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Old 19-04-2017, 02:48 AM   #1
soni pushpa
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Default bhagawan ke dost

एक बच्चा जला देने वाली गर्मी में नंगे पैर
गुलदस्ते बेच रहा
था
.
लोग उसमे भी मोलभाव कर रहे थे।
.
एक सज्जन को उसके पैर देखकर बहुत दुःख हुआ, सज्जन
ने बाज़ार से नया जूता ख़रीदा और उसे देते हुए कहा
"बेटा
लो, ये जूता पहन लो"
.
लड़के ने फ़ौरन जूते निकाले और पहन लिए
.
उसका चेहरा ख़ुशी से दमक उठा था.
वो उस सज्जन की तरफ़ पल्टा
और हाथ थाम कर पूछा, "आप भगवान हैं?
.
"उसने घबरा कर हाथ छुड़ाया और कानों को हाथ लगा कर
कहा, "नहीं बेटा, नहीं, मैं भगवान
नहीं"
.
लड़का फिर मुस्कराया और कहा,
"तो फिर ज़रूर भगवान के दोस्त होंगे,
.
क्योंकि मैंने कल रात भगवान से कहा था
कि मुझे नऐ जूते देदें".
.
वो सज्जन मुस्कुरा दिया और उसके माथे को प्यार से
चूमकर अपने घर की तरफ़ चल पड़ा.
.
अब वो सज्जन भी जान चुके थे कि भगवान का दोस्त
होना
कोई मुश्किल काम नहीं..
.
खुशियाँ बाटने से मिलती है ,
मंदिर में नहीं ....

Internet ke madhyam se
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Old 19-04-2017, 09:21 AM   #2
rajnish manga
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Default Re: bhagawan ke dost

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Originally Posted by soni pushpa View Post
एक बच्चा जला देने वाली गर्मी में नंगे पैर
गुलदस्ते बेच रहा था
....
अब वो सज्जन भी जान चुके थे कि भगवान का दोस्त
होना
कोई मुश्किल काम नहीं..
.
खुशियाँ बाटने से मिलती है ,
मंदिर में नहीं ....
बहुत सुंदर प्रसंग. अत्यंत शिक्षाप्रद. लेकिन यह सब कुछ लिखने और पढ़ने में जितना सरल लगता है वास्तव में उतना है नहीं. इसके लिए ज़रूरी है एक सकारात्मक दृष्टिकोण और हर व्यक्ति में बड़े-छोटे, धनी-निर्धन, ऊंच-नीच आदि से परे एक सा समभाव रखना. यदि हर व्यक्ति यही भाव रख कर तथा निजी स्वार्थ का त्याग करता हुआ कोई भलाई का कार्य करता है या दूसरों को कष्ट से मुक्त करने का प्रयास करता है, तभी यह सार्थक तथा वास्तव में समाज तथा मानवमात्र के लिए कल्याणकारी होगा. ऐसा व्यक्ति ही ईश्वर का दोस्त कहलाने का हकदार होगा. तभी सही मायने में खुशियों का विस्तार होगा. एक श्रेष्ठ प्रसंग को शेयर करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, बहन पुष्पा जी.
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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Old 20-04-2017, 01:25 AM   #3
soni pushpa
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Default Re: bhagawan ke dost

Quote:
Originally Posted by rajnish manga View Post
बहुत सुंदर प्रसंग. अत्यंत शिक्षाप्रद. लेकिन यह सब कुछ लिखने और पढ़ने में जितना सरल लगता है वास्तव में उतना है नहीं. इसके लिए ज़रूरी है एक सकारात्मक दृष्टिकोण और हर व्यक्ति में बड़े-छोटे, धनी-निर्धन, ऊंच-नीच आदि से परे एक सा समभाव रखना. यदि हर व्यक्ति यही भाव रख कर तथा निजी स्वार्थ का त्याग करता हुआ कोई भलाई का कार्य करता है या दूसरों को कष्ट से मुक्त करने का प्रयास करता है, तभी यह सार्थक तथा वास्तव में समाज तथा मानवमात्र के लिए कल्याणकारी होगा. ऐसा व्यक्ति ही ईश्वर का दोस्त कहलाने का हकदार होगा. तभी सही मायने में खुशियों का विस्तार होगा. एक श्रेष्ठ प्रसंग को शेयर करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, बहन पुष्पा जी.
बहुत बहुत धन्यवाद भाई इस कथानक को पढ़कर इस पर अपने गहन विचार रखने के लिए।

जी सही कहा भाई आज तो बड़ी दयनीय स्थिति है इंसानी समाज की परिवार के लिए सोचना अब लोग जहाँ पसंद नहीं करते वहां परायों की चिंता कौन करे. किन्तु इस तरह के प्रसंग पढ़कर शायद किसी एक का भला हो जाय। कहते हैं न भाई साहित्य में बहुत शक्ति होती है और इस वजह से अच्छी चीज़े पढ़ने के लिए अक्सर लोग कहा करते हैं।
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