07-08-2016, 01:49 AM | #1 |
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बिदाई
बिदाई की बेला आई है एक नन्ही सी कली फिर से दो आँगन में छाई है महके गजरा खनके कंगना सुर्ख जोड़े से सजाई है लाडो रानी तेरी बिदाई की प्यारी सी बेला आई है रख न सकूँ निज घर में तुझको , क्यूंकि इश्वर ने ये माया रचाई है जाना पड़े ससुराल हर बेटी को , पापा ने जीवन की रीत निभाई है सुना पड जाये बाबुल का घर और मन, पर बेटी . , यही किस्मत की दुहाई है , मांगू रब से तेरी खुशियाँ सह के तेरे जाने का गम बाद बिदाइ के जब मै देखू अपना घर आनगन सुनि padi शहनाइ है , बिलख रहा मानो घर का कोना कोना तेरी हर चीज़ देख अनखियन जलधार बह आइ है असहय लगे तेरी बिदाई तदपे मन ओर मुझसे पुछे आखिर तुने काहे को ये रीत निभाइ है ????? भाये न मन को तो भी केइसे ये बिदाई कि बेला आइ है |
15-08-2016, 07:39 PM | #2 | |
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Re: बिदाई
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16-09-2016, 12:53 PM | #3 |
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Re: बिदाई
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16-09-2016, 05:31 PM | #4 |
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Re: बिदाई
[ रख न सकूँ निज घर में तुझको , बेटी के ब्याह के समय उसे विदा करते हुये जो उसके पिता की तड़प का आपने बहुत भावुकतापूर्ण वर्णन किया है. एक एक पंक्ति में आपने बिटिया और पिता के अटूट सम्बन्ध और सामाजिक विवशता को भी बखूबी दिखाया है. धन्यवाद, बहन. यह रचना ध्यान से कैसे निकल गई, हैरान हूँ.
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17-09-2016, 12:47 AM | #5 |
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Re: बिदाई
very very nice...pushpaji
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17-09-2016, 09:11 PM | #6 |
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Re: बिदाई
भाये न मन को तो भी केइसे ये बिदाई कि बेला आइ है ]
[/size][/indent] बेटी के ब्याह के समय उसे विदा करते हुये जो उसके पिता की तड़प का आपने बहुत भावुकतापूर्ण वर्णन किया है. एक एक पंक्ति में आपने बिटिया और पिता के अटूट सम्बन्ध और सामाजिक विवशता को भी बखूबी दिखाया है. धन्यवाद, बहन. यह रचना ध्यान से कैसे निकल गई, हैरान हूँ. [/QUOTE] Bhai koi na ..der se hi sahi apne apne anmol vichar meri rachana ke liye yahan likhe wo hi beshkimti hai . asahya to hoti hai ye bidaai ki bela par bety ko to ek n ek din paraya hona hi padta hai bhaai . |
17-09-2016, 09:13 PM | #7 |
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Re: बिदाई
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