07-04-2011, 12:34 PM | #1 |
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ठीक है मेरा लिखा मत पढ़ो पर इसे तो न छोड़ो
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07-04-2011, 01:08 PM | #2 |
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Re: ठीक है मेरा लिखा मत पढ़ो पर इसे तो न छोड़ो
भले आप दरिया किनारे जाकर मुर्गी के अँडे छील कर उबाल लो, उस उबले अँडे का आमलेट तक हम्मैं निगलवा दो… लेकिन यह जान लो कि मेरी तो आठ-दस रेडीमेड वाह-वाह टिप्पणी पक्की ही है । हमरा एक निर्गुट कबीर गैंग जो है । इसके सभी निर्गुणिया सदस्य , अपने लोगों के लिये वाह-वाह हरमुनिया बजाने में निष्ठावान गुणी हैं । मैं अँट-शँट नहीं बक रहा भाई.. और न ही मेरे पास इस पोस्ट को लँबा खींचने की फ़ुरसतिया-पावर है । डारविन के रिश्ते से स्वाइन जी कभी तो हमारे पितर रहे होंगे..
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07-04-2011, 01:10 PM | #3 |
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Re: ठीक है मेरा लिखा मत पढ़ो पर इसे तो न छोड़ो
पितर का कर्ज़ उतारने का मौका अच्छा रहा । सो, स्वाइन महाराज के तर्पण को एक पोस्ट लिखने बैठा, और फुस्स हो गया । बड़े लोचे हैं, इस स्टोरी में…. दायें हाथ मौत बाँटी जाती है और बायें हाथ सँजीवनी बेची जाती है । चुनर के किले का तिलिस्म भी फेल नौगढ़ एवं विजयगढ़ के राजाओं को ज़ालिम क्रूर सिंह महाजन के आगे पानी भरते देख मेरा रहा-सहा दिमाग भी बौरा गया । जरा मीडिया की कबूतरबाज़ी थमे, तब्भी मेरा पोस्ट चलेगा ! अक्खा यह अपुन का इंडिया है, जहाँ सभी उड़ाते चिड़िया हैं । धात्त.. मैंने तो कहा था कि, आज कुछ भी आँय बाँय शाँय नहीं लिखूँगा,.. आई एम सॉरी भाई ।
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07-04-2011, 01:13 PM | #4 |
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Re: ठीक है मेरा लिखा मत पढ़ो पर इसे तो न छोड़ो
हद है कोई कमेन्ट नहीं ??
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08-04-2011, 04:09 AM | #5 |
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Re: ठीक है मेरा लिखा मत पढ़ो पर इसे तो न छोड़ो
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10-04-2011, 11:22 AM | #6 |
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Re: ठीक है मेरा लिखा मत पढ़ो पर इसे तो न छोड़ो
आप एक कमेन्ट कि बात करते हो इस विषय पर तो कमेन्ट का पूरा कुनबा बन सकता है
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
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