02-06-2011, 03:52 PM | #121 |
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Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
प्रताप सिंह की बढ़ती हुई ख्याति दुसरे सरदारों के लिए असहाय थी। बहुत-सी अभिमाना और स्वार्थी प्रकृति के सामन्तों को उसकी उन्नति और उत्कर्ष असहाय हो गया था। प्रताप सिंह अपनी वीरता और कर्त्तव्यपरायणता आदि गुणों के कारण जयपुर
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02-06-2011, 03:53 PM | #122 |
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Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
की जनता में बहुत शीघ्र ही लोकप्रिय हो गया और उसके गुणों से प्रभावित होकर महाराज पृथ्वीसिंह भी उसकी आदर करने लगे। सरदारों का उनके मनमुटाव रखने का मुख्य कारण यही था कि उन्होंने जनता एवं जयपुर नरेश दोनों से विशेष सम्मान प्राप्त कर लिया था।
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02-06-2011, 03:54 PM | #123 |
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Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
जयपुर में प्रताप सिंह के विरुद्ध षड़यन्त्र
प्रताप सिंह की बढ़ती हुई लोकप्रियता के कारण कुछ सरदारों ने उसके विरुद्ध जयपुर नरेश के कान भरने शुरु कर दिए। दुर्जन सिंह नामक एक सरदार तो उसकी हत्या करने के लिए तैयार हो गया व प्रताप सिंह को मारने के लिए षड़यन्त्र भी रचा, लेकिन उसे कोई सफलता न मिली।
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02-06-2011, 03:54 PM | #124 |
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Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
दुर्जन सिंह की दुष्ट्ता के बारे में सुनकर प्रताप सिंह के समर्थक सरदारों के हृदय में बदने की भावना पैदा हो गई और वे बहुत क्रोधित व उत्तेजित हुए। यहाँ तक कि वे उसको दण्ड देने के लिए तैयार हो गए, लेकिन प्रताप सिंह ने उन्हें काफी समझाया। इस प्रकार के षड़यन्त्र के कारण उनियारे के सरदार सिंह को विशेष दु:ख हुआ। उस पर प्रताप सिंह के समझाने-बुझाने का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। प्रताप सिंह के दुश्मनों से बदला लेने के लिए वह उत्तेजित हो उठा। अन्त में उसके बहुत
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02-06-2011, 03:59 PM | #125 |
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Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
समझाने पर उन्होंने अपना क्रोध रोककर कहा कि मैं दुर्जन सिंह के इस कुचक्र के सम्बन्ध में महाराजा पृथ्वी सिंह से अवश्य निवेदन कर्रूँगा। इतना कहकर सरदार सिंह ने उसी क्षण जयपुर नरेश से मिलकर उन्हें दुर्जन सिंह के षड़यन्त्र के विषय में अवगत करा दिया। जिस पर जयपुर महाराजा ने उक्त सरदार को जयपुर राज्य से बाहर निकाल दिया।
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02-06-2011, 04:00 PM | #126 |
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Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
दुर्जन सिंह के षड़यन्त्र की घटना के बाद प्रताप सिंह ने जयपुर महाराजा से राजगढ़ जाने की अनुमति माँगी। जयपुर नरेश को प्रताप सिंह का यह प्रस्ताव सुनकर बहुत दु:ख हुआ। उन्होंने प्रताप सिंह को राजगढ़ जाने से रोकना चाहा, पर जब उसने हठ किया और यह प्रतिज्ञा की, कि जब कभी भी आप मुझे याद करेगें, तब मैं आपकी सेवा में फिर उपस्थित हो जाऊँगा। तब जयपुर के नरेश ने उसे राजगढ़ जाने की आज्ञा दी।
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02-06-2011, 04:02 PM | #127 |
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Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
प्रताप सिंह की अनुपस्थिति में उनसे मनमुटाव रखने वाले सरदारों को महाराजा पृथ्वी सिंह और प्रताप सिंह के बीच वैमनस्य पैदा करने का अच्छा अवसर मिल गया। राजसिंह नामक एक सरदार ने जयपुर महाराजा के समक्ष यह प्रस्ताव रखा कि प्रताप सिंह आपसे अप्रसन्न होकर राजगढ़ चला गया है। इसलिए आपको उससे चैतन्य रहना चाहिए और उसका दमन करने में देरी नहीं करनी चाहिए।
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02-06-2011, 04:03 PM | #128 |
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Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
महाराजा पृथ्वी सिंह सरदार राजसिंह के कथन से प्रभावित हो गया और उसने उस समय १७७२ में राजगढ़ पर आक्रमण करने की आज्ञा प्रदान कर दी। इस पर राजसिंह व फिरोज खाँ ने जयपुर के ४०,००० सैनिकों के साथ दो दलों में विभक्त होकर राजगढ़ की ओर प्रस्थान किया और वसुवा नामक स्थान पर घेरा डाला। जब प्रताप सिंह को यह समाचार मिला तो उन्होंने अपने मंत्री छाजराम हल्दिया, उसके तीनों पुत्र दोलतराम, नन्दराम, रामसेवक, मौजीराम, जीवन खाँ तथा होशदार खाँ आदि सचिवों से परामर्श कर अपने सबी सरदारों को परामर्श के लिए बुलाया।
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02-06-2011, 04:04 PM | #129 |
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Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
जब उसके सभी सरदार एकत्रित हुए तो उसने सभी से जयपु की सेना से युद्ध व स्वतंत्र सम्पत्ति की माँग की व यह प्राप्त करने में सहायता माँगी। प्रताप सिंह की उपस्थिति में सभी सरदारों ने विपत्ति में साथ देने का वायदा किया।
जब सरदारों को युद्ध के लिए उत्साहित देखकर प्रताप सिंह ने अपनी सेना का एक भाग राजगढ़ की रक्षा के लिए छोड़कर शेष सेना के साथ जयपुर की सेना का सामना करने के लिए प्रस्ताव किया।
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02-06-2011, 04:34 PM | #130 |
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Re: राजस्थान का शौर्यपूर्ण इतिहास : एक परिचय
राजसिंह को इसकी सूचना प्राप्त होते ही वह फिरोज खाँ के साथ राजगढ़ की ओर बढ़ा, जहाँ प्रताप सिंह की सेना पहले ही से युद्ध के लिए उसकी प्रतीक्षा कर रही थी। राजगढ़ के मुट्ठीभर सैनिकों ने निरन्तर दो महीनों तक जयपुर की विशाल सेना का सामना किया, लेकिन इसका परिणाम नहीं निकलने पर प्रताप सिंह के नेतृत्व में राजगढ़ के सैनिकों ने इस युद्ध में अद्भुत सैनिक प्रतिभा दिखाई। इस तरह प्रताप सिंह के युद्ध कौशल को देखकर राजसिंह तथा फिरोज खाँ जैसे अनुभवी और पराक्रमी सेनापति भी चकित रह गए।
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