15-11-2012, 05:25 PM | #11 |
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Re: रामचर्चा :: प्रेमचंद
लक्ष्मण बड़े जोशीले युवक थे। जनक की यह बातें सुनकर उनसे सहन न हो सका! जोश से बोला—महाराज! ऐसा अपनी जबान से न कहिये। जब तक राजा रघु का वंश कायम है, यह देश वीरों से खाली नहीं हो सकता। मैं डींग नहीं मारता। सच कहता हूं कि अगर खाली भाई साहब की आज्ञा पाऊं तो एकदम मैं इस धनुष के पुरजेपुरजे कर दूं। मेरे भाई साहब चाहें तो इसे एक हाथ से तोड़ सकते हैं। इसकी हकीकत ही क्या है। लक्ष्मण की यह जोशपूर्ण बातें सुनकर सारे सूरमा दंग रह गये। रामचन्द्र छोटे भाई की तबियत से परिचित थे। उनका हाथ पकड़कर खींच लिया और बोले—भाई, यह समय इस तरह की बातें करने का नहीं है। जब तक तुम्हारे बड़े मौजू़द हैं, तुम्हें जबान खोलना, उचित नहीं।
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