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Old 16-03-2014, 09:54 PM   #51
rajnish manga
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Default Re: मुहावरों की कहानी

बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे?

बचपन में बाबा एक कहावत कहते थे, "बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे?" हम ने कहा, "बाबा ! यह कौन बड़ी बात है ? बिल्ली पकड़ कर आप लाइए घंटी तो हमबाँधहीदेंगे!!" तब बाबा ने हमें इस कहाबतका किस्सा सुनाया। आप भी पहले यह किस्सा सुन लीजिये!

हमारे गाँव मे एक थे धनपत चौधरी! उनका एक बड़ा-साखलिहान था। उस में अनाज-पानी तो जो था सो था ही, ढेरो चूहे भरे हुए थे। खलिहान मेंकटाई-खुटाई के मौसम ही लोग-बाग़ जाते थे वरना वहाँ चूहाराज ही था। चूहे दिन-रातधमा-चोकड़ी करते रहते थे। धनपत बाबू ने एक मोटी बिल्ली पाल रखी थी। वह बिल्लीदिन-दोपहर कभी भी चुपके से खलिहान में घुस जाती थी और झट से एक चूहे खा जाती थी।

एकदिन चूहों ने एक बड़ी बैठक बुलाई। उसमें बुज़ुर्ग चूहों द्वारा यह कहा गया कि हम लोग इतने चूहे हैं औरबिल्लीएकफिर भी कमबख्त जब चाहती है तबहम लोगों को अपना शिकार बना लेती है... कुछ तो उपाय करना पड़ेगा। मसला तो बहुतगंभीर था। सो बहुत देर तक विचार विमर्श के बाद बूढ़ा चूहा बोला, "देखो बिल्ली से हम लोग लड़ तो नहीं सकते लेकिन बुद्धि लगा के बच सकते हैं। क्यूँ न बिल्ली के गले मेंएक घंटी बाँध दी जाए ? इस तरह से जब बिल्ली इधर आयेगी घंटी की आवाज़ सुन कर हम लोगछुप जायेंगे।"

अरे शाब्बाश....!!!! सारे चूहे इस बात पर उछल पड़े।लगा उन्हें सुरक्षा कवच मिल गया हो। लेकिन चूहों का सरदार बोला, 'आईडिया तो सॉलिड है परबिल्ली के गले मे घंटी बांधेगा कौन ?'

बूढा चूहा तो सबसे पहले पीछे हट गया। जवान भी औरबच्चे भी ! कौन पहले जाए मौत के मुंह में ? कौन घंटी बांधे ? थे तो सबचूहे... ! सो रोज अपनी नियति पर मरते रहे। समझे... !

मित्रो, इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है ऐसी योजना से कोई लाभ नहीं जिसे लागू न किया जा सके !
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Old 16-03-2014, 09:58 PM   #52
rajnish manga
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Default Re: मुहावरों की कहानी

कम्बल नहीं छोड़ता

प्रातःकाल एक बाबा जी अपने चेलों के साथ नदी के किनारे नहा रहे थे. एक चेले ने, जो बहुत अच्छा तैराक भी था, देखा कि बीच धार में एक कम्बल बहा जा रहा है.


उसने बाबा जी से कहा, “गुरूजी, आपकी आगया हो तो मैं उस कम्बल को किनारे पर ले आऊँ.”

बाबाजी की आज्ञा ले कर वह नदी की धार में कूद गया और जल्द ही कम्बल के पास पहुँच गया. जिसे वह कम्बल समझ रहा था वह वास्तव में एक भालू था. कम्बल को जैसे ही उसने पकड़ा भालू ने भी उसे पकड़ लिया. चेला जान छुड़ाना चाहता था लिकिन भालू उसे छोड़ता ही न था. दोनों पानी में बहने लगे.

जब चेला किनारे पर वापिस नहीं आया तो बाबाजी ने उसे आवाज लगाई, “बच्चा, कम्बल छोड़ दे और चला आ.”

चेले ने जवाब दिया, “महाराज, मैं तो कम्बल को छोड़ता हूँ, मगर कम्बल मुझे नहीं छोड़ता.”
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Old 27-04-2014, 12:00 PM   #53
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Default Re: मुहावरों की कहानी

मित्रो, आज मैं फोरम के 'महफ़िल' विभाग में 'ऐसी की तैसी' नामक सूत्र देख रहा था जिसमें तारा बाबू की निम्नलिखित पोस्ट सामने पड़ गई. यह बहुत रोचक है और मुझे बहुत पसंद आई. मैं यहाँ उसी पोस्ट को उद्धृत कर रहा हूँ. आशा है यह आपका भी भरपूर मनोरंजन करेगी.

Quote:
Originally Posted by malethia View Post
चीकू ने अपने दादा से पूछा कि जब भी मेरे से कोई गलती हो जाती है तो आप झट से कह देते हो कि तेरी ऐसी की तैसी। आखिर यह ऐसी की तैसी होती क्या है? दादा ने चीकू को बड़े ही प्यार से समझाया कि ऐसी की तैसी कुछ नहीं, केवल एक मुहावरा है लेकिन यह तुम्हारे जैसे अक्ल के अंधे को समझ नहीं आ सकता।


इतना सुनते ही चीकू जोर जोर से रोते हुए अपनी मां से बोला कि दादा जी मुझे अंधा कह रहे हैं। अपने कलेजे के टुकड़े की आंखों में आंसू देखते ही चीकू की मां का खून खौलने लगा। उसने बात की गहराई को समझे बिना कांव-कांव करते हुए दादा के कलेजे में आग लगा दी।

दादा ने एक तीर से दो शिकार करते हुए अपनी बहू को डांटते हुए कहा कि लगता है कि बच्चों के साथ तुम्हारी अक्ल भी घास चरने गई है। न जाने इस परिवार का क्या होगा जहां हर कोई खुद को नहले पर दहला समझता है। बहू तुम तो अच्छी पढ़ी लिखी हो। मुझे तुम से यह कदापि उम्मीद नहीं थी कि तुम कान की इतनी कच्ची हो। मैं तो तुम्हारे बेटे को सिर्फ मुहावरों के बारे में बताने की कोशिश कर रहा था, लेकिन मेरी बातें तो तुम लोगों के सिर के ऊपर से ही निकल जाती है।

इतना कहते-कहते दादा जी की सांस फूलने लगी थी परंतु उन्होंने अपनी बात जारी रखते हुए कहा कि मुहावरे किसी भी भाषा की नींव के पत्थर की तरह होते हैं जो उसे जिंदा रखने में मदद करते हैं। सारा गांव मेरी इतनी इज्जत करता है लेकिन तुम्हारे लिए तो मैं घर की मुर्गी की तरह हूँ जिसे सब दाल बराबर समझते है। लोग तो अच्छी बात सीखने के लिए गधे को भी बाप बना लेते हैं।

इससे पहले कि दादा मुहावरों के बारे में और भाषण देते, चीकू ने कहा कि लोग गधे को ही क्यूं बाप बनाते हैं, हाथी या घोड़े को क्यूं नही? दादा जी ने प्यार से चीकू को समझाया कि सभी मुहावरे किसी न किसी व्यक्ति के अनुभव पर आधारित होते हुए हमारी भाषा को गतिशील और रूचिकर बनाने के लिये होते है। हां, कुछ मुहावरे ऐसे होते हैं जो किसी एक खास धर्म और जाति के लोगों पर लागू नहीं होते।

चीकू ने हैरान होते हुए पूछा कि यह कैसे मुमकिन है? दादा जी ने चीकू को बताया कि अब एक मुहावरा है सिर मुंड़ाते ही ओले पड़े। यह मुहावरा किसी तरह भी सिख लोगों पर लागू नहीं होता क्योंकि सिर तो सिर्फ हिंदू लोग ही मुंडवाते हैं। ऐसा ही एक और मुहावरा है, कल जब मैं रात को क्लब से रम्मी खेल कर आया तो मेरी हजामत हो गई। इतना तो आप भी मानते होंगे कि सब कुछ मुमकिन हो सकता है लेकिन किसी सरदार जी की हजामत करने के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता।

अजी जनाब आप ठहरिये तो सही, अभी एक और बहुत बढ़िया मुहावरा आपको बताना है, वो है हुक्का पानी बंद कर देना। अब सिख लोग ऐसी चीजों का इस्तेमाल करते ही नहीं तो उनका हुक्का पानी कैसे बंद हो सकता है? इतना सुनते ही चीकू ने दांतों तले उंगली दबाते हुए दादा से पूछा कि अगर आपको दांतों तले उंगली दबानी पड़े तो कहां दबाओगे क्योंकि आप के दांत तो हैं नही?

यही नहीं, ऐसे बहुत से और भी मुहावरे हैं जिन को बनाते समय लगता है, हमारे बुजुर्गों ने बिल्कुल ध्यान नहीं दिया। सदियों पहले इनके क्या मायने थे, यह तो मैं नहीं जानता लेकिन आज के वक्त में तो इनके मतलब बिल्कुल बदल चुके हैं। एक बहुत ही पुराना लेकिन बड़ा ही मशहूर मुहावरा है कि न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी। अरे भैया, नाचने के लिए राधा को नौ मन तेल की क्या जरूरत पड़ गई? अगर नाचने वाली जगह पर थोड़ा सा भी तेल गिर जाये तो राधा तो बेचारी फिसल कर गिर नहीं जायेगी। वैसे भी आज के इस महंगाई के दौर में नौ मन तेल लाना किस के बस की बात है? घर के लिये किलो-दो किलो तेल लाना ही आम आदमी को भारी पड़ता है।

दादा ने चीकू से एक और मुहावरे की बात करते हुए कहा कि यह मुहावरा है बिल्ली और चूहे का। मैं बात कर रहा हूँ 100 चूहे खाकर बिल्ली हज को चली। अब कोई मुहावरा बनाने वाले से यह पूछे कि क्या उसने गिनती की थी कि बिल्ली ने हज पर जाने से पहले कितने चूहे खाये थे? क्या बिल्ली ने हज में जाते हुए रास्ते में कोई चूहा नहीं खाया। अगर उसने कोई चूहा नहीं खाया तो रास्ते में उसने क्या खाया था? वैसे क्या कोई यह बता सकता है कि बिल्लियां हज करने जाती कहां है? कुछ भी हो, यह बिल्ली तो बड़ी हिम्मत वाली होगी जो 100 चूहे खाकर हज को चली गई।


अब जौली अंकल अपनी मुहावरों की बात को यही खत्म करना चाहते हैं नहीं तो कुछ लोग ऐसे डर कर गायब हो जायेंगे जैसे गधे के सिर से सींग। जी हां, मैं बात कर रहा हूँ दौड़ने भागने की। इससे पहले कि अब आप मेरे मुहावरों की ऐसी की तैसी करें, मैं तो यहां से 9 दो 11 हो जाता हूं


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Old 22-05-2014, 01:10 PM   #54
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Default Re: मुहावरों की कहानी

पढ़ा खूब है, पर गुना नहीं

एक राजा ने अपने पुत्र को ज्योतिष की विद्या सीखने के लिये एक प्रसिद्ध ज्योतिषी के यहाँ भेजा. ज्योतिषी का बेटा और राजकुमार दोनों साथ ही शिक्षा प्राप्त करने लगे. कई वर्ष बाद ज्योतिषी ने राजा के पास आ कर निवेदन किया, महाराज, राजकुमार की शिक्षा पूर्ण हो गयी है.”

राजा ने अपने पुत्र की परीक्षा लेने का विचार किया और इसके लिये एक दिन निश्चित किया. राजा और ज्योतिषी के पुत्रों को दरबार में बुलाया गया. राजा ने अपने हाथ में चाँदी की एक अंगूठी रखते हुये राजकुमार से पूछा, “बताओ, मेरी मुट्ठी में क्या वस्तु है?”

राजकुमार बोला, सफ़ेद-सफ़ेद, गोल-गोल सी, कोई कड़ी चीज है, बीच में उसके एक सुराख है.”

राजा बहुत खुश हुआ और बोला, “इतना तुमने ठीक बताया है. अब उस चीज का नाम बताओ.”

राजकुमार ने बताया, “चक्की का पाट.”

राजा को यह सुन कर बहुत निराशा हुई. उसने मन में सोचा कि यही है इसकी ज्योतिष की पढ़ाई?

फिर उसने ज्योतिषी के लड़के से पूछा, “तुम बताओ कि मेरी मुट्ठी में क्या चीज है?”

“चाँदी की अंगूठी!!” ज्योतिषी के बेटे ने झट से उत्तर दे दिया. राजा ने सोच कि ज्योतिषी ने मेरे बेटे को तो विद्या सिखाई नहीं, अपने पुत्र को ही ज्योतिष का सारा ज्ञान दे दिया है.

जब उसने ज्योतिषी से इस बाबत सवाल किया तो ज्योतिषी ने बताया, “जहां तक ज्योतिष विद्या की बात है, वहां तक तो दोनों ने बराबर ही सीखी है. उसके द्वारा दिए गये पहले जवाबों से आपको इसका अंदाजा हो गया होगा. लेकिन राजन, अक़ल तो जिसके पास जितनी होती है, उतनी ही उसके काम आती है. राजकुमार में विद्या का नहीं, अक़ल का घाटा है. इसे यह मामूली बात भी समझ में नहीं आयी कि चक्की के पाट जैसी बड़ी चीज आपकी हथेली में कैसे आ सकती है? किसी को समझ देना मुश्किल है. इस लिये मैं यह कहता हूँ कि इसने पढ़ा तो खूब, पर गुना नहीं है.”
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Old 22-05-2014, 01:13 PM   #55
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Default Re: मुहावरों की कहानी

नौ दिन चले अढ़ाई कोस

आप जानते होंगे कि अफ़ीम पोस्त की डोड़ों से निकलती है और नशे के लिये इस्तेमाल की जाती है, इसीलिये अफ़ीम खाने वाले (अफ़ीमची) को पोस्ती भी कहते हैं.

किसी कवि ने पोस्ती की फ़ितरत समझाते हुये यह मिसरा कहा,

“पोस्ती ने ली पोस्त, नौ दिन चले अढ़ाई कोस”

यह सुन कर अफ़ीमची बोला, “जनाब, वह असली पोस्ती नहीं होगा, कोई डाकिया होगा. पोस्ती का तो उसूल ही यह है:

“मर जाता पर उठके जाना नहीं अच्छा
मर्दों का हाथ पैर हिलाना नहीं अच्छाi”

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Old 22-05-2014, 01:16 PM   #56
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Default Re: मुहावरों की कहानी

पाँचवाँ सवार

एक बार दिल्ली में बाहर से आये चार सवार सदर दरवाजे से अन्दर आ रहे थे. उन्हीं के पीछे एक कुम्हार भी गधे पर बैठ कर आ रहा था.

तभी किसी ने सवारों से पूछा, “सवारों, आप लोगों ने रास्ते में किसी ऊंट को तो चरते हुये नहीं देखा?”

इससे पहले कि सवार इस प्रश्न का कोई उत्तर देते, कुम्हार बोल पड़ा, “हम पाँचों सवारों ने कोई ऊँट-वूंट नहीं देखा.”

सभी उस पांचवें सवार को हैरानी से देखने लगे. कहते हैं तभी से “पाँचवाँ सवार” मुहावरा उस व्यक्ति के लिये प्रयोग में लाया जाता है जो अपना महत्त्व बताने के लिये बिना मांगे या जबरदस्ती किसी मामले में लोगों को अपनी राय देने की कोशिश कर रहा हो.
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Last edited by rajnish manga; 22-05-2014 at 01:19 PM.
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Old 22-05-2014, 01:22 PM   #57
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Default Re: मुहावरों की कहानी

दौलत अंधी होती है

समरकंद के बादशाह तैमूरलंग के के पास दिल्ली से एक अँधा गवैया आया. बादशाह ने उससे उसका नाम पूछा.

उसने उत्तर दिया, “दौलत.”

बादशाह ने मजाक में कहा, “अरे कहीं दौलत भी अंधी होती है?”

अंधे गायक ने उत्तर दिया, “दौलत अंधी न होती तो लंगड़े के यहाँ क्यों आती?”

बादशाह एक पैर से लंगड़ा था और इसी वजह से उसके नाम में लंग शब्द जुड़ गया था.

बादशाह गायक का उत्तर सुन कर दंग रह गया.

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Old 02-06-2014, 01:28 PM   #58
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बहुत शानदार
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Disclaimer......!
"The Forum has given me all the entries are not my personal opinion .....! Copy and paste all of the amazing ..."
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Old 13-06-2014, 10:33 PM   #59
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Default Re: मुहावरों की कहानी

कविता में मुहावरे
आभार: पी. सी. गोदियाल ‘परचेत’
तू डाल-डाल, मैं पात-पात, नहले पे दहलेठन गए,
जबसे यहाँ कुछअपने मुह मिंया मिट्ठूबन गए।

ताव मे आकर हमने भी कुछतरकस के तीर दागे
,
बडी-बडी छोडने वाले, सर पर पैर रखकर भागे

अक्ल पे पत्थर पड गयेक्या, आग मे घी मत डालो
,
दूसरों पर पत्थर फेकनाछोडो, अपना घरसंभालो।

समझदार नहींधर्म की आंच पर रोटियाँ सेकाकरते
,
कांच के घरों में रहने वाले, पत्थर नहीं फेंका करते


हमेशाएक ही लकडी से हांकनाठीक सचमुच नहीं ,
मिंया, मुल्ले की दौड मस्जिद तकबाकी कुछ नहीं ।

आंखों मे धूल झोंक,खुद कोतीस मार खां बताते हो
,
चोर-चोर मौसेरे भाईहो, पर खिचडी अलग पकातेहो।


अपुन तोसौ सुनार की, एक लोहार कीपे चलते है,
चिराग तले अन्धेरा होता है, काहे फालतू में जलते है


हम सब जानते है किदूर के ढोल सुहाने होते है,
नहीं समझदार लोगबहती गंगा में हाथधोतेहै।

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Old 13-07-2014, 11:38 PM   #60
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Default Re: मुहावरों की कहानी

ठेंगा दिखा गये
(रजनीश मंगा / rajnish manga)
तारे गिना गये, त्रिशंकु बना गये, आँखें दिखा गये.
जिन जिन पे भरोसा था मुझको, ठेंगा दिखा गये.
उड़ती हुई चिड़िया के पंख जो, गिनना सिखा गये,
छठी का दूध हमें याद दिला कर, उल्लू बना गये.
__________________
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