My Hindi Forum

Go Back   My Hindi Forum > New India > Knowledge Zone

Reply
 
Thread Tools Display Modes
Old 08-02-2013, 07:59 PM   #31
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 99
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: ~~ कुछ इस्लामिक जानकारी ~~

20

प्रश्नः मुसलमान ग़ैर मुस्लिमों का अपमान करते हुए उन्हें ‘‘काफ़िर’’ क्यों कहते हैं?

उत्तरः शब्द ‘‘काफ़िर’’ वास्तव में अरबी शब्द ‘‘कुफ्ऱ’’ से बना है। इसका अर्थ है ‘‘छिपाना, नकारना या रद्द करना’’। इस्लामी शब्दावली में ‘‘काफ़िर’’ से आश्य ऐसे व्यक्ति से है जो इस्लाम की सत्यता को छिपाए (अर्थात लोगों को न बताए) या फिर इस्लाम की सच्चाई से इंकार करे। ऐसा कोई व्यक्ति जो इस्लाम को नकारता हो उसे उर्दू में ग़ैर मुस्लिम और अंग्रेज़ी में Non-Muslim कहते हैं।

यदि कोई ग़ैर-मुस्लिम स्वयं को ग़ैर मुस्लिम या काफ़िर कहलाना पसन्द नहीं करता जो वास्तव में एक ही बात है तो उसके अपमान के आभास का कारण इस्लाम के विषय में ग़लतफ़हमी या अज्ञानता है। उसे इस्लामी शब्दावली को समझने के लिए सही साधनों तक पहुँचना चाहिए। उसके पश्चात न केवल अपमान का आभास समाप्त हो जाएगा बल्कि वह इस्लाम के दृष्टिकोण को भी सही तौर पर समझ जाएगा।

(इति)
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 08-02-2013, 08:04 PM   #32
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 99
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: ~~ कुछ इस्लामिक जानकारी ~~

इस्लाम धर्म से संबन्धित उपरोक्त सभी बीस प्रश्नों के उत्तर है जिन्हें फरीद बुक डिपू ने शुद्ध हिन्दी और मधुर संदेश संगम, दिल्ली ने आसान हिन्दी और उर्दू में भी छापा है,REPLIES TO THE MOST COMMON QUESTIONS ASKED BY NON-MUSLIMS (Hindi-pdf book) नाम से धूम मचा चुकी इस किताब का यह फरीद बुक डिपू द्वारा किया गया अनुवाद है।प्रश्नोत्तर के लेखक हैं डा. जाकिर नायक।


अंत में : अंतरजाल से प्राप्त इस सामग्री में मैंने वर्तनी सम्पादन तो किया है किन्तु इस्लामिक शब्दावली में अल्पज्ञ होने के कारण कई स्थलों पर अभी भी सम्पादन संभाव्य है। जानकार प्रबुद्ध सदस्यों से अपेक्षा है कि वे उचित सहयोग देते हुए गलतियों को सुधारने में सहायता करेंगे। धन्यवाद।
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 08-07-2013, 09:32 PM   #33
rajnish manga
Super Moderator
 
rajnish manga's Avatar
 
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 241
rajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond repute
Default Re: ~~ कुछ इस्लामिक जानकारी ~~

इस्लाम धर्म के सम्बन्ध में सर्वजन-उपयोगी जानकारी फोरम के सदस्यों के लाभार्थ प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ. ऐसी जानकारी कभी पुरानी नहीं होती.
rajnish manga is offline   Reply With Quote
Old 09-07-2013, 10:44 AM   #34
Deep_
Moderator
 
Deep_'s Avatar
 
Join Date: Aug 2012
Posts: 1,810
Rep Power: 38
Deep_ has a reputation beyond reputeDeep_ has a reputation beyond reputeDeep_ has a reputation beyond reputeDeep_ has a reputation beyond reputeDeep_ has a reputation beyond reputeDeep_ has a reputation beyond reputeDeep_ has a reputation beyond reputeDeep_ has a reputation beyond reputeDeep_ has a reputation beyond reputeDeep_ has a reputation beyond reputeDeep_ has a reputation beyond repute
Question Re: ~~ कुछ इस्लामिक जानकारी ~~

Quote:
Originally Posted by jai_bhardwaj View Post
1
बहुपत्नी प्रथा

प्रश्नः इस्लाम में पुरूष को एक से अधिक पत्नियाँ रखने की अनुमति क्यों है?

उत्तरः बहुपत्नी प्रथा (policamy)से आश्य विवाह की ऐसे व्यवस्था से है जिसके अनुसार एक व्यक्ति एक से अधिक पत्नियाँ रख सकता है। बहुपत्नी प्रथा के दो रूप हो सकते हैं। उसका एक रूप (polygyny)है जिसके अनुसार एक पुरूष एक से अधिक स्त्रियों से विवाह कर सकता है। जबकि दूसरा रूप (polyandry) है जिसमें एक स्त्री एक ही समय में कई पुरूषों की पत्नी रह सकती है। इस्लाम में एक से अधिक पत्नियाँ रखने की सीमित अनुमति है। परन्तु (polyandry)अर्थात स्त्रियों द्वारा एक ही पुरूष में अनेक पति रखने की पूर्णातया मनाही है।

अब मैं इस प्रश्न की ओर आता हूँ कि इस्लाम में पुरूषों को एक से अधिक पत्नियाँ रखने की अनुमति क्यों है?
पवित्र क़ुरआन विश्व का एकमात्र धर्मग्रंथ है जो केवल ‘‘एक विवाह करो’’ का आदेश देता है

सम्पूर्ण मानवजगत मे केवल पवित्र क़ुरआन ही एकमात्र धर्म ग्रंथ (ईश्वाक्य) है जिसमें यह वाक्य मौजूद हैः ‘‘केवल एक ही विवाह करो’’, अन्य कोई धर्मग्रंथ ऐसा नहीं है जो पुरुषों को केवल एक ही पत्नी रखने का आदेश देता हो। अन्य धर्मग्रंथों में चाहे वेदों में कोई हो, रामायण, महाभारत, गीता अथवा बाइबल या ज़बूर हो किसी में पुरूष के लिए पत्नियों की संख्या पर कोई प्रतिबन्ध नहीं लगाया गया है, इन समस्त ग्रंथों के अनुसार कोई पुरुष एक समय में जितनी स्त्रियों से चाहे विवाह कर सकता है, यह तो बाद की बात है जब हिन्दू पंडितों और ईसाई चर्च ने पत्नियों की संख्या को सीमित करके केवल एक कर दिया।

हिन्दुओं के धार्मिक महापुरुष स्वयं उनके ग्रंथ के अनुसार एक समय में अनेक पत्नियाँ रखते थे। जैसे श्रीराम के पिता दशरथ जी की एक से अधिक पत्नियाँ थीं। स्वंय श्री कृष्ण की अनेक पत्नियाँ थीं।

आरंभिक काल में ईसाईयों को इतनी पत्नियाँ रखने की अनुमति थी जितनी वे चाहें, क्योंकि बाइबल में पत्नियों की संख्या पर कोई प्रतिबन्ध नहीं लगाया गया है। यह तो आज से कुछ ही शताब्दियों पूर्व की बात है जब चर्च ने केवल एक पत्नी तक ही सीमित रहने का प्रावधान कर दिया था।

धन्यवाद, मेरे लिए यह अत्यंत रोचक जानकारी है! ईस्लाम और हिन्दु धर्म में शायद स्त्री की संख्या (उस काल में) पुरूषो से अघिक रहेती होगी । अगर पुरूष एक से ज्यादा पत्नी का भरणपोषण करने में समर्थ हो तो वह एक से अधिक पत्नी रखता होगा, क्यों कि अगर एसा न हो तो बड़ी मात्रा में स्त्रीयां कुंवारी रह जाती और उनका भ्रविष्य खतरे में पड़ सकता था।

यह मेरा केवल अनुमान है। क्या एसा था?
Deep_ is offline   Reply With Quote
Old 09-07-2013, 12:51 PM   #35
Deep_
Moderator
 
Deep_'s Avatar
 
Join Date: Aug 2012
Posts: 1,810
Rep Power: 38
Deep_ has a reputation beyond reputeDeep_ has a reputation beyond reputeDeep_ has a reputation beyond reputeDeep_ has a reputation beyond reputeDeep_ has a reputation beyond reputeDeep_ has a reputation beyond reputeDeep_ has a reputation beyond reputeDeep_ has a reputation beyond reputeDeep_ has a reputation beyond reputeDeep_ has a reputation beyond reputeDeep_ has a reputation beyond repute
Question Re: ~~ कुछ इस्लामिक जानकारी ~~

Quote:
Originally Posted by jai_bhardwaj View Post
मनुष्य की पाचन व्यवस्था शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रकार के भोजन को पचा सकती है

शाकाहारी प्राणीयों की पाचन व्यवस्था केवल शाकाहारी भोजन को पचा सकती है। मांसाहारी जानवरों में केवल मांस को ही पचाने की क्षमता होती है। परन्तु मनुष्य हर प्रकार के खाद्य पद्रार्थों को पचा सकता है। यदि अल्लाह चाहता कि मनुष्य एक ही प्रकार के आहार पर जीवत रहे तो हमारे शरीर को दोनों प्रकार के भोजन के योग्य क्यों बनाता कि वह शक सब्ज़ी के साथ-साथ अन्य प्रकार के भोजन को भी पचा सके।

पवित्र हिन्दू धर्मशास्त्रों में भी मांसाहारी भोजन की अनुमति है

(क) बहुत से हिन्दू ऐसे भी हैं जो पूर्ण रूप से शाकाहारी हैं। उनका विचार है कि मास-मच्छी खाना उनके धर्म के विरुद्ध है परन्तु यह वास्तविकता है कि हिन्दुओं के प्राचीन धर्मग्रन्थों में मांसाहार पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है। उन्हीं ग्रंथों में ऐसे साधू संतों का उल्लेख है जो मांसाहारी थे।

(ख) मनुस्मृति जो हिन्दू कानून व्यवस्था का संग्रह है, उसके पाँचवे अध्याय के 30वें श्लोक में लिखा हैः

‘‘खाने वाला जो उनका मांस खाए कि जो खाने के लिए है तो वह कुछ बुरा नहीं करता, चाहे नितदिन वह ऐसा क्यों न करे क्योंकि ईश्वर ने स्वयं ही बनाया है कुछ को ऐसा कि खाए जाएं और कुछ को ऐसा कि खाएं।’’

(ग) मनुस्मृति के पाँचवें अध्याय के अगले श्लोक नॉ 31 में लिखा हैः

‘‘बलि का माँस खाना उचित है, यह एक रीति है जिसे देवताओं का आदेश जाना जाता है ’’

(घ) मनुस्मृति के इसी पाँचवें अध्याय के श्लोक 39-40 में कहा गया हैः

‘‘ईश्वर ने स्वयं ही बनाया है बलि के पशुओं को बलि हेतु। तो बलि के लिये मारना कोई हत्या नहीं है।’’

(ङ) महाभारत, अनुशासन पर्व के 58वें अध्याय के श्लोक 40 में धर्मराज युधिष्ठिर और भीष्म पितामहः के मध्य इस संवाद पर कि यदि कोई व्यक्ति अपने पुरखों के श्राद्ध में उनकी आत्मा की शांति के लिए कोई भोजन अर्पित करना चाहे तो वह क्या कर सकता है। वह वर्णन इस प्रकार हैः

‘‘युधिष्ठिर ने कहाµ ‘हे महाशक्तिमान, मुझे बताओ कि वह कौन सी वस्तु है जिसे यदि अपने पुरखों की आत्मा की शांति के लिए अर्पित करूं तो वह कभी समाप्त न हो, वह क्या वस्तु है जो (यदि दी जाए तो) सदैव बनी रहे? वह क्या है जो (यदि भेंट की जाए तो) अमर हो जाए?’’

भीष्म ने कहाः ‘‘हे युधिष्ठिर! मेरी बात ध्यानपुर्वक सुनो, वह भेंटें क्या हैं जो कोई श्रद्धापूर्वक अर्पित की जाए जो श्रद्धा हेतु अचित हो और वह क्या फल है जो प्रत्येक के साथ जोड़े जाएं। तिल और चावल, जौ और उड़द और जल एवं कन्दमूल आदि उनकी भेंट किया जाए तो हे राजन! तुम्हारे पुरखों की आत्माएं प्रसन्न होंगी। भेड़ का (मांस) चार मास तक, ख़रगोश के (मांस) की भेंट चार मास तक प्रसन्न रखेगी, बकरी के (मांस) की भेंट छः मास तक और पक्षियों के (मांस) की भेंट सात मास तक प्रसन्न रखेगी। मृग के (मांस) की भेंट दस मास तक, भैंसे के (मांस) का दान ग्यारह मास तक प्रसन्न रखेगा। कहा जाता है कि गोमांस की भेंट एक वर्ष तक शेष रहती है। भेंट के गोमांस में इतना घृत मिलाया जाए जो तुम्हारे पुरखों की आत्माओं को स्वीकार्य हो, धरनासा (बड़ा बैल) का मांस तुम्हारे पुरखों की आत्माओं को बारह वर्षों तक प्रसन्न रखेगा। गेण्डे का मांस, जिसे पुरखों की आत्माओं को चन्द्रमा की उन रातों में भेंट किया जाए जब वे परलोक सिधारे थे तो वह उन्हें सदैव प्रसन्न रखेगा। और एक जड़ी बूटी कलासुका कही जाती है तथा कंचन पुष्प की पत्तियाँ और (लाल) बकरी का मांस भी, जो भेंट किया जाए, वह सदैव-सदैव के लिये है। यदि तुम चाहते हो कि तुम्हारें पितरों की आत्मा सदैव के लिए शांति प्राप्त करे तो तुम्हें चाहिए कि लाल बकरी के मांस से उनकी सेवा करो।’’ (भावार्थ)

हिन्दू धर्म भी अन्य धर्मों से प्रभावित हुआ है

यद्यपि हिन्दू धर्म शास्त्रों में मांसाहारी भोजन की अनुमति नहीं है परन्तु हिन्दुओं के अनुयायियों ने कालांतर में अन्य धर्मों का प्रभाव भी स्वीकार किया और शाकाहार को आत्मसात कर लिया। इन अन्य धर्मों में जैनमत इत्यादि शामिल हैं।

पौधे भी जीवनधारी हैं

कुछ धर्मों ने शकाहार पर निर्भर रहना इसलिए भी अपनाया है क्योंकि आहार व्यवस्था में जीवित प्राणधारियों को मारना वार्जित है। यदि कोई व्यक्ति अन्य प्राणियों को मारे बिना जीवित रह सकता है तो वह पहला व्यक्ति होगा जो जीवन बिताने का यह मार्ग स्वीकार कर लेगा। अतीत में लोग यह समझते थे कि वृक्ष-पौधे निष्प्राण होते हैं परन्तु आज यह एक प्रामाणिक तथ्य है कि वृक्ष-पौधे भी जीवधारी होते हैं अतः उन लोगों की यह धारणा कि प्राणियों को मारकर खाना पाप है, आज के युग में निराधार सिद्ध होती है। अब चाहे वे शाकाहारी क्यों न बने रहें।

पौधे भी पीड़ा का आभास कर सकते हैं

पूर्ण शाकाहार में विश्वास रखने वालों की मान्यता है कि पौधे कष्ट और पीड़ा महसूस नहीं कर सकते अतः वनस्पति और पेड़-पौधों को मारना किसी प्राणी को मारने के अपेक्षा बहुत छोटा अपराध है। आज विज्ञान हमें बताता है कि पौधे भी कष्ट और पीड़ा का अनुभव करते हैं किन्तु उनके रुदन और चीत्कार को सुनना मनुष्य के वश में नहीं। इस का कारण यह है कि मनुष्य की श्रवण क्षमता केवल 20 हटर्ज़ से लेकर 20,000 हर्टज फ्ऱीक्वेंसी वाली स्वर लहरियाँ सुन सकती हैं। एक कुत्ता 40,000 हर्टज तक की लहरों को सुन सकता है। यही कारण है कि कुत्तों के लिए विशेष सीटी बनाई जाती है तो उसकी आवाज़ मनुष्यों को सुनाई नहीं देती परन्तु कुत्ते उसकी आवाज़ सुनकर दौड़े आते हैं, उस सीटी की आवाज़ 20,000 हर्टज से अधिक होती है।

एक अमरीकी किसान ने पौधों पर अनुसंधान किया। उसने एक ऐसा यंत्र बनाया जो पौधे की चीख़ को परिवर्तित करके फ्ऱीक्वेंसी की परिधि में लाता था कि मनुष्य भी उसे सुन सकें। उसे जल्दी ही पता चल गया कि पौधा कब पानी के लिए रोता है। आधुनिकतम अनुसंधान से सिद्ध होता है कि पेड़-पौधे ख़ुशी और दुख तक को महसूस कर सकते हैं और वे रोते भी हैं।

(अनुवादक के दायित्व को समक्ष रखते हुए यह उल्लेख हिन्दी में भी किया गया है। दरअस्ल पौधे के रोने चीख़ने की बात किसी अनुसंधान की चर्चा किसी अमरीकी अख़बार द्वारा गढ़ी गई है। क्योंकि गम्भीर विज्ञान साहित्य और अनुसंघान सामग्री से पता चला है कि प्रतिकूल परिस्थतियों अथवा पर्यावरण के दबाव की प्रतिक्रिया में पौधों से विशेष प्रकार का रसायनिक द्रव्य निकलता है। वनस्पति वैज्ञानिक इस प्रकार के रसायनिक द्रव्य को ‘‘पौधे का रुदन और चीत्कार बताते हैं) अनुवादक

दो अनुभूतियों वाले प्राणियों की हत्या करना निम्नस्तर का अपराध है

एक बार एक शाकाहारी ने बहस के दौरान यह तर्क रखा कि पौधों में दो अथवा तीन अनुभूतियाँ होती हैं। जबकि जानवरों की पाँच अनुभूतियाँ होती है। अतः (कम अनुभव क्षमता के कारण) पौधों को मारना जीवित जानवरों को मारने की अपेक्षा छोटा अपराध है। इस जगह यह कहना पड़ता है कि मान लीजिए (ख़ुदा न करे) आपका कोई भाई ऐसा हो जो जन्मजात मूक और बधिर हो अर्थात उसमें अनुभव शक्ति कम हो, वह वयस्क हो जाए और कोई उसकी हत्या कर दे तब क्या आप जज से कहेंगे कि हत्यारा थोड़े दण्ड का अधिकारी है। आपके भाई के हत्यारे ने छोटा अपराध किया है और इसीलिए वह छोटी सज़ा का अधिकारी है? केवल इसलिए कि आपके भाई में जन्मजात दो अनुभूतियाँ कम थीं? इसके बजाए आप यही कहेंगे कि हत्यारे ने एक निर्दोष की हत्या की है अतः उसे कड़ी से कड़ी सज़ा दी जाए।

पवित्र क़ुरआन में फ़रमाया गया हैः

‘‘लोगो! धरती पर जो पवित्र और वैध चीज़ें हैं, उन्हें खाओ और शैतान के बताए हुए रास्तों पर न चलो, वह तुम्हारा खुला दुश्मन है।’’ (पवित्र क़ुरआन , 2ः168)

पशुओं की अधिक संख्या

यदि इस संसार का प्रत्येक व्यक्ति शाकाहारी होता तो परिणाम यह होता कि पशुओं की संख्या सीमा से अधिक हो जाती क्योंकि पशुओं में उत्पत्ति और जन्म की प्रक्रिया तेज़ होती है। अल्लाह ने जो समस्त ज्ञान और बुद्धि का स्वामी है इन जीवों की संख्या को उचित नियंत्रण में रखने का मार्ग सुझाया है। इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं कि अल्लाह तआला ने हमें (सब्ज़ियों के साथ साथ) पशुओं का माँस खाने की अनुमति भी दी है।

सभी लोग मांसाहारी नहीं, अतः माँस का मूल्य भी उचित है

मुझे इस पर कोई आपत्ति नहीं कि कुछ लोग पूर्ण रूप से शाकाहारी हैं परन्तु उन्हें चाहिए कि मांसाहारियों को क्रूर और अत्याचारी कहकर उनकी निन्दा न करें। वास्तव में यदि भारत के सभी लोग मांसाहारी बन जाएं तो वर्तमान मांसाहारियों का भारी नुकष्सान होगा क्योकि ऐसी स्थिति में माँस का मूल्य काबू से बाहर हो जाएगा।

शाकाहार, मांसाहार, मदिरापान जैसी विषयो को धर्म एवं जाति के साथ क्यों जोड दिया गया है? इसे तो भौगोलिक परिस्थिति के साथ देखना, जोडना चाहिए था । जहां अनाज, सब़्जी, फल ईत्यादि आसानी से उप्लब्ध न हो, जहां परिश्रम-संघर्ष ज्यादा हो वहां मांसाहार का सेवन होता आया है। लेकन ४००-५०० साल में जब भोजन भी शोक/सुविधा जैसे शब्दों जे जुड गया था, आसानी से सब कुछ मिलने लगा तब हम लोंगो कि धार्मिकता से जुडी हुई सोच में परिवर्तन आने लगा।

जहां तक पौधों को खाने की बात है, बहोत से मतभेद है । में सिर्फ एक बात पर प्रकाश डालना चाहूंगा जो नीरूमां (आप्तवाणी, आस्था चेनल) से सुनने में आया था । उन्हों ने कहा था की मनुष्यों की पांच ईन्द्रिय होती है जीसकी वजह से वह भुख, प्यास जैसी प्राथमिक भावना के साथ साथ दर्द, चोट, भय जैसी घटना याद रख सकते है। लेकिन उसके बाद पौधे, पेड ईन सब को याद नहिं रख पाते एवं वे बदला, क्रोध जैसी भावना मनमें नहि रख पाते, क्यों कि उनमें पांच ईन्द्रिय नहिं होती! लेकिन मनुष्य, प्राणी, जीव याद रखतें है, बदले की भावना रखतें है, दुःखी होते है, गुस्सा करतें है, रीएक्ट करतें है और यह क्रिया मोक्ष पाने में बाधा रूप बनतीं है। किटको में भी यह भावना नहि पाई गई सो मच्छर, मक्खी, बेक्टेरीया ईत्यादी जीवो का मारण शास्त्रो में निषेध नहि है

कृपया ईस सोच को आगें बढा कर कुछ और लिखें।


Last edited by Deep_; 09-07-2013 at 12:55 PM.
Deep_ is offline   Reply With Quote
Reply

Bookmarks

Thread Tools
Display Modes

Posting Rules
You may not post new threads
You may not post replies
You may not post attachments
You may not edit your posts

BB code is On
Smilies are On
[IMG] code is On
HTML code is Off



All times are GMT +5. The time now is 03:06 PM.


Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.