साहित्य मार्ग / दिसंबर २००४ / पब्लिकेशन ब्यूरो, पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला से साभार) |
03-01-2013, 07:41 PM | #8 |
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Re: नया साल और अन्य रचनायें
अद्भुत, समयानुकूल संग्रह। प्रस्तुति के लिए आपका हार्दिक आभार, रजनीशजी।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
04-01-2013, 04:10 PM | #9 |
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Re: नया साल और अन्य रचनायें
नए साल पर फोरम को आपकी तरफ से यह शानदार तोहफा है
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अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
04-01-2013, 04:52 PM | #10 |
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Re: नया साल और अन्य रचनायें
शानदार रचना संकलन के लिए आपका बहुत आभार ...........
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