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Old 24-10-2013, 11:09 PM   #11
Teach Guru
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बिग बी की दिलचस्प बातें

हरिवंशराय ने अपना उपनाम 'बच्चन' नहीं चुना होता, तो आज अमिताभ श्रीवास्तव कहलाते।

कविवर सुमित्रानंदन पंत ने बच्चन दंपति के प्रथम बालक का नाम रखा- अमिताभ। यानी सूर्य। अर्थात बुद्ध।

बच्चनजी के मित्र प्रो. अमरनाथ झा अमिताभ का नाम इंकलाब राय और अजिताभ का आजाद राय रखना चाहते थे।

कवि बच्चन ने महू और सागर में फौजी प्रशिक्षण लेकर लेफ्टिनेंट बनकर कंधे पर दो सितारे लगाने का हक पाया था।

बच्चन परिवार की नेहरू परिवार से आत्मीयता कराने में भारत कोकिला सरोजिनी नायडू ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

अमिताभ के चौथे जन्मदिन के मौके पर इंदिराजी अपने ढाई साल के बेटे राजीव को धोबी की फेंसी ड्रेस में लेकर आई थीं।

रानी के बाग में प्रवेश के लालच में अमिताभ ने अपने घर से चार आने चुराए थे।

हाईस्कूल की दीवार पर अमिताभ ने पेंसिल से लकीरें खींची, तो प्राचार्य रिचर्ड डूट ने उनकी हथेली पर बेंतें चलाई थीं।

अमिताभ छोटे भाई अजिताभ को अपनी साइकल के डंडे पर बैठाकर स्कूल ले जाते थे।

1955 में डॉ. बच्चन इंदौर आए थे। होलकर कॉलेज के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष डॉ. शिवमंगलसिंह सुमन ने उन्हें कवि सम्मेलन की अध्यक्षता के लिए आमंत्रित किया था।

नेहरूजी ने बच्चन परिवार को तीन मूर्ति भवन में चाय पर आमंत्रित किया। यहीं अमिताभ-अजिताभ, राजीव-संजय से पुनः मिले और दोस्त बने।

अमिताभ की पहली नौकरी की पगार थी पाँच सौ रुपए। कलकत्ता से नौकरी छोड़कर जब मुंबई गए, तो अंतिम नौकरी का वेतन उन्हें एक हजार छः सौ अस्सी रुपए महीने मिलता था।

बच्चनजी जब लंदन जाने लगे, तो अमिताभ ने कहा- लंदन से मेरे लिए एक बंदूक जरूर लाना।

अमिताभ-अजिताभ कलकत्ता निवास के दौरान मटरगश्ती करते और खूब सारे नाटक-फिल्में देखते थे। लेकिन मुंबइया मसाला सिनेमा के कटु आलोचक थे।

अमिताभ अपनी मित्र मंडली में मसखरी अदाओं से सबका मनोरंजन करते थे। सामूहिक लंच के समय अमिताभ का वनमैन-शो होता था।

अमिताभ का मुंबई के रूपतारा स्टूडियो में स्क्रीन टेस्ट फिल्मकार मोहन सैगल ने किया था। उसके नतीजे आज तक अमिताभ को नहीं बताए गए हैं।

अमिताभ बच्चन का ख्वाजा अहमद अब्बास ने जब फिल्म सात हिन्दुस्तानी के लिए चयन किया, तो उन्हें नहीं मालूम था कि ये साहबजादे डॉ. हरिवंशराय बच्चन के बेटे हैं।

सात हिन्दुस्तानी फिल्म में काम के बदले अमिताभ को पाँच हजार रुपए मेहनताना मिला था।

फिल्म सात हिन्दुस्तानी दिल्ली के शीला सिनेमा में अमिताभ ने अपने माता-पिता के साथ देखी थी। वे कुरता-पायजामा पहनकर आए थे।

सात हिन्दुस्तानी देखकर मीना कुमारी ने अमिताभ की तारीख की, तो वे लजा गए थे।

जलाल आगा की विज्ञापन कंपनी में अपनी आवाज उधार देने के बदले अमिताभ को प्रति विज्ञापन पचास रुपए मिलते थे। उस समय की यह पर्याप्त रकम थी।

फिल्मों में काम की तलाश और खाली जेब के दौरान अमिताभ वर्ली की सिटी बेकरी से बिस्किट-टोस्ट के कट-पीस आधे दाम में खरीदकर चाय के साथ खाते और अपना गुजारा करते थे।

अमिताभ की शानदार आवाज के कारण सुनील दत्त ने फिल्म रेशमा और शेरा में उन्हें गूँगे का रोल महज इसलिए दिया था कि उनकी संवाद अदायगी कमजोर साबित न हो?

वहीदा रहमान को अमिताभ अपनी सर्वोत्तम पसंद की अभिनेत्री मानते हैं। लेकिन वहीदाजी की शिकायत है कि अमिताभ को फिल्म लावारिस वाला गाना- मेरे अँगने में तुम्हारा क्या काम है- नहीं गाना चाहिए था।

चरित्र अभिनेता ओमप्रकाश और खलनायक प्राण ने अमिताभ के साथ अभिनय करते हुए यह घोषणा की थी कि यह कलाकार एक दिन ग्रेट स्टार बनेगा।

लगातार कई फिल्में पिट जाने से अमिताभ को फिल्म इंडस्ट्री में अपशकुनी-हीरो माना जाने लगा था। यह फिल्म जंजीर (1973) के पहले की बात है।

जंजीर फिल्म हिट हुई और अमिताभ-जया शादी के बंधन में बँध गए।
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Old 24-10-2013, 11:10 PM   #12
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बॉलीवुड की दिलचस्प बातें

* श्रीदेवी और जूही चावला दोनों के बेटियों का नाम जाह्नवी है.
* अनिल कपूर का परिवार मुंबई आने पर राज कपूर के गेरेज में रहा करता था.
* धर्मेन्द्र सुरैयाजी ( देव साहब की प्रेमिका ) के बहुत बड़े फैन थे.उन्होंने मीलों दूर जाकर उनकी फिल्म दिल्लगी 40 बार देखी थी .
* शोले की शूटिंग पर धर्मेन्द्र लाइट बॉय को पैसे देते थे की वो उनका शोट गलत करें और वो बार-बार हेमाजी को बाहों में भर सकें .
* 'मेरा नाम जोकर ' पहली हिंदी फिल्म थी जिसमे दो इंटरवल थे.
* श्रीदेवी ने 13 साल की उम्र में 'मून्द्रू मोदिछु ' फिल्म में रजनीकांत की सौतेली माँ की भूमिका निभाई थी.
* 'कहो न प्यार है ' को २००२ में सबसे ज्यादा अवार्ड्स (92 ) जितने के लिए गिनीज बुक में जगह मिली थी.
* राज कपूर खुद अपने पिता की फिल्म कम्पनी में क्लेपर बॉय का काम करते थे.
* ऋतिक रोशन कोयला फिल्म की शूटिंग में assistant थे.उन्हें सेट पर कोई राकेश रोशन के बेटे के रूप में नहीं जानता था. कुछ दिन बाद में कलाकारों को मालूम पड़ा .
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Old 24-10-2013, 11:10 PM   #13
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हिंदी मनोरंजन का ट्रेंड
4 मिनट स्वित्ज़रलैंड + लन्दन + न्यूज़ीलैण्ड + कनाडा = हिंदी मूवी का एक गाना
रोना धोना x बेवफाई x बदले की आग = महिलाओं का favourite सीरियल .
एक सगाई + दो शादियाँ +तीन शादी गीत +300 रिश्तेदार + राजमहल जैसे घर = राजश्री की फिल्म
स्वित्ज़रलैंड + पंजाब +ढेर गाने = यशराज बेनर की फिल्म
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Old 24-10-2013, 11:31 PM   #14
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मित्र, यदि मैं कहूँ कि आपने आज के दिन फोरम पर धूम मचा दी है तो अतिशयोक्ति न होगी. सर्वप्रथम, आपने आज के दिन का इतिहास आकर्षक अंदाज़ में दे कर अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज की. उसके बाद बॅालीवुड के उससे जुड़े नये पुराने कलाकारों के बीसियों मजेदार किस्से प्रस्तुत कर के हम लोगों का दिल जीत लिया है. इतनी सूचनायें फोरम पर शेयर करने के लिये आपका धन्यवाद.
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Old 25-10-2013, 12:16 AM   #15
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Originally Posted by rajnish manga View Post
मित्र, यदि मैं कहूँ कि आपने आज के दिन फोरम पर धूम मचा दी है तो अतिशयोक्ति न होगी. सर्वप्रथम, आपने आज के दिन का इतिहास आकर्षक अंदाज़ में दे कर अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज की. उसके बाद बॅालीवुड के उससे जुड़े नये पुराने कलाकारों के बीसियों मजेदार किस्से प्रस्तुत कर के हम लोगों का दिल जीत लिया है. इतनी सूचनायें फोरम पर शेयर करने के लिये आपका धन्यवाद.

आपका बहुत बहुत धन्यवाद भाई ..
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Old 28-10-2014, 07:15 AM   #16
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मजबूरी में मुमताज जया जैसी अभिनेत्रियों को फिल्में दी गईं !


हिन्दी सिनेमा में ऐसा बहुत बार हुआ है जब मजबूरी के नाम पर अभिनेत्रियों से फिल्में साइन कराई गई हैं. मुमताज, रेखा, जया यहां तक आज की सुपरस्टार कही जाने वाली अभिनेत्रियां ऐश्वर्या राय बच्चन और विद्या बालन को भी मजबूरी के कारण फिल्में दी गईं.


‘अमिताभ की पत्नी जया और प्रेमिका रेखा ना बनतीं’

अमिताभ बच्चन की निजी जिंदगी से जुड़ी हुई फिल्म ‘सिलसिला’ में जया बच्चन ने पत्नी और रेखा ने प्रेमिका की भूमिका निभाई थी पर क्या आप जानते हैं कि यह रोल उन्हें मजबूरी में दिया गया था. निर्देशक यश चोपड़ा ने ‘सिलसिला’ फिल्म के लिए परवीन बाबी और स्मिता पाटिल को साइन कर लिया था पर फिर बाद में उन्होंने अचानक बिना किसी को कारण बताए इस फिल्म के लिए जया और रेखा को साइन कर लिया जिसके बाद स्मिता पाटिल काफी नाराज भी रहने लगी थीं.


दीवार में शशि और अमिताभ की मां वैजयन्तीमाला होतीं यदि…….

यश चोपड़ा की सुपरहिट फिल्मों में एक नाम ‘दीवार’ फिल्म का भी है जिसमें शत्रुघ्न सिन्हा और नवीन निश्चल को साइन किया जाना था पर उनकी जगह अमिताभ बच्चन और शशि कपूर साइन किया गया जिस कारण वैजयन्तीमाला ने मां का किरदार निभाने से मना कर दिया और अंत में जाकर निरूपा रॉय ने फिल्म दीवार में मां का किरदार निभाया.


मुमताज को ‘खिलौना’ सिर्फ मजबूरी के नाम पर मिली

खिलौना फिल्म के बारे में कहा जाता है कि उस समय में ऐसी कोई अभिनेत्री नहीं थी जिसने इस फिल्म में अभिनय करने से मना ना किया हो इसलिए अंत में जाकर मुमताज ने खिलौना फिल्म में अभिनय करने के लिए हां की और इसी फिल्म के लिए उन्हें ‘सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री’ का फिल्मफेयर पुरस्कार दिया गया था.


जया ने ना नहीं की होती तो श्रीदेवी को नहीं मिलती ‘नगीना‘

अपने समय की बेहद हिट रही फिल्म ‘नगीना’ ने श्रीदेवी को घर-घर की चहेती बना दिया था और यही वो फिल्म थी जब श्रीदेवी का नाम सुपरहिट अभिनेत्रियों की लिस्ट में लिया जाने लगा था लेकिन जया बच्चन के सांपों के डर के कारण उन्होंने इस फिल्म को साइन करने से मना कर दिया था जिस कारण श्रीदेवी को इस फिल्म के लिए साइन किया गया.


ऐश्वर्या को नहीं विद्या बालन को मिली ‘परिणीता‘

इस बात में कोई शक नहीं है कि ऐश्वर्या खूबसूरत हैं इसलिए फिल्मकार विधू विनोद चोपड़ा अपनी फिल्म ‘परिणीता’ के लिए ऐश्वर्या राय बच्चन को साइन करना चाहते थे लेकिन निर्देशक प्रदीप सरकार के समझाने पर ‘परिणीता’ फिल्म के लिए ऐश्वर्या को नहीं विद्या बालन को साइन किया गया


चांदनी में काम करने से माधुरी ने भी ना किया

यश चोपड़ा की सुपरहिट फिल्म ‘चांदनी’ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का मौका श्रीदेवी और जूही चावला को मिला पर इन्हें साइन करने के पीछे का कारण यह था कि क्योंकि इस फिल्म को साइन करने के लिए माधुरी तक ने ना कर दिया था.
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Old 28-10-2014, 07:18 AM   #17
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पति तो मशहूर रहे पर पत्नियों को गुमनामी मिली !



कई सालों तक एक-दूसरे से सच्चा प्यार किया तब जाकर शादी करने का फैसला लिया पर जब शादी हो गई तो कुछ सालों बाद तलाक ले लिया. समाज कितना भी आगे बढ़ जाए पर तलाक लेने की सजा पत्नियों को मिलती है. पति की शख्सियत वैसी ही बनी रहती है जैसी शादी से पहले थी पर पत्नी गुमनामी के अंधेरे में कहीं गुम हो जाती है.


शाहिद कपूर की मां को मिली गुमनामी

शाहिद कपूर की मां नीलिमा अजीम को एक्टर पंकज कपूर से तलाक के बाद गुमनामी मिली. एक्टर पंकज कपूर की शादी नीलिमा अजीम के साथ दस सालों तक चली थी पर सालों बाद पंकज ने नीलिमा को तलाक दे सुप्रिया पाठक के साथ दूसरी शादी रचा ली थी. आज नीलिमा अजीम का नाम किसी अंधेरे में गुम है.





सैफ ने अमृता को गुमनामी और अंधेरा दिया

सैफ का नाम बॉलीवुड में प्रेम लीलाएं करने के लिए जाना जाता है. थोड़े समय पहले सैफ ने करीना कपूर से शादी की थी. अमृता सिंह सैफ अली खान की पहली पत्नी थीं जो उनसे लगभग 12 साल बड़ी थीं. जब से सैफ और अमृता का तलाक हुआ है तब से लेकर आज तक अमृता का नाम शायद ही कहीं सुनाई पड़ता है.

राज बब्बर ने किए अलग रास्ते

नादिरा बब्बर यह नाम आपने आज से कई सालों पहले सुना होगा. नादिरा और राज बब्बर की मुलाकात तब हुई जब राज बब्बर नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में पढ़ाई कर रहे थे. कई सालों बाद जब राज बब्बर को अभिनेत्री स्मिता पाटिल से प्यार हुआ तो उन्होंने नादिरा बब्बर को तलाक दे हमेशा के लिए गुमनामी के अंधेरे में छोड़ दिया.

आमिर का दिल किरण पर आया

रीना दत्त और आमिर खान का प्रेम विवाह था जिस कारण उनका रिश्ता खुशी-खुशी 16 साल तक चला पर फिल्म ‘लगान’ के सेट पर आमिर खान को किरण राव से प्यार हो गया और उन्होंने रीना दत्त को तलाक दे दिया पर आज भी रीना दत्त आमिर खान के घर आती-जाती रहती हैं.


शबाना आजमी के लिए छोड़ा


बॉलीवुड के मशहूर गीत लेखक जावेद अख्तर ने हनी ईरानी को तलाक तब दिया जब उन्हें शबाना आजमी से प्यार हो गया था. जावेद अख्तर और हनी ईरानी के फरहान और जोया अख्तर नाम के दो बच्चे भी हैं. हनी ईरानी भी अच्छी लेखिका हुआ करती थीं लेकिन उन्होंने जावेद अख्तर से तलाक के बाद कुछ भी खास और नया नहीं लिखा.



तोहफे में मिला दुख

आरती बजाज को तोहफे में फिल्म निर्देशक और निर्माता अनुराग कश्यप से दुख मिला है. अनुराग कश्यप से तलाक से पहले आरती बजाज उनकी हर फिल्म में काम किया करती थीं लेकिन उनसे तलाक के बाद आरती बजाज किसी भी फिल्म में निर्देशन करती हुई नजर नहीं आईं. आरती ने सालों बाद फिल्म ‘घनचक्कर’ में फिल्म एडिटर के तौर पर काम किया.

वक्त बदला पर बहुत कुछ ऐसा है जो नहीं बदला. कविता कुंद्रा और नंदिता का नाम शायद तीन-चार साल से आपको सुनाई नहीं दे रहा होगा. कविता कुंद्रा, राज कुंद्रा की पहली पत्नी हैं और उनसे राज कुंद्रा ने तलाक शिल्पा शेट्टी के प्यार में पड़ कर ले लिया. फैशन डिजाइनर नंदिता, संजय कपूर की पत्नी थीं लेकिन करिश्मा कपूर के प्यार की खातिर संजय ने नंदिता को तलाक दे दिया.
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Old 28-10-2014, 07:23 AM   #18
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इंडियन सिनेमा के इतिहास से जुड़े बेहद रोमांचक सीक्रेट

इंडियन सिनेमा अपने सौ वर्ष पूरे कर चुका है और पिछले सौ वर्षों में बॉलिवुड ने विभिन्न प्रकार के उतार-चढ़ावों का सामना किया है. इसके अलावा बहुत सी ऐसी घटनाएं भी घटीं जो सिनेमा के इतिहास में एक मील का पत्थर बन गईं, जैसे:


भारत के पहले डेली सोप और सेंसरशिप की शुरुआत: सिनेमा के प्रारंभिक युग में जो भी फिल्में बनती थी वह पौराणिक और आध्यात्म विषयों पर ही आधारित होती थीं. यही वजह है कि भारत का अपना पहला धारावाहिक जिसका नाम राम वनवास था, भगवान राम के जीवन पर आधारित था. इस धारावाहिक का निर्माण श्रीराम पाटनकर ने किया था. यह सीरियल चार अलग-अलग भागों में बनाया गया था. वर्ष 1918 में ब्रितानी एक्ट की तर्ज पर भारत में भी सेंसरशिप की शुरुआत कर फिल्मों के लिए सेंसरशिप और लाइसेंसिंग की व्यवस्था की गई थी.

पहली सामाजिक हास्य फिल्म: यह वह दौर था जब भारतीय लोगों पर भी पाश्चात्य संस्कृति हावी हो चुकी थी. ब्रिटिश शासन काल के अंतर्गत रहने के कारण भारतीयों का रहन-सहन पूरी तरह विदेशी हो गया था. भारत की पहली हास्य फिल्म की पटकथा भी इसी विषय पर आधारित थी. द इंगलैंड रिटर्न नाम की इस फिल्म का निर्माण धीरेन गांगुली ने किया था. फिल्म की कहानी एक ऐसे भारतीय पर केंद्रित थी जो बहुत लंबे समय बाद विदेश से अपने देश लौटता है. वापस लौटने के बाद उसके साथ क्या-क्या घटनाएं घटती है उसे व्यंग्यात्मक तरीके से प्रदर्शित किया गया था.

समाज हित में बनी पहली फिल्म: मराठी निर्माता बाबूराव पेंटर ने पहली सोशल फिल्म का निर्माण किया था. सवकारी पाश’ नाम की इस फिल्म की कहानी एक गरीब किसान और धूर्त जमींदार पर आधारित थी. फिल्म में एक लालची जमींदार एक किसान को उसकी जमीन से बेदखल कर देता है. गरीबी से लड़ता उस किसान का परिवार शहर पहुंचकर मजदूरी करने लगता है. इस फिल्म में गरीब किसान का किरदार वी. शांताराम ने निभाया था.

स्वदेशी फिल्म कंपनियों का आगमन और टॉकीज की शुरुआत: वर्ष 1929 में वी. शांताराम द्वारा कोल्हापुर में प्रभात कंपनी की स्थापना की गई. इसके अलावा चंदूलाल शाह ने बंबई में रंजीत फिल्म कंपनी का शुभारंभ किया. अपने 27 वर्षों के सफर में प्रभात कंपनी ने 45 फिल्मों का निर्माण किया वहीं 1970 के दशक तक रंजीत स्टूडियो फिल्मों का निर्माण करता रहा.


फिल्मों में प्लेबैक सिंगिंग की शुरूआत: फिल्मों के शुरुआती चरण में नायक-नायिका स्वयं गीत गाते थे. उन्हें अभिनय के साथ-साथ गायन पर भी ध्यान देना होता था. वर्ष 1935 में पहली बार नितिन बोस ने धूप-छांव फिल्म के जरिए प्लेबैक सिंगिंग की तकनीक विकसित की.

स्वप्न दृश्य को दिखाती पहली फिल्म: राजकपूर और नर्गिस अभिनीत फिल्म आवारा, जिसे वर्ष 1951 में प्रदर्शित किया गया था. इसमें पहली बार नायक और नायिका को स्वप्न में गीत गाते दिखाया गया था. यह अपनी तरह का पहला प्रयोग था. फिल्म का बहुचर्चित गाना घर आया मेरा परदेसी में राज कपूर और नर्गिस सपने में गाते हैं.

फिल्म में पहली बार फ्लैशबैक का प्रयोग: वर्ष 1934 में प्रदर्शित फिल्म रूपलेखा में पहली बार फ्लैशबैक का प्रयोग किया गया था. इस फिल्म में पी.सी. बरुआ और जमुना मुख्य भूमिका में थे. फिल्म के बाद इन दोनों ने विवाह भी कर लिया था. जमुना, पी.सी बरुआ की फिल्म देवदास में पारो भी बनी थीं.

पहली सेंसर्ड फिल्म: ऑर्फंस ऑफ द स्टॉर्म पहली ऐसी फिल्म थी जिस पर सेंसर की कैंची चलाई गई थी.
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समय के साथ-साथ बदली बॉलिवुड की तकदीर




यूं तो हिंदी फिल्मों का सफर 1930 के दशक से ही शुरू हो गया था लेकिन बॉलिवुड को अपनी असल पहचान हासिल करने के लिए बहुत लंबा संघर्ष करना पड़ा. वर्षों लंबे चले इस संघर्ष में हिंदी फिल्म इंडस्ट्री ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं. अपने अथक और सफल प्रयासों के बल पर आज बॉलिवुड इंडस्ट्री प्रमुखता के साथ फिल्म निर्माण के क्षेत्र में अपनी जड़ें जमा चुकी है.

तकनीक और सुविधाओं में हुई उल्लेखनीय प्रगति के परिणामस्वरूप हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के शुरुआती दौर से लेकर उसके वर्तमान स्वरूप में काफी हद तक भिन्नता देखी जा सकती है. लेकिन कहते हैं ना हर समय की अपनी एक खासियत होती है. यही वजह है कि ब्लैक एण्ड व्हाइट और ग्लैमर विहीन होने के बावजूद सिनेमा के हर युग की कुछ का कुछ विशेषता अवश्य रही है. हर दशक के अपने सुपरस्टार होते हैं और कुछ ऐसी फिल्में जो इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाती हैं. बॉलिवुड की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को 1950 के दशक से पहचान मिलने लगी थी. बॉलिवुड की विशेषताएं और खूबियों को 1950 से लेकर 2000 तक के सफर में निम्नलिखित बिंदुओं के द्वारा स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है.

1950 का स्वर्णिम काल – निर्विवादित रूप से वर्ष 1950 से लेकर 1960 के समय को बॉलिवुड का सुनहरा युग कहा जा सकता है. यह वह समय था जब बॉलिवुड में भी अभिनय, संगीत और कविताओं के क्षेत्र में अद्भुत प्रगति हुई. इस दौरान हिंदी सिनेमा को उसके कुछ ऐसे कलाकार भी मिले जिन्होंने अपने अभिनय के जादू से दर्शकों को बांध कर रखा. वहीदा रहमान, राज कपूर, नर्गिस, गुरु दत्त, नूतन, अशोक कुमार, मधुबाला, मीना कुमारी ऐसे ही कुछ नाम हैं जिनकी खूबसूरती और यादगार अभिनय का जादू आज भी फिल्म प्रशंसकों पर छाया हुआ है.

इस दौर की सबसे खूबसूरत विशेषता है इस दौरान प्रदर्शित हुई कागज के फूल, श्री 420, जिस देश में गंगा बहती है, आवारा आदि जैसी फिल्में. इतना ही नहीं इस सुनहरे युग में लता मंगेशकर, शंकर जयकिशन, मुकेश, आर.डी बर्मन, मन्ना डे, हेमंत कुमार, किशोर कुमार आदि ने संगीत के क्षेत्र में भी अपना अतुलनीय योगदान दिया. आज हम जिसे बॉलिवुड कहते हैं उसका आगमन सिनेमा के इसी काल में हो गया था.

1960 की रंगीन दुनिया – यह वह समय था जब ब्लैक एण्ड व्हाइट सिनेमा को अपने रंग मिलने लगे थे. वर्ष 1959 के अंत तक आते-आते फिल्मों का स्वरूप भी पूरी तरह बदल गया. परंपरागत अभिनय और संगीत से इतर बॉलिवुड में कई तरह प्रयोग भी किए जाने लगे. पहले जहां हिंदी फिल्मों में केवल शालीनता को ही महत्व दिया जाता था वहीं इस दौरान फिल्म को ग्लैमर का तड़का दिए जाने की पहल की जाने लगी. हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को माला सिन्हा, आशा पारेख, शर्मिला टैगोर जैसी अभिनेत्रियां मिलीं जिन्होंने अपनी सुंदरता और बेहतरीन अभिनय क्षमता से दर्शकों को आकर्षित किया. इस दशक की सबसे बड़ी खासियत रही हेलन, जिन्होंने अभिनय के क्षेत्र में अपने लिए एक ऐसी जगह बना ली थी जो कभी कोई और हासिल ही नहीं कर पाया.

मनोज कुमार, शम्मी कपूर, धर्मेंद्र आदि इस दौर के सबसे लोकप्रिय अभिनेता रहे.

1970 का युवा बॉलिवुड – 1970 के दशक को अगर बॉलिवुड की युवावस्था कहा जाए तो कुछ गलत नहीं होगा. फिल्म इंडस्ट्री की शुरुआत से देखा जाए तो 1970 का दशक को सबसे बेहतरीन दौर की संज्ञा से नवाजा जा सकता है. इस दशक में जितनी भी फिल्में रिलीज हुईं उनमें एक्शन. ड्रामा, रोमांस प्रमुख रूप से शामिल थे. 70 तक पहुंचते-पहुंचते सिनेमा का स्वरूप पूरी तरह बदल कर काफी हद तक विस्तृत हो गया था. अमिताभ बच्चन, राजेश खन्ना, रेखा, हेमा मालिनी, मुमताज, विनोद खन्ना आदि इस दशक के बड़े नामों में शुमार हैं. शोले जैसी ब्लॉक बस्टर मूवी भी 70 के दशक में ही रिलीज हुई थी.

1980 की डार्क इरा – समय के साथ-साथ प्रगति और ख्याति प्राप्त बॉलिवुड के लिए 1980 का दशक एक बुरे सपने से कम नहीं रहा. सामान्य दृष्टिकोण के अनुसार यह वह दौर था जब फिल्मों में ना तो कहानी हुआ करती थी और ना ही उनका स्क्रीन प्ले ही दमदार होता था. इतना ही नहीं संगीत भी कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाया था और साथ ही अभिनेता और अभिनेत्रियां भी पैसे कमाने के लिए ही फिल्में करती थीं. हालांकि कुछ फिल्में ऐसी थीं जिन्हें दर्शकों का अच्छा रिस्पॉंस मिला परंतु इनकी संख्या बहुत कम थी.

1990 में बॉलिवुड का फॉरेन कनेक्शन – यह समय बॉलिवुड के लिए बहुत खास था. देखा जाए तो यही वह समय था जब बॉलिवुड प्रशंसकों को पॉप और रॉक म्यूजिक की पहचान होने लगी थी. अब तक जितनी भी फिल्में बनती थीं वह भारतीय पृष्ठभूमि पर ही आधारित होती थीं लेकिन इस दशक में एन.आर.आई. और विदेशों में बसे भारतीयों को आकर्षित करने के लिए भी फिल्मों का निर्माण हुआ. अब फिल्मों की शूटिंग केवल भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी की जाती थी. सलमान खान, शाहरुख खान, आमिर खान, अक्षय कुमार, करिश्मा कपूर, रानी मुखर्जी, काजोल आदि इस दौर के लोकप्रिय सितारे हैं.


2000 में चला थ्री डी और तकनीक प्रधान फिल्मों का जादू – इस दशक की सबसे मुख्य बात रही बॉलिवुड में बढ़ता तकनीकों का प्रचलन. अभिनय और संगीत के इतर 2000 में जितना ध्यान तकनीकों के विकास की ओर दिया गया है शायद किसी और क्षेत्र में नहीं दिया गया. मेक-अप से लेकर संवाद अदायगी तक लगभग सब कुछ तकनीक और सुविधाओं के कारण ही और अधिक ग्लैमरस हो पाए हैं.
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Default Re: दिलचस्प बॉलीवुड

पूरे एक वर्ष के बाद इस सूत्र में फिर से रौनक आई है. हम चाहते हैं कि यह सूत्र इसी प्रकार शाद रहे, आबाद रहे.
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