28-08-2011, 09:20 AM | #1 |
अति विशिष्ट कवि
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मेरी चाहत के जुगनू
समन्दर नमक को अपने , भला कब छोड़ पायेगा . तुझे जब खुद नहीं काबू , उफ़नते हुस्न पर अपने ; भले पत्थर ही हो ,दरिया में तेरे बह ही जायेगा . जिसे पुचकारा था तूने , कभी दाना चुगा करके ; उसे अब लाख दुत्कारो , परिन्दा लौट आयेगा . हमारा इश्क तेरे सितम से ,फितरत न बदलेगा ; लगेंगी ठेस जितनी , साज उतना बजता जायेगा . कभी तो आईना खोलेगा , तेरे हुस्न की कलई ; मेरे जहाज के पंछी , तू उस दिन लौट आयेगा . मेरी चाहत के जुगनू को , तू अपने साथ उड़ने दे ; चमक के , तेरी रातों में , तुझे रस्ता दिखायेगा . अभी भी वक़्त है , मोती मेरी पलकों से तू चुन ले ; जमीं में गुम हुआ गर वो , नहीं फिर हाथ आयेगा . रचयिता~~ डॉ. राकेश श्रीवास्तव लखनऊ,(यू. पी.),इंडिया. (शब्दार्थ ~~ जफा = गैर भरोसेमंद / वफ़ा शब्द का विपरीत , सितम = अत्याचार , फितरत =स्वभाव ) Last edited by Dr. Rakesh Srivastava; 28-08-2011 at 05:47 PM. |
28-08-2011, 01:58 PM | #2 |
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Re: मेरी चाहत के जुगनू
राकेश जी
अच्छी कविता प्रस्तुत की है आपने | Last edited by Ranveer; 28-08-2011 at 07:27 PM. |
28-08-2011, 10:50 PM | #3 |
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Re: मेरी चाहत के जुगनू
रणवीर जी, मलेथिया जी एवं अभिषेस जी
को बहुत - बहुत धन्यवाद . |
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