11-12-2011, 05:35 PM | #41 |
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Re: श्री कृष्ण-गीता (हिन्दी पद्द-रूप में)
मेरी महिमा का नहीं अंत अर्जुन, मेरी महिमा है अनन्त मेरी महिमा का नहीं पार इसलिए कहूँगा सार-सार मैं हीं जीवों में प्राण, पार्थ मैं हीं मनुजों में ज्ञान, पार्थ मैं ज्वाला पुंजों में दिनकर मैं ही रुद्रों में हूँ शंकर पर्वत-शिखरों में हूँ सुमेरू यक्षों में मैं ही हूँ कुबेर मैं वेदों में हूँ सामवेद चार नीतियों में हूँ मैं भेद मैं वचनों में ओंकार, पार्थ मैं हूँ वामन अवतार, पार्थ अर्जुन, नागों में हूँ शेषनाग अर्जुन, वसुओं में हूँ आग मुनियों में मै हूँ वेद-व्यास ऋतुओं में मैं हूँ मधुरमास कालों में मैं हूँ महाकाल व्यालों में मैं हूँ महाव्याल नभचर में मैं ही हूँ उकाब फ़ूलों में मैं ही हूँ गुलाब वृक्षों में मैं ही बरगद हूँ ऋषियों में मैं ही नारद हूँ देवों में मैं हूँ देवराज जितने भूषण उनमें हूँ ताज मासों में मैं ही अगहन हूँ जीवेन्द्रियों में मैं हीं मन हूँ मैं ही तारों में चंदा हूँ मैं ही नदियों में गंगा हूँ वनचरो में मैं ही हूँ नाहर कुंजरों में एरावत कुंजर गिरियों में मैं हिमगिरि महान महर्षियों में मुझे भृगु जान पितरों में मैं ही पितरेश्वर मीनों में मैं ही मीन मकर मैं जल स्त्रोतों में हूँ सागर मैं सात स्वरों में पंचम स्वर गंधर्वों में मैं गंधर्वराज सिद्धों में मैं ही सिद्धराज मैं कार्तिकेय सेनापतियों में मैं परम गति सब गतियों में धामों में मैं हूँ काशीधाम धनुर्धारियों में हूँ मैं राम मैं भूपों में हूँ महाभूप मैं रूपों में हूँ कामरूप मैं ब्रह्म-विद्या सभी विद्याओं में कामधेनु हूँ मैं सभी गायों में जग के जितने भी आकर्षण वे सब मुझसे ही हैं उत्पन्न हे सखे! रहा जो कुछ निहार सब मेरा ही है चमत्कार अर्जुन, जो कहता हूँ कर उठ, दुष्ट कैरवों से तू लड़ *** *** *** |
11-12-2011, 05:38 PM | #42 |
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Re: श्री कृष्ण-गीता (हिन्दी पद्द-रूप में)
ग्यारहवाँ अध्याय
विश्वरूप-दर्शन अर्जुन- मंगलमय मार्ग दिखा कर के मंगलमय मार्ग बता कर के मुझ पर है जो उपकार किया मुझ पर है जो आभार किया मैं उसको नहीं भूला सकता उसका ऋण नहीं चुका सकता पर थोड़ा सा उपकार और मुझ पर कर दें करतार और दिखला दें अपना विश्वरूप जो है अनुपम, जो है अनूप |
11-12-2011, 05:38 PM | #43 |
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Re: श्री कृष्ण-गीता (हिन्दी पद्द-रूप में)
भगवान-
अर्जुन, मेरा वह विश्वरूप इतना अनुपम, इतना अनूप अपनी साधारण आँखों से तू देख सकेगा नहीं उसे इसलिए देखने को वह रूप मैं देता हूँ तुम्हें आँखें अनूप |
11-12-2011, 05:39 PM | #44 |
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Re: श्री कृष्ण-गीता (हिन्दी पद्द-रूप में)
संजय-
भगवन ने रच अपनी माया तब विश्वरूप निज दिखलाया |
11-12-2011, 05:40 PM | #45 |
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Re: श्री कृष्ण-गीता (हिन्दी पद्द-रूप में)
भगवान-
मुझमें ज्योति-अंधकार देख मुझमें सारा संसार देख मुझमें धरती-आकाश देख मुझमें पतझर-मधुमास देख तू उदय देख, अवसान देख तू पतन और उत्थान देख तू स्वर्ग देख, पाताल देख गत और अनागत काल देख बहती सरिता की धार देख तू जंगल और पहाड़ देख तू सुबह देख, तू शाम देख जग का होता हर काम देख तू हरे-भरे सब खेत देख तू भूत और सब प्रेत देख तू ब्रह्मा और महेश देख तू विष्णु और सुरेश देख तू मुझमें काल और रुद्र देख तू जीव बड़े और क्षुद्र देख तू छांव देख, तू धूप देख तू रंक देख, तू भूप देख तू होता हर एक कांड देख मुझमें सारा ब्रहमांड देख तू देख खड़े सब सेना दल तू देख मची रण में हलचल चलते बाणों पर बाण देख दुर्योधन का अवसान देख तू देख पांडवों को लड़ते तू देख कौरवों को मरते सारे कौरव दल हार रहे पांडव जयकार पुकार रहे सब जन्म रहे हैं मुझसे पा फ़िर मर कर रहे मुझमें समा तू जन्म-मृत्यु का मेल देख यह अद्भुत मेरा खेल देख |
11-12-2011, 05:40 PM | #46 |
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Re: श्री कृष्ण-गीता (हिन्दी पद्द-रूप में)
अर्जुन-
मन देख देख अब घबराता अब और नहीं देखा जाता यह विश्वरूप अब दूर करें अब फ़िर वह पहला रूप धरें |
11-12-2011, 05:42 PM | #47 |
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Re: श्री कृष्ण-गीता (हिन्दी पद्द-रूप में)
संजय-
अर्जुन के ऐसा कहने पर फ़िर पहला रूप लिया झट धर |
11-12-2011, 05:42 PM | #48 |
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Re: श्री कृष्ण-गीता (हिन्दी पद्द-रूप में)
भगवान-
हे अर्जुन! नाम कमा ले तू उठ, धनु और बाण उठा ले तू यह अवसर हाथ न आएगा तू जीवन भर पछताएगा तू मत डर यह रण करने से तू मत डर मारने-मरने से हे अर्जुन! कायरता तज कर उठ, हो जा लड़ने को तत्पर |
11-12-2011, 05:43 PM | #49 |
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Re: श्री कृष्ण-गीता (हिन्दी पद्द-रूप में)
संजय-
भगवान के ऐसा कहने पर अर्जुन ने धनुष लिया झट धर भगवान को झुक कर बार-बार अर्जुन ने की शत नमस्कार *** *** *** |
11-12-2011, 05:44 PM | #50 |
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Re: श्री कृष्ण-गीता (हिन्दी पद्द-रूप में)
आगे फ़िर टाईप करने के बाद दो-तीन दिन में पोस्ट करुँगा।
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