04-01-2013, 10:29 PM | #1 |
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जाने मैं कहाँ जा रहा हूँ !!
जाना कहाँ था जाने मुझको जाने मैं कहाँ जा रहा हूँ !! नोच रही है मेरी तन्हाई मुझको अकेले में महफ़िलों में वक़्त से निरंतर मात खा रहा हूँ !! कोशिश की थी जीने की बहूत मैंने उसके लिए मौत को गले से आज उसके कहे पे लगाने जा रहा हूँ !! खो चूका गर्दिशो में जिसका जमीर ''' नामदेव ''' सो चुकीउसकी आत्मा को मैं फिर से क्यों जगा रहा हूँ !! सोमबी नामदेव गाँव डाया जिला हिस्सार ( हरियाणा ) 9321083377 |
05-01-2013, 10:44 AM | #2 |
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Re: जाने मैं कहाँ जा रहा हूँ !!
अच्छा शब्द चित्र है, सोमवीरजी। प्रस्तुति के लिए धन्यवाद।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
09-01-2013, 08:23 PM | #3 |
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Re: जाने मैं कहाँ जा रहा हूँ !!
[QUOTE=sombirnaamdev;204439]
कोशिश की थी जीने की बहूत मैंने उसके लिए मौत को गले से आज उसके कहे पे लगाने जा रहा हूँ !! बहुत अच्छा लिखा है आपने, सोमबीर जी. ज़िन्दगी के हैं अनेकों रूप, क्या क्या देखिये? एक सुन्दर रचना के लिए धन्यवाद्. 'साहिर' की चार पक्तियां पेश हैं: किस तरह तुमको बना लूँ मैं शरीके-ज़िन्दगी मैं तो अपनी ज़िन्दगी का बार उठा सकता नहीं (भार) यास की तारीकियों में डूब जाने दे मुझे (निराशा का अंधकार) अब मैं शम'ए-आरज़ू की लौ बढ़ा सकता नहीं. |
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