01-10-2013, 11:04 PM | #351 |
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Re: महाराजा विक्रमादित्य जी से जुडी कथाये.................
उसे छोड़कर किसी और का ध्यान गया ही नहीं तो पुरस्कार कैसे मिलता। विक्रम ने नर्तकी से पूछा तो उसने उस युवक की बातों का समर्थन किया। विक्रम का क्रोध गायब हो गया और उन्होंने नर्तकी तथा उस युवक, दोनों की बहुत तारीफ की। अब उनकी नज़र में उस युवक का महत्व और बढ़ गया। जब भी कोई समाधान ढूंढना रहता उसकी बातों को ध्यान से सुना जाता तथा उसके परामर्श को गंभीरतापूर्वक लिया जाता................. क्रमशः..........
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01-10-2013, 11:05 PM | #352 |
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Re: महाराजा विक्रमादित्य जी से जुडी कथाये.................
एक बार दरबार में बुद्धि और संस्कार पर चर्चा छिड़ी। दरबारियों का कहना था कि संस्कार बुद्धि से आते हैं, पर वह युवक उनसे सहमत नहीं था। उसका कहना था कि सारे संस्कार वंशानुगत होते हैं। जब कोई मतैक्य नहीं हुआ तो विक्रम ने एक हल सोचा................. क्रमशः..........
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01-10-2013, 11:06 PM | #353 |
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Re: महाराजा विक्रमादित्य जी से जुडी कथाये.................
उन्होंने नगर से दूर हटकर जंगल में एक महल बनवाया तथा महल में गूंगी और बहरी नौकरानियां नियुक्त कीं। एक-एक करके चार नवजात शिशुओं को उस महल में उन नौकरानियों की देखरेख में छोड़ दिया गया। उनमें से एक उनका, एक महामंत्री का, एक कोतवाल का तथा एक ब्राह्मण का पुत्र था। बारह वर्ष पश्चात जब वे चारों दरबार में पेश किए गए तो विक्रम ने बारी-बारी से उनसे पूछा- 'कुशल तो हैं?' चारों ने अलग-अलग जवाब दिए................. क्रमशः..........
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01-10-2013, 11:06 PM | #354 |
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Re: महाराजा विक्रमादित्य जी से जुडी कथाये.................
राजा के पुत्र ने 'सब कुशल हैं' कहा, जबकि महामंत्री के पुत्र ने संसार को नश्वर बताते हुए कहा 'आने वाले को जाना है तो कुशलता कैसी?' कोतवाल के पुत्र ने कहा कि चोर चोरी करते हैं और बदनामी निरपराध की होती है................. क्रमशः..........
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01-10-2013, 11:07 PM | #355 |
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Re: महाराजा विक्रमादित्य जी से जुडी कथाये.................
ऐसी हालत में कुशलता की सोचना बेमानी है। सबसे अन्त में ब्राह्मण पुत्र का जवाब था कि आयु जब दिन-ब-दिन घटती जाती है तो कुशलता कैसी? चारों के जवाबों को सुनकर उस युवक की बातों की सच्चाई सामने आ गई। राजा का पुत्र निश्चिन्त भाव से सब कुछ कुशल मानता था और मंत्री के पुत्र ने तर्कपूर्ण उत्तर दिया................. क्रमशः..........
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01-10-2013, 11:08 PM | #356 |
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Re: महाराजा विक्रमादित्य जी से जुडी कथाये.................
इसी तरह कोतवाल के पुत्र ने न्याय व्यवस्था की चर्चा की, जबकि ब्राह्मण पुत्र ने दार्शनिक उत्तर दिया। सब वंशानुगत संस्कारों के कारण हुआ। सबका पालन-पोषण एक वातावरण में हुआ, लेकिन सबके विचारों में अपने संस्कारों के अनुसार भिन्नता आ गई। सभी दरबारियों ने मान लिया कि उस युवक का मानना बिलकुल सही है................. समाप्त..........
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05-10-2013, 08:49 PM | #357 |
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Re: महाराजा विक्रमादित्य जी से जुडी कथाये.................
इतने सारे हिस्से .......... भाई थोड़ा कम करों
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11-10-2013, 03:15 PM | #358 |
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Re: महाराजा विक्रमादित्य जी से जुडी कथाये.................
कथा तेईसवीं पुतली धर्मवती की.........
तेईसवीं पुतली जिसका नाम धर्मवती था, ने इस प्रकार कथा कही- एक बार राजा विक्रमादित्य दरबार में बैठे थे और दरबारियों से बातचीत कर रहे थे। बातचीत के क्रम में दरबारियों में इस बात पर बहस छिड़ गई कि मनुष्य जन्म से बड़ा होता है या कर्म से? बहस का अन्त नहीं हो रहा था, क्योंकि दरबारियों के दो गुट हो चुके थे। एक कहता था कि मनुष्य जन्म से बड़ा होता है क्योंकि मनुष्य का जन्म उसके पूर्वजन्मों का फल होता है। अच्छे संस्कार मनुष्य में वंशानुगत होते हैं जैसे राजा का बेटा राजा हो जाता है। उसका व्यवहार भी राजाओं की तरह रहता है। कुछ दरबारियों का मत था कि कर्म ही प्रधान है। अच्छे कुल में जन्मे व्यक्ति भी दुर्व्यसनों के आदी हो जाते हैं और मर्यादा के विरुद्ध कर्मों में लीन होकर पतन की ओर चले जाते हैं। अपने दुष्कर्मों और दुराचार के चलते कोई सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं करते और सर्वत्र तिरस्कार पाते हैं।
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11-10-2013, 03:18 PM | #359 |
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Re: महाराजा विक्रमादित्य जी से जुडी कथाये.................
इस पर पहले गुट ने तर्क दिया कि मूल संस्कार नष्ट नहीं हो सकते हैं जैसे कमल का पौधा कीचड़ में रहकर भी अपने गुण नहीं खोता। गुलाब कांटों पर पैदा होकर भी अपनी सुगन्ध नहीं खोता और चन्दन के वृक्ष पर सर्पों का वास होने से भी चन्दन अपनी सुगन्ध और शीतलता बरकरार रखता है, कभी भी विषैला नहीं होता।
दोनों पक्ष अपने-अपने तर्कों द्वारा अपने को सही सिद्ध करने की कोशिश करते रहे। कोई भी अपना विचार बदलने को राजी नहीं था। विक्रम चुपचाप उनकी बहस का मज़ा ले रहे थे। जब उनकी बहस बहुत आगे बढ़ गई तो राजा ने उन्हें शान्त रहने का आदेश दिया और कहा कि वे प्रत्यक्ष उदाहरण द्वारा करेंगे। उन्होंने आदेश दिया कि जंगल से एक सिंह का बच्चा पकड़कर लाया जाए। तुरन्त कुछ शिकारी जंगल गए और एक सिंह का नवजात शावक उठाकर ले आए। उन्होंने एक गड़रिए को बुलाया और उस नवजात शावक को बकरी के बच्चों के साथ-साथ पालने को कहा। गड़रिए की समझ में कुछ नहीं आया, लेकिन राजा का आदेश मानकर वह शावक को ले गया।
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11-10-2013, 03:20 PM | #360 |
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Re: महाराजा विक्रमादित्य जी से जुडी कथाये.................
शावक की परवरिश बकरी के बच्चों के साथ होने लगी। वह भी भूख मिटाने के लिए बकरियों का दूध पीने लगा, जब बकरी के बच्चे बड़ हुए तो घास और पत्तियां चरने लगे। शावक भी पत्तियां बड़े चाव से खाता। कुछ और बड़ा होने पर दूध तो वह पीता रहा, मगर घास और पत्तियां चाहकर भी नहीं खा पाता। एक दिन जब विक्रम ने उसे शावक का हाल बताने के लिए बुलाया तो उसने उन्हें बताया कि शेर का बच्चा एकदम बकरियों की तरह व्यवहार करता है। उसने राजा से विनती की कि उसे शावक को मांस खिलाने की अनुमति दी जाए, क्योंकि शावक को अब घास और पत्तियां अच्छी नहीं लगती हैं। विक्रम ने साफ़ मना कर दिया और कहा कि सिर्फ दूध पर उसका पालन-पोषण किया जाए।
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