08-02-2013, 07:59 PM | #31 |
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Re: ~~ कुछ इस्लामिक जानकारी ~~
प्रश्नः मुसलमान ग़ैर मुस्लिमों का अपमान करते हुए उन्हें ‘‘काफ़िर’’ क्यों कहते हैं? उत्तरः शब्द ‘‘काफ़िर’’ वास्तव में अरबी शब्द ‘‘कुफ्ऱ’’ से बना है। इसका अर्थ है ‘‘छिपाना, नकारना या रद्द करना’’। इस्लामी शब्दावली में ‘‘काफ़िर’’ से आश्य ऐसे व्यक्ति से है जो इस्लाम की सत्यता को छिपाए (अर्थात लोगों को न बताए) या फिर इस्लाम की सच्चाई से इंकार करे। ऐसा कोई व्यक्ति जो इस्लाम को नकारता हो उसे उर्दू में ग़ैर मुस्लिम और अंग्रेज़ी में Non-Muslim कहते हैं। यदि कोई ग़ैर-मुस्लिम स्वयं को ग़ैर मुस्लिम या काफ़िर कहलाना पसन्द नहीं करता जो वास्तव में एक ही बात है तो उसके अपमान के आभास का कारण इस्लाम के विषय में ग़लतफ़हमी या अज्ञानता है। उसे इस्लामी शब्दावली को समझने के लिए सही साधनों तक पहुँचना चाहिए। उसके पश्चात न केवल अपमान का आभास समाप्त हो जाएगा बल्कि वह इस्लाम के दृष्टिकोण को भी सही तौर पर समझ जाएगा। (इति)
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
08-02-2013, 08:04 PM | #32 |
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Re: ~~ कुछ इस्लामिक जानकारी ~~
इस्लाम धर्म से संबन्धित उपरोक्त सभी बीस प्रश्नों के उत्तर है जिन्हें फरीद बुक डिपू ने शुद्ध हिन्दी और मधुर संदेश संगम, दिल्ली ने आसान हिन्दी और उर्दू में भी छापा है,REPLIES TO THE MOST COMMON QUESTIONS ASKED BY NON-MUSLIMS (Hindi-pdf book) नाम से धूम मचा चुकी इस किताब का यह फरीद बुक डिपू द्वारा किया गया अनुवाद है।प्रश्नोत्तर के लेखक हैं डा. जाकिर नायक।
अंत में : अंतरजाल से प्राप्त इस सामग्री में मैंने वर्तनी सम्पादन तो किया है किन्तु इस्लामिक शब्दावली में अल्पज्ञ होने के कारण कई स्थलों पर अभी भी सम्पादन संभाव्य है। जानकार प्रबुद्ध सदस्यों से अपेक्षा है कि वे उचित सहयोग देते हुए गलतियों को सुधारने में सहायता करेंगे। धन्यवाद।
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08-07-2013, 09:32 PM | #33 |
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Re: ~~ कुछ इस्लामिक जानकारी ~~
इस्लाम धर्म के सम्बन्ध में सर्वजन-उपयोगी जानकारी फोरम के सदस्यों के लाभार्थ प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ. ऐसी जानकारी कभी पुरानी नहीं होती.
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09-07-2013, 10:44 AM | #34 | |
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Re: ~~ कुछ इस्लामिक जानकारी ~~
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धन्यवाद, मेरे लिए यह अत्यंत रोचक जानकारी है! ईस्लाम और हिन्दु धर्म में शायद स्त्री की संख्या (उस काल में) पुरूषो से अघिक रहेती होगी । अगर पुरूष एक से ज्यादा पत्नी का भरणपोषण करने में समर्थ हो तो वह एक से अधिक पत्नी रखता होगा, क्यों कि अगर एसा न हो तो बड़ी मात्रा में स्त्रीयां कुंवारी रह जाती और उनका भ्रविष्य खतरे में पड़ सकता था। यह मेरा केवल अनुमान है। क्या एसा था? |
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09-07-2013, 12:51 PM | #35 | |
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Re: ~~ कुछ इस्लामिक जानकारी ~~
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शाकाहार, मांसाहार, मदिरापान जैसी विषयो को धर्म एवं जाति के साथ क्यों जोड दिया गया है? इसे तो भौगोलिक परिस्थिति के साथ देखना, जोडना चाहिए था । जहां अनाज, सब़्जी, फल ईत्यादि आसानी से उप्लब्ध न हो, जहां परिश्रम-संघर्ष ज्यादा हो वहां मांसाहार का सेवन होता आया है। लेकन ४००-५०० साल में जब भोजन भी शोक/सुविधा जैसे शब्दों जे जुड गया था, आसानी से सब कुछ मिलने लगा तब हम लोंगो कि धार्मिकता से जुडी हुई सोच में परिवर्तन आने लगा। जहां तक पौधों को खाने की बात है, बहोत से मतभेद है । में सिर्फ एक बात पर प्रकाश डालना चाहूंगा जो नीरूमां (आप्तवाणी, आस्था चेनल) से सुनने में आया था । उन्हों ने कहा था की मनुष्यों की पांच ईन्द्रिय होती है जीसकी वजह से वह भुख, प्यास जैसी प्राथमिक भावना के साथ साथ दर्द, चोट, भय जैसी घटना याद रख सकते है। लेकिन उसके बाद पौधे, पेड ईन सब को याद नहिं रख पाते एवं वे बदला, क्रोध जैसी भावना मनमें नहि रख पाते, क्यों कि उनमें पांच ईन्द्रिय नहिं होती! लेकिन मनुष्य, प्राणी, जीव याद रखतें है, बदले की भावना रखतें है, दुःखी होते है, गुस्सा करतें है, रीएक्ट करतें है और यह क्रिया मोक्ष पाने में बाधा रूप बनतीं है। किटको में भी यह भावना नहि पाई गई सो मच्छर, मक्खी, बेक्टेरीया ईत्यादी जीवो का मारण शास्त्रो में निषेध नहि है कृपया ईस सोच को आगें बढा कर कुछ और लिखें। Last edited by Deep_; 09-07-2013 at 12:55 PM. |
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