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18-04-2012, 08:37 PM | #1 |
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जिसने ग़म को साध लिया
चितवन करती काम तमाम ;
क़ातिल बनता है अन्जान . जब से उनसे आँख लड़ीं ; कितना छोटा हुआ जहान . पत्थर में धड़कन ढूंढें ; उम्मीदें कितनी नादान . वो मेरे ख़ातिर क्या हैं ; उनको शायद नहीं गुमान . आँखों में वो कौंध उठें ; कानों में जब पड़े अजान . हुस्न हमेशा ईद मनाये ; आशिक की किस्मत रमजान . जिसने ग़म को साध लिया ; जग में पायी है पहचान . ज़ख्म सजाकर पेश किये ; ग़ज़लों की चल पड़ी दुकान . रचयिता ~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव विनय खण्ड - 2, गोमती नगर , लखनऊ . |
18-04-2012, 08:55 PM | #2 |
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Re: जिसने ग़म को साध लिया
काफी दिनों के बाद आपकी नयी कविता पढने का मौका मिला, बहुत ही अच्छा लगा. अब तो आपकी नयी रचनाओ की आदत सी हो गयी है.
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अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
19-04-2012, 08:43 PM | #3 |
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Re: जिसने ग़म को साध लिया
मित्र , काफी दिनों बाद इस लिए लिख पाया क्योंकि किसी के सुझाव पर उत्सुकतावश विगत एक माह से फेस बुक की ख़ाक छान रहा था , इसी व्यस्तता व नए चस्के के कारण लय बिगड़ गयी थी . फलस्वरूप कोई रचना ही नहीं सूझ रही थी .और कोई दूसरी वजह नहीं है देरी की . फिलहाल ये तय है कि जब भी कुछ नया लिख पाऊंगा तो सर्व प्रथम आप लोगों के सम्मुख ही प्रस्तुत होऊंगा .फोरम की तो बात ही कुछ और है .
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19-04-2012, 09:52 PM | #4 | |
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Re: जिसने ग़म को साध लिया
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20-04-2012, 07:32 PM | #5 |
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Re: जिसने ग़म को साध लिया
मित्र अनूप जी आपका शुक्रिया . आपने सही कहा , मेरा प्रयास सदैव ये रहा है कि आम जन की सरल भाषा में नए तरीके से अपनी बात को लयबद्ध करते हुए कहूं . मेरे विचार से अधिकाधिक लोगों तक पैंठ बनाने का ये एक कारगर तरीका हो सकता है . देर से लिखने का एक ये भी कारण है कि आप सबके भरोसे व उम्मीद को कायम रखने के लिए मैं चाहता हूँ कि मैं अगली रचना जब भी पूरी करूं तो वह पहले से बेहतर हो . हाँ ये अलग बात है कि कभी - कभी मैं इसमें भी सफल व संतुष्ट नहीं हो पाता .
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18-04-2012, 09:51 PM | #6 |
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Re: जिसने ग़म को साध लिया
जिसने ग़म को साध लिया ; जग में पायी है पहचान . ज़ख्म सजाकर पेश किये ; ग़ज़लों की चल पड़ी दुकान . डा . साहब आपकी ये रचना काव्य शास्त्र के अथाह सागर से चुन के लाया हुआ एक नायाब हीरा है , सच पूछिए तो आपकी इन्ही कविताओं ने हमें कविताओ शोकीन बना दिया है , और हमें साहित्य की डगर पर धकेलने वाले आप और सिर्फ आप है ,धन्यवाद एक बार फिर से , |
19-04-2012, 08:51 PM | #7 | |
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Re: जिसने ग़म को साध लिया
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19-04-2012, 03:32 PM | #8 | |
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Re: जिसने ग़म को साध लिया
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19-04-2012, 09:02 PM | #9 |
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Re: जिसने ग़म को साध लिया
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19-04-2012, 04:46 PM | #10 |
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Re: जिसने ग़म को साध लिया
एक और उम्दा नज्म
एक साहित्य प्रेमी को आपकी कविताओं को पढने के बाद वही सुकून हासिल होता है, जो भोजन के शौक़ीन को एक लजीज व्यंजन ग्रहण करने के बाद मिलता है धन्यवाद
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
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