29-05-2011, 12:57 PM | #91 | |
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Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
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फोरम पर आने का मेरा उद्देश्य मनोरंजन मात्र होता है इसलिए ज्यादातर मेरा ध्यान मनोरंजक सूत्रों पर ही रहता है
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
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29-05-2011, 02:48 PM | #92 |
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Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
धन्यवाद भाई आपका बहुत बहुत शुक्रिया आपने इस सूत्र को समय दिया और अपने विचार रखे आगे भी पधारे
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29-05-2011, 02:51 PM | #93 |
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Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
बहुत बहुत धन्यवाद भाई .........
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29-05-2011, 02:53 PM | #94 |
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Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
जयनारायण ओसापा ने सूर्य तथा चंद्रवंशी मिथक का विश्लेषण करते हुए यह मान्यता प्रकट की है कि सूर्यवंशी तथा चंद्रवंशी मूलत: आर्यों के दो दल थे जो भारत आये। पहला दल मध्य एशिया की जैक्सर्टीज तथा दूसरा दल उसी प्रदेश की इली नदियों से चलकर भारत में प्रविष्ट हुआ। महाभारत तथा पुराणों में सर्वप्रथम राजपूतों की सूर्य तथा चंद्र से उत्पत्ति का उल्लेख मिलता है। पार्टि की यह मान्यता है कि सूर्यवंशी क्षत्रिय द्रविड़ थे और चंद्रवंशी क्षत्रिय प्रयाग में शासक थे। सी०वी० वैद्य इसे अस्वीकार करते हैं । वैंडीदाउ के आधार पर वैद्य यह मानते हैं कि सुदूर उत्तरी देशों से आर्यों की एक शाका ने भारत में प्रवेश किया और वे सप्त सिंधु में बस गये। वैद्य ने भारत की जनगणना रिपोर्ट (१९२१) के आधार पर कहा है कि आर्यों का पहला दल उत्तरी भारत में आये जिनकी प्रतिनिधि भाषाएँ राजस्थानी, पंजाबी, पहाड़ी तथा पूर्वी हिन्दी है। आर्यों का दूसरा दल उत्तरी भारत में प्रवेश
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29-05-2011, 10:04 PM | #95 |
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Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
कर दक्षिण से जबलपुर, दक्षिण - पश्चिम में काठियावाड़ तथा उत्तर - पूर्व में नेपाल तक पहुँच गया। ये दो आर्यों के दल ही महाभारत काल के सूर्य व चंद्रवंशी क्षत्रिय कहलाने लगे। वैद्य की मान्यता है कि मनु स्वयंभुव वंशज भरत ॠग्वेद में वर्णित भारत जाति है जो महाकाव्य काल में सूर्यवंशी कहलाये। यह आर्यों का पहला दल था। दूसरे दल में ॠग्वेद वर्णित यदु, तुर्वस, अनुस, द्रहयु तथा पुरु वर्ग के लोग थे जो चंद्रवंशी कहलाये।
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29-05-2011, 10:06 PM | #96 |
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Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
आसोपा, वैद्य की उपर्युक्त मान्यता को भाषायी आधार पर स्वीकार नहीं करते तथा वे ॠग्वेद के भारत तथा मनु स्वयंभुव के वंशज भरत को एक वर्ग का नहीं मानते। सूर्यवंशी इक्ष्वाकु राजा मनु वैवस्तव का पुत्र था, न कि मनु स्वयंभुव का। वैवस्तव का अर्थ सूर्य है जिसके वंशज इक्ष्वाकु कहलाये। वेदों में वर्णित 'इक्ष्वाकु' आर्यों के प्रथम दल के सूर्यवंसी थे तथा 'अइल' आर्यों के दूसरे दल के चंदवर्ंशी थे। आसोपा ने 'इक्ष्वाकु' तथा 'अइल' के मूल अधिवासन स्थल की खोज करते हुए कहा है कि महाभारत व हरिवंश पुराण में वर्णित 'इक्षुमति' नदी कुरुक्षेत्र में थी। रामायण में भी इसका उल्लेख है। स्ट्रैबो ने भी व्यास और यमुना नदियों के बीच एक नदी इमेसस (इक्षुमति) का उल्लेख किया है जिसे यूनानी मिनेन्डर ने पार किया था। इससे प्रतीत होता है कि आर्यों की इक्ष्वाकु शाखा 'इक्षुमति' नदी के तटों पर बस गई थी। मध्य एशिया में जैक्सर्टीज नदी में आनेवाले इन आर्यों ने
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29-05-2011, 10:14 PM | #97 |
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Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
भारत में कुरुक्षेत्र प्रदेश की नदी का नाम भी जैक्सर्टीज का भारतीय रुप इक्षुमति रख दिया तथा स्वयं इक्ष्वाकु कहलाये। इनका शासन इक्ष्वाकु मनु वैवस्तव (सूर्य) का पुत्र था। इसके कारण ही सूर्यवंशी मत का प्रचलन हुआ।महाभारत, हरिवंश तथा विष्णु पुराण में पंजाब की नदी 'इरा' का उल्लेख है जो अब 'रावी' के नाम से पुकारा जाती है। रामायण के अयोध्या काण्ड में वर्णन है कि भरत ने कैकेय प्रदेश से आते हुए शतद्रु के तट पर 'अइल' राज्य को पार किया। इससे स्पष्ट होता है कि 'अइल" आर्यों की दूसरी शाखा का अधिकार क्षेत्र 'इरा' (रावी) तथा "शतद्रु' (सतलज) नदियों के मध्य था। मध्य एशिया में, जहाँ से आर्य भारत आये, जैक्सर्टीज (इक्ष्वाकु) नदी के उत्तर में एक ओर नदी 'इली' थी। इली नदी से भारत आने वाली दूसरी शाखा के आर्य 'अइल' थे जो चन्द्रवंशी कहलाये। रुस में उत्खनन द्वारा भी आर्यों के अवशेष इस 'इली' नदी के तट
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29-05-2011, 10:16 PM | #98 |
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Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
पर मिले हैं। मध्य एशिया के यू - ची 'चन्द्रमा के लोग' इली नदी के तट पर बसे थे। इससे प्रतीत होता है कि जब ये लोग भारत आये थे तो स्वयं को चंद्रवंशी कहने लगे। आसोपा की मान्यता है कि इक्ष्वाकु मनु वैवस्तव से संबंधित थे। ये आर्य थे जो जैक्सर्टीज से होते हुए इक्षुमति को पार करके भारत में पूर्व की ओर चले गये। अइल भी जो सोम ॠषि तथा बुद्ध के वंशज थे, आर्य थे। ये इली व इरा नदी के तट पर रहते थे जिन्होंने यह नाम अन्य स्थानों तथा नदियों को भी दिया जहाँ वेगये। भारत की इरावती नदी तथा लंका का प्राचीन नाम इला भी इस तथ्य को प्रकट करते हैं। अत: आसोपा की मान्यता है कि सूर्यवंशी व चंद्रवंशी क्षत्रिय आर्यों की वे दो शाखआएँ थीं जो मध्य एशिया से भारत आईं। एक शाखा वहाँ की जैक्सर्टीज नदी तच पर तथा दूसरी शाखा वहाँ की इली नदी के तट से भारत आईं।
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29-05-2011, 10:19 PM | #99 |
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Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
विदेशी वंश का मत
पिछले दोनों मतों के विपरीत इतिहासकार कर्नल टॉड ने राजपूतों को शक और सिथियन बताया है। इसके प्रमाण में वे राजपूतों में प्रचलित ऐसे रीति - रिवाजों का उल्लेख करते हैं जो शक जाति के रीति - रिवाजों से साम्य रखते हैं। सूर्य की पूजा, सती प्रथा, अश्वमेघ यज्ञ, मद्यपान, शस्रों और घोड़ों की पूजा तथा तातारी और शकों की पुरानी कथाओं का पुराणों की कथाओं से साम्य रखना ऐसे तथ्य हैं जो राजपूतो की विदेशी उत्पत्ति प्रकट करते है। डॉ० स्मिथ ने भी शक, यूचि, गुर्जर व हूण विदेशी जातियों का भारत में धर्म परिवर्तन कर हिन्दू बन जाना स्वीकार किया है और इन विदेशी जातियों के राज्य स्थापित हो जाने पर उससे राजपूतों की उत्पत्ति मानी है। राजपूतों ने एपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने हेतु स्वयं को चन्द्र या सूर्यवंशी कहना प्रारम्भ किया। कर्नल टॉड की पुस्तक का सम्पादन करने वाले विलियम कुक भी इस मत का समर्थन करते हुए लिखते हैं कि वैदिक
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29-05-2011, 10:29 PM | #100 |
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Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
कालीन क्षत्रियों एवं मध्यकालीन राजपूतों की अवधि का अन्तराल इतना अधिक है कि दोनों के सम्बन्ध मूलवंश - क्रम से संबंधित करना संभव नहीं है। शक, सिथियन, हूण आदि विदेशी जातियाँ हिन्दू समाज में स्थान पा चुके थे और देश - रक्षक के रुप में प्रतिष्ठित हो चुके थे। अत: उन्हें महाभारत तथा रामायण काल के क्षत्रियों से संबंधित कर दिया गया और सूर्य तथा चंद्रवंशी माना गया।
डॉ० गौरीशंकर हीराचन्द ओझा ने विदेशी उत्पत्ति को अस्वीकार किया है। जिन रीति - रिवाजों के आधार पर राजपूतों और शकों का साम्य किया गया है वे रीति - रिवाज वैदिक काल तथा पौराणिक काल में भी भारत में विद्यमान थे। डॉ० ओझा ने अभिलेखों के आधार पर तथ्य प्रकट किया है कि मौर्य और नन्दवंश के पतन के बाद भी सातवीं सदी तक क्षत्रियों का
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