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Old 21-01-2013, 11:20 PM   #211
jai_bhardwaj
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सर्वप्रथम: पञ्च द्वारा प्रेषित रचना :-

एक यक्ष प्रश्न खडा है मेरे सामने
पूछता है मुझसे कि मैं कौन हूँ?

क्या है मेरी पहचान ? क्या है मुझमे विशेष ?
जन्मा हूँ किसलिए मैं? क्या है जीवन का उद्देश्य?
सामने उसके खडा मैं सोचता हूँ,
पर हूँ निरुत्तर इसलिए मैं मौन हूँ
एक यक्ष प्रश्न खडा है मेरे सामने
पूछता है मुझसे कि मैं कौन हूँ?

यह यक्ष प्रश्न ..........
मेरे अंतर्मन के अन्दर
अनुगुञ्जित हो हो कर
मेरी काया की हर ईंट पर
करता है प्रहार बार बार
मेरा काया भवन थर्राता है
कुछ शब्द उदभवित करता है

है आज कोई पहचान नहीं
मैं आज भले अनजान सही
किन्तु न कल होगा ऐसा
मैं पाऊँगा शिखर बिंदु
प्रति प्रयास मेरा ऐसा होगा
हे यक्ष प्रश्न! तब मैं तेरे
सारे प्रश्नों का दूँगा उत्तर
वह दिवा न है अब दूर बहुत
जब मैं स्वयं बनूँगा एक शिखर
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

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Old 21-01-2013, 11:22 PM   #212
jai_bhardwaj
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उपरोक्त कविता से प्रेरित हो कर मैंने 6 मनकों की जो "अभिनन्दन गीत माला" लिखी थी उसके चार (दो मनकों में शुद्ध पारिवारिक चित्रण है) मनके निम्नवत हैं:-

प्रथम:

अरुणांचल से उदित मिहिरकर, कोच्चि-तट पर पुकार रही
मन की लम्बित अभिलाषाएं, होंगी अब साकार यहीं
'अनजाने' हो, 'पहचान' नहीं, अपने इस भ्रम को दूर करो
शंकित मन को वीणा कर दो, दग्ध हृदय संतूर करो
दक्ष चित्त हो, दृढ प्रतिज्ञ हो, एक लक्ष्य का ध्यान करो
विजयी भाव हे भ्रातृ-श्रेष्ठ, भारतवर्ष का मान धरो
शिखर नहीं तुम शिखर-पुरुष हो, यक्ष-प्रश्न का क्षरण करो
घूँघट में खड़ी है विजयश्री, बढ़ो पञ्च तुम वरण करो
माताश्री के लाल सुनो, तुम पिताश्री के नंदन हो
भाइयों की गौरव-गाथा हो, अभिनन्दन हो, अभिनन्दन हो
-------------------------------- शत, शत, शत अभिनन्दन हो

(मिहिरकर-सूर्य की किरणें)
__________________
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Old 21-01-2013, 11:23 PM   #213
jai_bhardwaj
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द्वितीय:

कहाँ धनुष, तूणीर कहाँ है, कहाँ चित्त और ध्यान कहाँ है
कहाँ हृदय की अभिलाषा है, कहाँ लक्ष्य, संधान कहाँ है
भटक रहे हो, पञ्च कहाँ तुम, क्या तुममे मेधा अशेष है
भूल गए पहचान स्वयं की, यह भी क्या तुममे विशेष है
अनजानेपन भी भँवर तोड़ के, पुनः विशेषता लब्ध करो
विदित लक्ष्य का भेदन कर के, इस जग को स्तब्ध करो
वह लक्ष्य कहाँ है दूर तात! यह देखो बहुत सन्निकट है
आज सुअवसर है, सुयोग है और साथ में शकुन प्रकट हैं
मन-परिपथ के विद्युत तरंग, मेरी श्वासों के चन्दन हो
भारत के सीमा-रखवाले, अभिनन्दन हो, अभिनन्दन हो
------------------------ शत, शत, शत अभिनन्दन हो
(तूणीर=तरकस, लब्ध=प्राप्त)
__________________
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Old 21-01-2013, 11:25 PM   #214
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तृतीय:

आज धरा क्यों डोल गयी तब, प्रातः जब अलसाई सी थी
सिन्धु तरंगे उठी गगन तक, सुबह नींद जब छाई सी थी
आज हिमालय चौंक उठा तब, ऊषा ने जब ली अंगड़ाई
कौन खडा है, बहुत सन्निकट, उसका बना सहोदर भाई
विस्मित सा नगराज खडा है, सस्मित से बह पवन चले
दिग्दिगंत कह उठे एक स्वर, "आज ऊँट आया है तले"
यह अनहोनी हुई आज क्यों, कोई भी यह जान न पाया
दृढ-प्रतिज्ञ, धर्मज्ञ पञ्च ने, आज निरंतरता को पाया
कुल-गौरव, कुल-श्रेष्ठ अनुजवर! तुम कुल का स्पंदन हो
कुलदीपक, सम्मान सदृश, अभिनन्दन हो, अभिनन्दन हो
------------------------ शत, शत, शत अभिनन्दन हो

(नगराज=पर्वतराज, सस्मित=मुस्कुराते हुए, स्पंदन=धड़कन)
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Old 21-01-2013, 11:27 PM   #215
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चतुर्थ:

लाज त्याग कर सीमाओं ने फिर से तुम्हे बुलाया है
'भुज' से लेकर 'गिलगिट' तक, पथ-तोरणद्वार सजाया है
उठो अनुज! और ध्यान धरो, लिखनी नई कहानी है
निकट है मंजिल और राह है मुश्किल, पर जानी पहचानी है
आज तुम्हारे अरमानों में, छाई नहीं जवानी है
शहनाई की जगह तुम्हे, अब रण-भेरियाँ सुनानी हैं

'लाहौर' तुम्हे मालूम नहीं, नहीं 'करांची' तुम्हे पता
दुशमन का परचम जहाँ दिखे, वो जागीर हमारी है
अनुज समझ कर जब जब हमने उसको माफी दी है
रौंदी हैं सीमाएं तब तब, और अस्मिता ललकारी है

पथिक! बढ़ा चल, नवजीवन के पथ पर, राह सुहानी है
लक्ष्य दूर है, अगणित कण्टक, गति तो फिर भी पानी है
वह जीवन भी क्या जीवन था, परजीवी बन जब जीते थे
पर जीवन को नव-जीवन दो, ऐसी सोच बढानी है

उठो धनुर्धर! सर संधानो, सम्मुख खडा विरोधी है
शान्ति-दूत का चोला फेंको, यह तो शान्ति-अवरोधी है
कभी सामने, कभी पीठ पर, बार बार ललकार रहा
असफल शान्ति प्रयासों से, जनजीवन धिक्कार रहा

शिविर लगाकर आतंकवादी, स्वयं बनाए हैं उसने
भारत के युवकों के मन को भी भरमाये हैं उसने
इनको चीनी और अमरीकी शस्त्र दिलाये हैं उसने
और हमारे शान्ति-प्रहरियों के शीश कटाए हैं उसने

तीन बार मुँह की खाया है, चौथी बार का क्रंदन है
यह क्रंदन यदि अंतिम हो, अभिनन्दन हो, अभिनन्दन हो
-------------------------- शत, शत, शत अभिनन्दन हो
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Old 23-01-2013, 02:40 PM   #216
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Old 23-01-2013, 04:12 PM   #217
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शानदार रचनाये हैं, जय जी। मज़ा आ गया।
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Old 23-01-2013, 06:53 PM   #218
jai_bhardwaj
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bahut khoob jai ji
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शानदार रचनाये हैं, जय जी। मज़ा आ गया।

आप दोनों ही महानुभावों को सूत्र पर अपने बहुमूल्य एवं ऊर्जा से भरपूर विचार देने के लिए आभार।
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Old 25-01-2013, 07:14 AM   #219
Alone_boy
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Aaj kuch छींटे और बौछार milenge kya
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Old 25-01-2013, 11:02 PM   #220
jai_bhardwaj
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Originally Posted by Alone_boy View Post
Aaj kuch छींटे और बौछार milenge kya
अवश्य बन्धु, यदि स्मृतियाँ और काल्पनिक उड़ान पर्याप्त ऊर्जावान हो तो छीटें और बौछारें मिलती रहेंगी ... कभी रुक रुक कर तो कभी मूसलाधार ...........
सूत्रभ्रमण के लिए आपका अभिनन्दन है बन्धु।
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