28-05-2014, 11:28 PM | #1 |
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विभाजन कथा: टोबा टेक सिंह
विभाजन कथा: टोबा टेक सिंह
लेखक: सआदत हसन मंटो toba tek singh : Saadat hasan manto बंटवारे के दो-तीन साल बाद पाकिस्तान और हिंदुस्तान की हुकूमतों को ख़याल आया कि सामान्य क़ैदियों की तरह पागलों का भी तबादला होना चाहिए, यानी जो मुसलमान पागल हिंदुस्तान के पागलख़ानों में हैं, उन्हें पाकिस्तान पहुँचा दिया जाए और जो हिंदू और सिख पाकिस्तान के पागलख़ानो में हैं, उन्हें हिंदुस्तान के हवाले कर दिया जाए। मालूम नहीं, यह बात माक़ूल थी या गै़र माकूल़, बहरहाल दानिशमंदों के फ़ैसले के मुताबिक़ इधर-उधर ऊँची सतह की कान्फ़ेंस हुई और बिल आख़िर पागलों के तबादले के लिए एक दिन मुक़र्रर हो गया। अच्छी तरह छानबीन की गई - वे मुसलमान पागल जिनके संबंधी हिंदुस्तान ही में थे, वहीं रहने दिए गए, बाक़ी जो बचे, उनको सरहद पर रवाना कर दिया गया। पाकिस्तान से चूँकि क़रीब-क़रीब तमाम हिंदू-सिख जा चुके थे, इसलिए किसी को रखने-रखाने का सवाल ही पैदा नहीं हुआ, जितने हिंदू-सिख पागल थे, सबके-सब पुलिस की हिफ़ाज़त में बॉर्डर पर पहुँचा दिए गए। उधर का मालूम नहीं लेकिन इधर लाहौर के पागलख़ाने में जब इस तबादले की ख़बर पहुँची तो बड़ी दिलचस्प गपशप होने लगी। एक मुसलमान पागल जो बारह बरस से, हर रोज़, बाक़ायदगी के साथ 'ज़मींदार' पढ़ता था, उससे जब उसके एक दोस्त ने पूछा, "मौलवी साब, यह पाकिस्तान क्या होता है?" तो उसने बड़े गौरो-फ़िक्र के बाद जवाब दिया, "हिंदुस्तान में एक ऐसी जगह है जहाँ उस्तरे बनते हैं!" यह जवाब सुनकर उसका दोस्त संतुष्ट हो गया। इसी तरह एक सिख पागल ने एक दूसरे सिख पागल से पूछा, "सरदार जी, हमें हिंदुस्तान क्यों भेजा जा रहा है, हमें तो वहाँ की बोली नहीं आती।" दूसरा मुस्कराया, "मुझे तो हिंदुस्तोड़ों की बोली आती है, हिंदुस्तानी बड़े शैतानी आकड़ आकड़ फिरते हैं।" >>>
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) Last edited by rajnish manga; 29-05-2014 at 09:47 PM. |
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