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Old 17-09-2013, 11:27 PM   #1
rajnish manga
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Default लोक कथा: गुल बकावली

गुल बकावली
लोककथा

बीते ज़माने में किसी देश में एक इंसाफ़ पसंद बादशाह होता था. उसका नाम था फ़ख़रे आलम. उसकी सल्तनत के चारों तरफ खुशहाली थी. लहलहाते खेत और महकते बाग़ों से हवाएँ खुशगवार थीं.

बादशाह के पाँच बेटे थे. चार तो उसके साथ महल में रहते थे पर पाँचवाँ बेटा जिसका नाम जाने आलम था उसकी मोहब्बत से महरूम था. राजज्योतिषी का कहना था कि अगर बादशाह अपने पाँचवें बेटे को देखेगा तो हमेशा के लिए अंधा हो जाएगा. बादशाह ने उसको शहर से दूर अपने एक वफ़ादार गुलाम के घर रहने के लिए भेज दिया और ख़ुद उससे मिलने के लिए बेक़रार रहने लगा.

एक दिन बादशाह अपने सिपाहियों के साथ जंगल में शिकार खेलने के लिए गया. रास्ते में उसे शहज़ादा जाने आलम मिला. शहज़ादा तो अपने बाप को पहचान न पाया पर उसे देखते ही बादशाह अंधा हो गया. सारे मुल्क में कोहराम मच गया. हर कोई रो-रो कर दुआएँ माँगने लगा. दूर-दूर से बड़े-बड़े हकीम, वैद्य बुलाए गए पर बादशाह की आँखों में रोशनी न आनी थी, न आई.

चारों बड़े शहज़ादे शहज़ादा जाने आलम को कोस रहे थे और बादशाह को सलाह दे रहे थे कि वह शहज़ादा जाने आलम को देस निकाला दे दें. बादशाह ने परेशानी के आलम में मनादी करादी कि जो कोई भी शहज़ादा जाने आलम को देखे तो फौरन दरबार में हाज़िर करे.

एक दिन बादशाह के दरबार में एक बहुत मशहूर बुजुर्ग आया. उसने बादशाह को देखकर कहा,‘‘यहाँ से पचास हज़ार कोस दूर एक परियों की रियासत है, बकावली. वहाँ की शहज़ादी का नाम है शहज़ादी बकावली. उसके महल में एक बाग़ है जिसमें सोने के फूल और चाँदी के पेड़ हैं. बाग़ के बीचों-बीच एक हौज़ है जिसमें बर्फ़ जैसा ठंडा, शहद जैसा मीठा दूध बह रहा है. वहाँ बहुत सारे सफेद कमल के फूल खिले हैं पर एक हल्के गुलाबी रंग का फूल है जिस पर ओस की बूंदें सच्चे मोतियों की होंगी और उसको हाथ लगाते ही पूरे महल में भूकंप आ जाएगा. अगर वह फूल बादशाह की आँखों से लगाया जाए तो बादशाह फिर से देखने को क़ाबिल हो सकता है.’’



बादशाह की चारों बड़े बेटे अपने सिपाहियों के साथ फूल की तलाश में निकल पड़े. वीरान जंगलों को पार करते ये चारों बकावली रियासत की तलाश करते रहे. रास्ते में इन्हें एक ठग मिला. उसने इनसे इनकी परेशानी का सबब पूछा तो शहज़ादों ने सारा क़िस्सा सुनाया. ठग ने कहा कि वह उनके लिए वह अजीब फूल ला सकता है पर उसके लिए शहज़ादों को पचास गधों पर लादकर अशर्फियाँ देनी होंगीं. शहज़ादों ने सौदा क़बूल कर लिया और अपना सारा मालो-दौलत के बदले ढग से वह फूल ले लिया. रास्ते में उन्हें एक अंधी बुढ़िया मिली. शहज़ादों ने सोचा कि इस बुढ़िया पर फूल को आज़मा कर देखें और उन्होंने फूल बुढ़िया की आँखों से लगा दिया मगर बुढ़िया की आँखों से रोशनी की जगह खून की धार बह निकली. वह शहज़ादों को कोसती हुई आगे बढ़ गई. अब तो चारों शहज़ादे रोते-पीटते राजमहल की तरफ़ चल पड़े. उनका रोना चिल्लाना सुनकर अपनी कुटिया से शहज़ादा जाने आलम बाहर निकला और रोने की वजह पूछी. शहज़ादा उनकी कहानी सुनकर उन्हें पहचान गया पर अपने बारे में कुछ न बताया. उसने अपने दिल में ठान लिया कि वह अपने बाप की आँखों की रोशनी ज़रूर वापस लाएगा.
वह पहाड़ों और वीरान जंगलों में भटकता हुआ रेगिस्तान में पहुँचा. गर्मी की तपती हुई धूप में रेत की आंधियाँ चल रही थीं. प्यास के मारे हल्क़ में कांटे पड़ रहे थे. अचानक ज़ोर का धमाका हुआ. शहजादे के सामने एक दानव खड़ा था. उसके बड़े-बड़े दाँत, लाल आँखें, लंबे-लंबे कान देखकर शहज़ादे की जान निकल गई. दानव उसे गर्दन से पकड़ कर अपने मुँह के पास ले गया और चिंघाड़ कर बोला,‘‘बहुत दिन से मानस माँस नहीं खाया. आज तो मैं तुझे मज़े लेकर खाऊँगा.’’ शहज़ादा थर-थर काँप रहा था और दिल में खुदा का नाम ले रहा था. शहज़ादे को याद आया कि घर से चलते वक़्त उसने थोड़ा सा खाना अपनी पोटली में बांध लिया था. शहज़ादे ने देव से हाथ जोड़कर विनती की,‘‘महाराज. मुझे अपने अंधे बाप की आँखें ठीक करनी हैं. मैं बकावली का फूल लेने जा रहा हूँ. आप मेरी मदद कीजिए. आप ये हलवा और पूरी खा लीजिए.’’ दानव ये सुनकर प्रसन्न हुआ कि शहज़ादा अपने बाप की इतनी इज़्ज़त करता है. उसने खाने की पोटली शहज़ादे से ले ली और मज़े ले लेकर हलवा पूरी खाने लगा और बोला, ‘‘इतना मज़ेदार खाना मैंने आजतक नहीं खाया. फूल लाने में मैं तेरी मदद कर सकता हूँ.’’


ये कहते ही दानव ने शहज़ादे को अपने हाथ पर बैठा कर एक गुफ़ा में पहुँचा दिया. गुफ़ा में अंधेरा था और एक जादूगरनी अपने पच्चीस गज़ लंबे सफ़ेद बालों में अपने दो गज़ लंबे नाखूनों से कंघी कर रही थी. उसकी आँखों से तेज़ रोशनी फूट रही थी. शहज़ादे को देखकर जादूगरनी ज़ोर से बोली,‘‘आ बच्चा. मैं तुझे बकावली के महल तक पहुँचा दूंगी.’’ उसने अपनी जादुई छड़ी घुमाई तो आठ बड़े दानव हाज़िर हो गए. जादूगरनी दहाड़ी ‘‘चूहे बन जाओ.’’ आदमखोर दानव चूहे बन कर जादूगरनी के पैर के पास आ गए. वह फिर चिल्लाई,‘‘जाओ बकावली के महल तक सुरंग बनाओ.’’ सुबह होने तक चूहों ने सुरंग तैयार कर दी.
जादूगरनी के शहज़ादे से कहा, ‘‘सुरंग से बाहर निकलते ही तुझे सोने-चाँदी के पेड़ों वाला बाग़ मिलेगा. जैसे ही तू बाग़ में पहुँचेगा तो वहाँ के सारे फूल हँसने लगेंगे. बड़े-बड़े दानव और चुड़ैलें चीख़ती चिंघाड़ती तेरे पीछे दौड़ेंगी लेकिन अगर तूने पीछे मुड़कर नहीं देखा तो तेरा बाल बांका नहीं होगा और कहीं तूने मुड़कर देख लिया तो तू पत्थर का बन जाएगा और फिर कभी इंसान नहीं बन पाएगा.’’
मन में ख़ुदा को याद करके शहज़ादा सुरंग के रास्ते बाग़ में जा पहुँचा. उसके बाग़ में क़दम रखते ही फूलों ने ज़ोर-ज़ोर से हँसना शुरू कर दिया. उसके पीछे धम-धम करते क़दमों की आवाज़ें उसके कान के पर्दे फाड़ने लगीं पर शहज़ादा अपनी धुन में मगन बाग़ के बीचों बीच उस ठंडे मीठे दूध की नहर के पास पहुँच गया और उस गुलाबी कमल की तलाश करने लगा. खुशी से उसे अपनी आँखों पर यक़ीन नहीं आया जब उसने उस अदभुत फूल को देखा जिस पर सच्चे मोतियों की लड़ियाँ चमक रही थीं. शहज़ादी बकावली फूलों की सेज पर लेटी मीठी नींद में सो रही थी. शहज़ादा बकावली के मदहोश हुस्न को देखकर हैरान रह गया. उसने झटपट फूल तोड़ लिया. फूल तोड़ते ही सारा बग़ीचा घोर अंघेरे में डूब गया फूलों का हँसना बंद हो गया. सोने-चाँदी के पेड़ और फूल जलकर राख हो गए और हसीन शहज़ादीचीख़ मारकर उठ बैठी. यह डरावना मंज़र देख शहज़ादा दौड़ता हुआ गुफ़ा में घुस गया और भागता हुआ जादूगरनी के पास आ पहुँचा. उसे सही सलामत देख कर जादूगरनी बहुत खुश हुई और शहज़ादे को अपना सफेद लंबा बाल देकर बोली, ‘‘जब तुम्हें मेरी ज़रूरत पड़े तो इस बाल को सूरज की रोशनी दिखाना. मैं हाज़िर हो जाऊँगी.’’
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Default Re: लोक कथा: गुल बकावली


शहज़ादी बकावली रो-रोकर दीवानी हो गई पर फूल न मिलना था न मिला. उसने सोचा कि वह फूल को खुद ढूंढेगी. वह महल से बाहर निकल गई.

शहज़ादा जाने आलम खुशी-खुशी अपने महल वापस जा रहा था. रास्ते में उसे वही बुढ़िया मिली जिसकी आँखों पर चारों शहज़ादों ने नक़ली फूल को आज़माया था. शहज़ादे ने सोचा कि फूल को बुढ़िया की आँखों से लगाकर देखना चाहिए. जैसे ही फूल बुढ़िया की आँखों से लगा बुढ़िया ज़ोर से चिल्ला उठी, ‘‘मैं देख सकती हूँ भगवान तुम्हारी सारी मुरादें पूरी करे.’’ वह शहज़ादे को दुआएँ देती हुई अपने रास्ते को चल दी.



शहज़ादे के चारों भाई राजमहल वापस जा रहे थे कि रास्ते में उन्हें यही बुढ़िया मिली. उन्होंने उसे
पहचान लिया और पूछा, ‘‘तू अँधी थी पर अब तेरी आँखें ठीक हैं. ऐसा चमत्कार कैसे हो गया.’’ बुढ़िया खुश होकर बोली, ‘‘एक नेक दिल नौजवान ने गुल बकावली को मेरी आँखों से लगाया और मेरी आँखें ठीक हो गईं.’’ शहज़ादों ने बुढ़िया से पूछकर उसके जाने का रास्ता पूछा और उसी तरफ़ दौड़ पड़े. शहज़ादे को उन्होंने पकड़ लिया और मार पीट कर उससे फूल छीन लिया.

चारों शहज़ादे बादशाह के पास पहुँच कर सिर झुकाकर खड़े हो गए. बादशाह को जब ये पता चला कि वे गुल बकावली लेकर आए हैं तो उसने जल्दी से फूल को अपनी आँखों से लगा लिया. बादशाह खुशी से चीख़ कर खड़ा हो गया और बोला,‘‘मैं अंधा नहीं हूँ. अब मुझे सब कुछ दिखाई दे रहा है.’’ उसने चारों शाहज़ादों को लगे लगा लिया.

सारे देश में खुशियाँ मनाई गईं. बादशाह की तरफ़ से सबको अशर्फियाँ हीरे मोती दान में दिए गए. उधर शहज़ादी बकावली अपने फूल को ढूँढती हुई बादशाह के देश पहुँची. वहाँ जाकर उसे मालूम हुआ कि बादशाह की आँखें किसी फूल से ठीक हुई हैं. वह समझ गई कि यह उसी का गुल बकावली है. वह एक दासी का रूप बनाकर राजमहल में रहने लगी जिससे वह अपने फूल को वापस पा सके.

शहज़ादा जाने आलम समझ गया कि उसके भाइयों ने उसे धोखा दिया है. उसने सोचा कि अब जाकर बादशाह को सारी सच्चाई बतानी चाहिए. वह अपने शहर की तरफ़ चल दिया. वहाँ पहुँच कर उसने जादूगरनी के बाल को सूरज की रोशनी दिखाई एक ज़ोरदार धमाके के साथ जादूगरनी हाज़िर हो गई. शहज़ादे ने हुक्म दिया कि बकावली जैसा महल बनाओ. जादूगरनी ने झुककर कहा,‘‘जो हुकुम मेरे आका.’’ कहकर जादूगरनी फुर्र से आसमान में उड़ गई और एक पल में आलीशान महल तैयार हो गया जिसमें नौकर चाकर पहरेदार और हज़ारों सिपाही शहज़ादे के सामने सर झुकाए खड़े थे.



शहज़ादा जाने आलम के अजीबोग़रीब महल और बेशुमार दौलत की शोहरत बादशाह के कानों तक पहुँची तो बादशाह ने सोचा कि जाकर देखना चाहिए कि वह कौन है जो उससे ज़्यादा मालदार और ताक़तवर है.

बादशाह ने अपने आने की ख़बर भिजवाई तो शहज़ादा बहुत खुश हुआ. उसने बादशाह को अपने सिपाही भेजकर बुलवाया. बादशाह की दासियों में गुल बकावली भी थी. शहज़ादे के महल को देखकर बादशाह हैरान रह गया. महल में हर चीज़ लाजवाब थी.

शहज़ादी बकावली महल को देखकर सोच में पड़ गई कि उसके महल जैसा महल शहज़ादे ने किस तरह बनवा लिया. इसका मतलब है कि मेरे फूल को इसी शहज़ादे ने चुराया है. बादशाह महल की एक-एक चीज़ को आँखें फाड़कर देख रहा था शहजादा अपने बाप को पहचान गया और बादशाह के क़रीब आकर बोला, ‘‘अब्बा हुजूर.’’ बादशाह ने जल्दी से शाहज़ादे को अपने सीने से लगा लिया. चारों शहज़ादे ज़ोर से चिल्लाए,‘‘नहीं. ये कोई मक्कार जादूगर है. आप इसकी बातों में मत आइए.’’ शहज़ादे ने जादूगरनी का दिया हुआ बाल निकाला और उसे सूरज की रोशनी दिखाई. एक ज़ोरदार धमाके के साथ जादूगरनी हाज़िर हो गई और सिर झुका कर बोली, ‘‘बादशाह सलामत यही आपका बेटा है और इसी ने बकावली के फूल से आपकी आँखें ठीक की हैं.’’ ये कह कर जादूगरनी ग़ायब हो गई. बादशाह ने शहज़ादे को फिर अपने सीने से लगा लिया और सारे देश में ऐलान करा दिया कि बादशाह के बाद शहज़ादा जाने आलम इस देश का बादशाह होगा.

शहज़ादे ने कहा,‘‘अब्बा हुजूर. मैं अब यहाँ नहीं रह सकता. मैं वापस परियों के देश बकावली जाना चाहता हूँ. वहाँ की शहज़ादी फरिशतों की तरह मासूम और जन्नत की हूरों की तरह पाक और हसीन है. मैं उस परियों की शहज़ादी से शादी करना चाहता हूँ.’’

बकावली शहज़ादी उनके सामने शर्म से झुक कर बोली,‘‘शहज़ादे. मैं भी आपको ढूंढती हुई यहाँ तक पहुँची हूँ. मैंने भी आपके जैसा नेक और ईमानदार इंसान नहीं देखा. मैं अपने महल वापस जाकर क्या करूँगी. अब यही मेरा घर है.’’ बादशाह ने दोनों के सर पर अपना हाथ रख दिया और शहज़ादे ने बकावली का फूल उसके बालों में लगा दिया. बादशाह ने दोनों की शादी की मुनादी करा दी और चारों शाहज़ादों को देश से निकाल दिया.
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Old 18-09-2013, 07:38 PM   #3
jai_bhardwaj
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Default Re: लोक कथा: गुल बकावली

बचपन में गाँव में जाड़े के दिनों में अलाव के इर्द गिर्द बैठकर इस कहानी को दो तीन किश्तों में अपने दादा जी से सुनी थी। स्मृतियाँ ताजी होगई। रजनीश जी आभार एवं धन्यवाद।

ऐसी ही कुछ और भी कहानियां जैसे सहस्त्र-रजनी, बैताल-पच्चीसी, पंचतंत्र एवं सिंहासन-बत्तीसी आदि भी थीं जो उस समय जाड़े की रातों में हम बच्चों की साथी बनती थीं। अब तो टीवी ने बच्चों को अपने बड़े बूढों से दूर कर दिया है।
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
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Old 18-09-2013, 09:27 PM   #4
Dr.Shree Vijay
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बेहतरीन लोककथाओ की शुरुआत..............




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*** Dr.Shri Vijay Ji ***

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.........: सूत्र पर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दे :.........


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Old 18-09-2013, 11:28 PM   #5
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Default Re: लोक कथा: गुल बकावली

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Originally Posted by jai_bhardwaj View Post
बचपन में गाँव में जाड़े के दिनों में अलाव के इर्द गिर्द बैठकर इस कहानी को दो तीन किश्तों में अपने दादा जी से सुनी थी। स्मृतियाँ ताजी होगई। रजनीश जी आभार एवं धन्यवाद।

ऐसी ही कुछ और भी कहानियां जैसे सहस्त्र-रजनी, बैताल-पच्चीसी, पंचतंत्र एवं सिंहासन-बत्तीसी आदि भी थीं जो उस समय जाड़े की रातों में हम बच्चों की साथी बनती थीं। अब तो टीवी ने बच्चों को अपने बड़े बूढों से दूर कर दिया है।
मैं आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ, जय जी. यह बदलाव हमारे देखते देखते आया है. अब लोक कथायें सुनने-सुनाने की परंपरा तो इतिहास का भाग हो गयी है, किन्तु लोक-कथाओं का अस्तित्व लुप्त न हो जाये, ऐसी कोशिश अवश्य हो सकती है.
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Old 18-09-2013, 11:29 PM   #6
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Default Re: लोक कथा: गुल बकावली

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Originally Posted by dr.shree vijay View Post


बेहतरीन लोककथाओ की शुरुआत..............



उत्साहवर्धन हेतु आपका आभार, डॉ. श्री विजय जी.
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गुल बकावली, दास्तान, लोक कथा, daastaan, gul bakawali, lok katha

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