10-04-2018, 11:20 AM | #1 |
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ग़ज़ल- ज़ुल्म का देखिये सिलसिला हो गया
●●●●●●●●●●●●●●● क्या था' मैं आजकल क्या से' क्या हो गया चोट ऐसी लगी बावरा हो गया ○○○ जिक्र यूँ प्यार का कर दिया आपने ज़ख्म जो भर चुका था हरा हो गया ○○○ एक मुद्दत लगी तो मिले आपसे इतनी' जल्दी ये' क्यूँ फासला हो गया ○○○ चेहरों पे वो' जो नूँर था साथियों सोचता हूँ कहाँ लापता हो गया ○○○ हाय अफ़सोस है संत के राज में ज़ुल्म का देखिये सिलसिला हो गया ○○○ जिसको' "आकाश" क़ाबिल बनाया वही इतना' आगे बढ़ा बेवफ़ा हो गया ग़ज़ल- आकाश महेशपुरी Last edited by आकाश महेशपुरी; 10-04-2018 at 11:24 AM. |
14-04-2018, 04:03 PM | #2 | |
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Re: ग़ज़ल- ज़ुल्म का देखिये सिलसिला हो गया
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22-04-2018, 09:46 AM | #3 |
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Re: ग़ज़ल- ज़ुल्म का देखिये सिलसिला हो गया
समसामयिक परिवेश का चित्रण करती हुयी एक खुबसूरत ग़ज़ल. हार्दिक धन्यवाद, आकाश जी.
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23-04-2018, 09:01 AM | #4 |
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Re: ग़ज़ल- ज़ुल्म का देखिये सिलसिला हो गया
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23-04-2018, 09:01 AM | #5 |
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Re: ग़ज़ल- ज़ुल्म का देखिये सिलसिला हो गया
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