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Old 18-06-2013, 11:40 AM   #251
Dark Saint Alaick
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Default Re: डार्क सेंट की पाठशाला

अहमद की पितृ भक्ति

एक पुराने समय की कहानी है। हारून रशीद बगदाद का एक बहुत नामी बादशाह था। लोग उसका सम्मान भी किया करते थे क्योंकि आम तौर पर वह जनता की भलाई के लिए ही काम करता था। एक बार उसने अपना वजीर और उसके बेटे को एक काम करने को कहा लेकिन बदकिस्मती से पिता पुत्र चाह कर भी समय पर वो काम नहीं कर पाए। इस पर बाहशाह हारून रशीद वजीर पर नाराज हो गया। उसने वजीर और उसके लड़के अहमद को जेल की सलाखों के पीछे डलवा दिया। उस वजीर को ऐसी बीमारी थी कि ठंडा पानी उसे नुकसान पहुंचाता था। उसे सुबह हाथ-मुंह धोने के लिए गरम पानी आवश्यक था। लेकिन जेल में गरम पानी कहां से मिलता। वहां तो कैदियों को ठंडा पानी ही दिया जाता था। इसीलिए अहमद रोज शाम को लोटे में पानी भरकर लालटेन के ऊपर रख दिया करता था। रात भर में लालटेन की गर्मी से पानी गरम हो जाता था। उसी से उसके पिता हाथ-मुंह धोते थे। उस जेल का जेलर बड़ा ही निर्दयी था। जब उसको पता लगा कि अहमद अपने पिता के लिए लालटेन पर पानी गरम करता है तो उसने लालटेन वहां से हटवा दी। अब अहमद के पिता को ठंडा पानी मिलने लगा। उससे उसकी बीमारी बढ़ने लगी। अहमद से पिता का कष्ट नहीं देखा गया। उसने एक उपाय किया। शाम को वह लोटे में पानी भरकर अपने पेट से लोटा लगा लेता था। रात भर उसके शरीर की गरमी से लोटे का पानी कुछ न कुछ गरम हो जाता था। उसी पानी से वह सबेरे अपने पिता के हाथ-मुंह धुलाता था। लेकिन रातभर पानी भरा लोटा पेट से लगाए रहने के कारण अहमद सो नहीं सकता था। नींद आने पर लोटे के पानी के गिर जाने का भय था। जब जेलर को बालक अहमद की इस पितृभक्ति का पता लगा, तो उसका निर्दय हृदय भी दया से पिघल गया। उसने अहमद के पिता को गरम पानी देने की व्यवस्था कर दी।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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Old 20-07-2013, 11:02 PM   #252
Dark Saint Alaick
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Default Re: डार्क सेंट की पाठशाला

बांटने से बढ़ता है प्रेम

आचार्य रामानुज के पास एक युवक आया और उन्हें प्रणाम करने के बाद उनके पास बैठा गया। उसने उनसे सवाल किया, महाराज मैं परमात्मा को पाना चाहता हूं मेरा मार्गदर्शन करें। इस पर आचार्य ने कहा,बेटा इससे पहले कि मैं तुम्हारा मार्गदर्शन करूं यह जानना चाहता हूं कि तुमने कभी किसी से प्रेम किया है? तपाक से युवक ने कहा, महाराज आप कैसी बातें करते हैं। मैंने आज तक किसी की तरफ आंख उठाकर देखा तक नहीं। बड़ा सीधा-सादा युवक हूं, मेरे संस्कार बचपन से धार्मिक हैं। आचार्य रामानुज ने फिर पूछा। सोच कर बताओ क्या कभी किसी से प्रेम किया है? युवक ने कहा नहीं महाराज। मैं तो परमात्मा को पाना चाहता हूं। मैं आजकल के युवकों के जैसा नहीं हूं। मेरे परिवार का वातावरण धार्मिक है। मैं उसी में बड़ा हुआ हूं। आचार्य ने तीसरी बार पूछा। फिर से देख लो बीते दिनों को और ठीक से सोचकर बताओ क्या तुमने कभी किसी से प्रेम किया है? युवक ने कुछ क्षण सोचा और कहा नहीं महाराज मैं दावे के साथ कहता हूं मैंने कभी किसी से प्रेम नहीं किया। आचार्य रामानुज निराश होकर बोले, तब मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता। जिसने कभी संसार में किसी से प्रेम नहीं किया वह परमात्मा से क्या खाक प्रेम करेगा? तुम्हारे भीतर यदि प्रेम की चिंगारी कहीं मौजूद होती तो मैं उसे आग में बदल सकता था। तीन बार तुमने एक ही जवाब दिया है, लेकिन अब भी मुझे तुम्हारे जवाब में शंका है कि वह सही है भी या नहीं। यदि जीवन में तुमने किसी से प्रेम न किया होता तो आज जी न रहे होते। अभी तक तुम्हारा जो जीवन चल रहा है वह इस बात का प्रमाण है कि कभी न कभी तुमने प्रेम अवश्य किया होगा। यह जीवन प्रेम के बल पर ही चलता है। यह प्रेम ऐसी चीज है कि बांटने से बढ़ती और देने से मिलती है। मांगो मत पाओ और पाने के लिए लुटाना होगा। कहा जा सकता है कि अगर आप देने की काबिलियत रखते हैं, तभी आपको कुछ मिल सकता है। बिना दिए कुछ नहीं मिल सकता।
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Old 20-07-2013, 11:03 PM   #253
Dark Saint Alaick
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Default Re: डार्क सेंट की पाठशाला

एक मूर्तिकार का सपना

एक मूर्तिकार ने एक रात विचित्र स्वप्न देखा। वह किसी छायादार पेड़ के नीचे बैठा था। अचानक उसे सामने एक पत्थर का टुकड़ा पड़ा दिखाई दिया। उसने उसे उठा लिया फिर उसे सामने रखा और औजारों के थैले से छेनी-हथौड़ी निकालकर उसे तराशने के लिए जैसे ही पहली चोट की, पत्थर जोर से चिल्ला पड़ा मुझे मत मारो। मूर्तिकार एक बारगी घबरा गया कि आखिर एक पत्थर ऐेसे कैसे बोल सकता है। कुछ देर तो वह रुका रहा लेकिन फिर उसने जैसे ही छेनी-हथौड़ी से उसे तराशने के लिए चोट की, दूसरी बार वह रोने लगा। मूर्तिकार ने उसे छोड़ दिया। फिर उसने अपनी पसंद का एक अन्य टुकड़ा उठाया और उसे तराशने लगा। वह टुकड़ा चुपचाप वार सहता गया और देखते ही देखते उसमें से एक देवी की मूर्ति उभर आई। मूर्ति को वहीं पेड़ के नीचे रख वह आगे चला गया। फिर कुछ समय बाद वह उसी पुराने रास्ते से गुजरा। उस स्थान पर पहुंचकर उसने देखा कि उस मूर्ति की पूजा-अर्चना हो रही है, जो उसने बनाई थी। भीड़ लगी है, भजन-आरती हो रही है, भक्तों की पंक्तियां लगी हैं। जब उसके दर्शन का समय आया, तो पास आकर उसने देखा कि उसकी बनाई मूर्ति के सामने न जाने क्या-क्या रखा है। जो पत्थर का पहला टुकड़ा उसने उसके रोने चिल्लाने पर फेंक दिया था, वह भी एक ओर पड़ा है और लोग उसके सिर पर नारियल फोड़ -फोड़ कर देवी की मूर्ति पर चढ़ा रहे हैं। तभी मूर्तिकार की नींद टूट गई। वह सपने के बारे में सोचने लगा। उसने निष्कर्ष निकाला कि जो लोग थोड़ा कष्ट झेल लेते हैं, उनका जीवन बन जाता है। पूरी दुनिया ही उनका सत्कार करती है, उन्हें पूजती है। पर जो डर जाते हैं और बचकर भागना चाहते हैं, वे बाद में जीवन भर कष्ट झेलते हैं। उनका सत्कार कोई कभी नहीं करता। यही इन पत्थरों के साथ हुआ। जो पत्थर रो-रो कर बेहाल था, वह तो अब भी रो रहा है, जबकि दूसरा मूर्ति बन कर पूजा जा रहा है।
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Old 20-07-2013, 11:15 PM   #254
rajnish manga
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Default Re: डार्क सेंट की पाठशाला

पाठशाला की घंटी बहुत दिनों बाद सुनाई दी. सो, सुनते ही विद्यार्थी चले आये हैं. प्यार और मूर्तिकार दोनों ही हमारे सत्कार के पात्र हैं. आपका अनंत आभार, अलैक जी.
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Old 05-08-2013, 10:46 PM   #255
Dr.Shree Vijay
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Default Re: डार्क सेंट की पाठशाला

Dark Saint Alaick जी यथा नाम तथा गुण, मित्र यह मुहावरा आपपे एकदम सही बैठता हें, आपने छोटे छोटे प्रहसनों में इतने सरल ढंग से जीवन का फलसफां समझा दिया, इतने बेशकीमती बेमिसाल सूत्र के लिए धन्यवाद शब्द भी छोटा प्रतीत हो रहा हैं, मेरी समझ से शायद साधुवाद शब्द ही सही हो अत: आपको ह्रदय से साधुवाद ही दे सकता हूँ............................................... ..............................
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Old 06-08-2013, 12:29 AM   #256
Dark Saint Alaick
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Default Re: डार्क सेंट की पाठशाला

व्यवहार में विनम्रता रखें

कार्यस्थल हो या कोई अन्य स्थान, बातचीत और आचार-व्यवहार में विनम्रता बरतने से कई काम स्वत: ही बन जाते हैं। यह आपकी कम्युनिकेशन स्किल्स ही है, जो आपको किसी भी कार्य में शीर्ष तक ले जाती हैं। इन्हें पुख्ता करने की शुरुआत अक्सर हमारे घर से ही प्रारंभ होती है। अक्सर हमारी मुलाकात ऐसे लोगों से होती है जिनसे मिलने के बाद हम बचपन और किशोरावस्था के दौरान घर में सीखे आचार-व्यवहार के लिए अपने माता-पिता को धन्यवाद देते हैं। हममें से करीब सत्तर प्रतिशत व्यक्ति ऐसे लोगों से मिलते हैं जिनका व्यवहार देख कर ही हम उनसे दूर हो जाते हैं। ठीक से कम्युनिकेट करने की क्षमता बेहद जरूरी होती है। क्यों? आप मानें या नहीं, हम सबका सिर्फ हमारे बोलने-चालने की आदत से ही नहीं बल्कि हम उसे कैसे बयां करते हैं और कैसे बोलते हैं, के जरिए आकलन होता है। जीवन के हर क्षेत्र में अच्छी कम्युनिकेशन स्किल्स बहुत जरूरी होती हैं। उन्हीं के सहारे आप किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ते हैं। दुनिया के 106 देशों में सक्रिय एक स्पीकिंग आर्गेनाइजेशन टोस्ट मास्टर्स इंटरनेशनल के संस्थापक डॉं. राल्फ सी स्मैडली के अनुसारए जब हम बात करते हैं तब हमारे बारे में दूसरों को पता चलता है। इससे हमारे चरित्र के बारे में कुछ ऐसी सही तस्वीर सामने आती है जो किसी भी कलाकार द्वारा बनाई गई तस्वीर से कहीं विश्वसनीय होती है। आचार-व्यवहार से जुड़े कुछ बुनियादी गुर भी होते हैं जिन्हें एक सकारात्मक बातचीत के दौरान हमें हमेशा याद रखना चाहिए। जब आप अकेले होते हैं उस समय आप अपनी मर्जी के मालिक होते हैं। परंतु कार्य स्थल जैसी जगहों पर अपनी आवाज को कुछ धीमा रखना चाहिए। ऐसा इसलिए भी जरूरी है कि आपके सहकर्मियों को शोर-शराबे से कोई दिक्कत न हो। उनकी सहूलियत का ध्यान रखें। ठहाका या जोर से गाने की आदत को पसंद नहीं किया जाता, इसलिए अपनी आवाज पर काबू रखें।
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Old 06-08-2013, 12:30 AM   #257
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Default Re: डार्क सेंट की पाठशाला

संत को मिल गई सीख

संत जुनैद का एक विचित्र शौक था। वह जिंदगी के अलग-अलग अनुभव हासिल करने के लिए भेष बदल कर घूमा करते थे। लोग समझ ही नहीं पाते थे कि संत जुनैद को यह शौक क्यों है और वे इसके जरिए आखिर लोगों को संदेश क्या देना चाहते हैं लेकिन संत जुनैद अपने इस शौक के सहारे ही लोगों की अच्छी बुरी आदतों से परिचित होते थे और उसी अनुसार लोगों का मूल्यांकन भी किया करते थे। एक बार वह भिखारी बनकर एक नाई की दुकान पर पहुंच गए। कुछ देर तो संत जुनैद दुकान के बाहर ही खड़े हो सोचते रहे कि अंदर जाऊं या नहीं क्योंकि ऐसा ना हो कि वह मुझे लताड़ कर निकाल दे। वह नाई उस समय एक रईस ग्राहक की दाढ़ी बना रहा था। उसने जब एक भिखारी को दुकान पर आते देखा तो रईस की दाढ़ी बनाना छोड़ जुनैद की दाढ़ी बनाने लगा। उसने जुनैद से पैसे नहीं लिए बल्कि उन्हें अपनी क्षमता मुताबिक भिक्षा भी दी। जुनैद नाई के व्यवहार से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने निश्चय किया कि वे उस दिन जो कुछ भी भीख के रूप में हासिल करेंगे उसे उस नाई को दे देंगे। यह एक संयोग ही था कि उस दिन एक अमीर तीर्थ यात्री ने जुनैद को सोने के सिक्कों से भरी एक थैली दी। जुनैद खुशी-खुशी थैली लेकर नाई की दुकान पर पहुंचे और उसे वह देने लगे। एक भिखारी के हाथ में सोने से भरी थैली देखकर नाई को आश्चर्य हुआ। वह यह भी नहीं समझ पा रहा था कि एक भिखारी उसे यह क्यों देना चाहता है। जब उसे पता चला कि जुनैद उसे वह थैली क्यों दे रहे हैं तो वह नाराज होकर बोला, आखिर तुम किस तरह के फकीर हो? सारा कुछ तुम्हारा फकीरों जैसा है, पर मन से तुम व्यापारी हो। तुम मुझे मेरे प्रेम के बदले में यह पुरस्कार दे रहे हो। प्रेम के बदले तो प्रेम दिया जाता है, कोई वस्तु नहीं। ऐसी वस्तु उपहार नहीं रिश्वत है। जुनैद भौंचक रह गए। उस नाई ने उन्हें एक बड़ी नसीहत दी थी।
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Old 06-08-2013, 12:31 AM   #258
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शालीन हो बोलने का लहजा

याद रखें कि कार्यस्थल पर दूसरों की सहूलियत का ध्यान रखना भी आपके आचार-व्यवहार का ही एक अंश होता है। फोन पर बातचीत के दौरान सौम्य आवाज में बात करें। कॉल आपकी पर्सनल हो या दफ्तरी कामकाज से जुड़ी, ऐसे हरेक अवसर पर विनम्रता बरतनी चाहिए। लंबी बात के दौरान दफ्तर के किसी कोने या मीटिंग रूम का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। किसी की या अपनी बातचीत करते समय एकांत जरूरी होता है। यों भी देर तक दफ्तर के फोन पर बात करते रहना शिष्टाचार के दायरे में नहीं आता। जितना जरूरी आपका किसी से बात करना है उतना ही जरूरी काम अन्य लोगों को भी हो सकता है। मीटिंग आदि के दौरान ऐसी भाषा का इस्तेमाल न करें जिसे आपके अधिकांश साथी समझ न पाएं। यदि आप अपने कहे को बाद में समझाने का प्रयास करेंगे तो वह व्यर्थ होगा। हमेशा बोलचाल की साधारण भाषा का ही इस्तेमाल करें। काम की बात के दौरान दूसरों का ध्यान आकृष्ट करने के लिए कई बार कुछ लोग बेकार बात करते हैं। ऐसे लोगों की आदत यदि लंबे समय तक बनी रहती है तो बाकी लोग उनसे कटना शुरू कर देते हैं। बेहतर यही होगा कि मुद्दे से हट कर कुछ भी बोलने की बजाय शांत रहा जाए। व्यर्थ की बातें आपके व्यक्तित्व के बारे में बुरा असर डालती हैं। यदि आप बातचीत का हिस्सा न हों तो अपने विचार तब तक अपने तक ही रखें जब तक कि आपसे कुछ पूछा न जाए। यदि कोई बोल रहा हो तो बीच में अपनी बात कभी न रखें। किसी की बात काटना या किसी की बात के बीच में बोलना शिष्टाचार के बुनियादी नियमों के खिलाफ होता है। ये उन शिष्टाचार में आता है जिसकी पालना सभी को करनी चाहिए। अगर आप इन शिष्टाचार को नहीं अपनाते हैं तो कोई आपसे कुछ कहेगा तो नहीं लेकिन इतना तो तय है कि आप लगातार अपने नजदीक रहने वालों की नजर में गिरते ही चले जाएंगें। इसलिए अपने बोलने और बात करने का लहजे को शालीन रखें।
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Old 06-08-2013, 12:32 AM   #259
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Default Re: डार्क सेंट की पाठशाला

मन के आराम के लिए

मतंग ऋषि पशु-पक्षियों के प्रति काफी स्नेह रखते थे। अक्सर वह अध्ययन और ईश्वरोपासना के बाद पक्षियों के साथ खेलने लग जाते थे। पक्षियों के साथ खेलना उन्हे बहुत ही भाता था। गौरैया और कौवे उनके इशारे पर जमीन पर उतर आते और उनके कंधों व हाथों पर बैठ जाते थे। एक दिन जब वे पक्षियों के बीच चहक रहे थे तभी अनंग ऋषि वहां आए। वह मतंग ऋषि का बहुत सम्मान करते थे। उन्हें पक्षियों के साथ खेलते देख वह बोले, महाराज, आप इतने बड़े विद्वान होकर बच्चों की तरह चिड़ियों के साथ खेल रहे हैं। इससे आपका मूल्यवान समय नष्ट नहीं होता? अनंग ऋषि के इस प्रश्न को सुनकर मतंग ऋषि मुस्करा दिए और उन्होंने अपने एक शिष्य को धनुष लेकर आने के लिए कहा। शिष्य कुछ ही देर में धनुष लेकर आ गया। मतंग ऋषि ने धनुष लिया और उसकी डोरी ढीली करके रख दी। अनंग ऋषि हैरानी से मतंग ऋषि को देखकर बोले, आपने धनुष की डोरी ढीली करके क्यों रखी? आप इसके माध्यम से क्या कहना चाहते हैं? मतंग ऋषि बोले,मैंने तुम्हारे प्रश्न का जवाब दिया है। अब मैं इसे विस्तार से बताता हूं। हमारा मन धनुष की तरह है। अगर धनुष पर डोरी हमेशा चढ़ी रहे तो उसकी मजबूती कुछ ही समय में चली जाती है और वह जल्दी टूट जाता है किंतु अगर काम पड़ने पर ही इस पर डोरी चढ़ाई जाए तो वह न सिर्फ अधिक समय तक टिकता है बल्कि उससे काम भी अच्छे तरीके से होता है। इसी प्रकार काम करने पर ही मन को एकाग्र करना चाहिए। काम के बाद यदि उसे आराम मिलता रहे तो मन और अधिक मजबूत होगा। उसे स्फूर्ति मिलेगी। इससे वह लंबे समय तक स्वस्थ रहता है। मतंग ऋषि का जवाब सुनकर अनंग ऋषि हाथ जोड़कर बोले, मैं आपकी बात पूरी तरह समझ गया। अब पता चला कि आप क्यों लगातार हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर रहे हैं। यह कहकर वह वहां से चले गए।
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Old 06-08-2013, 12:34 AM   #260
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बिना मेहनत कुछ नहीं मिलता

जीवन में बिना मेहनत के कुछ हासिल नहीं होता। यदि आपको आगे बढ़ना है तो इस रास्ते से गुजरना ही होगा। हां, कुछ लोग होते हैं जो बिना बहुत कुछ किए बहुत कुछ पा जाते हैं लेकिन ऐसे लोग होते कितने हैं। किसी भी परीक्षा में किस्मत से पास होने वाले बहुत कम लोग होते हैं जबकि परिश्रम और मेहनत के बलबूते पास होने वाले असंख्य लोग होते हैं। इसलिए सदैव कोशिश करें कि आप परिश्रम वाले पाले में रहें ताकि देर से ही सही पर आपको शर्तिया सफलता मिले। आपने यह पंक्ति बहुत बार सुनी और पढ़ी होगी। सदियों के अनुभव से परिपूर्ण यह पंक्ति हमें आगाह करती रहती है कि सपने बड़े देखो लेकिन हवाओं में उड़ कर नहीं, धरातल पर खड़े होकर क्योंकि सपनों को पूरा होने के लिए भी एक आधार होना चाहिए, एक जमीन होनी चाहिए। आप जब सफलता का स्वाद चख चुके हों तब भी अपने पैरों को जमीन पर टिकाये रखें अन्यथा सम्भव है कि हवा में डोलते गुब्बारे की भांति आप नष्ट हो जाएं या तेज हवा आपको उड़ा कर ले जाए। अक्सर देखा जाता है कि लोग अपनी पढ़ाई के दिनों या फिर कभी किसी के द्वारा कही बात बताते हुए कहते हैं कि अगर मैं फलां क्षेत्र में होता तो बेहतर रहता। कुछ लोग एक क्षेत्र से कूद कर दूसरे क्षेत्र में और दूसरे से तीसरे में जाते रहते हैं और अंतत: कहीं भी टिक कर काम नहीं करते। इस कारण उनकी ऊर्जा और समय का ह्रास होता है। उनकी मानसिकता पलायनवादिता से ग्रस्त हो जाती है जिसके कारण वह जो नहीं है उसी को बेहतर मानने लग जाते हैं, जबकि होना यह चाहिए कि आपको जहां मौका मिले आप वहीं अपने आपको सर्वश्रेष्ठ साबित करें। इस तरह आप अपनी कार्य क्षमता को निखारते रहें और सदैव आगे बढ़ते रहें, लेकिन ध्यान रखें कि कहीं आप राह से भटकें नहीं, क्योंकि अगर ऐसा होगा तो आपकी मेहनत का परिणाम भी आपको नहीं मिल पाएगा और आप एक मुकाम पर जाकर ठहर जाएंगे।
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