21-09-2015, 10:37 AM | #331 |
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Re: इधर-उधर से
एक बार एक किसान का घोड़ा बीमार हो गया। डॉक्टर ने बताया कि घोड़े को तीन दिन तक दवाई देंगे। इसके बाद भी ठीक नहीं हुआ तो हमें इसे मारना होगा, क्योंकि यह बीमारी दूसरे जानवरों में भी फैल सकती है। यह सब बातें पास में खड़ा एक बकरा भी सुन रहा था। डॉक्टर के जाने के बाद बकरा घोड़े के पास गया और बोला, "उठो दोस्त, हिम्मत करो, नहीं तो यह तुम्हें मार देंगे।' तीन दिन तक डॉक्टर दवाई देता रहा और बकरा रोज घोड़े का हौसला बढ़ाता रहा, 'उठो, वरना ये तुम्हें मार देंगे।' आखिर में मालिक और डॉक्टर ने घोड़े को मारने का फैसला किया और जहर लेने चले गए। जब वे वहां से गए तो बकरा घोड़े के पास फिर आया और बोला, "देखो दोस्त, अगर तुम आज भी नहीं उठे तो कल तुम मर जाओगे।' बकरे के बहुत समझाने पर घोड़ा उठा और हिम्मत कर थोड़ा चला और फिर दौड़ने भी लगा। इतने में किसान वापस आया तो उसने देखा कि उसका घोड़ा भाग रहा है। वह खुशी से झूम उठा और बीवी से बोला, "चमत्कार हो गया। मेरा घोड़ा ठीक हो गया। आज जश्न में हम बकरे का गोश्त खाएंगे!'
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21-09-2015, 04:36 PM | #332 | |
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Re: इधर-उधर से
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21-09-2015, 09:23 PM | #333 |
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Re: इधर-उधर से
गौ सेवा में रत मित्र
अनादिकाल से मानवजाति गोमाता की सेवा कर अपने जीवन को सुखी, सम्रद्ध, निरोग, ऐश्वर्यवान एवं सौभाग्यशाली बनाती चली आ रही है. गोमाता की सेवा के माहात्म्य से शास्त्र भरे पड़े है. आइये इस संबंध में एक समर्पित गौसेवक का प्रसंग पढ़ते हैं:
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21-09-2015, 09:41 PM | #334 |
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Re: इधर-उधर से
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उनसे कभी पिछली ज़िन्दगी के बारे में बात चलती थी तो वो बताते हैं कि मैंने जो कुछ भी जीवन में पाया है उसमें यदि किसी एक तत्व का नाम लेना हो तो ‘मैं कहूँगा मेरे पास जो कुछ है वह गौ माता की कृपा से है. मैं पिछले 30 वर्षों से गौशाला में जा कर गौसेवा कर रहा हूँ, यह सब उसी का फल है. मैं भोर के समय चार बजे ही गौशाला चला जाता हूँ और सात बजे तक वहीँ रहता हूँ. इस बीच गउओं के बाँधने के स्थान पर गोबर मूत्रादि की सफाई, गउओं की सफाई, गउओं का चारा पानी तैयार करना और प्रेमपूर्वक उनको खिलाना यह काम करता हूँ. यह मेरा रोज का काम है. इसमें मुझे आत्मिक शांति मिलती है. मैं मानता हूँ कि ईश्वर ने मुझे गौ सेवा की प्रेरणा दे कर जैसे सबसे बड़ा वरदान दे दिया है'’. मेरे मित्र सुरेश जी आज भी गौसेवा के काम में समर्पित हैं. मुझ जैसे सैकड़ों हजारों लोग उनके द्वारा लगनपूर्वक लम्बे समय से की जा रही गौसेवा को देख सुन कर अचरज करेंगे और दांतों तले उंगली दबा लेंगे. यह सेवा का एक अनूठा रूप है.
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21-09-2015, 09:55 PM | #335 |
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Re: इधर-उधर से
वात्सल्य का एक रूप यह भी है (गाय अपने बछड़े के साथ)
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07-11-2015, 05:46 PM | #336 |
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Re: इधर-उधर से
पद्मश्री स्व. चिरंजीत जन्म: 18/12/1919 मृत्यु: 07/11/2007 मेरी आदत है कि मैं अखबार में शोक सन्देश वाले पृष्ठ को बड़े ध्यान से पढ़ता हूँ जिसमे Obituary, Tribute और Remembrances वाले कॉलम में शोक सन्देश अथवा पूर्व में दिवंगत किसी व्यक्ति की याद में सन्देश छपा होता है. आज सुबह के अखबार में शोक सन्देश वाले पृष्ठ पर एक सन्देश पढ़ कर मुझे ठीक पचास वर्ष पहले का (यानी सन 1965 की) समय याद आ गया. पहले मैं आपको बता दूँ कि यह संदेश स्व. चिरंजीत के बारे में था जो लेखक, कवि, व्यंग्यकार व नाटककार थे. उनकी कहानियाँ और व्यंग्य उन दिनों की पत्र पत्रिकाओं में छपते रहते थे. आपको याद होगा कि पाकिस्तान ने सन 1965 और सन 1971 में भारत पर आक्रमण कर दिया था. जहां 1962 के चीन आक्रमण के समय भारत की सामरिक तैयारी अधिक नहीं थी. लेकिन चीन युद्ध के बाद 1965 में हमारा देश पूरी तरह मुस्तैद हो चुका था. देशवासियों का उत्साह देखते ही बनता था. देशभक्ति की भावना सबको अपने आगोश में ले चुकी थी. उन दिनों टीवी सिर्फ दिल्ली तक सीमित था. ऐसे में रेडियो का महत्वपूर्ण रोल था. सुबह शाम प्रसारित होने वाले समाचार बुलेटिन सारे देश में रूचिपूर्वक व उत्सुकता से सुने जाते थे. समाचारों के अलावा फ़रमाइशी फ़िल्मी गानों के कार्यक्रम, बहनों के लिए कार्यक्रम, बच्चों के लिए कार्यक्रम (यह दोनों प्रोग्राम साप्ताहिक होते थे) और रेडियो नाटक व झलकियाँ यानी हास्य व्यंग्य के छोटे नाटक.
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07-11-2015, 05:47 PM | #337 |
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Re: इधर-उधर से
पद्मश्री स्व. चिरंजीत >>>
1965 में जब भारत पाक युद्ध चल रहा था तो रेडियो पाकिस्तान द्वारा अपने ढपोरशंख वाले मियाँ मिट्ठू स्टाइल में खबरें प्रसारित की जाती थी. इन खबरों में पाकिस्तानी सेना की बहादुरी के किससे होते थे व भारतीय सेना की खिल्ली उड़ाने वाले विवरण होते थे और अफवाहें भी फैलायी जा रही थीं. युद्ध के दिनों में युद्धरत देश एक दूसरे के दुष्प्रचार की काट करने का प्रयास करते रहते हैं और जनता को अफवाहोंके प्रति सावधान भी करते हैं. रेडियो पाकिस्तान के दुष्प्रचार का मुकाबला करने के लिए उच्च गुणवत्ता वाले समाचार बुलेटिनों के साथसाथ रोजाना समाचारों के बाद नाटकों की एक लड़ी शुरू की गयी थी. इस नाटक श्रंखला के लेखक थे श्री चिरंजीत और इसका शीर्षक था “ढोल की पोल’. यह लगभग दस मिनट का नाटक होता था जिसका फॉरमेट रेडियो पाकिस्तान द्वारा प्रसारित किये जाने वाले उर्दू समाचार बुलेटिन की तर्ज पर था और भाषा भी लगभग वैसी ही उर्दूमिश्रित थी. इस समाचार बुलेटिन रूपी नाटक की शुरूआत ऐसे की जाती थी, “ये रेडियो झूठिस्तान है. अब आप ढिंढोरची से आज की ताजातरीन ख़बरें सुनिए. हमारे नामानिगार ने खबर दी है कि खेमकरण सेक्टर में हमारी फौजें बड़ी बहादुरी से लगातार पीछे हट रही हैं. हमारे पेटन टैंकों ने भी भारती फोजों के सामने गोलाबारी करने से इन्कार कर दिया ...... “ यह बुलेटिन इसी प्रकार चला करता और श्रोता हँसते हँसते लोट पोट हो जाते. मैं नहीं सोचता कि रेडियो पर प्रसारित होने वाला कोई कार्यक्रम लोकप्रियता के मामले में कभी इससे अधिक आगे जा सका हो.
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07-11-2015, 06:25 PM | #338 |
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Re: इधर-उधर से
चिरंजीत और उनका “ढोल की पोल”
ऊपर आपको स्व. चिरंजीत और उनके लोकप्रिय रेडियो नाटक “ढोल की पोल” के बारे में जानकारी दी गयी जो 1965 के भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान आल इंडिया रेडियो के दिल्ली केंद्र से प्रतिदिन प्रसारित होता था. युद्धबंदी के बाद इसे बंद कर दिया गया. वर्ष 1971 में पूर्वी पाकिस्तान (जो अब बांग्ला देश है) में चलाये गए दमन चक्र के मद्देनज़र और 90 लाख शरणार्थियों के भारत में आ जाने के बाद पाकिस्तान की साख कम होने लगी. इससे उबरने के लिए उसने भारत पर आक्रमण कर दिया. इस बार भी पाकिस्तान को हार का मुँह देखना पड़ेगा. इस सन्दर्भ में मैं आपको बता रहा था कि 1965 की तरह ही इस बार भी युद्ध के दिनों श्री चिरंजीत द्वारा रचित ‘रेडियो झूठिस्तान’ प्रसारित हुआ और उसी प्रकार जनता द्वारा सराहा गया. चिरंजीत के इस लोकप्रिय रेडियो नाटक और उनकी अन्य साहित्यिक सेवाओं के लिए उन्हें सन 1972 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री अलंकरण से सम्मानित किया गया. आज श्री चिरंजीत की पुण्य तिथि पर हम उन्हें हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं.
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18-11-2015, 08:16 PM | #339 |
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Re: इधर-उधर से
पॉप म्यूज़िक और कबीर टीवी पर एक नया चैनल शरू हुआ है “LF” या ‘Living Food’. इसका एक कार्यक्रम है ‘रणवीर’ज़ कैफ़े’. इसकी विशेषता है कि इसमें dish बनाते हुए एक म्यूजिकल ग्रुप को आमंत्रित किया जाता है. ग्रुप के सदस्य बीच बीच में अपनी गायकी और वादन कला का प्रदर्शन करते हैं. आज के कार्यक्रम में एक ऐसा म्यूजिकल ग्रुप आया था जो कबीर के दोहों और भजनों को पॉप म्युज़िक का टच देते हुए गाते हैं. इस प्रकार एक तरफ कोई पकवान बनाया जा रहा है और दूसरी तरफ संगीतकार समूह अपनी गायकी पेश करते हैं. यह एक नया आईडिया है. मैं इसकी तुलना बड़े होटल या रेस्तराँ से कर सकता हूँ जहाँ सुगम संगीत का ऐसा कार्यक्रम प्रतिदिन पेश किया जाता है. लेकिन इन दोनों में अंतर है. यहाँ खाना बनाते हुए गायन वादन चलता है (सिर्फ शेफ़ के सामने) जबकि वहाँ खाना खाते हुए लोगों के सामने संगीत का कार्यक्रम पेश किया जाता है.
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18-11-2015, 08:27 PM | #340 |
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Re: इधर-उधर से
पॉप म्यूज़िक और कबीर
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