10-09-2014, 08:24 AM | #1 |
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आदरणीय अस्वीकरण जी अर्थात Honourable Disclaimer Sir
“बचपन से ही मेरी आस्था गाँधी जी में रही. गाँधी जी के विचार मुझे सर्वदा प्रभावित करते रहे और जब से मैंने ‘लगे रहो मुन्नाभाई’ फ़िल्म देखी है- गांधी जी के प्रति मेरी आस्था और प्रबल और दृढ हो गई है. अगर कोई मुझे एक थप्पड़ मारे तो मैं तुरन्त अपनी दूसरी गाल आगे कर देता हूँ. अगर सामने वाले ने दूसरे गाल पर भी थप्पड़ जड़ दिया तो मैं तुरन्त उसके हाथ में डंडा देकर ससम्मान कहता हूँ- ‘क्यों अपने हाथ को कष्ट देते हैं? क्या आपको न्यूटन का नियम पता नहीं? प्रत्येक क्रिया की विपरीत प्रतिक्रिया होती है. लीजिए, डंडे का प्रयोग कीजिए. शायद आपको इससे संतुष्टि मिल जाए.’ देखा आपने? मैं पागलपन की हद तक गाँधी जी के नियमों का पालन करता हूँ. बड़ा ही नम्र और शान्त स्वभाव है मेरा.”* ---------------------------------------------------------- *अस्वीकरण/Disclaimer: Conditions apply. Not applicable on male gender. Read our entire terms & conditions here. Last edited by Rajat Vynar; 10-09-2014 at 09:37 AM. |
11-09-2014, 09:02 AM | #2 |
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Re: आदरणीय अस्वीकरण जी अर्थात Honourable Disclaimer Sir
यहाँ पर मैं यह बता दूँ कि इस सूत्र का उद्गम स्थल लाइफबॉय साबुन का वह विशाल विज्ञापन है जिसमें लाइफबॉय साबुन के चित्र के साथ बैक्टीरिया से मुक्ति दिलाने की बात कही गयी थी और नीचे अस्वीकरण में छोटे-छोटे अक्षरों में लिखा था- ‘केवल वाह्य प्रयोग के लिए.’ इस अस्वीकरण के पीछे साबुन निर्माता का यह भय था कि कहीं लोग सर्दी, जुकाम, बुखार, खाँसी में साबुन को दवा समझकर ‘बूझकर’ या जानबूझकर न खा लें. अब प्रश्न यह है कि २१वीं शताब्दी में शिक्षा के व्यापक विकास के साथ क्या लोग पहले से अधिक मूर्ख हो गए हैं? पहले तो ऐसा अस्वीकरण साबुन के विज्ञापनों में देखने को नहीं मिलता था. मैंने तो आज तक यह नहीं सुना कि साबुन खाकर कोई शहरवाला या देहातवाला काल-कवलित हो गया हो. फिर आज ऐसी क्या बात है जो लोगों को यह समझाना पड़ रहा है कि ‘केवल वाह्य प्रयोग के लिए’? इसका कारण सिर्फ इतना है कि लोग पहले से अधिक शिक्षित हो गए हैं और किसी बात में जानबूझकर अपनी टांग फँसाने और पेंच फँसाने में असीम आनन्द की अनुभूति करते हैं. किस बात में अपनी टांग फँसाई जाए- यह जानने के लिए लोग हाथ में दूरबीन लिए बिना पलक झपकाए ताकते रहते हैं. आज के युग में साबुन खाएगा कोई नहीं किन्तु एक झूठा मुकदमा कन्सूमर कोर्ट में ज़रूर दाखिल कर देगा- ‘बुखार में साबुन खाकर सीरियस हो गया था. मरते-मरते बचा. साबुन खाने से बुखार ठीक नहीं हुआ. विज्ञापन झूठा है. दस करोड़ क्लेम चाहिए.’ लॉन्ड्री में कपड़े धुलने के लिए देकर देखिए. आपको जो रसीद मिलेगी उसमें ज़रूर लिखा होगा- ‘कपड़े धुलते समय फट गए तो हमारी ज़िम्मेदारी नहीं है. एक महीने में आकर अपना कपड़ा अवश्य ले लें नहीं तो अगर आपके कपड़े खो गए तो हमारी ज़िम्मेदारी नहीं होगी.’ सरकार चाहे तो इस अस्वीकरण का ‘सार्थक’ प्रयोग नोटों पर भी करके देख सकती है. जैसे- यह नोट दिनांक.......तक ही मान्य. मान्य तिथि के उपरान्त इस नोट के चलने की हमारी कोई ज़िम्मेदारी नहीं होगी. इस सूत्र पर मैं भी एहतियात के तौर पर अपना ‘अति महत्वपूर्ण’ और ‘अनिवार्य’ अस्वीकरण देना चाहता हूँ-
--------------------------------- अस्वीकरण- १. मेरे इस सूत्र से सम्बन्धित सभी वादों का निपटारा सिर्फ लक्षद्वीप या अंदमान न्यायाधिकार क्षेत्र में ही होगा. २. लक्षद्वीप या अंदमान में से किसी एक का चुनाव करने के लिए इसकी लाटरी सिर्फ अमेरिका या लन्दन में ही निकाली जायेगी और इस उद्देश्य के निमित्त अमेरिका या लन्दन जाने के लिए सिर्फ पानी के जहाज का उपयोग ही मान्य होगा.३. लाटरी निकालने की जिम्मेदारी आपकी होगी और लाटरी निकालने के लिए जिस सिक्के का उपयोग किया जाएगा वह कम से कम पाँच हज़ार साल पुराना होना चाहिए. |
11-09-2014, 10:14 AM | #3 |
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Re: आदरणीय अस्वीकरण जी अर्थात Honourable Disclaimer Sir
आपका लेख हमे सच्चाई से रूबरू कराता है ,लेख में हास्य का अच्छा प्रयोग किया गया है आपका अस्वीकरण भी मुझे अच्छा लगा और मैंने पहली दफा ऐसा अस्वीकरण पढ़ा है !
धयान आकर्षित करने योग्य लेख है इसके लिए मेरा धन्यवाद स्वीकार करे !हार्दिक धन्यवाद मित्र
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11-09-2014, 12:39 PM | #4 | |
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Re: आदरणीय अस्वीकरण जी अर्थात Honourable Disclaimer Sir
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प्रिय बैक्टीरिया जी, सादर नमस्कार के साथ सादर चरण स्पर्श.. उफ़! मैं फिर गलती कर गया. आपको यह तो पता ही होगा कि मैं आपसे कितनी नफरत करता हूँ फिर मैं आपके खिलाफ कैसे लिख सकता हूँ? अतः इस सूत्र को पढ़कर इतना नाराज़, हैरान और परेशान होने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि यह बात आपको अच्छी तरह से पता है कि आपके बिना जीवन सूना-सूना और निरर्थक है और इस बात की पुष्टि आपने खुद भी की है. आपका मानव जीवन में महत्वपूर्ण योगदान है. आपकी ही दया-कृपा दृष्टि से हम आज दही खाते हैं और गर्मी के मौसम में ठण्डी-ठण्डी लस्सी पीने का आनन्द लेते है. आपकी दया- कृपा दृष्टि न होती तो आज हम स्वादिष्ट छोला-भटूरा न खा पाते. महाराष्ट्र का पाव ही नहीं, केक-पेस्ट्री सभी आपकी ही दया-कृपा दृष्टि से चलते है. इसलिए यह स्पष्ट है कि बैक्टीरिया से हमें कल भी प्यार था, आज भी प्यार है और आने वाले कल में भी प्यार रहेगा. गलती हमारी सिर्फ इतनी है कि हम इस सूत्र में अपना अस्वीकरण लिखना भूल गए थे कि यह सूत्र बैक्टीरिया के लिए नहीं है. इसलिए कृपया अपना गुस्सा तुरन्त थूक दें और प्रसन्न हो जाएँ. aww.. aww.. with warm hugs and love. आपका अपना, |
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11-09-2014, 01:40 PM | #5 | |
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Re: आदरणीय अस्वीकरण जी अर्थात Honourable Disclaimer Sir
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11-09-2014, 08:49 PM | #6 |
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Re: आदरणीय अस्वीकरण जी अर्थात Honourable Disclaimer Sir
माफ़ कीजियेगा, रफीक जी.. आपको आनन्द आ रहा है और मेरी तो यह सोचकर जान निकली जा रही है कि बैक्टीरिया को बेवजह नाराज़ कर दिया. अभी कुछ दिन पहले बैक्टीरिया से मेरी कहासुनी हो गयी थी जब मैंने कहा कि चावल-दाल के पकने में बैक्टीरिया का कोई योगदान नहीं होता. बैक्टीरिया ने मुँह फुलाकर बिगड़कर कहा- ‘जानता नहीं- मेरे बाप का नाम वाइरस है!’ मैं तो इस रहस्योद्घाटन पर पहले तो चौंका और फिर घबड़ा गया. जब बैक्टीरिया से मेरी दोस्ती हुई थी तो मैंने विकीपीडिया में अच्छी तरह से दूरबीन लगाकर पढ़ कर देख लिया था. कहीं पर इस बात का हवाला नहीं था कि बैक्टीरिया के बाप का नाम वाइरस है. पहले से पता होता तो बैक्टीरिया से दोस्ती क्यों करता? आज तक यह पता नहीं चल पाया कि कौन सा वाइरस है, वाइरस का नाम क्या है और इसकी वैक्सीन आज तक बनी या नहीं? हो सकता है सर्दी-जुकाम वाला साधारण वाइरस हो. दो-तीन दिन में अपने आप ठीक हो जाए. यह भी हो सकता है कि ईबोला वाला भयानक वाइरस हो जिसकी वैक्सीन ही न बनी हो! बिना वार्निंग के सीधा अटैक करके एन्काउन्टर कर दे! पहले भी एक बार बैक्टीरिया ने गलतफहमी का शिकार होकर वाइरस से मेरी शिकायत कर दी थी और वाइरस ने मेरे ऊपर अटैक कर दिया था. बड़ी मुश्किल से बैक्टीरिया से हाथ-पैर जोड़कर जान बचाई. बहरहाल, वाइरस का रिस्क काहे को लेना? मैंने एहतियात के तौर पर बैक्टीरिया से बोलचाल बन्द कर दिया. बैक्टीरिया से रहा नहीं गया तो दूसरे दिन उसने खुद मेसेज भेजकर पूछा- ‘वाइरस का नाम सुनकर पेट में दर्द हो गया क्या?’ अच्छा मजाक है! इसलिए आइए, हम सब मिलकर बैक्टीरिया का सम्मान करें और एक साथ मिलकर बैक्टीरिया के सम्मान में यह गीत गाएं-
‘तुम साथ हो जब अपने.. दुनियाँ को दिखा देंगे.. सभी को छोला-भटूरा और पाव-भाजी का.. टेस्ट सिखा देंगे..’ |
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