03-08-2011, 05:25 PM | #1 |
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||कहानी शीला, मुन्नी, रज़िया और शालू की||
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03-08-2011, 05:50 PM | #2 |
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Re: ||कहानी शीला, मुन्नी, रज़िया और शालू की||
चेतावनी - " कृपया पढ़ते वक़्त अपनी किडनी फ्रीज़र में रखकर पढ़े अन्यथा उसके जाम हो जाने का खतरा है "
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03-08-2011, 05:54 PM | #3 |
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Re: ||कहानी शीला, मुन्नी, रज़िया और शालू की||
तो क्या शीला जवान होने वाली थी?
नहीं ऐसा कुछ था तो नहीं.. यूँ उम्र उसकी जवानी की दहलीज़ तक पहुची नहीं थी.. पर कुछ मोहल्ले वालो ने... कुछ कोंलेज के लडको ने..., अपनी अपनी नजरो से उसे जवानी की दहलीज़ तक पंहुचा ही दिया था.. शीला समझ चुकी थी कि उसकी जवानी आने में अब टेम नहीं है.. सो टेम खोटी नहीं करना चाहिए..
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03-08-2011, 06:12 PM | #4 |
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Re: ||कहानी शीला, मुन्नी, रज़िया और शालू की||
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क्योंकि हर एक फ्रेंड जरूरी होता है. |
03-08-2011, 06:16 PM | #5 |
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Re: ||कहानी शीला, मुन्नी, रज़िया और शालू की||
इधर रजिया
टेलर मास्टर की बेटी, बचपन से ही समझदार, चाय में कितनी शक्कर और कितनी पत्ती.. इसका बखूबी हिसाब रखने वाली.. खूबसूरत इतनी कि गाल छू लो तो लाल पड़ जाए.. अब्बू की दुकान पे सिलाई मशीन चलाती.. रजिया के साथ साथ उसके अब्बू भी जानते थे कि लड़के जींस को ऑल्टर कराने उनकी दुकान में क्यों आते थे?? पर आने वाले को कौन रोंक सका है भला? (नोट : ये भला 'भला बुरा' वाला भला नहीं है)
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03-08-2011, 09:51 PM | #6 |
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Re: ||कहानी शीला, मुन्नी, रज़िया और शालू की||
और उधर मुन्नी
मुन्नी आज़ाद खयालो वाली लड़की.. जिसे हर जंग में जीतना और हर दुश्मन को पीटना ही गवारा था.. ऐसा नहीं था कि उसके मन में प्रेम नहीं था.. पर बचपन से अब तक जो भी उसने देखा.. या यू कहे कि झेला उसके बाद उसने नफरत को गोद ले लिया..
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03-08-2011, 09:57 PM | #7 |
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Re: ||कहानी शीला, मुन्नी, रज़िया और शालू की||
इन सबके बीच शालू
शालू ज्यादा समझदार नहीं थी पर उसकी समझ में एक बात आ गयी थी कि दुनिया जाए तेल लेने.. !! शालू को दुनिया से कोई मतलब नहीं था.. यू मतलब उसको इस बात से भी नहीं था कि दुनिया तेल लेने भला जाएगी कहा? वैसे शालू का एक ही उसूल था कि जैसे जीना है वैसे जियो.. बस जी..!!!
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03-08-2011, 10:26 PM | #8 |
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Re: ||कहानी शीला, मुन्नी, रज़िया और शालू की||
तो शीला
शीला जब भी घर से बाहर निकलती कुछ आँखे उसका दामन थाम लेती.. उसको घर से निकालकर गली के लास्ट कोर्नर तक छोडके आती.. ( ऐसी आँखों का राम भला करे ) इधर शीला को मोहल्ले की आँखों ने छोड़ा और उधर बस स्टॉप पे खड़े लडको ने थामा.. साथी हाथ बढ़ाना की तर्ज़ पे शीला के दामन को थामती आँखों की रिले रेस चलती रहती.. और जैसे ही शीला बस में चढ़ती कि वो टच स्क्रीन फोन बन जाती.. सब पट्ठे उसके सारे फीचर्स चेक कर लेना चाहते थे.. वैसे भी मोबाईल वही लेना चाहिए जिसमे सारे फीचर्स मौजूद हो..
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03-08-2011, 11:49 PM | #9 |
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Re: ||कहानी शीला, मुन्नी, रज़िया और शालू की||
क्या बात है. सिकंदर जी आप तो छा गए.
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