09-11-2010, 04:39 PM | #1 |
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फोरम की चटनी, प्रविष्टि का मुरब्बा
फोरम गीत सूत्र पे सूत्र बनाते चलो -२ पीठ-दर-पीठ थप-थपाते चलो समझ की झोली भरे ना भरे -२ 'वाह' 'वाह' का झोला उठाते चलो सूत्र पे सूत्र बनाते चलो कुछ भी लिख दो, कहीं भी लिख दो टिप्पणी तो मिल जाएँ सांझ ढले जब, सूत्र खुले तब मन हर्षित हो जाए क्या सीखाsssssss क्या सीखा, क्या पाया तूने सोच के सर बस खुजाते चलो पीठ-दर-पीठ थप-थपाते चलो अब तुम मेरे सूत्र में आओ मैं तेरे सूत्र में जाऊं तुम अब मेरी पीठ खुजाओ अब मैं तेरी खुजाऊं रचनाssssssss रचना पल्ले पड़े न पड़े वाहक की भीड़ में समाते चलो पीठ-दर-पीठ थप-थपाते चलो कौन है उम्दा, कौन है घटिया यहाँ तो सारे बराबर अभिव्यक्ति का माध्यम है ये टीपो छापो धडा-धड़ ज्ञान शिखाssssss ज्ञान शिखा जले ना जले 'वाह' पताका फहराते चलो पीठ-दर-पीठ थप-थपाते चलो सूत्र पे सूत्र बनाते चलो -२ पीठ-दर-पीठ थप-थपाते चलो समझ की झोली भरे ना भरे -२ 'वाह' 'वाह' का झोला उठाते चलो सूत्र पे सूत्र बनाते चलो |
09-11-2010, 04:43 PM | #2 |
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मित्र, पता नहीं ये प्रशंसा है या कटाक्ष ...........
लेकिन है सवा सोलह आने खरा..... |
09-11-2010, 04:49 PM | #3 | |
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जो भी है.. काफी अच्छा है.. आपकी बातो को ध्यान में रखा जायेगा..
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अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
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09-11-2010, 05:50 PM | #4 |
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अरविन्द जी
जैसा कि मैं आपकी क्षमता से वाकिफ हूँ और आशा करता हूँ कि आप अपनी कलम का जादू यहाँ चला कर फोरम को एक गति प्रदान करेंगे क्या आप मेरी आशाओं को जीवंत रखेंगे ?? |
09-11-2010, 08:58 PM | #5 |
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ही ही ही ही
ये नहीं चलेगा बंधू चलो वो माल दिखाओ जो अलग बांध रखा है
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
09-11-2010, 10:44 PM | #6 | |
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देखो............. फोरम है एक सभा निराली घूघट पगड़ी गोरी काली नीली पीली लाल सुनहरी श्वेत गुलाबी औ हरियाली चार यार हो गए इकट्ठे दुबले पतले हट्टे कट्टे चित्र,व्यंग्य, आलेख,चुटकुले शब्दों की भी भरी दुनाली राम जुहारी पाँय पैंलगी हाल चाल फिर बात बतकही देश विदेश प्रदेश की बातें लगे ठहाका बजती ताली ध्यान ज्ञान विज्ञान वार्ता सरस कहानी किस्से यात्रा इन्टरनेट और ब्लॉग कथाएं जहाँ चाह वहाँ राह निकाली डूबे को बन जाएँ सहारा लड़खडायें तो कंधा वारा बिना अर्थ 'जय' बने सहायक दे कर के मुस्कराहट खाली
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
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10-11-2010, 10:10 AM | #7 | ||
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"निमियाँ के डाढ़ मैया झूले ली झूलनवा ..... " हीहीही..... समझ गए ना.... |
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10-11-2010, 10:13 AM | #8 | |
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जय भाई, छा गए गुरु। |
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10-11-2010, 11:46 AM | #9 | |
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
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10-11-2010, 11:47 AM | #10 | |
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"गणपति नंदन" से शुरू होता है
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
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