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Old 31-07-2011, 09:54 PM   #11
Bhuwan
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Originally Posted by kartik View Post
दोस्तों ,सूत्र अच्छा लगे तो एक दो शब्द जरुर लिख दिया करें |

इससे सूत्र धार को संतुष्टि मिलती है |
बिलकुल मित्र, आप अपना कार्य जारी रखें.
आपको अपेक्षा के अनुशार प्रतिक्रियाएं अवश्य मिलेंगी.
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Old 01-08-2011, 12:47 AM   #12
kartik
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Originally Posted by bhuwan View Post
बिलकुल मित्र, आप अपना कार्य जारी रखें.
आपको अपेक्षा के अनुशार प्रतिक्रियाएं अवश्य मिलेंगी.
उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया .
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Old 01-08-2011, 06:35 AM   #13
abhisays
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abhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond reputeabhisays has a reputation beyond repute
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कार्तिक जी आपने बहुत ही गंभीर मुद्दा उठाया है.

इस तरह के गानों को सेंसर द्वारा पास करना क्या सही है, इसपर विचार करने की जरुरत है.

शायद वोह लोग d k bose का मतलब नहीं समझ पाए.

और जरा सोचिये जिन लोगो का नाम d k bose वास्तव में है, उनपर क्या गुज़र रही होगी इस गाने को सुनकर.
__________________
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Old 01-08-2011, 08:23 AM   #14
Kumar Anil
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Kumar Anil has much to be proud ofKumar Anil has much to be proud ofKumar Anil has much to be proud ofKumar Anil has much to be proud ofKumar Anil has much to be proud ofKumar Anil has much to be proud ofKumar Anil has much to be proud ofKumar Anil has much to be proud ofKumar Anil has much to be proud of
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हिन्दी फिल्म जगत से कभी-कभार ऐसे गीत आते हैं जो शालीनता और मर्यादा को ठेंगा दिखाकर करोड़ों दिलों को छू जाते हैं. शायद सभ्यता के दबाव से परेशान इंसान को इस तरह के गीतों से बंधन तोड़ने का अहसास होता है, और इसके शब्द हर जुबान पर चढ़ जाते हैं.
इसमेँ कोई हैरानगी की बात नहीँ । जब हम चोली के नीचे क्या है , पचा ले गये तो bose d.k. को हज़म करने मेँ कितना वक़्त लगेगा । चोली का सफ़र यहाँ तक तो आना ही था । सिनेकार दलील देते है कि सिनेमा समाज का दर्पण हैँ , पर शायद यह सत्य नहीँ है । इस दर्पण मेँ सही तस्वीर नहीँ है । कुछ इक्की दुक्की घटनाओँ को बाजारवाद के वशीभूत वितण्डावाद खड़ा कर मार्केट मेँ लाँच कर दिया जाता है । सिनेमा कामर्शियल तो था ही , पर उसे नैतिकता का भी होश था । शायद तभी चुंबनोँ को प्रतीकात्मक तौर पर दर्शा दिया जाता था , जैसे दो फूलोँ की परस्पर छुअन । संसर्ग के शॉट भी लाइट ऑफ करके दर्शकोँ को संदेश दे देते थे । व्यावहारिक जीवन मेँ भी हम यही करते हैँ न कि उन्मुक्त आचरण करते हैँ । अगर ऐसा न होता तो हमारे घर , घर न होते , किसी नगरवधु की दुकान होते जहाँ हम अपने ही बच्चोँ को इस तथाकथित शीर्षस्थ महत्वपूर्ण कला / विज्ञान मेँ पारंगत कर रहे होते । वास्तव मेँ ये फिल्मकार समाज के साथ निरन्तर बलात्कार कर रहे हैँ । ये फिल्मकार समाज को नशे का आदी बना रहे हैँ , समाज मेँ बुराईयोँ को व्यापक , पारदर्शी और ग्राह्य बना रहे हैँ । चोली के नीचे से ली गयी एक हल्की डोज आज bose d.k. की हैवी डोज पर पहुँच गयी है । यथार्थवाद के नाम पर कल यही फिल्मकार अन्तरंग संबंधोँ का सजीव , जीवंत चित्रण करेँगे तो कुछ बेमानी न होगा । आखिर क्या बात है कि सत्तर अस्सी के दशक की फिल्मेँ हमेँ आज भी रिझाती हैँ पर आज की फिल्मेँ पैसा बटोर कर कब हवा हवाई हो जाती हैँ , पता ही नहीँ चलता । मैँ दावे के साथ कहता हूँ कि हम इतने बुरे नहीँ है जितना ये सिनेमा बता रहा है , जता रहा है ।
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दूसरोँ को ख़ुशी देकर अपने लिये ख़ुशी खरीद लो ।
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Old 01-08-2011, 06:22 PM   #15
Nitikesh
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दोस्तों ,सूत्र अच्छा लगे तो एक दो शब्द जरुर लिख दिया करें |

इससे सूत्र धार को संतुष्टि मिलती है |
हा हा हा मित्र इस गाना का आपके द्वारा किया गया वर्णन वाकई में प्रशंसा के योग्य है.


यदि संभव हो तो और भी ऐसे कुछ गाने हैं उनका भी वर्णन कर सकते हैं!
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Old 01-08-2011, 06:27 PM   #16
Nitikesh
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Originally Posted by abhisays View Post
कार्तिक जी आपने बहुत ही गंभीर मुद्दा उठाया है.

इस तरह के गानों को सेंसर द्वारा पास करना क्या सही है, इसपर विचार करने की जरुरत है.

शायद वोह लोग d k bose का मतलब नहीं समझ पाए.

और जरा सोचिये जिन लोगो का नाम d k bose वास्तव में है, उनपर क्या गुज़र रही होगी इस गाने को सुनकर.
कुछ सालो से तो फिल्म उद्योग में नाम वाले गानों का ज्यादा चलन है.

शिला, मुन्नी, रजिया और भी सारे नाम है....ये सभी कुछ दिन तक ही लोगों के जबान पर रहते हैं और बाद में गायब हो जाता है. शायद इसीलिए सेंसर बोर्ड भी ऐसे गानों को पास कर देता है.
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Old 01-08-2011, 09:30 PM   #17
Bhuwan
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Originally Posted by abhisays View Post
कार्तिक जी आपने बहुत ही गंभीर मुद्दा उठाया है.

इस तरह के गानों को सेंसर द्वारा पास करना क्या सही है, इसपर विचार करने की जरुरत है.

शायद वोह लोग d k bose का मतलब नहीं समझ पाए.

और जरा सोचिये जिन लोगो का नाम d k bose वास्तव में है, उनपर क्या गुज़र रही होगी इस गाने को सुनकर.
हा हा हा हा. इस बात से नौकरी देने वाली एक वेबसाईट का ६ साल पुराना किस्सा याद आ गया. एक एम्प्लोये अपने खडूस बॉस के नाम hari sadu की व्याख्या करता है. H for Hitlar, A for Arigant......
इस नाम के लोगों को इस एड से काफी शर्मिंदगी उठानी पड़ी थी. यहाँ भी ऐसा ही है.
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Old 01-08-2011, 09:35 PM   #18
Bhuwan
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इसमेँ कोई हैरानगी की बात नहीँ । जब हम चोली के नीचे क्या है , पचा ले गये तो bose d.k. को हज़म करने मेँ कितना वक़्त लगेगा । चोली का सफ़र यहाँ तक तो आना ही था । सिनेकार दलील देते है कि सिनेमा समाज का दर्पण हैँ , पर शायद यह सत्य नहीँ है । इस दर्पण मेँ सही तस्वीर नहीँ है । कुछ इक्की दुक्की घटनाओँ को बाजारवाद के वशीभूत वितण्डावाद खड़ा कर मार्केट मेँ लाँच कर दिया जाता है । सिनेमा कामर्शियल तो था ही , पर उसे नैतिकता का भी होश था । शायद तभी चुंबनोँ को प्रतीकात्मक तौर पर दर्शा दिया जाता था , जैसे दो फूलोँ की परस्पर छुअन । संसर्ग के शॉट भी लाइट ऑफ करके दर्शकोँ को संदेश दे देते थे । व्यावहारिक जीवन मेँ भी हम यही करते हैँ न कि उन्मुक्त आचरण करते हैँ । अगर ऐसा न होता तो हमारे घर , घर न होते , किसी नगरवधु की दुकान होते जहाँ हम अपने ही बच्चोँ को इस तथाकथित शीर्षस्थ महत्वपूर्ण कला / विज्ञान मेँ पारंगत कर रहे होते । वास्तव मेँ ये फिल्मकार समाज के साथ निरन्तर बलात्कार कर रहे हैँ । ये फिल्मकार समाज को नशे का आदी बना रहे हैँ , समाज मेँ बुराईयोँ को व्यापक , पारदर्शी और ग्राह्य बना रहे हैँ । चोली के नीचे से ली गयी एक हल्की डोज आज bose d.k. की हैवी डोज पर पहुँच गयी है । यथार्थवाद के नाम पर कल यही फिल्मकार अन्तरंग संबंधोँ का सजीव , जीवंत चित्रण करेँगे तो कुछ बेमानी न होगा । आखिर क्या बात है कि सत्तर अस्सी के दशक की फिल्मेँ हमेँ आज भी रिझाती हैँ पर आज की फिल्मेँ पैसा बटोर कर कब हवा हवाई हो जाती हैँ , पता ही नहीँ चलता । मैँ दावे के साथ कहता हूँ कि हम इतने बुरे नहीँ है जितना ये सिनेमा बता रहा है , जता रहा है ।


उस वक्त में चोली के नीचे क्या है को पचाने में भले ही कुछ वक्त लगा हो, लेकिन अब तो bose dk को लगता है की पचा भी लिया और डकार भी नहीं मारी. और उसके सामने ये bose dk कुछ भी नजर नही आता.
वैसे भी आजकल हर फिल्म में द्विअर्थी संवादों का प्रचालन जोरो पर है. सिर्फ एक-आध शब्द या अक्षर को हेर-फेर करो और कुछ और ही अर्थ निकलेगा.

Last edited by Bhuwan; 01-08-2011 at 09:38 PM.
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Old 01-08-2011, 09:39 PM   #19
Bhuwan
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Originally Posted by kumar anil View Post
....यथार्थवाद के नाम पर कल यही फिल्मकार अन्तरंग संबंधोँ का सजीव , जीवंत चित्रण करेँगे तो कुछ बेमानी न होगा । आखिर क्या बात है कि सत्तर अस्सी के दशक की फिल्मेँ हमेँ आज भी रिझाती हैँ पर आज की फिल्मेँ पैसा बटोर कर कब हवा हवाई हो जाती हैँ , पता ही नहीँ चलता । मैँ दावे के साथ कहता हूँ कि हम इतने बुरे नहीँ है जितना ये सिनेमा बता रहा है , जता रहा है ।
पश्चिम की नक़ल कर रहे हैं प्रभु. होलीवूद में तो ये होता ही है, बस कुछ ही देर है यहाँ भी आने की.
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Old 02-08-2011, 09:55 PM   #20
kartik
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तो बाई गोड लग गयी
क्या से क्या हुआ
देखा तो कटोरा झंका को कुआं
पिद्दी जैसा चूहा
दम पकड़ा तो निकला कला नाग
भाग ..भाग ....

मित्रगण ,
उपरोक्त पंक्तियों के भावार्थ इतने अश्लील हैं की मै उनको यहाँ लिख भी नहीं सकता ,इसीलिए यहाँ पर मैंने कल्टी मार दी |इसका अर्थ अगर मै बता दूँ तो आपलोग समझ जायेंगें की इन फिल्मों के निर्माता किस हद तक नीचे भी सोचतें हैं |
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