17-08-2013, 07:46 PM | #1 |
VIP Member
|
असरारुल हक़ "मजाज़" उपनाम मजाज़ लखनवी
मजाज़ का जन्म 19 अक्तूबर,1911 को उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के रूदौली गांव में हुआ था। उनके वालिद का नाम चौधरी सिराज उल हक था। चौधरी सिराज उल हक अपने इलाके में पहले आदमी थे, जिन्होंने वकालत की डिग्री हासिल की थी। वे रजिस्ट्री विभाग में सरकारी मुलाजिम थे। वालिद चाहते थे कि उनका बेटा इन्जीनियर बने। इस हसरत से उन्होंने अपने बेटे असरार का दाखिला आगरा के सेण्ट जांस कालेज में इण्टर साइन्स में कराया। यह बात कोई 1929 की है। मगर असरार की लकीरों में तो शायद कुछ और ही लिखा था। आगरा में उन्हें फानी , जज्बी, मैकश अकबराबादी जैसे लोगों की सोहबत मिली। इस सोहबत का असर यह हुआ कि उनका रूझान बजाय इन्जीनियर बनने के गज़ल लिखने की तरफ हो गया। आगरा के बाद वे 1931 में बी.ए. करने अलीगढ़ चले गए...... अलीगढ़ का यह दौर उनके जीवन का निर्णायक मोड़ साबित हुआ। इस शहर में उनका राब्ता मंटो, इस्मत चुगताई, अली सरदार ज़ाफरी , सिब्ते हसन, जाँ निसार अख़्तर जैसे नामचीन शायरों से हुआ ,इनकी सोहबत ने मजाज़ के कलाम को और भी कशिश और वुसअत बख्शी । यहां उन्होंने अपना तखल्लुस ‘मजाज़’ अपनाया। इसके बाद मजाज़ गज़ल की दुनिया में बड़ा सितारा बनकर उभरे और उर्दू अदब के फलक पर छा गये। अलीगढ़ में मजाज़ की आत्मा बसती थी। कहा जाता है कि मजाज़ और अलीगढ़ दोनों एक दूसरे के पूरक थे....... एक दूसरे के लिए बने थे। अपने स्कूली जीवन में ही मजाज़ अपनी शायरी और अपने व्यक्तित्व को लेकर इतने मकबूल हो गए थे कि हॉस्टल की लड़कियां मजाज़ के गीत गाया करती थीं और उनके साथ अपने सपने बुना करती थीं। डा0 अशरफ , अख्तर रायपुरी, सबत हसन, सरदार जाफरी, जज्बी और ऐसे दूसरे समाजवादी साथियों की सोहबत में मजाज भी तरक्की पसंद तथा इंकलाबी शायरों की सोहबत में शामिल हो गये । ऐसे माहौल में मजाज ने ’इंकलाब’ जैसी नज्म बुनी । इसके बाद उन्होने रात और रेल ,नजर, अलीगढ, नजर खालिदा ,अंधेरी रात का मुसाफिर ,सरमायादारी,जैसे रचनाएं उर्दू अदबी दुनिया को दीं। मजाज़ अब बहुत मकबूल हो चुके थे। 1935 में वे आल इण्डिया रेडियो की पत्रिका ‘आवाज’ के सहायक संपादक हो कर मजाज़ दिल्ली आ गये। दिल्ली में नाकाम इश्क ने उन्हें ऐसे दर्द दिये कि जो मजाज़ को ताउम्र सालते रहे। यह पत्रिका बमुश्किल एक साल ही चल सकी, सो वे वापस लखनऊ आ गए। इश्क में नाकामी से मजाज़ ने शराब पीना शुरू कर दिया। शराब की लत इस कदर बढ़ी कि लोगों ने कहना शुरू कर दिया कि मजाज़ शराब को नहीं, शराब मजाज़ को पी रही है। लखनऊ में 1939 में सिब्ते हसन ,सरदार जाफरी और मजाज़ ने मिलकर ’नया अदब’ का सम्पादन किया जो आर्थिक कठिनाईयों की वजह से ज्यादा दिन तक नहीं चल सका। कुछ दिनों बाद में वे फिर दिल्ली आ गये और यहां उन्होंने ‘हार्डिंग लाइब्रेरी’ में असिस्टेन्ट लाइब्रेरियन के पद पर काम किया, लेकिन दिल्ली उन्हें रास न आई। दिल्ली से निराश होकर मजाज़ बंबई चले गए,लेकिन उन्हें बंबई भी रास न आया। बम्बई से कुछ समय बाद मजाज लखनऊ वापस आ गये। लखनऊ उन्हें बेहद पसन्द था। लखनऊ के बारे में उनकी यह नज्म उनके लगाव को खूबसूरती से प्रकट करती है। फिरदौसे हुस्नो इश्क है दामाने लखनऊ आंखों में बस रहे हैं गजालाने लखनऊ एक जौबहारे नाज को ताके है फिर निगाह वह नौबहारे नाज कि है जाने लखनऊ। लखनऊ आकर वे बहुत ज्यादा शराब पीने लगे, जिससे उनकी हालात लगातार खराब होती गई। उनकी पीड़ा ,दर्द घुटन अकेलापन ऐसा था कि वे ज्यादातर खामोश रहते थे। शराब की लत उन्हें लग चुकी थी,जो उनके लिये जानलेवा साबित हुयी। 1940 से पहले नर्वस ब्रेकडाउन से लेकर 1952 के तीसरे ब्रेकडाउन तक आते आते वे शारीरिक रूप से काफी अक्षम हो चुके थे। 1952 के तीसरे ब्रेकडाउन के बाद वे जैसे-तैसे स्वस्थ हो ही रहे थे कि उनकी बहन साफिया का देहान्त हो गया यह सदमा उन्हें काफी भारी पडा़। 5 दिसम्बर 1955 को मजाज ने आखिरी सांस ली। महज 44 साल का यह कवि अपनी उम्र को चुनौती देते हुए बहुत बडी रचनाएं कह के दुनिया से विदा हुआ। उर्दू साहित्य के कीट्स माने जाने वाले मजाज़ को अदबी दुनिया का सलाम, जब तक उर्दू साहित्य रहेगा , मजाज़ उसी इज्ज़त -मोहब्बत के साथ गुनगुनाये जाते रहेंगे। फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ ने बहुत पहले कहा था कि वे क्रान्ति के ढिढो़रची की बजाय ‘क्रांति के गायक’ हैं।
__________________
Disclamer :- All the My Post are Free Available On INTERNET Posted By Somebody Else, I'm Not VIOLATING Any COPYRIGHTED LAW. If Anything Is Against LAW, Please Notify So That It Can Be Removed. |
17-08-2013, 08:35 PM | #2 |
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100 |
Re: असरारुल हक़ "मजाज़" उपनाम मजाज़ लखनवी
1 1 1 1 2 2 2 2 3 3 3 3 4 4 4 4
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
17-08-2013, 08:36 PM | #3 |
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100 |
Re: असरारुल हक़ "मजाज़" उपनाम मजाज़ लखनवी
वसीम बरेलवी
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 Last edited by jai_bhardwaj; 18-08-2013 at 07:20 PM. |
17-08-2013, 08:36 PM | #4 |
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100 |
Re: असरारुल हक़ "मजाज़" उपनाम मजाज़ लखनवी
वसीम बरेलवी / / /
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 Last edited by jai_bhardwaj; 18-08-2013 at 07:20 PM. |
17-08-2013, 08:37 PM | #5 |
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100 |
Re: असरारुल हक़ "मजाज़" उपनाम मजाज़ लखनवी
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
17-08-2013, 08:37 PM | #6 |
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100 |
Re: असरारुल हक़ "मजाज़" उपनाम मजाज़ लखनवी
उसने जब कहा मुझसे गीत एक सुना दो ना
सर्द है फिजा दिल की, आग तुम लगा दो ना क्या हसीं तेवर थे, क्या लतीफ लहजा था आरजू थी हसरत थी हुक्म था तकाजा था गुनगुना के मस्ती में साज़ ले लिया मैं ने छेड़ ही दिया आख़िर नगमा-ऐ-वफ़ा मैंने यास का धुवां उठा हर नवा-ऐ-खस्ता से आह की सदा निकली बरबत-ऐ-शिकस्ता से
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
17-08-2013, 08:56 PM | #7 |
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100 |
Re: असरारुल हक़ "मजाज़" उपनाम मजाज़ लखनवी
एक बार 'जोश' साहब ने मजाज़ साहब से कहा था कि 'मजाज़ साहब आप घड़ी रख कर (अर्थात शराब पीने का भी समय निश्चित कर के) शराब पिया करो।' इस पर मजाज़ साहब ने तपाक से जवाब दिया कि 'जोश साहब मैं तो घड़ा रख कर शराब पीता हूँ।'
एक बार जोश साहब ने 'पिण्डनामा' नामक पत्रिका में मजाज़ साहब के लिए एक सन्देश लिखा कि एक सांस में शराब पीते हुए कश्मीर के शेख अब्दुल्ला की प्रशंसा में कुछ (लिखें) कहें। मजाज़ साहब ने जवाब लिखा :-- नुक्त हैरान, दहन दरीदा है यह शुनीदा नहीं है, दीदा है रिन्द-ए-बर्बाद को नसीहत है शेख की शान में कसीदा है
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
17-08-2013, 09:10 PM | #8 |
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100 |
Re: असरारुल हक़ "मजाज़" उपनाम मजाज़ लखनवी
मजाज़ साहब की मृत्यु के विषय में ऐसी जानकारी प्रचलित जिससे हृदय 'दोस्ती' के नाम से घृणा करने लगता है। कहते हैं कि वह भयंकर जाड़े की एक रात थी जब मजाज़ साहब अपने दोस्तों के साथ लखनऊ के एक होटल की खुली छत पर बैठ कर शराब पी रहे थे। अत्यधिक शराब पीने के बाद जब मजाज़ साहब नशे में चूर हो कर एक तरफ लुढ़क गए तो उनके दोस्तों ने उन्हें उसी हालत में होटल की छत में छोड़ कर चले गए। रात में भीषण ठण्ड से उनकी मौत हो गयी।
मजाज़ साहब की एक उक्ति :- बहुत मुश्किल है दुनिया का संवरना तेरी ज़ुल्फ़ का पेंच-ओ-ख़म नहीं है कभी मजाज़ साहब ने लिखा था :- अब इसके बाद सुबह है और सुबह-ए-नौ 'मजाज़' हम पर है ख़तम शाम-ए-गरीबां-ए-लखनऊ ..
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
17-08-2013, 09:40 PM | #9 |
VIP Member
|
Re: असरारुल हक़ "मजाज़" उपनाम मजाज़ लखनवी
great updates jai bhai
__________________
Disclamer :- All the My Post are Free Available On INTERNET Posted By Somebody Else, I'm Not VIOLATING Any COPYRIGHTED LAW. If Anything Is Against LAW, Please Notify So That It Can Be Removed. |
17-08-2013, 10:44 PM | #10 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: असरारुल हक़ "मजाज़" उपनाम मजाज़ लखनवी
सूत्र की सामग्री के लिए बहुत बहुत धन्यवाद दीपू जी और जय भारद्वाज जी. फिल्म 'ठोकर' (1953) में तलत महमूद का गाया मजाज़ साहब का निम्नलिखित कलाम सुनिए. कृपया लॉग इन करें: http://www.youtube.com/watch?v=adeLKaJ6IhU |
Bookmarks |
|
|