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Old 14-08-2013, 05:46 PM   #1
jai_bhardwaj
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Default प्यार का एहसास

अंतरजाल से प्राप्त एक विशद लेखमाला के कुछ चुनिन्दा अंश एक कथानक के रूप में प्रस्तुत हैं।
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

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Old 14-08-2013, 05:47 PM   #2
jai_bhardwaj
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Default Re: प्यार के रंग

ये बिलकुल नया शहर था मेरे लिए, नए लोग, नया माहौल... मैं तो पहले से ही सोच कर आई थी कि यहाँ ज्यादा किसी से दोस्ती नहीं करूंगी, किसी से ज्यादा घुलूंगी-मिलूंगी नहीं... बस अपना कमरा, अपनी पढाई और अपना अकेलापन... पता नहीं क्यूँ मुझे अब इस दुनिया में काफी इनसिक्योरिटी होने लगी थी, बस किसी तरह सब से बचने की कोशिश करती थी... दूसरों से ही क्यूँ, अपने आप से भी...

लेकिन मैं हमेशा से ऐसी नहीं थी... मुझे हमेशा ऐसा लगता था ये ज़िन्दगी बहुत बड़ी है और इसे जीने के लिए हमारे पास वक़्त बहुत कम, बस इसे जी भर के, जी लेने की हड़बड़ी काफी कुछ छूटता-टूटता चला गया... काफी देर बाद ये एहसास हुआ कि ये ज़िन्दगी बड़ी तो है, पर आज़ाद नहीं है, हर एक नुक्कड़ पर कांटेदार तारों के बाड़ लगे हैं, अगर हम ज्यादा हड़बड़ी में हो, तो ये बहुत बेरहमी से खुरच देते हैं ज़िन्दगी की उन पोशाकों को, जिन्हें हम लपेट चलते हैं... मैं इस छिलन को नज़रंदाज़ करके आगे बढ़ जाना चाहती थी, लेकिन धीरे धीरे हिम्मत टूटती चली गयी, इन पगडंडियों पर धीमे धीमे चलने के चक्कर में काफी पीछे छूट गयी, ज़िन्दगी आगे भागी जा रही थी... शुरुआत में बहुत बेबसी सी लगती थी, आंसुओं से भीगे चेहरे को अपनी दोनों हथेलियों से ढांपे हलके हलके सिसकियाँ भर लिया करती थी...

लेकिन अब मुझे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था, उन सारे सपनों को ज़िन्दगी की अलमारी के सबसे ऊपर वाले खानों में रख कर चुपचाप इस नए शहर में आ गयी थी... खुश रहने या फिर बस दिखते रहने की कवायद ज़ारी थी... कभी कभी अपने आस-पास की लड़कियों को देखती थी, एकदम बोल्ड, सबसे बेखबर, खूब जोर जोर से हल्ला मचाते हुए, लड़कों की तेज़ चलती बाईक को भी ओवरटेक करते हुए तो सोचती थी कि क्या मैं ऐसा नहीं कर सकती... फिर जल्द ही अपने आप को मना लेती थी शायद ऐसा मुमकिन नहीं है अब...

क्लास में बैठे बैठे अपने बगल वाली ख़ाली चेयर को देखकर यही सोचती थी कोई न ही आये तो अच्छा है, लेकिन एक दिन तुम्हें वहाँ बैठा देखकर थोडा आश्चर्य हुआ... जितना हो सके तुमसे कम बातें करने की कोशिश करती थी, लेकिन बगल में बैठते बैठते फोर्मलिटी की बातों से होते हुए हम कब दोस्त बन गए पता ही नहीं चला... तुमसे बात करना अच्छा लगता था, तुम्हारे साथ काफी रिलैक्स महसूस करती थी, जैसे कोई डर नहीं... एक अच्छा दोस्त, जो तुममे देखने लगी थी... लेकिन फिर अचानक से तुम्हारे जाने की खबर सुनी, जैसे किसी ने खूब जोर से धक्का दे दिया हो ऊंचाई पर से... मुझे आज भी याद है तुम्हें अलविदा कहते हुए स्टेशन पर मैं कितना रोई थी, शायद ही कभी किसी के लिए इतने आंसू गिरे होंगे... मेरे बगल वाली चेयर फिर से खाली हो गयी थी... आदत भी एक अजीब शय है छूटते नहीं छूटती... पाने-खोने का गणित भी बहुत झोलमझोल होता है, उसके पचड़े में पड़ने का कोई फायदा भी तो नहीं है न...

उस वाकये को गुज़रे अच्छा ख़ासा वक़्त बीत चुका है, उसके बाद मेरी ज़िन्दगी कई नुक्कड़ों से होती हुयी आज काफी हद तक आज़ाद आज़ाद सी लगने लगी है... आज जब मैं इस शहर को छोड़ कर जा रही हूँ, और तुम यहीं हो, इसी शहर में... मैं ट्रेन का इंतज़ार कर रही हूँ, नज़र बार बार सेल-फोन की तरफ जाती है... कि एक कॉल, एक मेसेज ही सही कुछ तो आये, जिसमे तुमने बस एक अदद "हैप्पी जर्नी" ही लिख भेजा हो... ट्रेन आ गयी है, मैं अब भी अपने मोबाईल की तरफ देखती हूँ, वहाँ कुछ भी नहीं है... फिर उसे अपनी जेब में रखकर, अपना लगेज उठाकर, धीमे धीमे क़दमों से ट्रेन पर चढ़ जाती हूँ... मैं जा रही हूँ इस शहर को अलविदा करके, साथ ही साथ उस रिश्ते को भी जिसे मैंने दोस्ती समझ लिया था...
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Old 14-08-2013, 05:49 PM   #3
jai_bhardwaj
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Default Re: प्यार के रंग

यूँ ही बैठे बैठे कभी तुम्हारे और अपने बारे में सोचता हूँ, तो हमारे बीच इस अचानक से ही जुड़ गए रिश्ते का ख्याल आता है, न जाने ये दुनिया क्या सोचती होगी हमारे इस समर्पण के बारे में... एक दूसरे की उदासियों को अपनी खुशियों के रंग से रंगने का शौक जो हम पाल बैठे हैं उसे आसान या उलझे हुए किसी भी शब्दों में कैद नहीं किया सकता... वो फुटपाथ पर बैठा चित्रकार भी हमारे इस शौक को अपनी तस्वीरों में उतारना चाहता है, लेकिन शायद रंगों को देखकर सोच में पड़ जाता है... प्यार का भी कोई रंग थोड़े न होता है भला... पता है सुबह सुबह एक मैना अक्सर मेरी खिड़की पर आती है, मुझे चैन से सोता हुआ देखकर चहचहाती हुयी धीरे से उड़ जाती है, मेरे होठों पर बिखरी उस मुस्कान का मतलब शायद वो समझ गयी है... मुझे यूँ सपनों में खोया देखकर मुझे पागल ही समझती होगी... काश मेरे साथ पूरी ज़िन्दगी बिताना भी उतनी ही आसानी से हो पाता जितनी आसानी से तुम यूँ बेधड़क मेरे सपनों में चले आती हो...

मैं तुम्हें ढेर सारी चिट्ठियाँ लिखना चाहता हूँ, जिनमे तुम्हारे साथ बिताये गए हर उस लम्हें का जिक्र हो, जो समय के साथ धीरे धीरे बहते जा रहे हैं... इतने सारे ख़त जो कभी ख़त्म न हों, जिनपर बिखरी हुयी स्याही इस बात की याद दिलाते रहे कि इनको लिखते वक़्त-बेवक्त मेरे आंसू गिरते रहे थे...
मैं भी चुपचाप धीरे धीरे ऐसी दुनिया की तरफ बढ़ता जा रहा हूँ जहाँ मेरे साथ सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी यादें होंगी... यकीन रखना उन लम्हों के साथ जीते हुए भी मुझे तुमसे कभी कोई शिकायत नहीं होगी... उस आधी अधूरी ज़िन्दगी के खाली पड़े खांचों को तुम्हारी तस्वीरों से भर दूंगा, उन तस्वीरों से झांकती तुम्हारी वो आखें जिनमे मेरे न जाने कितने हज़ारों जन्मों की ज़िन्दगी छुपाये बैठी हो... बस ज़िन्दगी की इस बिसात पर अपनी बेबसी का हिसाब मांगता रहूँगा इस दुनिया के मालिक से...तुमसे यूँ दूर हो जाना मेरी ज़िन्दगी का आखिरी समझौता ही समझना...
जब भी किसी खाली बस में चढूँगा अपने बगल वाली विंडो सीट को तुम्हारी यादों के लिए खाली छोड़ दिया करूंगा... बाहर चलती ठंडी हवाओं के साथ उस खिड़की से तुम्हारी आवाज़ छन छन कर आया करेगी... मुझे तब भी यही यकीन रहेगा कहीं न कहीं तुम भी विंडो वाली सीट पर बैठकर अपनी बगल वाली सीट देख रही होगी... यूँ ही खिड़की से बाहर देखते देखते अचानक से कुछ कहने के लिए अपने आस पास देखोगी और मुझे वहां न पाकर फिर से बाहर की तरफ देखने लग जाओगी... मेरे ख्यालों से होते हुए बाहर बहती हवाएं जब तुम्हारे चेहरे को हलके से छू जाएँगी, बस समझ लेना मैंने तुम्हारी बातें सुन ली हैं... जो कभी करवट बदलते बदलते तुम्हें नींद न आये तो तुम ज़रूर याद करोगी वो सफ़र जब कितने प्यार से अपनी गोद में तुम्हें सुला दिया था... ये सब याद करके बस इतना समझ लेना, एक मुसाफिर जिसे तुम कहीं बहुत पीछे छोड़ आई हो, वो आज भी उस नुक्कड़ पर हाथों में तुम्हारे सपनों की पोठ्ली और अपनी गोद का सिरहाना लिए तुम्हारी बस का इंतज़ार कर रहा होगा...
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Old 14-08-2013, 05:51 PM   #4
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Default Re: प्यार के रंग

आस पास जब तन्हाईओं की शीतलहरी में मेरा दम घुटने लगता है, तो तुम्हारी इसी मुस्कराहट की चादर ओढ़े मैं सांस लेता हूँ... फिर चाहे वो इस समय की तेज़ धुप हो या फिर बारिश की ये तेज़ बौछारें... न ही मेरे पास और कोई छतरी है न ही कोई छत... बस तुम्हारा साया ही है जो मुझे हमेशा आगे चलते रहने का हौसला देता है....

कभी कभी तुम मुझे सपनों की किसी सोन चिरैया की तरह लगती हो, जो रह रह कर किसी अनजाने से डर में मेरी छाती में दुबक जाती है... फिर जब तुम्हारी और मेरी धड़कन आपस मिल कर वो प्यार भरा संगीत बनाती हैं तो बरबस ही मेरी आखों के कोर नम हो जाते हैं... जब तुम मेरे साथ नहीं होती, तो तुम्हारी याद को अपने मन में गुनता रहता हूँ और तुम्हारे इंतज़ार का एक एक मोती तुम्हारी याद में चुनता रहता हूँ.... यूँ ही अपने कमरे में बैठे बैठे बाहर होती इस रिमझिम सी बारिश का दीवाना होता जा रहा हूँ.... खिड़की के इस शीशे से अपने चेहरे को सटाये बाहर बारिश की इन एक एक बूंदों तो टपकते हुए देखता हूँ, इन हरी हरी पत्तियों से होते हुए वो सड़क पर रेत में कहीं खो सी जाती है, उनका वजूद ठीक उसी तरह है जैसे मेरे चेहरे पर तुम्हारे लिए प्यार.... जो कभी कभी भले ही दिखता नहीं लेकिन वो वहीँ है कहीं छिपा हुआ चुपके से.... मेरे अन्दर का भी ये भारी सा अकेलापन बूँद बूंद टपकता रहता है और कभी यूँ ही इन आखों की शिराओं से होकर बहते हुए मेरे चेहरे पर सूख जाया करता है....

सोचता हूँ कभी तुम्हारे लिए कोई कविता लिखूं, फिर सोचता हूँ उसमे ऐसा क्या लिखूं जो उसके छंद मुकम्मल हो जाएँ, एक तुम्हारा वजूद ही तो है जिसके आगे सारी कविताओं का रंग फीका पड़ जाता है... तुम्हें पता है कल कल्पना की उड़ान में, सपनों के जहान में, मिट्टी के घरोंदे बनाते हुए जब उँगलियाँ सन गयीं तो कविता बनते हुए दिखाई दी थी मुझे.... बड़े करीने से उस घरोंदे को बाहर धूप में डाल दिया, सोचा शायद इसी घरोंदे से हमारी ज़िन्दगी की शुरुआत होनी हो... फिर फ़ूलों से गँध चुरा कर, तितली से रँग लेकर और अहसास के समन्दर में सीपियाँ चुनी,तो भी कविता बन गयी... कल जब तुम हमारी ज़िन्दगी की किताब के पन्नों को पलटोगी तो शायद तुम्हें इस बात का इल्म हो जाएगा कि ये सारी कवितायें सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे लिए लिखी गयी हैं... अक्सर कविताओं से बुनी हुयी ज़िन्दगी बहुत खूबसूरत होती है इसलिए तो हर सांझ के सूरज की मद्धिम सी रौशनी में तुम्हारे लिए एक कविता लिखता हूँ, इन सब कविताओं से घिरा हुआ हमारा संसार कितना प्यारा होगा न...

आस पास की इस भीड़ में एक एहसास है जो मुझे तुम्हारे साथ बिताये हुए हर उस लम्हें की याद दिलाता है जो हमेशा हमेशा के लिए मेरी ज़िन्दगी में चस्प हो गए हैं... कितने दिनों से सोच रहा हूँ आज के दिन तुम्हें क्या तोहफा देना चाहिए, कुछ समझ नहीं आने पर निराश होकर लिखने बैठा हूँ.... आज के दिन बस इतनी ही ख्वाईश कि आने वाले कई कई सालों और जन्मों तक तुम यूँ ही मेरा हमसाया बन कर चलती रहोगी... आज का दिन वाकई में बहुत ख़ास है, हम आज साथ हैं क्यूंकि आज के दिन ही तुम आई थीं इस प्यार भरी दुनिया में...
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Old 14-08-2013, 05:54 PM   #5
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Default Re: प्यार के रंग

जाने कैसे ज़िन्दगी के इन अनजान रास्तों में भटकता भटकता तुम्हारे उस बंद कमरे के दरवाज़े तक आ पहुंचा... उस बंद कमरे से लेकर आज इस प्यारे से नीले आसमान तक के सफ़र को बहुत खूबसूरत तो नहीं कह सकता लेकिन अब वो रास्ते मुझे बहुत याद आते हैं... वो वक़्त जब मुझे ये लगने लगा था कि तुम्हारी ज़िन्दगी की किताब में मैं यादों का एक पुराना पन्ना भर बनके रह जाऊँगा... ग़र कभी तुम इस किताब के पन्नों को बेतरतीबी से पलटते हुए मुझे याद करती तो ये ज़रूर सोचती कि अज़ब पागल लड़का था....

खैर, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ और आज ज़ब तुम चुपके से मेरी ज़िन्दगी के पीछे से मुस्कुराते हुए झांकती हो तो दिल करता है तुम्हारे लिए कोई नए से अठारहवें सुर में कोई प्यारा रोमांटिक सा गाना लिख दूं, तुम्हारे लिए इन्द्रधनुष में हमारे प्यार का आठवां रंग भी जोड़ दूं... दूर किसी आकाशगंगा में से सबसे खूबसूरत तारा लाकर तुम्हारी अंगूठी में सजा दूं.... इन सपनों में बहने वाली तुम्हारी हर एक मुस्कराहट को इस बादल भरे आसमान पर टांक दूं, फिर जब भी बारिश होगी तो उसकी बूंदों के साथ तुम्हारी हर हंसी तुम्हारे चेहरे पर फ़ैल जाया करेगी... यकीन मानो इस बारिश के बूंदों को तुम्हारे चेहरे पर देखने के बाद मेरे दिल को कभी खुद पर पड़ने वाली धूप का एहसास तक नहीं होगा... कभी तुम्हारी इन मुस्कुराती आखों की तरफ देखता हूँ तभी ये एहसास होता है कि इन मुस्कराहट की वजह मैं हूँ शायद... ऐसे में समझ नहीं आता तुम्हें क्या कहूं... तुमसे बस इतना ही कहना चाहता हूँ ये सारी खुशियाँ सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे लिए ही बनी थीं, लेकिन कहीं दूर उस क्षितिज के कोने में अटकी पड़ी थीं मैंने बस उसका रास्ता तुम्हें दिखा दिया... बस उस लम्हें पर गुमान सा होता है जब तुमने आसमान टटोलते मेरे हाथों में अपने सपने डाल दिए थे... मेरी उनींदी पलकों में अचानक से तुम्हारे मोहब्बत की चांदनी चमचमा उठी थी... वो ठंडी धूप जिसमे तुम्हारे होने का अस्तित्व अंगड़ाई ले रहा था... तुम्हारी इन मुस्कुराहटों की रखवाली के लिए तुम्हारी इन आखों की पलकों पर अपनी नज़रों का नूर रख छोड़ा है, हमेशा इसी तरह हँसते रहना नहीं तो ये नूर भी तुम्हारे आंसुओं में भीग जाएगा.... मुझे तुम्हारी आखों में सजने वाले सपनों को सच होते हुए देखना है...

तुम्हारे साथ इन बिताये खूबसूरत लम्हों की तस्वीर को ऐसी जगह सजा के रखना चाहता हूँ जिसे जब-जहाँ जी चाहे देख सकूं इसलिए तो उस आसमान की चादर को धो कर साफ़ कर दिया है... जब भी तुम्हें खूब जोर से मिस करूंगा तुम्हें वहां से झांकते हुए देख लिया करूंगा... जानता हूँ जाने कितनी ही बार तुमसे कह चुका हूँ फिर भी ये एक ऐसी लाईन है जिसे तुम बार बार सुनना चाहोगी... यही कि vकास aशु से बहुत प्यार करता है... ;-) और हाँ इन अनजान रास्तों से जिन पगडंडियों को मैं झाँका करता था न, वो खुशियों की गलियां अब अनजान नहीं लगती...
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Old 14-08-2013, 05:57 PM   #6
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Default Re: प्यार के रंग

वो पल अक्सर ही मेरी आखों के सामने आ जाया करता है, जब तुम्हें पहली बार देखा था... उस समय तक तो तुम्हारा नाम भी नहीं जानता था, ये भी नहीं कि तुम्हारी ज़िन्दगी के ये खुरदुरे से खांचे मुझे अपने पास खींच ले जायेंगे... उस समय तक तुम मेरे लिए बस एक ख्याल थीं, बस एक चेहरा जिसपर मैंने उस दिन उतना ध्यान भी नहीं दिया था... बात आई-गयी हो गयी थी... यूँ कभी तुम्हारे बारे में कभी कुछ सोचा भी नहीं... फिर पता नहीं कैसे वो चेहरा मेरे ख्यालों के इतना करीब आ गया कि उसने मेरे सपने में दस्तक दे दी... न ही ये आखें वो सपना भूल सकती हैं और न ही उसमे दिखती तुम्हारी वो रोती हुयी भीगी पलकें... अगली सुबह मैं भी बहुत बेचैन सा हो गया था, सोचा जल्दी से तुम्हें एक झलक बस देख भर लूं, कहीं तुम कोई जानी पहचानी तो नहीं.... काफी देर तक याद करता रहा कि कहीं तुम्हें पहले देखा तो नहीं... अपनी ज़िन्दगी की किताब को लफ्ज़-दर-लफ्ज़ शफा-दर-शफा पलटता रहा लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं था, तुम तो बिलकुल नयी सी थी मेरी ज़िन्दगी में... फिर अचानक से तुम्हारा ये चेहरा भला क्यूँ मेरे आस-पास से गुजरने लगता है...

सोचा अगले दिन तुमसे बात करूंगा, तुमसे तुम्हारा नाम पूछूंगा... लेकिन इतनी हिम्मत जुटा पाना शायद मुश्किल ही था... तुम अब एक पहेली ही थी मेरे लिए... बस आते जाते नज़रें चुराकर तुम्हें देख भर लिया करता था, अब तक तो तुम्हारा नाम भी पता चल गया था... और भी बहुत कुछ समझने की कोशिश करता रहता था... पता नहीं ये मेरा भ्रम था या और कुछ लेकिन मुझे तुम्हारे आस -पास दूर तक पसरा हुआ एकांत नज़र आता था... जैसे अकेले किसी अनजान से सफ़र पर हो... लगता था जैसे तुम्हें किसी दोस्त की ज़रुरत हो, मैं तुम्हारे उस एकांत को अपनी दोस्ती से भर देना चाहता था...

वो रातें अक्सर उदास होती थीं, उनमे न ही वो सुकून था और न ही आखों के आस पास नींद के घेरे... बस गहरा सन्नाटा था... हर सुबह उठकर बस तुम्हें एक झलक देख भर लेने की हड़बड़ी... तुम जैसे मुझसे नज़रें बचाना चाहती थी, हमेशा दूर-दूर भागते रहने की कोशिश... तुम्हारी ज़िन्दगी में पसरे उस एकांत और उदासियों का हाथ पकड़कर मैं तुम्हारे शहर से कहीं दूर छोड़ आना चाहता था... तुम्हें ये बतलाना चाहता था कि नींद आखिर कितनी भी बंजर क्यूँ न हो उसपे कभी न कभी किसी सुन्दर से ख्वाब का फूल खिलता ज़रूर है... तुम्हारी इन परेशान सी पलकों तले तुम्हारे लिए खूबसूरत ख्वाबगाह बना देना चाहता था... पर अब तक तुमने मुझे इसकी इजाजत नहीं दी थी...

मेरे दोस्त इसे कोई प्रेम कहानी समझने की भूल कर बैठे थे, उस समय तक तो मैं तुम्हें जानना भर चाहता था, तुम्हारी ज़िन्दगी की दरो-दीवार पर लिखे चंद लफ्ज़ पढना चाहता था... एक तड़प सी थी, एक बेचैनी... ठीक वैसे ही जैसे कोई चित्रकार अपने सामने पड़े खाली कैनवास को देखकर बेचैन हो उठता है... तुम्हारे अन्दर उस उदास, तन्हा इंसान में अपने आप को देखने लगा था... मैं किसी भी तरह तुम तक पहुंचना भर चाहता था...

हाँ ये सच है कि उस समय तक मुझे तुमसे प्यार नहीं था, लेकिन प्यार से भी कहीं ज्यादा मज़बूत एक धागा जुड़ गया था तुम्हारी ज़िन्दगी के साथ... जैसे एक मकसद, एक ख्वाईश.... तुम्हें हमेशा खुश रखने की, तुम्हें दुनिया की सारी खुशियाँ देने की... किसी का ख़याल रखने और उसको हमेशा खुश देखने की किस परिधि को प्यार कहते हैं ये मुझे कभी समझ नहीं आया... लेकिन तुम्हारे सपनों को सहेजते सहेजते बहुत आगे निकल गया... जब इस बात का एहसास हुआ तब अचानक ही जैसे आस-पास सब कुछ थम सा गया... काफी देर तक कमरे में खामोशियाँ चहलकदमी करती रहीं... गौर से अपनी ज़िन्दगी की सतहों पर देखा तो उनपर तुम्हारे नाम का प्यार अनजाने में ही पसर चुका था...

मुझे तुमसे प्यार हो गया था, तुम्हारे बिना जीने की सोच से भी डर लगने लगा था...मेरे पास खुश होने की कई वजहें थीं लेकिन मैं उदास था... उदास इसलिए कि अब तुम्हें खो देने का डर सता रहा था....
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आज की शाम पिछले एक साल की हर शामों से थोड़ी अलग है, पिछले गुज़रे एक साल की पोठली बना कर जो तुम मेरे पास छोड़ गयी हो.. उस पोठली में कितना कुछ है, वो दिसंबर की सर्दी, जनवरी की घास पर पड़ी ओस की वो बूँदें, फ़रवरी की वो हलकी सी धूप, मार्च के पेड़ों से गिरते पत्ते, अप्रैल की चादर में लिपटा वो तुम्हारा इकरार, मई की शाखों पर लगे वो ढेर सारे गुलमोहर के फूल...

और भी न जाने कितना कुछ... जैसे-जैसे इस पोठली के एक एक खजाने के साथ इस शाम का हर एक अकेला लम्हा गुज़ार रहा हूँ, उतना ही ज्यादा और ज्यादा खुद को तुम्हारे करीब पाता हूँ... पूरा शहर अपने आप में मगन है, वही गाड़ियों की आवाजें, कुछ बच्चे बगल वाली छत पर खेल रहे हैं, बीच बीच में कोई फेरीवाला भी आवाज़ लगा जाता है.. लेकिन इस सबसे अलग मैं इस शहर से कुरेद कुरेद कर तुम्हारी हर एक झलक को अपनी पलकों के इर्द-गिर्द समेटने की जुगत में लगा हूँ... इस शहर की हवाओं में बहुत कुछ बह रहा है, इन हवाओं में घुले तुम्हारे एहसास को अपनी साँसों में भर के एक ठंडक सी महसूस कर रहा हूँ... कई सारे लफ्ज़ हैं जो इन कागज़ के पन्नों पर उतरने के लिए धक्का-मुक्की मचाये हुए हैं, उन सभी लफ़्ज़ों को करीने से सजा कर एक ग़ज़ल लिखना बहुत मुश्किल जान पड़ता है कभी न कभी कोई एक्स्ट्रा लफ्ज़ उतरकर इसे खराब किये दे रहा है...


छुट्टी का दिन बहुत शानदार होता है न, ज़िन्दगी की हर एक शय को हम फुर्सत में देखते हैं, आज भी अकेले यूँ बैठा बैठा उन कई सारे अँधेरे लम्हों को मोमबत्ती की लौ से रौशन कर रहा हूँ, तुम्हें लगता होगा मैं तुम्हें मिस कर रहा होऊंगा, लेकिन नहीं मैं तो उन बीते पन्नों को पढ़ पढ़ कर खुश हुआ जा रहा हूँ जहाँ से होकर गुज़रते हुए आज तुम्हारे लिए ये लम्हा चुराया है और ये ख़त लिख रहा हूँ...

सुनो, तुम्हें पता है जब भी अपने आने वाले कल के बारे में सोचता हूँ, तो मुझे क्या नज़र आता है ? एक लॉन और उसमे लगा एक झूला, काफी देर तक उस लॉन में खड़ा रहता हूँ, फिर सामने की तरफ देखता हूँ तो एक घर, सपनों का घर... पीली-नीली दीवारें, हरी खिड़कियाँ, खिडकियों पर झूलती तुम्हारी पसंद के मनीप्लांट की लताएं... बालकनी में लगी वो विंड-चाईम... सिर्फ एक घर नहीं बल्कि उसके चारो तरफ लिपटे हमारे ढेर सारे सपने...

आने वाले आधे महीने के बीच हो सकता है न जाने कितने ही ऐसे लम्हें आयेंगे जब हम एक धागे के एक एक छोर को पकडे एक-दूसरे से दुबारा मिलने का इंतज़ार कर रहे होंगे, लेकिन मुझे यकीन इस बात का ज़रूर है कि जब हम मिलेंगे बहुत खूबसूरत होगा वो लम्हा...

खैर, बाहर का मौसम बहुत खुशगवार हो रहा है, हलकी बारिश और सर्द हवा... हवा चलती है तो जिस्म से हरारत सी पैदा होती है, फिर जल्दी से तुम्हारे यादों की चादर ओढ़ कर खुद को खुद में समेट लेता हूँ...

कैफ़ी आज़मी जी की एक ग़ज़ल याद आ रही है...

वो नहीं मिलता मुझे इसका गिला अपनी जगह
उसके मेरे दरमियाँ फासिला अपनी जगह...

तुझसे मिल कर आने वाले कल से नफ़रत मोल ली
अब कभी तुझसे ना बिछरूँ ये दुआ अपनी जगह...

इस मुसलसल दौड में है मन्ज़िलें और फासिले
पाँव तो अपनी जगह हैं रास्ता अपनी जगह...
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jai_bhardwaj
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आज मौसम ने फिर करवट ली है, ज़रा सी बारिश होते ही हवाओं में ठण्ड कैसे घुल-मिल जाती है न, ठीक वैसे ही जैसे तुम मेरी ज़िन्दगी के द्रव्य में घुल-मिल गयी हो... तुम्हारी ख़ुशबू का तो पता नहीं लेकिन तुम्हारा ये एहसास मेरी साँसों के हर उतार-चढ़ाव में अंकित हो गया है... आज शाम जब ऑफिस से निकला तो ठंडी हवा के थपेड़ों ने मेरे दिल पर दस्तक दे दी... इस ठण्ड के बीच तुम्हारे ख्यालों की गर्म चादर लपेटे कब घर पहुँच गया पता ही नहीं चला...

ऐसा नहीं है कि मैंने बहुत दिन से तुम्हारे बारे में कुछ लिखा न हो, लेकिन जब भी तुम्हारा ख्याल मेरे दिलो-दिमाग से होकर गुज़रता है, जैसे अन्दर कोई कारखाना सा चल पड़ता है, और ढेर सारे शब्द उचक-उचक कर कागज़ पर उतर आने के लिए बावरे हो जाते हैं... वैसे तो मैं हर किसी चीज से जुडी बातें लिखता हूँ लेकिन अपने लिखे को उतनी शिद्दत से महसूस तभी कर पाता हूँ जब कागज़ पर तुम्हारी तस्वीर उभर कर आ जाती है, गोया मेरी कलम को भी अब तुम्हारे प्यार में ही तृप्ति मिलती है...

शाम को जब तुम्हें जी भर के देखता हूँ तो सुकून ऐसा, मानो दिन भर सड़कों पे भटकने के बाद किसी ने मेरे पैरों को ठन्डे पानी में डुबो दिया हो, सारा तनाव, सारी परेशानियां चंद लम्हों में ही काफूर हो जाती हैं और बच जाता तो बस तुम्हारे मोहब्बत का वो मखमली एहसास... तुम्हारे साथ हमेशा न रह पाने का गुरेज़ तो है लेकिन इस बात का सुकून भी है कि मैं तो कबका तुम्हारी आखों में अपना आशियाना बना कर तुम्हारी परछाईयों में शामिल हो चुका हूँ....

तुम्हें पता तो है न
मेरी ख्वाईशों के बारे में
ख्वाईशें भी अजीब हैं मेरी,
कि चलूँ कभी नंगे पाँव
किसी रेगिस्तान की
उस ठंडी रेत पर ,
हाथों में लिए तुम्हारे
प्यार के पानी से भरा थर्मस...
काँधे पर लटका हो
तुम्हारा दुपट्टा
और उसके दोनों सिरे की पोटलियों में
बंधी हो तुम्हारे आँगन की
वो सोंधी सी मिटटी,
उसमे हो कुछ बूँदें
तुम्हारे ख़्वाबों के ख़ुशबू की,
दो चुटकी तुम्हारे इश्क का नमक
और ताजगी हो थोड़ी
गुलाब के पंखुड़ियों पर
ढुलकती ओस के बूंदों की...
सच में
ख्वाईशें भी अजीब हैं मेरी...

तुम्हें पता भी है हमारा प्यार किस सरगम से बना है, किसी सातवीं दुनिया के आठवें सुर से... जो तुम्हारे दिल से निकलते हैं और मेरे दिल को सुनाई देते हैं बस... और किसी को कुछ सुनाई नहीं देता... बाहर बारिश की कुछ बूँदें आवाज़ लगा रही हैं, आओ इन गीली सड़कों पर धीमे धीमे चलते हुए अपने क़दमों के निशां बनाते चलते हैं... तुम्हारे एहसास के क़दमों के कुछ निशां इस दिल पर भी बनते चले जायेंगे... ताउम्र तुम्हारा एहसास यूँ ही काबिज़ रहेगा इस दिल पर...
__________________
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Default Re: प्यार के रंग

बहुत सुन्दर भाव-शब्द-चित्र है जो दिल को छू लेता है. लेकिन अफ़सोस कि कथा की नायिका हर चीज से बेनियाज़ होते हए भी किसी के साथ प्यार की हद तक घनिष्ठता बढ़ा लेती है. भाग्य की विडम्बना देखिये कि शहर छोड़ते हुये उसे अपने मित्र के एक sms का इंतज़ार है जो नहीं आता, तो नहीं आता. उधर कथा नायक वक़्त मिलते ही अपनी महिला मित्र की यादों की चादर लपेट लेने को ही जीवन का हासिल समझ बैठता है. ये दोनों मुझे रेल की दो पटरियों की भांति नज़र आते हैं, जिनके भाग्य में मिलन का सुख नहीं लिखा. ये दोनों अपने युग से एक पीढ़ी पहले की रूमानियत में गिरफ्तार प्रेमी हैं.
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बहुत सुन्दर भाव-शब्द-चित्र है जो दिल को छू लेता है. लेकिन अफ़सोस कि कथा की नायिका हर चीज से बेनियाज़ होते हए भी किसी के साथ प्यार की हद तक घनिष्ठता बढ़ा लेती है. भाग्य की विडम्बना देखिये कि शहर छोड़ते हुये उसे अपने मित्र के एक sms का इंतज़ार है जो नहीं आता, तो नहीं आता. उधर कथा नायक वक़्त मिलते ही अपनी महिला मित्र की यादों की चादर लपेट लेने को ही जीवन का हासिल समझ बैठता है. ये दोनों मुझे रेल की दो पटरियों की भांति नज़र आते हैं, जिनके भाग्य में मिलन का सुख नहीं लिखा. ये दोनों अपने युग से एक पीढ़ी पहले की रूमानियत में गिरफ्तार प्रेमी हैं.
निश्चित ही आप उत्कृष्ट समीक्षक-साहित्यकार हैं बन्धु। आपकी प्रतिभा की कोई उपमा नहीं है रजनीश जी। निरंतर कृपादृष्टि की अपेक्षा के साथ हार्दिक आभार।
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