12-12-2013, 05:56 PM | #431 |
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Re: महाराजा विक्रमादित्य जी से जुडी कथाये.................
कथा तीसवीं पुतली जयलक्ष्मी की :.......... विक्रम समझ गए कि वह योगी उनकी ही प्रतीक्षा कर रहा था, लेकिन उन्हें जिज्ञासा हुई कि वह उनकी प्रतीक्षा क्यों कर रहा था? पूछने पर उसने उन्हें बताया कि सपने में एक दिन इन्द्रदेव ने उन्हें दर्शन देकर कहा था कि महाराजा विक्रमादित्य ने अपने कर्मों से देवताओं-सा स्थान प्राप्त कर लिया है तथा उनके दर्शन प्राप्त करने वाले को इन्द्रदेव या अन्य देवताओं के दर्शन का फल प्राप्त होता है। 'मैं इतनी कठिन साधना सिर्फ आपके दर्शन का लाभ पाने के लिए कर रहा था।'- उस योगी ने कहा। विक्रम ने पूछा कि अब तो उसने उनके दर्शन प्राप्त कर लिए, क्या उनसे वह कुछ और चाहता है। इस पर योगी ने उनसे उनके गले में पड़ी इन्द्रदेव के मूंगे वाली माला मांगी। राजा ने खुशी-खुशी वह माला उसे दे दी। योगी ने उनका आभार प्रकट किया ही था कि श्रापित राजकुमार फिर से मानव बन गया। उसने पहले विक्रम के फिर उस योगी के पांव छूए :.........
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12-12-2013, 05:57 PM | #432 |
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Re: महाराजा विक्रमादित्य जी से जुडी कथाये.................
कथा तीसवीं पुतली जयलक्ष्मी की :.......... राजकुमार को लेकर विक्रम अपने महल आए। दूसरे दिन अपने रथ पर उसे बिठा उसके राज्य चल दिए। मगर उसके राज्य में प्रवेश करते ही सैनिकों की टुकड़ी ने उनके रथ को चारों ओर से घेर लिया तथा राज्य में प्रवेश करने का उनका प्रयोजन पूछने लगे। राजकुमार ने अपना परिचय दिया और रास्ता छोड़ने को कहा। उसने जानना चाहा कि उसका रथ रोकने की सैनिकों ने हिम्मत कैसे की? सैनिकों ने उसे बताया कि उसके माता-पिता को बन्दी बनाकर कारागार में डाल दिया गया है और अब इस राज्य पर किसी और का अधिकार हो चुका है। चूंकि राज्य पर अधिकार करते वक्त राजकुमार का कुछ पता नहीं चला, इसलिए चारों तरफ गुप्तचर उसकी तलाश में फैला दिए गए थे। अब उसके खुद हाज़िर होने से नए शासक का मार्ग और प्रशस्त हो गया है :.........
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12-12-2013, 05:59 PM | #433 |
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Re: महाराजा विक्रमादित्य जी से जुडी कथाये.................
कथा तीसवीं पुतली जयलक्ष्मी की :.......... राजा विक्रमादित्य ने उन्हें अपना परिचय नहीं दिया और खुद को राजकुमार के दूत के रूप में पेश करते हुए कहा कि उनका एक संदेश नए शासक तक भेजा जाए। उन्होंने उस टुकड़ी के नायक को कहा कि नए शासक के सामने दो विकल्प हैं- या तो वह असली राजा और रानी को उनका राज्य सौंपकर चला जाए या युद्ध की तैयारी करे। उस सेनानायक को बड़ अजीब लगा। उसने विक्रम का उपहास करते हुए पूछा कि युद्ध कौन करेगा? क्या वही दोनों युद्ध करेंगे? उसको उपहास करते देख उनका क्रोध सातवें आसमान पर पहुंच गया। उन्होंने तलवार निकाली और उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। सेना में भगदड़ मच गई। किसी ने दौड़कर नए शासक को खबर की। वह तुरन्त सेना लेकर उनकी ओर दौड़ा :.........
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12-12-2013, 05:59 PM | #434 |
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Re: महाराजा विक्रमादित्य जी से जुडी कथाये.................
कथा तीसवीं पुतली जयलक्ष्मी की :.......... विक्रम इस हमले के लिए तैयार बैठे थे। उन्होंने दोनों बेतालों का स्मरण किया तथा बेतालों ने उनका आदेश पाकर रथ को हवा में उठा लिया। उन्होंने वह तिलक लगाया जिससे अदृश्य हो सकते थे और रथ से कूद गए। अदृश्य रहकर उन्होंने दुश्मनों को गाजर-मूली की तरह काटना शुरू कर दिया। जब सैकड़ों सैनिक मारे गए और दुश्मन नज़र नहीं आया तो सैनिकों में भगदड़ मच गई और राजा को वहीं छोड़ अधिकांश सैनिक रणक्षेत्र से भाग खड़े हुए। उन्हें लगा कि कोई पैशाचिक शक्ति उनका मुक़ाबला कर रही है। नए शासक का चेहरा देखने लायक था। वह आश्चर्यचकित और भयभीत था ही, हताश भी दिख रहा था :.........
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12-12-2013, 06:01 PM | #435 |
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Re: महाराजा विक्रमादित्य जी से जुडी कथाये.................
कथा तीसवीं पुतली जयलक्ष्मी की :.......... उसे हतप्रभ देख विक्रम ने अपनी तलवार उसकी गर्दन पर रख दी तथा अपने वास्तविक रूप में आ गए। उन्होंने उस शासक से अपना परिचय देते हुए कहा कि या तो वह इसी क्षण यह राज्य छोड़कर भाग जाए या प्राण दण्ड के लिए तैयार रहे। वह शासक विक्रमादित्य की शक्ति से परिचित था तथा उनका शौर्य आंखों से देख चुका था, अत: वह उसी क्षण उस राज्य से भाग गया। वास्तविक राजा-रानी को उनका राज्य वापस दिलाकर वे अपने राज्य की ओर चल पड़े। रास्ते में एक जंगल पड़ा। उस जंगल में एक मृग उनके पास आया तथा एक सिंह से अपने को बचाने को बोला। मगर महाराजा विक्रमादित्य ने उसकी मदद नहीं की। वे भगवान के बनाए नियम के विरुद्ध नहीं जा सकते थे। सिंह भूखा था और मृग आदि जानवर ही उसकी क्षुधा शांत कर सकते थे। यह सोचते हुए उन्होंने सिंह को मृग का शिकार करने दिया :.........
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12-12-2013, 06:03 PM | #436 |
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कथा इकत्तीसवीं पुतली कौशल्या की :..........
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23-12-2013, 05:15 PM | #437 |
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Re: महाराजा विक्रमादित्य जी से जुडी कथाये.................
कथा इकत्तीसवीं पुतली कौशल्या की :.......... राजा विक्रमादित्य वृद्ध हो गए थे तथा अपने योगबल से उन्होंने यह भी जान लिया कि उनका अंत अब काफी निकट है। वे राजकाज और धर्म कार्य दोनों में अपने को लगाए रखते थे। उन्होंने वन में भी साधना के लिए एक आवास बना रखा था। एक दिन उसी आवास में एक रात उन्हें अलौकिक प्रकाश कहीं दूर से आता मालूम पड़ा। उन्होंने गौर से देखा तो पता चला कि सारा प्रकाश सामने वाली पहाड़ियों से आ रहा है। इस प्रकाश के बीच उन्हें एक दमकता हुआ सुन्दर भवन दिखाई पड़ा। उनके मन में भवन देखने की जिज्ञासा हुई और उन्होंने काली द्वारा प्रदत्त दोनों बेतालों का स्मरण किया :.........
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23-12-2013, 05:16 PM | #438 |
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Re: महाराजा विक्रमादित्य जी से जुडी कथाये.................
कथा इकत्तीसवीं पुतली कौशल्या की :.......... उनके आदेश पर बेताल उन्हें पहाड़ी पर ले आए और उनसे बोले कि वे इसके आगे नहीं जा सकते। कारण पूछने पर उन्होंने बताया कि उस भवन के चारों ओर एक योगी ने तंत्र का घेरा डाल रखा है तथा उस भवन में उसका निवास है। उन घेरों के भीतर वही प्रवेश कर सकता है जिसका पुण्य उस योगी से अधिक हो। विक्रम ने सच जानकर भवन की ओर कदम बढ़ा दिया। वे देखना चाहते थे कि उनका पुण्य उस योगी से अधिक है या नहीं। चलते-चलते वे भवन के प्रवेश द्वार तक आ गए। एकाएक कहीं से चलकर एक अग्नि पिंड आया और उनके पास स्थिर हो गया। उसी समय भीतर से किसी का आज्ञाभरा स्वर सुनाई पड़ा। वह अग्निपिंड सरककर पीछे चला गया और प्रवेश द्वार साफ हो गया। विक्रम अन्दर घुसे तो वही आवाज़ उनसे उनका परिचय पूछने लगी। उसने कहा कि सब कुछ साफ़-साफ़ बताया जाए नहीं तो वह आने वाले को श्राप से भस्*म कर देगा :.........
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23-12-2013, 05:18 PM | #439 |
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Re: महाराजा विक्रमादित्य जी से जुडी कथाये.................
कथा इकत्तीसवीं पुतली कौशल्या की :.......... विक्रम तब तक कक्ष में पहुंच चुके थे और उन्होंने देखा कि योगी उठ खड़ा हुआ। उन्होंने जब उसे बताया कि वे विक्रमादित्य हैं तो योगी ने अपने को भाग्यशाली बताया। उसने कहा कि विक्रमादित्य के दर्शन होंगे यह आशा उसे नहीं थी। योगी ने उनका खूब आदर-सत्कार किया तथा विक्रम से कुछ मांगने को बोला। राजा विक्रमादित्य ने उससे तमाम सुविधाओं सहित वह भवन मांग लिया। विक्रम को वह भवन सौंपकर योगी उसी वन में कहीं चला गया। चलते-चलते वह काफी दूर पहुंचा तो उसकी भेंट अपने गुरु से हुई। उसके गुरु ने उससे इस तरह भटकने का कारण जानना चाहा तो वह बोला कि भवन उसने राजा विक्रमादित्य को दान कर दिया है। उसके गुरु को हंसी आ गई :.........
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23-12-2013, 05:19 PM | #440 |
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Re: महाराजा विक्रमादित्य जी से जुडी कथाये.................
कथा इकत्तीसवीं पुतली कौशल्या की :.......... उसने कहा कि इस पृथ्वी के सर्वश्रेष्ठ दानवीर को वह क्या दान करेगा और उसने उसे विक्रमादित्य के पास जाकर ब्राह्मण रूप में अपना भवन फिर से मांग लेने को कहा। वह वेश बदलकर उस कुटिया में विक्रम से मिला जिसमें वे साधना करते थे। उसने रहने की जगह की याचना की। विक्रम ने उससे अपनी इच्छित जगह मांगने को कहा तो उसने वह भवन मांगा। विक्रम ने मुस्कराकर कहा कि वह भवन ज्यों का त्यों छोड़कर वे उसी समय आ गए थे। उन्होंने बस उसकी परीक्षा लेने के लिए उससे वह भवन लिया था। इस कथा के बाद इकत्तीसवीं पुतली ने अपनी कथा खत्म नहीं की। वह बोली- राजा विक्रमादित्य भले ही देवताओं से बढ़कर गुण वाले थे और इन्द्रासन के अधिकारी माने जाते थे, वे थे तो मानव ही। मृत्युलोक में जन्म लिया था, इसलिए एक दिन उन्होंने इहलीला त्याग दी :.........
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