My Hindi Forum

Go Back   My Hindi Forum > Art & Literature > Hindi Literature
Home Rules Facebook Register FAQ Community

Reply
 
Thread Tools Display Modes
Old 10-01-2011, 06:47 PM   #161
ABHAY
Exclusive Member
 
ABHAY's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,259
Rep Power: 34
ABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud of
Post Re: गोदान -"प्रेमचन्द"

राय साहब को ऐसा आवेश आ रहा था कि इस दुष्ट को गोली मार दें। इसी बदमाश ने सब्ज़ बाग़ दिखाकर उन्हें खड़ा किया और अब अपनी सफ़ाई दे रहा है, पीठ में धूल भी नहीं लगने देता, लेकिन परिस्थिति ज़बान बन्द किये हुए थी।

‘ तो अब आपके किये कुछ नहीं हो सकता? ‘

‘ ऐसा ही समझिए। ‘

‘ मैं पचास हज़ार पर भी समझौता करने को तैयार हूँ। ‘

‘ राजा साहब किसी तरह न मानेंगे। ‘

‘ पच्चीस हज़ार पर तो मान जायँगे? ‘

‘ कोई आशा नहीं। वह साफ़ कह चुके हैं। ‘

‘ वह कह चुके हैं या आप कह रहे हैं। ‘

‘ आप मुझे झूठा समझते हैं? ‘

राय साहब ने विनम्र स्वर में कहा — मैं आपको झूठा नहीं समझता; लेकिन इतना ज़रूर समझता हूँ कि आप चाहते, तो मुआमला हो जाता। ‘

‘ तो आप का ख़्याल है, मैंने समझौता नहीं होने दिया? ‘

‘ नहीं, यह मेरा मतलब नहीं है। मैं इतना ही कहना चाहता हूँ कि आप चाहते तो काम हो जाता और मैं इस झमेले में न पड़ता। ‘

मिस्टर तंखा ने घड़ी की तरफ़ देखकर कहा — तो राय साहब, अगर आप साफ़ कहलाना चाहते हैं, तो सुनिए — अगर आपने दस हज़ार का चेक मेरे हाथ में रख दिया होता, तो आज निश्चय एक लाख के स्वामी होते। आप शायद चाहते होंगे, जब आपको राजा साहब से रुपए मिल जाते, तो आप मुझे हज़ार-दो-हज़ार दे देते। तो मैं ऐसी कच्ची गोली नहीं खेलता। आप राजा साहब से रुपए लेकर तिजोरी में रखते और मुझे अँगूठा दिखा देते। फिर मैं आपका क्या बना लेता? बतलाइए? कहीं नालिश-फ़रियाद भी तो नहीं कर सकता था।

राय साहब ने आहत नेत्रों से देखा — आप मुझे इतना बेईमान समझते हैं?

तंखा ने कुरसी से उठते हुए कहा — इसे बेईमानी कौन समझता है। आजकल यही चतुराई है। कैसे दूसरों को उल्लू बनाया जा सके, यही सफल नीति है; और आप इसके आचार्य हैं।

राय साहब ने मुट्ठी बाँधकर कहा — मैं?

‘ जी हाँ, आप! पहले चुनाव में मैंने जी-जान से आपकी पैरवी की। आपने बड़ी मुश्किल से रो धोकर पाँच सौ रुपए दिये, दूसरे चुनाव में आपने एक सड़ी-सी टूटी-फूटी कार देकर अपना गला छुड़ाया। दूध का जला छाँछ भी फूँक-फूँककर पीता है। ‘

वह कमरे से निकल गये और कार लाने का हुक्म दिया? राय साहब का ख़ून खौल रहा था। इस अशिष्टता की भी कोई हद है। एक तो घंटे-भर इन्तज़ार कराया और अब इतनी बेमुरौवती से पेश आकर उन्हें ज़बरदस्ती घर से निकाल रहा है; अगर उन्हें विश्वास होता कि वह मिस्टर तंखा को पटकनी दे सकते हैं, तो कभी न चूकते; मगर तंखा डील-डौल में उनसे सवाये थे। जब मिस्टर तंखा ने हार्न बजाया, तो वह भी आकर अपनी कार पर बैठे और सीधे मिस्टर खन्ना के पास पहुँचे। नौ बज रहे थे; मगर खन्ना साहब अभी तक मीठी नींद का आनन्द ले रहे थे। वह दो बजे रात के पहले कभी न सोते थे और नौ बजे तक सोना स्वाभाविक ही था। यहाँ भी राय साहब को आधा घंटा बैठना पड़ा; इसलिए जब कोई साढ़े नौ बजे मिस्टर खन्ना मुस्कराते हुए निकले तो राय साहब ने डाँट बताई — अच्छा! अब सरकार की नींद खुली है, साढ़े नौ बजे। रुपए जमा कर लिये हैं न, जभी यह बेफ़िक्री है। मेरी तरह तालुक्केदार होते, तो अब तक आप भी किसी द्वार पर खड़े होते। बैठे-बैठे सिर में चक्कर आ जाता। मिस्टर खन्ना ने सिगरेट-केस उनकी तरफ़ बढ़ाते हुए प्रसन्न मुख से कहा — रात सोने में बड़ी देर हो गयी। इस वक़्त किधर से आ रहे हैं?

राय साहब ने थोड़े से शब्दों में अपनी सारी कठिनाइयाँ बयान कर दीं। दिल में खन्ना को गालियाँ देते थे, जो उनका सहपाठी होकर भी सदैव उन्हें ठगने की फ़िक्र किया करता था; मगर मुँह पर उसकी ख़ुशामद करते थे। खन्ना ने ऐसा भाव बनाया, मानो उन्हें बड़ी चिन्ता हो गयी है, बोले — मेरी तो सलाह है; आप एलेक्शन को गोली मारें, और अपने सालों पर मुक़दमा दायर कर दें। रही शादी, वह तो तीन दिन का तमाशा है। उसके पीछे ज़ेरबार होना मुनासिब नहीं। कुँवर साहब मेरे दोस्त हैं, लेन-देन का कोई सवाल न उठने पायेगा।
__________________
Follow on Instagram , Twitter , Facebook .
ABHAY is offline   Reply With Quote
Old 10-01-2011, 06:48 PM   #162
ABHAY
Exclusive Member
 
ABHAY's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,259
Rep Power: 34
ABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud of
Post Re: गोदान -"प्रेमचन्द"

राय साहब ने व्यंग करके कहा — आप यह भूल जाते हैं। मिस्टर खन्ना कि मैं बैंकर नहीं, ताल्लुक़ेदार हूँ। कुँवर साहब दहेज नहीं माँगते, उन्हें ईश्वर ने सब कुछ दिया है, लेकिन आप जानते हैं, यह मेरी अकेली लड़की है और उसकी माँ मर चुकी है। वह आज ज़िन्दा होती तो शायद सारा घर लुटाकर भी उसे सन्तोष न होता। तब शायद मैं उसे हाथ रोककर ख़र्च करने का आदेश देता; लेकिन अब तो मैं उसकी माँ भी हूँ, बाप भी हूँ। अगर मुझे अपने हृदय का रक्त निकालकर भी देना पड़े, तो मैं ख़ुशी से दे दूँगा। इस विधुर-जीवन में मैंने सन्तान-प्रेम में ही अपनी आत्मा की प्यास बुझाई है। दोनों बच्चों के प्यार में ही अपने पत्नी-व्रत का पालन किया है। मेरे लिए यह असम्भव है कि इस शुभ अवसर पर अपने दिल के अरमान न निकालूँ। मैं अपने मन को तो समझा सकता हूँ पर जिसे मैं पत्नी का आदेश समझता हूँ, उसे नहीं समझाया जा सकता। और एलेक्शन के मैदान से भागना भी मेरे लिए सम्भव नहीं है। मैं जानता हूँ, मैं हारूँगा। राजा साहब से मेरा कोई मुकाबला नहीं; लेकिन राजा साहब को इतना ज़रूर दिखा देना चाहता हूँ कि अमरपालसिंह नर्म चारा नहीं है।

‘ और मुक़दमा दायर करना तो आवश्यक ही है? ‘

‘ उसी पर तो सारा दारोमदार है। अब आप बतलाइए, आप मेरी क्या मदद कर सकते हैं? ‘

‘ मेरे डाइरेक्टरों का इस विषय में जो हुक्म है, वह आप जानते हैं। और राजा साहब भी हमारे डाइरेक्टर हैं, यह भी आपको मालूम है। पिछला वसूल करने के लिए बार-बार ताकीद हो रही है। कोई नया मुआमला तो शायद ही हो सके। ‘

राय साहब ने मुँह लटकाकर कहा — आप तो मेरा डोंगा ही डुबाये देते हैं मिस्टर खन्ना!

‘ मेरे पास जो कुछ निज का है, वह आपका है; लेकिन बैंक के मुआमले में तो मुझे अपने स्वामियों के आदेशों को मानना ही पड़ेगा। ‘

‘ अगर यह ज़ायदाद हाथ आ गयी, और मुझे इसकी पूरी आशा है, तो पाई-पाई अदा कर दूँगा। ‘

‘ आप बतला सकते हैं, इस वक़्त आप कितने पानी में हैं? ‘

राय साहब ने हिचकते हुए कहा — पाँच-छः लाख समझिए। कुछ कम ही होंगे। खन्ना ने अविश्वास के भाव से कहा — या तो आपको याद नहीं है, या आप छिपा रहे हैं। राय साहब ने ज़ोर देकर कहा — जी नहीं, मैं न भूला हूँ, और न छिपा रहा हूँ। मेरी ज़ायदाद इस वक़्त कम से कम पचास लाख की है और ससुराल की ज़ायदाद भी इससे कम नहीं है। इतनी ज़ायदाद पर दस-पाँच लाख का बोझ कुछ नहीं के बराबर है।

‘ लेकिन यह आप कैसे कह सकते हैं कि ससुरालवाली ज़ायदाद पर भी क़रज़ नहीं है। ‘

‘ जहाँ तक मुझे मालूम है, वह ज़ायदाद बे-दाग़ है। ‘

‘ और मुझे यह सूचना मिली है कि उस ज़ायदाद पर दस लाख से कम का भार नहीं है। उस ज़ायदाद पर तो अब कुछ मिलने से रहा, और आपकी ज़ायदाद पर भी मेरे ख़याल में दस लाख से कम देना नहीं है। और वह ज़ायदाद अब पचास लाख की नहीं मुश्किल से पचीस लाख की है। इस दशा में कोई बैंक आपको क़रज़ नहीं दे सकता। यों समझ लीजिए कि आप ज्वालामुखी के मुख पर खड़े हैं। एक हल्की सी ठोकर आपको पाताल में पहुँचा सकती है। आपको इस मौक़े पर बहुत सँभलकर चलना चाहिए। ‘
__________________
Follow on Instagram , Twitter , Facebook .
ABHAY is offline   Reply With Quote
Old 10-01-2011, 06:50 PM   #163
ABHAY
Exclusive Member
 
ABHAY's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,259
Rep Power: 34
ABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud of
Post Re: गोदान -"प्रेमचन्द"

राय साहब ने उनका हाथ अपनी तरफ़ खींचकर कहा — यह सब मैं ख़ूब समझता हूँ, मित्रवर! लेकिन जीवन की ट्रैजेडी और इसके सिवा क्या है कि आपकी आत्मा जो काम करना नहीं चाहती, वही आपको करना पड़े। आपको इस मौक़े पर मेरे लिए कम से कम दो लाख का इन्तज़ाम करना पड़ेगा।

खन्ना ने लम्बी साँस लेकर कहा — माई गाड! दो लाख। असम्भव, बिलकुल असम्भव!

‘ मैं तुम्हारे द्वार पर सर पटककर प्राण दे दूँगा, खन्ना इतना समझ लो। मैंने तुम्हारे ही भरोसे यह सारे प्रोग्राम बाँधे हैं। अगर तुमने निराश कर दिया, तो शायद मुझे ज़हर खा लेना पड़े। मैं सूर्यप्रतापसिंह के सामने घुटने नहीं टेक सकता। कन्या का विवाह अभी दो चार महीने टल सकता है। मुक़दमा दायर करने के लिए अभी काफ़ी वक़्त है; लेकिन यह एलेक्शन सिर पर आ गया है, और मुझे सबसे बड़ी फ़िक्त यही है। ‘

खन्ना ने चकित होकर कहा — तो आप एलेक्शन में दो लाख लगा देंगे?

‘ एलेक्शन का सवाल नहीं है भाई, यह इज़्ज़त का सवाल है। क्या आपकी राय में मेरी इज़्ज़त दो लाख की भी नहीं। मेरी सारी रियासत बिक जाय, ग़म नहीं; मगर सूर्यप्रतापसिंह को मैं आसानी से विजय न पाने दूँगा। ‘

खन्ना ने एक मिनट तक धुआँ निकालने के बाद कहा — बैंक की जो स्थिति है वह मैंने आपको सामने रख दी। बैंक ने एक तरह से लेन-देन का काम बन्द कर दिया है। मैं कोशिश करूँगा कि आपके साथ ख़ास रिआयत की जाय; लेकिन यह आप जानते हैं। पर मेरा कमीशन क्या रहेगा? मुझे आपके लिए ख़ास तौर पर सिफ़ारिश करनी पड़ेगी; राजा साहब का अन्य डाइरेक्टरों पर कितना प्रभाव है, यह भी आप जानते हैं। मुझे उनके ख़िलाफ़ गुट-बन्दी करनी पड़ेगी। यों समझ लीजिए कि मेरी ज़िम्मेदारी पर ही मुआमला होगा।

राय साहब का मुँह गिर गया। खन्ना उनके अन्तरंग मित्रों में थे। साथ के पढ़े हुए, साथ के बैठनेवाले। और यह उनसे कमीशन की आशा रखते हैं, इतने बेमुरव्वती? आख़िर वह जो इतने दिनों से खन्ना की ख़ुशामद करते हैं, वह किस दिन के लिए? बाग़ में फल निकले, शाक-भाजी पैदा हो, सब से पहले खन्ना के पास डाली भेजते हैं। कोई उत्सव हो, कोई जलसा हो, सबसे पहले खन्ना को निमन्त्रण देते हैं। उसका यह जवाब हो। उदास मन से बोले — आपकी जो इच्छा हो; लेकिन मैं आपको अपना भाई समझता था।

खन्ना ने कृतज्ञता के भाव से कहा — यह आपकी कृपा है। मैंने भी सदैव आपको अपना बड़ा भाई समझा है और अब भी समझता हूँ। कभी आपसे कोई पर्दा नहीं रखा, लेकिन व्यापार एक दूसरा क्षेत्र है। यहाँ कोई किसी का दोस्त नहीं, कोई किसी का भाई नहीं। जिस तरह मैं भाई के नाते आपसे यह नहीं कह सकता कि मुझे दूसरों से ज़्यादा कमीशन दीजिए, उसी तरह आपको भी मेरे कमीशन में रियायत के लिए आग्रह न करना चाहिए। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ, कि मैं जितनी रिआयत आप के साथ कर सकता हूँ, उतना करूँगा। कल आप दफ़्तर के वक़्त आयें और लिखा-पढ़ी कर लें। बस, बिजनेस ख़त्म। आपने कुछ और सुना! मेहता साहब आजकल मालती पर बे-तरह रीझे हुए हैं। सारी फ़िलासफ़ी निकल गयी। दिन में एक-दो बार ज़रूर हाज़िरी दे आते हैं, और शाम को अक्सर दोनों साथ-साथ सैर करने निकलते हैं। यह तो मेरी ही शान थी कि कभी मालती के द्वार पर सलामी करने न गया। शायद अब उसी की कसर निकाल रही है। कहाँ तो यह हाल था कि जो कुछ हैं, मिस्टर खन्ना हैं। कोई काम होता, तो खन्ना के पास दौड़ी आती। जब रुपयों की ज़रूरत पड़ती तो खन्ना के नाम पुरज़ा आता। और कहाँ अब मुझे देखकर मुँह फेर लेती हैं। मैंने ख़ास उन्हीं के लिए फ़्रांस से एक घड़ी मँगवाई थी। बड़े शौक़ से लेकर गया; मगर नहीं ली। अभी कल मेवों की डाली भेजी थी — काश्मीर से मँगवाये थे — वापस कर दी। मुझे तो आश्चर्य होता है कि आदमी इतनी जल्द कैसे इतना बदल जाता है।

राय साहब मन में तो उनकी बेक़द्री पर ख़ुश हुए; पर सहानुभूति दिखाकर बोले — अगर यह भी मान लें कि मेहता से उसका प्रेम हो गया है, तो भी व्यवहार तोड़ने का कोई कारण नहीं है।
__________________
Follow on Instagram , Twitter , Facebook .
ABHAY is offline   Reply With Quote
Old 10-01-2011, 06:50 PM   #164
ABHAY
Exclusive Member
 
ABHAY's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,259
Rep Power: 34
ABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud of
Post Re: गोदान -"प्रेमचन्द"

खन्ना व्यथित स्वर में बोले — यही तो रंज है भाई साहब! यह तो मैं शुरू से जानता था वह मेरे हाथ नहीं आ सकती! मैं आप से सत्य कहता हूँ, मैं कभी इस धोखे में नहीं पड़ा कि मालती को मुझसे प्रेम है। प्रेम-जैसी चीज़ उनसे मिल सकती है, इसकी मैंने कभी आशा ही नहीं की। मैं तो केवल उनके रूप का पुजारी था। साँप में विष है, यह जानते हुए भी हम उसे दूध पिलाते हैं। तोते से ज़्यादा निठुर जीव और कौन होगा; लेकिन केवल उसके रूप और वाणी पर मुग्ध होकर लोग उसे पालते हैं और सोने के पिंजरे में रखते हैं। मेरे लिए भी मालती उसी तोते के समान थी। अफ़सोस यही है कि मैं पहले क्यों न चेत गया। इसके पीछे मैंने अपने हज़ारों रुपए बरबाद कर दिये भाई साहब! जब उसका रुक्का पहुँचा, मैंने तुरन्त रुपए भेजे। मेरी कार आज भी उसकी सवारी में है। उसके पीछे मैंने अपना घर चौपट कर दिया भाई साहब! हृदय में जितना रस था, वह ऊसर की ओर इतने वेग से दौड़ा कि दूसरी तरफ़ का उद्यान बिलकुल सूखा रह गया। बरसों हो गये, मैंने गोविन्दी से दिल खोलकर बात भी नहीं की। उसकी सेवा और स्नेह और त्याग से मुझे उसी तरह अरुचि हो गयी थी, जैसे अजीर्ण के रोगी को मोहनभोग से हो जाती है। मालती मुझे उसी तरह नचाती थी, जैसे मदारी बन्दर को नचाता है। और मैं ख़ुशी से नाचता था। वह मेरा अपमान करती थी और मैं ख़ुशी से हँसता था। वह मुझ पर शासन करती थी और मैं सिर झुकाता था। उसने मुझे कभी मुँह नहीं लगाया, यह मैं स्वीकार करता हूँ। उसने मुझे कभी प्रोत्साहन नहीं दिया, यह भी सत्य है, फिर भी मैं पतंग की भाँति उसके मुख-दीप पर प्राण देता था। और अब वह मुझसे शिष्टाचार का व्यवहार भी नहीं कर सकती! लेकिन भाई साहब! मैं कहे देता हूँ कि खन्ना चुप बैठनेवाला आदमी नहीं है। उसके पुरज़े मेरे पास सुरक्षित हैं; मैं उससे एक-एक पाई वसूल कर लूँगा, और डाक्टर मेहता को तो मैं लखनऊ से निकालकर दम लूँगा। उनका रहना यहाँ असम्भव कर दूँगा…

उसी वक़्त हार्न की आवाज़ आयी और एक क्षण में मिस्टर मेहता आकर खड़े हो गये। गोरा चिट्टा रंग, स्वास्थ्य की लालिमा गालों पर चमकती हुई, नीची अचकन, चूड़ीदार पाजामा, सुनहली ऐनक। सौम्यता के देवता-से लगते थे। खन्ना ने उठकर हाथ मिलाया — आइए मिस्टर मेहता, आप ही का ज़िकर हो रहा था।

मेहता ने दोनों सज्जनों से हाथ मिलाकर कहा — बड़ी अच्छी साइत में घर से चला था कि आप दोनों साहबों से एक ही जगह भेंट हो गयी। आपने शायद पत्रों में देखा होगा, यहाँ महिलाओं के लिए एक व्यायामशाला का आयोजन हो रहा है। मिस मालती उस कमेटी की सभानेत्री हैं। अनुमान किया गया है कि शाला में दो लाख रुपए लगेंगे। नगर में उसकी कितनी ज़रूरत है, यह आप लोग मुझसे ज़्यादा जानते हैं। मैं चाहता हूँ आप दोनों साहबों का नाम सबसे ऊपर हो। मिस मालती ख़ुद आनेवाली थीं; पर पर आज उनके फ़ादर की तबीयत अच्छी नहीं है, इसलिए न आ सकीं। उन्होंने चन्दे की सूची राय साहब के हाथ में रख दी। पहला नाम राजा सूर्यप्रतापसिंह का था जिसके सामने पाँच हज़ार रुपए की रक़म थी। उसके बाद कुँवर दिग्विजयसिंह के तीन हज़ार रुपए थे। इसके बाद और कई रक़में इतनी या इससे कुछ कम थी। मालती ने पाँच सौ रुपये दिये थे और डाक्टर मेहता ने एक हज़ार रुपए।

राय साहब ने अप्रतिभ होकर कहा — कोई चालीस हज़ार तो आप लोगों ने फटकार लिये।

मेहता ने गर्व से कहा — यह सब आप लोगों की दया है। और यह केवल तीन घंटों का परिश्रम है। राजा सूर्यप्रतापसिंह ने शायद ही किसी सार्वजनिक कार्य में भाग लिया हो; पर आज तो उन्होंने बे-कहे-सुने चेक लिख दिया! देश में जागृति है। जनता किसी भी शुभ काम में सहयोग देने को तैयार है। केवल उसे विश्वास होना चाहिए कि उसके दान का सद्व्यय होगा। आपसे तो मुझे बड़ी आशा है, मिस्टर खन्ना!

खन्ना ने उपेक्षा-भाव से कहा — मैं ऐसे फ़जूल के कामों में नहीं पड़ता। न जाने आप लोग पच्छिम की ग़ुलामी में कहाँ तक जायँगे। यों ही महिलाओं को घर से अरुचि हो रही है। व्यायाम की धुन सवार हो गयी, तो वह कहीं की न रहेंगी। जो औरत घर का काम करती है, उसके लिए किसी व्यायाम की ज़रूरत नहीं। और जो घर का कोई काम नहीं करती और केवल भोग-विलास में रत है, उसके व्यायाम के लिए चन्दा देना मैं अधर्म समझता हूँ।

मेहता ज़रा भी निरुत्साह न हुए — ऐसी दशा में मैं आपसे कुछ माँगूँगा भी नहीं। जिस आयोजन में हमें विश्वास न हो उसमें किसी तरह की मदद देना वास्तव में अधर्म है। आप तो मिस्टर खन्ना से सहमत नहीं हैं राय साहब!
__________________
Follow on Instagram , Twitter , Facebook .
ABHAY is offline   Reply With Quote
Old 10-01-2011, 06:51 PM   #165
ABHAY
Exclusive Member
 
ABHAY's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,259
Rep Power: 34
ABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud of
Post Re: गोदान -"प्रेमचन्द"

राय साहब गहरी चिन्ता में डूबे हुए थे। सूर्यप्रताप के पाँच हज़ार उन्हें हतोत्साह किये डालते थे। चौंककर बोले — आपने मुझसे कुछ कहा?

‘ मैंने कहा, आप तो इस आयोजन में सहयोग देना अधर्म नहीं समझते? ‘

‘ जिस काम में आप शरीक हैं, वह धर्म है या अधर्म, इसकी मैं परवाह नहीं करता। ‘

‘ मैं चाहता हूँ, आप ख़ुद विचार करें। और अगर आप इस आयोजन को समाज के लिए उपयोगी समझें, तो उसमें सहयोग दें। मिस्टर खन्ना की नीति मुझे बहुत पसन्द आयी। ‘

खन्ना बोले — मैं तो साफ़ कहता हूँ और इसीलिए बदनाम हूँ।

राय साहब ने दुर्बल मुस्कान के साथ कहा — मुझ में तो विचार करने की शक्ति है नहीं। सज्जनों के पीछे चलना ही मैं अपना धर्म समझता हूँ।

‘ तो लिखिए कोई अच्छी रक़म। ‘

‘ जो कहिए, वह लिख दूँ। ‘

‘ जो आप की इच्छा। ‘

‘ आप जो कहिए, वह लिख दूँ। ‘

‘ तो दो हज़ार से कम क्या लिखिएगा। ‘

राय साहब ने आहत स्वर में कहा — आपकी निगाह में मेरी यही हैसियत है?

उन्होंने क़लम उठाया और अपना नाम लिखकर उसके सामने पाँच हज़ार लिख दिये। मेहता ने सूची उनके हाथ से ले ली; मगर उन्हें इतनी ग्लानि हुई कि राय साहब को धन्यवाद देना भी भूल गये। राय साहब को चन्दे की सूची दिखाकर उन्होंने बड़ा अनर्थ किया, यह शूल उन्हें व्यथित करने लगा। मिस्टर खन्ना ने राय साहब को दया और उपहास की दृष्टि से देखा, मानो कह रहे हों, कितने बड़े गधे हो तुम!

सहसा मेहता राय साहब के गले लिपट गये और उन्मुक्त कंठ से बोले — Three cheers friends shahib! Hip hip Hurrey!

खन्ना ने खिसियाकर कहा — यह लोग राजे-महराजे ठहरे, यह इन कामों में दान न दें, तो कौन दे।

मेहता बोले — मैं तो आपको राजाओं का राजा समझता हूँ। आप उन पर शासन करते हैं। उनकी कोठी आपके हाथ में है।

राय साहब प्रसन्न हो गये — यह आपने बड़े मार्के की बात कही मेहता जी! हम नाम के राजा हैं। असली राजा तो हमारे बैंकर हैं।

मेहता ने खन्ना की ख़ुशामद का पहलू अख़्तियार किया — मुझे आपसे कोई शिकायत नहीं है खन्नाजी! आप अभी इस काम में नहीं शरीक होना चाहते, न सही, लेकिन कभी न कभी ज़रूर आयेंगे। लक्ष्मीपतियों की बदौलत ही हमारी बड़ी-बड़ी संस्थाएँ चलती हैं। राष्ट्रीय आन्दोलन को दो-तीन साल तक किसने इतनी धूम-धाम से चलाया! इतनी धर्मशालायें और पाठशालायें कौन बनवा रहा है? आज संसार का शासन-सूत्र बैंकरों के हाथ में है। सरकार उनके हाथ का खिलौना है। मैं भी आपसे निराश नहीं हूँ। जो व्यक्ति राष्ट्र के लिए जेल जा सकता है उसके लिए दो-चार हज़ार ख़र्च कर देना कोई बड़ी बात नहीं है। हमने तय किया है, इस शाला का बुनियादी पत्थर गोविन्दी देवी के हाथों रखा जाय। हम दोनों शीघ्र ही गवर्नर साहब से भी मिलेंगे और मुझे विश्वास है, हमें उनकी सहायता मिल जायगी। लेडी विलसन को महिला-आन्दोलन से कितना प्रेम है, आप जानते ही हैं। राजा साहब की ओर अन्य सज्जनों की भी राय थी कि लेडी विलसन से ही बुनियाद रखवाई जाय; लेकिन अन्त में यही निश्चय हुआ कि यह शुभ कार्य किसी अपनी बहन के हाथों होना चाहिए। आप कम-से-कम इस अवसर पर आयेंगे तो ज़रूर?
__________________
Follow on Instagram , Twitter , Facebook .
ABHAY is offline   Reply With Quote
Old 10-01-2011, 06:52 PM   #166
ABHAY
Exclusive Member
 
ABHAY's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,259
Rep Power: 34
ABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud of
Post Re: गोदान -"प्रेमचन्द"

खन्ना ने उपहास किया — हाँ, जब लाई विलसन आयेंगे तो मेरा पहुँचना ज़रूरी ही है। इस तरह आप बहुत-से रईसों को फाँस लेंगे। आप लोगों को लटके ख़ूब सूझते हैं। और हमारे रईस हैं भी इस लायक़। उन्हें उल्लू बनाकर ही मूँड़ा जा सकता है।

‘ जब धन ज़रूरत से ज़्यादा हो जाता है, तो अपने लिए निकाल का मार्ग खोजता है। यों न निकल पायगा तो जुए में जायगा, घुड़दौड़ में जायगा, ईट-पत्थर में जायगा, या ऐयाशी में जायगा। ‘

ग्यारह का अमल था। खन्ना साहब के दफ़्तर का समय आ गया। मेहता चले गये। राय साहब भी उठे कि खन्ना ने उनका हाथ पकड़कर बैठा लिया — नहीं, आप ज़रा बैठिए। आप देख रहे हैं, मेहता ने मुझे इस बुरी तरह फाँसा है कि निकलने का कोई रास्ता ही नहीं रहा। गोविन्दी से बुनियाद का पत्थर रखवायेंगे! ऐसी दशा में मेरा अलग रहना हास्यास्पद है या नहीं। गोविन्दी कैसे राज़ी हो गयी; मेरी समझ में नहीं आता और मालती ने कैसे उसे सहन कर लिया, यह समझना और भी कठिन है। आपका क्या ख़याल है, इसमें कोई रहस्य है या नहीं? राय साहब ने आत्मीयता जताई — ऐसे मुआमले में स्त्री को हमेशा पुरुष से सलाह ले लेनी चाहिए!

खन्ना ने राय साहब को धन्यवाद की आँखों से देखा — इन्हीं बातों पर गोविन्दी से मेरा जी जलता है, और उस पर मुझी को लोग बुरा कहते हैं। आप ही सोचिए, मुझे इन झगड़ों से क्या मतलब। इनमें तो वह पड़े, जिसके पास फ़ालतू रुपए हों, फ़ालतू समय हो और नाम की हवस हो। होना यही है कि दो-चार महाशय सेक्रेटरी और अंडर सेक्रेटरी और प्रधान और उपप्रधान बनकर अफ़सरों को दावतें देंगे, उनके कृपापात्र बनेंगे और यूनिवसिर्टी की छोकरियों को जमा करके बिहार करेंगे। व्यायाम तो केवल दिखाने के दाँत हैं। ऐसी संस्था में हमेशा यही होता है और यही होगा और उल्लू बनेंगे हम, और हमारे भाई, जो धनी कहलाते हैं और यह सब गोविन्दी के कारण। वह एक बार कुरसी से उठे, फिर बैठ गये। गोविन्दी के प्रति उनका क्रोध प्रचंड होता जाता था। उन्होंने दोनों हाथ से सिर को सँभालकर कहा — मैं नहीं समझता, मुझे क्या करना चाहिए।

राय साहब ने ठकुर-सोहाती की — कुछ नहीं, आप गोविन्दी देवी से साफ़ कह दें, तुम मेहता को इनकारी ख़त लिख दो, छुट्टी हुई। मैं तो लाग-डाँट में फँस गया। आप क्यों फँसें?

खन्ना ने एक क्षण इस प्रस्ताव पर विचार करके कहा — लेकिन सोचिए, कितना मुश्किल काम है। लेडी विलसन से इसका ज़िकर आ चुका होगा, सारे शहर में ख़बर फैल गयी होगी और शायद आज पत्रों में भी निकल जाय। यह सब मालती की शरारत है। उसीने मुझे ज़लील करने का यह ढंग निकाला है।

‘ हाँ, मालूम तो यही होता है। ‘

‘ वह मुझे ज़लील करना चाहती है। ‘

‘ आप शिलान्यास के एक दिन पहले बाहर चले जाइएगा। ‘

‘ मुश्किल है राय साहब! कहीं मुँह दिखाने की जगह न रहेगी। उस दिन तो मुझे हैज़ा भी हो जाय तो वहाँ जाना पड़ेगा। ‘

राय साहब आशा बाँधे हुए कल आने का वादा करके ज्यों ही निकले कि खन्ना ने अन्दर जा कर गोविन्दी को आड़े हाथों लिया — तुमने इस व्यायामशाला की नींव रखना क्यों स्वीकार किया?

गोविन्दी कैसे कहे कि यह सम्मान पाकर वह मन में कितनी प्रसन्न हो रही थी, उस अवसर के लिए कितने मनोनियोग से अपना भाषण लिख रही थी और कितनी ओजभरी कविता रची थी। उसने दिल में समझा था, यह प्रस्ताव स्वीकार करके वह खन्ना को प्रसन्न कर देगी। उसका सम्मान तो उसके पति ही का सम्मान है। खन्ना को इसमें कोई आपत्ति हो सकती है, इसकी उसने कल्पना भी न की थी। इधर कई दिन से पति को कुछ सदय देखकर उसका मन बढ़ने लगा था। वह अपने भाषण से, और अपनी कविता से लोगों को मुग्ध कर देने का स्वप्न देख रही थी। यह प्रश्न सुना और खन्ना की मुद्रा देखी, तो उसकी छाती धक-धक करने लगी। अपराधी की भाँति बोली — डाक्टर मेहता ने आग्रह किया, तो मैंने स्वीकार कर लिया।

‘ डाक्टर मेहता तुम्हें कुएँ में गिरने को कहें, तो शायद इतनी ख़ुशी से न तैयार होगी। ‘

गोविन्दी की ज़बान बन्द।

‘ तुम्हें जब ईश्वर ने बुद्धि नहीं दी, तो क्यों मुझसे नहीं पूछ लिया? मेहता और मालती, दोनों यह चाल चलकर मुझसे दो-चार हज़ार ऐंठने की फ़िक्र में हैं। और मैंने ठान लिया है कि कौड़ी भी न दूँगा। तुम आज ही मेहता को इनकारी ख़त लिख दो। ‘

गोविन्दी ने एक क्षण सोचकर कहा — तो तुम्हीं लिख दो न।

‘ मैं क्यों लिखूँ? बात की तुमने, लिखूँ मैं! ‘

‘ डाक्टर साहब कारण पूछेंगे, तो क्या बताऊँगी? ‘
__________________
Follow on Instagram , Twitter , Facebook .
ABHAY is offline   Reply With Quote
Old 10-01-2011, 06:53 PM   #167
ABHAY
Exclusive Member
 
ABHAY's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,259
Rep Power: 34
ABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud of
Post Re: गोदान -"प्रेमचन्द"

‘ बताना अपना सिर और क्या। मैं इस व्यभिचारशाला को एक धेली भी नहीं देना चाहता! ‘

‘ तो तुम्हें देने को कौन कहता है? ‘

खन्ना ने होंठ चबाकर कहा — कैसी बेसमझी की-सी बातें करती हो? तुम वहाँ नींव रखोगी और कुछ दोगी नहीं, तो संसार क्या कहेगा?

गोविन्दी ने जैसे संगीन की नोक पर कहा — अच्छी बात है, लिख दूँगी।

‘ आज ही लिखना होगा। ‘

‘ कह तो दिया लिखूँगी। ‘

खन्ना बाहर आये और डाक देखने लगे। उन्हें दफ़्तर जाने में देर हो जाती थी तो चपरासी घर पर ही डाक दे जाता था। शक्कर तेज़ हो गयी है। खन्ना का चेहरा खिल उठा। दूसरी चिट्ठी खोली। ऊख की दर नियत करने के लिए जो कमेटी बैठी थी, उसने तय कर लिया कि ऐसा नियन्त्रण नहीं किया जा सकता। धत तेरी की! वह पहले यही बात कह रहे थे; पर इस अग्निहोत्री ने गुल मचाकर ज़बरदस्ती कमेटी बैठाई। आख़िर बचा के मुँह पर थप्पड़ लगा। यह मिलवालों और किसानों के बीच का मुआमला है। सरकार इसमें दख़ल देनेवाली कौन।

सहसा मिस मालती कार से उतरीं। कमल की भाँति खिली, दीपक की भाँति दमकती, स्फूर्ति और उल्लास की प्रतिमा-सी — निश्शंक, निर्द्वन्द्व मानो उसे विश्वास है कि संसार में उसके लिए आदर और सुख का द्वार खुला हुआ है। खन्ना ने बरामदे में आकर अभिवादन किया।

मालती ने पूछा — क्या यहाँ मेहता आये थे?

‘ हाँ, आये तो थे। ‘

‘ कुछ कहा, कहाँ जा रहे हैं?’

‘यह तो कुछ नहीं कहा।’

‘जाने कहाँ डुबकी लगा गये। मैं चारों तरफ़ घूम आयी। आपने व्यायामशाला के लिए कितना दिया? ‘

खन्ना ने अपराधी-स्वर में कहा — मैंने इस मुआमले को समझा ही नहीं।

मालती ने बड़ी-बड़ी आँखों से उन्हें तरेरा, मानो सोच रही हो कि उन पर दया करे या रोष।

‘इसमें समझने की क्या बात थी, और समझ लेते आगे-पीछे, इस वक़्त तो कुछ देने की बात थी। मैंने मेहता को ठेलकर यहाँ भेजा था। बेचारे डर रहे थे कि आप न जाने क्या जवाब दें। आपकी इस कंजूसी का क्या फल होगा, आप जानते हैं? यहाँ के व्यापारी समाज से कुछ न मिलेगा। आपने शायद मुझे अपमानित करने का निश्चय कर लिया है। सबकी सलाह थी कि लेडी विलसन बुनियाद रखें। मैंने गोविन्दी देवी का पक्ष लिया और लड़कर सब को राज़ी किया और अब आप फ़रमाते हैं, आपने इस मुआमले को समझा ही नहीं। आप बैंकिंग की गुत्थियाँ समझते हैं; पर इतनी मोटी बात आप की समझ में न आयी। इसका अर्थ इसके सिवा और कुछ नहीं है, कि तुम मुझे लज्जित करना चाहते हो। अच्छी बात है, यही सही? ‘

मालती का मुख लाल हो गया था। खन्ना घबराये, हेकड़ी जाती रही; पर इसके साथ ही उन्हें यह भी मालूम हुआ कि अगर वह काँटों में फँस गये हैं, तो मालती दल-दल में फँस गयी है; अगर उनकी थैलियों पर संकट आ पड़ा है, तो मालती की प्रतिष्ठा पर संकट आ पड़ा है, जो थैलियों से ज़्यादा मूल्यवान है। तब उनका मन मालती की दुरवस्था का आनन्द क्यों न उठाये? उन्होंने मालती को अरदब में डाल दिया था। और यद्यपि वह उसे रुष्ट कर देने का साहस खो चुके थे; पर दो-चार खरी-खरी बातें कह सुनाने का अवसर पाकर छोड़ना न चाहते थे। यह भी दिखा देना चाहते थे कि मैं निरा भोंदू नहीं हूँ। उसका रास्ता रोककर बोले — तुम मुझ पर इतनी कृपालु हो गयी हो, इस पर मुझे आश्चर्य हो रहा है मालती!

मालती ने भवें सिकोड़कर कहा — मैं इसका आशय नहीं समझी।

‘ क्या अब मेरे साथ तुम्हारा वही बतार्व है, जो कुछ दिन पहले था? ‘
__________________
Follow on Instagram , Twitter , Facebook .
ABHAY is offline   Reply With Quote
Old 10-01-2011, 06:54 PM   #168
ABHAY
Exclusive Member
 
ABHAY's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,259
Rep Power: 34
ABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud of
Post Re: गोदान -"प्रेमचन्द"

मैं तो उसमें कोई अन्तर नहीं देखती। ‘

‘ लेकिन मैं तो आकाश-पाताल का अन्तर देखता हूँ। ‘

‘ अच्छा मान लो, तुम्हारा अनुमान ठीक है, तो फिर? मैं तुमसे एक शुभ-कार्य में सहायता माँगने आयी हूँ, अपने व्यवहार की परीक्षा देने आयी हूँ। और अगर तुम समझते हो, कुछ चन्दा देकर तुम यश और धन्यवाद के सिवा और कुछ पा सकते हो, तो तुम भ्रम में हो। ‘

खन्ना परास्त हो गये। वह ऐसे सकरे कोने में फँस गये थे, जहाँ इधर-उधर हिलने का भी स्थान न था। क्या वह उससे यह कहने का साहस रखते हैं कि मैंने अब तक तुम्हारे ऊपर हज़ारों रुपए लुटा दिये, क्या उसका यही पुरस्कार है? लज्जा से उनका मुँह छोटा-सा निकल आया, जैसे सिकुड़ गया हो! झेंपते हुए बोले — मेरा आशय यह न था मालती, तुम बिलकुल ग़लत समझीं।

मालती ने परिहास के स्वर में कहा — ख़ुदा करे, मैंने ग़लत समझा हो, क्योंकि अगर मैं उसे सच समझ लूँगी, तो तुम्हारे साये से भी भागूँगी। मैं रुपवती हूँ। तुम भी मेरे अनेक चाहनेवालों में से एक हो। वह मेरी कृपा थी कि जहाँ मैं औरों के उपहार लौटा देती थी, तुम्हारी सामान्य-से-सामान्य चीज़ें भी धन्यवाद के साथ स्वीकार कर लेती थी, और ज़रूरत पड़ने पर तुमसे रुपए भी माँग लेती थी, अगर तुमने अपने धनोन्माद में इसका कोई दूसरा अर्थ निकाल लिया, तो मैं तुम्हें क्षमा करूँगी। यह पुरुष-प्रकृति का अपवाद नहीं; मगर यह समझ लो कि धन ने आज तक किसी नारी के हृदय पर विजय नहीं पायी, और न कभी पायेगा।

खन्ना एक-एक शब्द पर मानो गज़-गज़ भर नीचे धँसते जाते थे। अब और ज़्यादा चोट सहने का उनमें जीवट न था। लज्जित होकर बोले — मालती, तुम्हारे पैरों पड़ता हूँ, अब और ज़लील न करो। और न सही तो मित्र-भाव तो बना रहने दो। यह कहते हुए उन्होंने दराज़ से चेकबुक निकाला और एक हज़ार लिखकर डरते डरते मालती की तरफ़ बढ़ाया।

मालती ने चेक लेकर निर्दय व्यंग किया — यह मेरे व्यवहार का मूल्य है या व्यायामशाला का चन्दा?

खन्ना सजल आँखों से बोले — अब मेरी जान बख़्शो मालती, क्यों मेरे मुँह में कालिख पोत रही हो।

मालती ने ज़ोर से क़हक़हा मारा — देखो, डाँट भी बताई और एक हज़ार रुपए भी वसूल किये। अब तो तुम कभी ऐसी शरारत न करोगे?

‘ कभी नहीं, जीते जी कभी नहीं। ‘

‘ कान पकड़ो। फ्र फ्र कान पकड़ता हूँ; मगर अब तुम दया करके जाओ और मुझे एकान्त में बैठकर सोचने और रोने दो। तुमने आज मेरे जीवन का सारा आनन्द….। ‘

मालती और ज़ोर से हँसी — देखो खन्ना, तुम मेरा बहुत अपमान कर रहे हो और तुम जानते हो, रूप अपमान नहीं सह सकता। मैंने तो तुम्हारे साथ भलाई की और तुम उसे बुराई समझते हो।

खन्ना विद्रोह भरी आँखों से देखकर बोले — तुमने मेरे साथ भलाई की है या उलटी छूरी से मेरा गला रेता है?

‘ क्यों, मैं तुम्हें लूट-लूटकर अपना घर भर रही थी। तुम उस लूट से बच गये। ‘

‘क्यों घाव पर नमक छिड़क रही हो मालती! मैं भी आदमी हूँ। ‘

मालती ने इस तरह खन्ना की ओर देखा, मानो निश्चय करना चाहती थी कि वह आदमी है या नहीं।

‘ अभी तो मुझे इसका कोई लक्षण नहीं दिखाई देता। ‘

‘ तुम बिलकुल पहेली हो, आज यह साबित हो गया। ‘

‘ हाँ तुम्हारे लिए पहेली हूँ और पहेली रहूँगी।’
यह कहती हुई वह पक्षी की भाँति फुर्र से उड़ गयी और खन्ना सिर पर हाथ रखकर सोचने लगे, यह लीला है, या इसका सच्चा रूप।
__________________
Follow on Instagram , Twitter , Facebook .
ABHAY is offline   Reply With Quote
Old 11-01-2011, 05:03 AM   #169
ABHAY
Exclusive Member
 
ABHAY's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,259
Rep Power: 34
ABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud of
Post Re: गोदान -"प्रेमचन्द"

गोदान भाग 7
गोबर और झुनिया के जाने के बाद घर सुनसान रहने लगा। धनिया को बार-बार मुन्नू की याद आती रहती है। बच्चे की माँ तो झुनिया थी; पर उसका पालन धनिया ही करती थी। वही उसे उबटन मलती, काजल लगाती, सुलाती और जब काम-काज से अवकाश मिलता, उसे प्यार करती। वात्सल्य का यह नशा ही उसकी विपत्ति को भुलाता रहता था। उसका भोला-भाला, मक्खन-सा मुँह देखकर वह अपनी सारी चिन्ता भूल जाती और स्नेहमय गर्व से उसका हृदय फूल उठता। वह जीवन का आधार अब न था। उसका सूना खटोला देखकर वह रो उठती। वह कवच जो सारी चिन्ताओं और दुराशाओं से उसकी रक्षा करता था, उससे छिन गया था। वह बार-बार सोचती, उसने झुनिया के साथ ऐसी कौन-सी बुराई की थी, जिसका उसने यह दंड दिया। डाइन ने आकर उसका सोना-सा घर मिट्टी में मिला दिया। गोबर ने तो कभी उसकी बात का जवाब भी न दिया था। इसी राँड़ ने उसे फोड़ा और वहाँ ले जाकर न जाने कौन-कौन-सा नाच नचायेगी। यहाँ ही वह बच्चे की कौन बहुत परवाह करती थी। उसे तो अपनी मिस्सी-काजल, माँग-चोटी से ही छुट्टी नहीं मिलती। बच्चे की देख-भाल क्या करेगी। बेचारा अकेला ज़मीन पर पड़ा रोता होगा। बेचारा एक दिन भी तो सुख से नहीं रहने पाता। कभी खाँसी, कभी दस्त, कभी कुछ, कभी कुछ। यह सोच-सोचकर उसे झुनिया पर क्रोध आता। गोबर के लिए अब भी उसके मन में वही ममता थी। इसी चुड़ैल ने उसे कुछ खिला-पिलाकर अपने वश में कर लिया। ऐसी मायाविनी न होती, तो यह टोना ही कैसे करती। कोई बात न पूछता था। भौजाइयों की लातें खाती थी। यह भुग्गा मिल गया तो आज रानी हो गयी। होरी ने चिढ़कर कहा — जब देखा तब तू झुनिया ही को दोस देती है। यह नहीं समझती कि अपना सोना खोटा तो सोनार का क्या दोस। गोबर उसे न ले जाता तो क्या आप-से-आप चली जाती? सहर का दाना-पानी लगने से लौंडे की आँखें बदल गयीं। ऐसा क्यों नहीं समझ लेती। धनिया गरज उठी — अच्छा चुप रहो। तुम्हीं ने राँड़ को मूड़ पर चढ़ा रखा था, नहीं मैंने पहले ही दिन झाड़ू मारकर निकाल दिया होता। खलिहान में डाठें जमा हो गयी थीं।

होरी बैलों को जुखर कर अनाज माँड़ने जा रहा था। पीछे मुँह फेरकर बोला — मान ले, बहू ने गोबर को फोड़ ही लिया, तो तू इतना कुढ़ती क्यों है? जो सारा ज़माना करता है, वही गोबर ने भी किया। अब उसके बाल-बच्चे हुए। मेरे बाल-बच्चों के लिए क्यों अपनी साँसत कराये, क्यों हमारे सिर का बोझ अपने सिर पर रखे!

‘ तुम्हीं उपद्रव की जड़ हो। ‘

‘ तो मुझे भी निकाल दे। ले जा बैलों को अनाज माँड़। मैं हुक़्क़ा पीता हूँ। ‘

‘ तुम चलकर चक्की पीसो मैं अनाज माड़ूँगी। ‘

विनोद में दुःख उड़ गया। वही उसकी दवा है। धनिया प्रसन्न होकर रूपा के बाल गूँथने बैठ गयी जो बिलकुल उलझकर रह गये थे, और होरी खलिहान चला। रसिक बसन्त सुगन्ध और प्रमोद और जीवन की विभूति लुटा रहा था, दोनों हाथों से, दिल खोलकर। कोयल आम की डालियों में छिपी अपनी रसीली, मधुर, आत्मस्पर्शी कूक से आशाओं को जगाती फिरती थी। महुए की डालियों पर मैनों की बरात-सी लगी बैठी थी। नीम और सिरस और करौंदे अपनी महक में नशा-सा घोल देते थे। होरी आमों के बाग़ में पहुँचा, तो वृक्षों के नीचे तारे-से खिले थे। उसका व्यथित, निराश मन भी इस व्यापक शोभा और स्फूर्ति में आकर गाने लगा —

‘ हिया जरत रहत दिन-रैन। आम की डरिया कोयल बोले, तनिक न आवत चैन। ‘
__________________
Follow on Instagram , Twitter , Facebook .
ABHAY is offline   Reply With Quote
Old 11-01-2011, 05:04 AM   #170
ABHAY
Exclusive Member
 
ABHAY's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,259
Rep Power: 34
ABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud of
Post Re: गोदान -"प्रेमचन्द"

सामने से दुलारी सहुआइन, गुलाबी साड़ी पहने चली आ रही थीं। पाँव में मोटे चाँदी के कड़े थे, गले में मोटी सोने की हँसली, चेहरा सूखा हुआ; पर दिल हरा। एक समय था, जब होरी खेत-खलिहान में उसे छेड़ा करता था। वह भाभी थी, होरी देवर था, इस नाते से दोनों में विनोद होता रहता था। जब से साहजी मर गये, दुलारी ने घर से निकलना छोड़ दिया। सारे दिन दूकान पर बैठी रहती थी और वहीं वे सारे गाँव की ख़बर लगाती रहती थी। कहीं आपस में झगड़ा हो जाय, सहुआइन वहाँ बीच-बचाव करने के लिए अवश्य पहुँचेगी। आने रुपए सूद से कम पर रुपए उधार न देती थी। और यद्यपि सूद के लोभ में मूल भी हाथ न आता था — जो रुपए लेता, खाकर बैठ रहता — मगर उसके ब्याज का दर ज्यों-का-त्यों बना रहता था। बेचारी कैसे वसूल करे। नालिश-फ़रियाद करने से रही, थाना-पुलिस करने से रही, केवल जीभ का बल था; पर ज्यों-ज्यों उम्र के साथ जीभ की तेज़ी बदलती जाती थी, उसकी काट घटती जाती थी। अब उसकी गालियों पर लोग हँस देते थे और मज़ाक़ में कहते — क्या करेगी रुपए लेकर काकी, साथ तो एक कौड़ी भी न ले जा सकेगी। ग़रीब को खिला-पिलाकर जितनी असीस मिल सके, ले-ले। यही परलोक में काम आयेगा। और दुलारी परलोक के नाम से जलती थी।

होरी ने छेड़ा — आज तो भाभी, तुम सचमुच जवान लगती हो।

सहुआइन मगन होकर बोली — आज मंगल का दिन है, नज़र न लगा देना। इसी मारे मैं कुछ पहनती-ओढ़ती नहीं। घर से निकली तो सभी घूरने लगते हैं, जैसे कभी कोई मेहरिया देखी न हो। पटेश्वरी लाला की पुरानी बान अभी तक नहीं छूटी। होरी ठिठक गया; बड़ा मनोरंजक प्रसंग छिड़ गया था। बैल आगे निकल गये।

‘ वह तो आजकल बड़े भगत हो गये हैं। देखती नहीं हो, हर पूरनमासी को सत्यनारायण की कथा सुनते हैं और दोनों जून मन्दिर में दर्शन करने जाते हैं। ‘

‘ ऐसे लम्पट जितने होते हैं, सभी बूढ़े होकर भगत बन जाते हैं। कुकर्म का परासचित तो करना ही पड़ता है। पूछो, मैं अब बुढ़िया हुई, मुझसे क्या हँसी। ‘

‘ तुम अभी बुढ़िया कैसे हो गयी भाभी? मुझे तो अब भी… ‘

‘ अच्छा चुप ही रहना, नहीं डेढ़ सौ गाली दूँगी। लड़का परदेस कमाने लगा, एक दिन नेवता भी न खिलाया, सेंत-मेंत में भाभी बताने को तैयार। ‘

‘ मुझसे क़सम ले लो भाभी, जो मैंने उसकी कमाई का एक पैसा भी छुआ हो। न जाने क्या लाया, कहाँ ख़रच किया, मुझे कुछ भी पता नहीं। बस एक जोड़ा धोती और एक पगड़ी मेरे हाथ लगी। ‘

‘ अच्छा कमाने तो लगा, आज नहीं कल घर सँभालेगा ही। भगवान् उसे सुखी रखे। हमारे रुपए भी थोड़ा-थोड़ा देते चलो। सूद ही तो बढ़ रहा है। ‘

‘ तुम्हारी एक-एक पाई दूँगा भाभी, हाथ में पैसे आने दो। और खा ही जायेंगे, तो कोई बाहर के तो नहीं हैं, हैं तो तुम्हारे ही। ‘

सहुआइन ऐसी विनोद भरी चापलूसियों से निरस्त्र हो जाती थी। मुस्कराती हुई अपनी राह चली गयी। होरी लपककर बैलों के पास पहुँच गया और उन्हें पौर में डालकर चक्कर देने लगा। सारे गाँव का यही एक खलिहान था। कहीं मँड़ाई हो रही थी, कोई अनाज ओसा रहा था, कोई गल्ला तौल रहा था। नाई, बारी, बढ़ई, लोहार, पुरोहित, भाट, भिखारी, सभी अपने-अपने जेवरें लेने के लिए जमा हो गये थे। एक पेड़ के नीचे झिंगुरीसिंह खाट पर बैठे अपनी सवाई उगाह रहे थे। कई बनिये खड़े गल्ले का भाव-ताव कर रहे थे। सारे खलिहान में मंडी की-सी रौनक़ थी। एक खटकिन बेर और मकोय बेच रही थी और एक खोंचेवाला तेल के सेव और जलेबियाँ लिये फिर रहा था। पण्डित दातादीन भी होरी से अनाज बँटवाने के लिए आ पहुँचे थे और झिंगुरीसिंह के साथ खाट पर बैठे थे।

दातादीन ने सुरती मलते हुए कहा — कुछ सुना, सरकार भी महाजनों से कह रही है कि सूद का दर घटा दो, नहीं डिग्री न मिलेगी।
__________________
Follow on Instagram , Twitter , Facebook .
ABHAY is offline   Reply With Quote
Reply

Bookmarks


Posting Rules
You may not post new threads
You may not post replies
You may not post attachments
You may not edit your posts

BB code is On
Smilies are On
[IMG] code is On
HTML code is Off



All times are GMT +5. The time now is 11:23 AM.


Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.