10-10-2017, 10:52 AM | #201 |
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Re: मुहावरों की कहानी
उसे उसके पिता के दिए संस्कारों ने बिना टिकट यात्रा करने की अनुमति नहीं दी।दोनों मित्रों ने अगला कदम तय किया और भागकर टिकट खिड़की पहुँचगए। वहाँ यात्रियों की इतनी लंबी कतार लगी थी मानो कि एक अनार सौ बीमार जैसे-तैसे टिकट लेकर वे रेल में सवार हुए। थोड़ी ही देर बाद एक व्यक्ति ने उनसे पूछा कि बेटा मिठाई खाओगे। मिठाई देखकर सुमित के मुँह में पानी आ गया। उसने हाथ आगे बढ़ाया था कि अमित ने उसका हाथ खींच लिया। फिर धीरे से कानाफूसी करते हुए समझाया कि यात्रा में किसी भीअजनबी से लेकर कोई चीज खाना-पीना नहीं चाहिए। (क्रमशः)
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10-10-2017, 10:56 AM | #202 |
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Re: मुहावरों की कहानी
ऐसे लोग बदमाश हो सकते हैं जो अपना जाल बिछाकर सहयात्रियों को बेहोश करके लूट लेते हैं। ऐसे लोगों के मुँह में राम तथा बगल में छुरी होती है।
शहर पहुँचने के बाद दोनों मित्र स्टेशन के बाहर सिर उठाकर पूरी निडरता के साथ आए क्योंकि जेब में टिकट जो रखा था। बाद में इस घटना का पता चलने पर अमित के पिता शर्म से पानी-पानी हो गए। वहीं सुमित के पिता को उस पर बहुत गर्व हुआ। किसी ने ठीक ही कहा है कि साँच को आँच नहीं। अर्थात सच्चे मनुष्य को कोई हानि नहीं पहुँचा सकता। (समाप्त)
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23-10-2017, 09:24 PM | #203 |
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Re: मुहावरों की कहानी
हिंदी के मुहावरे, बड़े ही बावरे है,
खाने पीने की चीजों से भरे है... आम के आम और गुठलियों के भी दाम मिलते हैं, कभी अंगूर खट्टे हैं, कभी खरबूजे, खरबूजे को देख कर रंग बदलते हैं, कहीं दाल में काला है, तो कहीं किसी की दाल ही नहीं गलती, कोई डेड़ चावल की खिचड़ी पकाता है, तो कोई लोहे के चने चबाता है, कोई घर बैठा रोटियां तोड़ता है, कोई दाल भात में मूसरचंद बन जाता है, मुफलिसी में जब आटा गीला होता है, तो आटे दाल का भाव मालूम पड़ जाता है, >>>
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23-10-2017, 09:25 PM | #204 |
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Re: मुहावरों की कहानी
हिंदी के मुहावरे, बड़े ही बावरे है,
खाने पीने की चीजों से भरे है... सफलता के लिए बेलने पड़ते है कई पापड़, आटे में नमक तो जाता है चल, पर गेंहू के साथ, घुन भी पिस जाता है, अपना हाल तो बेहाल है, ये मुंह और मसूर की दाल है, गुड़ खाते हैं और गुलगुले से परहेज करते हैं, और कभी गुड़ का गोबर कर बैठते हैं, कभी तिल का ताड़, कभी राई का पहाड़ बनता है, कभी ऊँट के मुंह में जीरा है, कभी कोई जले पर नमक छिड़कता है, किसी के दांत दूध के हैं, तो कई दूध के धुले हैं, कोई जामुन के रंग सी चमड़ी पा के रोई है, तो किसी की चमड़ी जैसे मैदे की लोई है, किसी को छटी का दूध याद आ जाता है, दूध का जला छाछ को भी फूंक फूंक पीता है, और दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता है, >>>
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23-10-2017, 09:27 PM | #205 |
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Re: मुहावरों की कहानी
हिंदी के मुहावरे, बड़े ही बावरे है,
खाने पीने की चीजों से भरे है... शादी बूरे के लड्डू हैं, जिसने खाए वो भी पछताए, और जिसने नहीं खाए, वो भी पछताते हैं, पर शादी की बात सुन, मन में लड्डू फूटते है, और शादी के बाद, दोनों हाथों में लड्डू आते हैं, कोई जलेबी की तरह सीधा है, कोई टेढ़ी खीर है, किसी के मुंह में घी शक्कर है, सबकी अपनी अपनी तकदीर है... कभी कोई चाय-पानी करवाता है, कोई मख्खन लगाता है और जब छप्पर फाड़ कर कुछ मिलता है, तो सभी के मुंह में पानी आता है, भाई साहब अब कुछ भी हो, घी तो खिचड़ी में ही जाता है, जितने मुंह है, उतनी बातें हैं, सब अपनी-अपनी बीन बजाते है, पर नक्कारखाने में तूती की आवाज कौन सुनता है, सभी बहरे है, बावरें है ये सब हिंदी के मुहावरें हैं... ** **
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23-10-2017, 11:16 PM | #206 |
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Re: मुहावरों की कहानी
कुत्तों पर मुहावरे या मुहावरों में कुत्ते
कई फिल्मी मुहावरे अब सामाजिक जीवन में घुल-मिलकर इंसानी मुहावरों में तब्दील हो गए हैं। इनमें एक प्रसिद्ध मुहावरा है आचार्य धर्मेद्र उच्चारित- कुत्ते मैं तेरा खून पी जाऊंगा। यह अब कई प्रसिद्ध, लेकिन बासी मुहावरों में शामिल हो चुका है। जैसे- भारत एक कृषि प्रधान देश है या साहित्य समाज का दर्पण है आदि-आदि। लेकिन कुत्ते का खून पीने के संकल्प में एक साहस है। एक उद्बोधन है। इसमें गर्जन-तर्जन है। भाषाशास्त्र के अनुसार, यह दफा 302 की धारा है। हम सिर्फ पशु हत्या के इरादे से ही - तेरा खून पी जाऊंगा कहते हैं। असल में पीते नहीं। हम मुरगा और बकरा तो खाते हैं, मगर उनका खून नहीं पीते। हम सभ्य हैं। इधर कुछ ऐसा हुआ है कि आदमी और कुत्ता चर्चा में हैं। एक नया शोध यह है कि फुटपाथ कुत्तों के लिए होता है आदमियों के लिए नहीं। उन गरीब आदमियों के लिए भी नहीं, जो वाकई कुत्तों की जिंदगी जी रहे हैं। कुत्ता स्वयं एक सामाजिक जीव है। वह अभिव्यक्ति का माध्यम भी है। लोग अक्सर गालीनुसार कहते हैं कि- बड़ी कुत्ती चीज हो यार। >>>
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23-10-2017, 11:17 PM | #207 |
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Re: मुहावरों की कहानी
कुत्तों पर मुहावरे या मुहावरों में कुत्ते
कुत्ते की औलाद कहने की भी परंपरा है। टुकड़े-टुकड़े करके कुत्तों के आगे फेंक दूंगा- ये भी कुत्तों को दावत देना है। भंडारे की तरह का। सलमान खान की गाड़ी से अगर कुत्ता मर जाता, तो उसे जेल न होती। एक पूर्व फिल्मी गायक यदि यह साबित कर देता कि जो मरा वह कुत्ता था, तो न्यायपालिका शरमाने लगती। इस घटना में जो घायल हैं, उन्हें यदि उचित मुआवजा मिल जाता, तो वे स्वयं को आदमी साबित कर सकते थे। मगर क्या करें, जिसके भाग में कुत्ते की मौत लिखी हो, उसे कोई नहीं बचा सकता। ये भी सच है कि वफादारी सिर्फ कुत्तों में मिलती है। स्वर्ग के रास्ते पर युधिष्ठिर को एक कुत्ते ने ही गाइड किया था। कुत्तों के पक्ष में एक और बात है। अगर आप कभी घनी रात में अकेले हों और जंगल में रास्ता भूल जाएं, तो तारों की रोशनी में आप आसपास की बस्ती नहीं तलाश सकते। एक ही रास्ता बचता है कि जहां से कुत्तों के भौंकने की आवाज सुनाई दे, समझो उसी तरफ गांव है। बस्ती है। जीवन है।
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01-11-2017, 10:56 PM | #208 |
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Re: मुहावरों की कहानी
आज नहीं कल
(टालमटोल करना) एक मुसलमान प्रतिदिन रात में एक पेड़ के नीचे जा कर अपने अल्लाह से दुआ करता कि ‘ए खुदा! मुझे अपनी मुहब्बत में खेंच.’ उसकी यह बात किसी मसखरे ने सुन ली. एक रात वह पेड़ पर चढ़ गया और उसने रस्सी का फंदा नीचे गिरा कर ऊपर खींचना शुरू कर दिया. तब वह अल्लाह का बंदा यह सोच कर कि खुदा ने उसकी दुआ कबूल करते हुए यह रस्सी ऊपर से मेरे लिए भिजवाई है, घबरा कर जोर जोर से चिल्लाने लगा कि ‘इतनी जल्दी नहीं मौला .... आज नहीं कल ... आज नहीं कल’. तब से यह कहावत चल निकली. **
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02-11-2017, 01:33 PM | #209 |
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Re: मुहावरों की कहानी
आठ जुलाहे नौ हुक्का जिस पर भी ठुक्कम थुक्का
(भावार्थ: आठ जुलाहं के पास नौ हुक्के होते हुए भी इस बात का झगडा हो गया कि हुक्कों को आपस में किस प्रकार बांटा आये कि कोई हुक्के से महरूम न रह जाए. जुलाहे आमतौर पर सीधे साधे और मूर्ख समझे जाते थे. यह उसी का एक उदाहरण है) ========================== जुलाहों के भोलेपन या बुद्धूपन के अनेक किस्से प्रचलित हैं. एक किस्सा यह है कि एक बार दस जुलाहे एक रेगिस्तान पार कर रहे थे. वहां उन्हें मृग मारीचिका दिखाई दी जिसे उन्होंने नदी समझ कर पार किया. यह देखने के लिए कि कोई डूब तो नहीं गया, उन्होंने अपने को गिनना शुरू किया. हर आदमी ने गिना और हर बार एक आदमी गिनती में कम पाया. दरअसल, हर कोई अपने को गिनना भूल जाता था. सब ने कहा कि यह तो बड़ी भारी मुसीबत हो गई. यात्रा के शुरू में दस व्यक्ति थे परन्तु अब नौ रह गए थे. वह सब वहां बैठ कर रोने लगे. उसी समय वहां से एक घुड़सवार निकला. उसने उनका किस्सा सुना और उन्हें गिन कर बताया कि वे नौ नहीं दस ही हैं और रोने की कोई बात नहीं है.
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04-11-2017, 11:58 PM | #210 |
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Re: मुहावरों की कहानी
हिसाब ज्यों का त्यों,आखिर कुनबा डूबा क्यों?
किस्सा कुछ इस प्रकार है कि एक पटवारी साहब अच्छे ऊंचे-पूरे कद के थे और उनके साथ तीन-तीन छोटे बच्चे थे, पटवारी जी को एक नदी पार करनी थी, उन्होंने नदी की गहराई नापी, अपना और बच्चों के कद का हिसाब जोड़ा, औसत लगाया गुणा-भाग कर समाधान निकाला और निकल पड़े नदी पार करने, नदी के दूसरे किनारे पर पहुंचे तो देखा कि पीछे एक बच्चा दिखाई नहीं दे रहा उसने बार-बार हिसाब लगाया, सोचा-विचारा, सिर खुजाया पर बच्चों के डूबने का कारण समझ न पाया और झल्ला कर बोल पड़ा ‘हिसाब ज्यों का त्यों, आखिर कुनबा डूबा क्यों?
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