11-04-2013, 05:30 PM | #21 |
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Re: मोती और माणिक्य
मेरे दीप-फूल लेकर वे, अम्बा को अर्पित करके |
11-04-2013, 05:33 PM | #22 |
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Re: मोती और माणिक्य
मेरे हाथों से प्रसाद भी, बिखर गया हा! सब का सब |
11-04-2013, 05:38 PM | #23 |
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Re: मोती और माणिक्य
पहले की-सी लेने मुझको, नहीं दौड़ कर आई वह |
11-04-2013, 06:02 PM | #24 |
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Re: मोती और माणिक्य
कवि परिचय: |
11-04-2013, 06:04 PM | #25 |
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Re: मोती और माणिक्य
“बरसात कि बहारें” नामक कविता से – |
11-04-2013, 06:07 PM | #26 |
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Re: मोती और माणिक्य
हुशियार यारे जाना यह गाँव है ठगों का. |
11-04-2013, 06:09 PM | #27 |
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Re: मोती और माणिक्य
ज़र की जो मुहब्बत तुझे पड़ जायेगी बाबा. |
11-04-2013, 06:13 PM | #28 |
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Re: मोती और माणिक्य
जिस पे आती है मुफ़लिसी |
25-04-2013, 11:44 PM | #29 |
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Re: मोती और माणिक्य
मैथिलिशरण गुप्त
जन्म: 3 अगस्त 1886 मृत्यु: 12 दिसंबर 1964 महाकवि ने 12 वर्ष की वय में कविता लिखना शुरू कर दिया था. आपके पिता भी कविता करते थे. उनकी शिक्षा दीक्षा घर पर ही हुई. उन्होंने मराठी, बंगला और संस्कृत भाषाओं का भी अच्छा ज्ञान प्राप्त किया था. वे गाँधी जी, राजेंद्र प्रसाद, नेहरु व बिनोबा भावे के निकट संपर्क में रहे तथा उनके विचारों का उनके जीवन तथा साहित्य पर बहुत प्रभाव रहा. 1936 में जब कवि की 50वीं वर्षगाँठ मनाई गई तो गाँधी जी ने ही उनके सम्मान में संकलित “काव्यमान ग्रन्थ” का विमोचन किया. यही अवसर था जब गाँधी जी ने उन्हें सर्वप्रथम “राष्ट्र-कवि” का संबोधन दिया. वे राजनीति में भी सक्रिय रहे. 1952 में वे राज्य सभा के लिए मनोनीत किये गए. 1954 में उन्हें राष्ट्रपति ने पद्म-भूषण उपाधि से अलंकृत किया. ऐसा माना जाता है कि अपने राज्य सभा कार्यकाल के दौरान उन्होंने एकाधिक बार अपना वक्तव्य कविता में ही दिया था. “साकेत” नामक महाकाव्य उनकी प्रमुख व कालजयी रचना है जिसे मंगलाप्रसाद पारितोषिक से सम्मानित किया गया. उन्हें साहित्य वाचस्पति की उपाधि भी प्रदान की गई. काशी विश्वविद्यालय द्वारा उन्हें डी. लिट उपाधि से अलंकृत किया गया. साकेत के अलावा उन्होंने अन्य अनेक काव्य ग्रंथों की भी रचना की थी जैसे – जयद्रथ वध, यशोधरा, पंचवटी, सिद्धराज आदि. हम यहाँ राष्ट्रकवि को अपनी श्रद्धांजलि देते हुए उनके महान कृतित्व से कुछ चुने हुए मोती प्रस्तुत करेंगे. Last edited by rajnish manga; 25-04-2013 at 11:47 PM. |
25-04-2013, 11:50 PM | #30 |
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Re: मोती और माणिक्य
खंड काव्य “सिद्धराज” का मंगलाचरण: iiश्रीगणेशायनम:ii सिद्धराज मंगलाचरण आप अवतीर्ण हुए दुःख देख जन के, भ्रातृ–हेतु राज्य छोड़, वासी बने वन के, राक्षसों को मार भार मेटा धरा-धाम का, बढ़े धर्म, दया-दान युद्ध-वीर राम का i |
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