18-12-2012, 08:39 PM | #11 |
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Re: मेरी रचनाये-4 दीपक खत्री 'रौनक'
सपनो की चादर मे गर्मी ही इतनी थी
कि हकीकत की ठण्ड का अहसास ना हुआ ठन्डे हो गए वक़्त से वो सपनो के मुसाफिर 'रौनक' जिन्हें हकीकत की ठण्ड ने ना कभी छुआ........ दीपक खत्री 'रौनक' |
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