26-10-2013, 02:39 PM | #1 |
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एक वश्या की आत्म कथा
~~~~~ एक वश्या की आत्म कथा ~~~~~ जिस गली को समाज के ठेकेदार गन्दगी कहते हैं ! वही लोग रात को इन गलियों में ज्यादा पाए जाते हैं !! जो हम को दिन में देखना भी न करते गंवारा ! ना जाने कितने वैसों की रातों को हमने संवारा !! दिन में वे करते हमसे घृणा और देते रहे हैं दुत्कार ! रात को वही गोद में बैठा करते बीवी से ज्यादा प्यार !! बातें करते बड़ी बड़ी ये है इन ठेकेदारों का असूल ! छोड़ते नहीं जब तक हो ना जाए पूरा पैसा वसूल !! शादी में दिए वचन पर नारी मानूँगा बहन ! हवस की भूख के आगे सब वचन हुए दहन !! काश ये ठेकेदार हमें दो वक़्त की रोटी दे पाते ! तो आज हम मजबूर होकर इस धंधे में ना आते !! पैसे से ख़रीद सको तुम सबसे प्यारा खेल हूँ प्यार का ! मेरी देह पर लिखा हुआ सु-स्वागतम रोज़ नए यार का !! कहते जहाँ हमारे पैर पड़े वो जगह अपवित्र हो जाए ! रात को उन्हीं पैरों के बीच अपनी मर्दानगी दिखाए !! यह तो अपना अपना धंधा साहब सब है करते ! अप भूख पूरी है करते, हम भूख के किए करते ! यह तो हमारा एहसान है समाज पे और है चमत्कार ! वरना घर घर गली गली मैं आए दिन हो बलात्कार ! आते है आप पूरा करने अपना अपना अधूरा प्यार साहब ! हम तो तन बेच नहीं कर पाते पूरे बच्चों के अधूरे ख्वाब ! क्यूँ पैदा किया हमको इस कलयुग में बोलो ? क्या पाप किया हमने खुदा कुछ तो बोलो ? मेरी बातों का बुरा न मानना मेरे खुदा हुज़ूर ! आप ही हमारे अन्नदाता हो फिर आना जरूर !
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