23-12-2013, 05:21 PM | #441 |
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Re: महाराजा विक्रमादित्य जी से जुडी कथाये.................
कथा इकत्तीसवीं पुतली कौशल्या की :.......... उनके मरते ही सर्वत्र हाहाकार मच गया। उनकी प्रजा शोकाकुल होकर रोने लगी। जब उनकी चिता सजी तो उनकी सभी रानियां उस चिता पर सती होने को चढ़ गईं। उनकी चिता पर देवताओं ने फूलों की वर्षा की। उनके बाद उनके सबसे बड़े पुत्र को राजा घोषित किया गया। उसका धूमधाम से तिलक हुआ। मगर वह उनके सिंहासन पर नहीं बैठ सका। उसको पता नहीं चला कि पिता के सिंहासन पर वह क्यों नहीं बैठ सकता है? वह उलझन में पड़ा था कि एक दिन स्वप्न में विक्रम खुद आए। उन्होंने पुत्र को उस सिंहासन पर बैठने के लिए पहले देवत्व प्राप्त करने को कहा। उन्होंने उसे कहा कि जिस दिन वह अपने पुण्य-प्रताप तथा यश से उस सिंहासन पर बैठने लायक होगा तो वे खुद उसे स्वप्न में आकर बता देंगे :.........
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23-12-2013, 05:22 PM | #442 |
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Re: महाराजा विक्रमादित्य जी से जुडी कथाये.................
कथा इकत्तीसवीं पुतली कौशल्या की :.......... मगर विक्रम उसके सपने में नहीं आए तो उसे नहीं सूझा कि सिंहासन का किया क्या जाए? पंडितों और विद्वानों के परामर्श पर वह एक दिन पिता का स्मरण करके सोया तो विक्रम सपने में आए। सपने में उन्होंने उससे उस सिंहासन को ज़मीन में गड़वा देने के लिए कहा तथा उसे उज्जैन छोड़कर अम्बावती में अपनी नई राजधानी बनाने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि जब भी पृथ्वी पर सर्वगुण-सम्पन्न कोई राजा कालान्तर में पैदा होगा, यह सिंहासन खुद-ब-खुद उसके अधिकार में चला जाएगा। पिता के स्वप्न वाले आदेश को मानकर उसने सुबह मजदूरों को बुलवाकर एक खूब गहरा गड्ढा खुदवाया तथा उस सिंहासन को उसमें दबवा दिया। वह खुद अम्बावती को नई राजधानी बनवाकर शासन करने लगा :.........
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23-12-2013, 05:24 PM | #443 |
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Re: महाराजा विक्रमादित्य जी से जुडी कथाये.................
कथा बत्तीसवीं पुतली रानी रूपवती की :..........
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09-01-2014, 04:48 PM | #444 |
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Re: महाराजा विक्रमादित्य जी से जुडी कथाये.................
कथा बत्तीसवीं पुतली रानी रूपवती की :.......... बत्तीसवीं पुतली रानी रूपवती ने राजा भोज को सिंहासन पर बैठने की कोई रुचि नहीं दिखाते देखा तो उसे अचरज हुआ। उसने जानना चाहा कि राजा भोज में आज पहले वाली व्यग्रता क्यों नहीं है? राजा भोज ने कहा कि राजा विक्रमादित्य के देवताओं वाले गुणों की कथाएं सुनकर उन्हें ऐसा लगा कि इतनी विशेषताएं एक मनुष्य में असम्भव हैं और मानते हैं कि उनमें बहुत सारी कमियां हैं। अत: उन्होंने सोचा है कि सिंहासन को फिर वैसे ही उस स्थान पर गड़वा देंगे जहां से इसे निकाला गया है। राजा भोज का इतना बोलना था कि सारी पुतलियां अपनी रानी के पास आ गईं। उन्होंने हर्षित होकर राजा भोज को उनके निर्णय के लिए धन्यवाद दिया। पुतलियों ने उन्हें बताया कि आज से वे भी मुक्त हो गईं। आज से यह सिंहासन बिना पुतलियों का हो जाएगा। उन्होंने राजा भोज को विक्रमादित्य के गुणों का आंशिक स्वामी होना बतलाया तथा कहा कि इसी योग्यता के चलते उन्हें इस सिंहासन के दर्शन हो पाए :.........
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09-01-2014, 04:49 PM | #445 |
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Re: महाराजा विक्रमादित्य जी से जुडी कथाये.................
कथा बत्तीसवीं पुतली रानी रूपवती की :.......... उन्होंने यह भी बताया कि आज से इस सिंहासन की आभा कम पड़ जाएगी और धरती की सारी चीजों की तरह इसे भी पुराना पड़कर नष्ट होने की प्रक्रिया से गुज़रना होगा। इतना कहकर उन पुतलियों ने राजा से विदा ली और आकाश की ओर उड़ गईं। पलक झपकते ही सारी की सारी पुतलियां आकाश में विलीन हो गईं। पुतलियों के जाने के बाद राजा भोज ने कर्मचारियों को बुलवाया तथा गड्ढा खुदवाने का निर्देश दिया। जब मजदूर बुलवाकर गड़ढा खोद डाला गया तो वेद मन्त्रों का पाठ करवाकर पूरी प्रजा की उपस्थिति में सिंहासन को गड्ढे में दबवा दिया। मिट्टी डालकर फिर वैसा ही टीला निर्मित करवाया गया जिस पर बैठकर चरवाहा अपने फैसले देता था, लेकिन नया टीला वह चमत्कार नहीं दिखा सका जो पुराने वाले टीले में था :.........
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09-01-2014, 04:50 PM | #446 |
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Re: महाराजा विक्रमादित्य जी से जुडी कथाये.................
कथा बत्तीसवीं पुतली रानी रूपवती की :.......... उपसंहार- कुछ भिन्नताओं के साथ हर लोकप्रिय संस्करण में उपसंहार के रूप में एक कथा और मिलती है। उसमें सिंहासन के साथ पुन: दबवाने के बाद क्या गुज़रा- यह वर्णित है। आधिकारिक संस्कृत संस्करण में यह उपसंहार रूपी कथा नहीं भी मिल सकती है, मगर जनसाधारण में काफी प्रचलित है। कई साल बीत गए। वह टीला इतना प्रसिद्ध हो चुका था कि सुदूर जगहों से लोग उसे देखने आते थे। सभी को पता था कि इस टीले के नीचे अलौकिक गुणों वाला सिंहासन दबा पड़ा है। एक दिन चोरों के एक गिरोह ने फैसला किया कि उस सिंहासन को निकालकर उसके टुकड़े-टुकड़े कर बेच देना चाहिए। उन्होंने टीले से मीलों पहले एक गड्ढा खोदा और कई महीनों की मेहनत के बाद सुरंग खोदकर उस सिंहासन तक पहुंचे। सिंहासन को सुरंग से बाहर लाकर एक निर्जन स्थान पर उन्होंने हथौड़ों के प्रहार से उसे तोड़ना चाहा। चोट पड़ते ही ऐसी भयानक चिंगारी निकलती थी कि तोड़ने वाले को जलाने लगती थी। सिंहासन में इतने सारे बहुमूल्य रत्न-माणिक्य जड़े हुए थे कि चोर उन्हें सिंहासन से अलग करने का मोह नहीं त्याग रहे थे :.........
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09-01-2014, 04:51 PM | #447 |
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Re: महाराजा विक्रमादित्य जी से जुडी कथाये.................
कथा बत्तीसवीं पुतली रानी रूपवती की :.......... सिंहासन पूरी तरह सोने से निर्मित था, इसलिए चोरों को लगता था कि सारा सोना बेच देने पर भी कई हज़ार स्वर्ण मुद्राएं मिल जाएगीं और उनके पास इतना अधिक धन जमा हो जाएगा कि उनके परिवार में कई पुरखों तक किसी को कुछ करने की ज़रुरत नहीं पड़ेगी। वे सारा दिन प्रयास करते रहे मगर उनके प्रहारों से सिंहासन को रत्तीभर भी क्षति नहीं पहुंची। उल्टे उनके हाथ चिंगारियों से झुलस गए और चिंगारियों को बार-बार देखने से उनकी आंखें दुखने लगीं। वे थककर बैठ गए और सोचते-सोचते इस नतीजे पर पहुंचे कि सिंहासन भुतहा है। भुतहा होने के कारण ही राजा भोज ने इसे अपने उपयोग के लिए नहीं रखा। महल में इसे रखकर ज़रूर ही उन्हें कुछ परेशानी हुई होगी, तभी उन्होंने ऐसे मूल्यवान सिंहासन को दोबारा ज़मीन में दबवा दिया। वे इसका मोह राजा भोज की तरह ही त्यागने की सोच रहे थे। तभी उनका मुखिया बोला कि सिंहासन को तोड़ा नहीं जा सकता, पर उसे इसी अवस्था में उठाकर दूसरी जगह ले जाया जा सकता है :.........
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09-01-2014, 04:52 PM | #448 |
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Re: महाराजा विक्रमादित्य जी से जुडी कथाये.................
कथा बत्तीसवीं पुतली रानी रूपवती की :.......... चोरों ने उस सिंहासन को अच्छी तरह कपड़े में लपेट दिया और उस स्थान से बहुत दूर किसी अन्य राज्य में उसे उसी रूप में ले जाने का फैसला कर लिया। वे सिंहासन को लेकर कुछ महीनों की यात्रा के बाद दक्षिण के एक राज्य में पहुंचे। वहां किसी को उस सिंहासन के बारे में कुछ पता नहीं था। उन्होंने जौहरियों का वेश धरकर उस राज्य के राजा से मिलने की तैयारी की। उन्होंने राजा को वह रत्नजड़ित स्वर्ण सिंहासन दिखाते हुए कहा कि वे बहुत दूर के रहने वाले हैं तथा उन्होंने अपना सारा धन लगाकर यह सिंहासन तैयार करवाया है| राजा ने उस सिंहासन की शुद्धता की जांच अपने राज्य के बड़े-बड़े सुनारों और जौहरियों से करवाई। सबने उस सिंहासन की सुन्दरता और शुद्धता की तारीफ करते हुए राजा को वह सिंहासन खरीद लेने की सलाह दी। राजा ने चोरों को उसका मुंह मांगा मूल्य दिया और सिंहासन अपने बैठने के लिए ले लिया :.........
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09-01-2014, 04:53 PM | #449 |
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Re: महाराजा विक्रमादित्य जी से जुडी कथाये.................
कथा बत्तीसवीं पुतली रानी रूपवती की :.......... जब वह सिंहासन दरबार में लगाया गया तो सारा दरबार अलौकिक रोशनी से जगमगाने लगा। उसमें जड़े हीरों और माणिक्यों से बड़ी मनमोहक आभा निकल रही थी। राजा का मन भी ऐसे सिंहासन को देखकर अत्यधिक प्रसन्न हुआ। शुभ मुहूर्त देखकर राजा ने सिंहासन की पूजा विद्वान पंडितों से करवाई और उस सिंहासन पर नित्य बैठने लगा। सिंहासन की चर्चा दूर-दूर तक फैलने लगी। बहुत दूर-दूर से राजा उस सिंहासन को देखने के लिए आने लगे। सभी आने वाले उस राजा के भाग्य को धन्य कहते, क्योंकि उसे ऐसा अद्भुत सिंहासन पर बैठने का अवसर मिला था। धीरे-धीरे यह प्रसिद्धि राजा भोज के राज्य तक भी पहुंची। सिंहासन का वर्णन सुनकर उनको लगा कि कहीं विक्रमादित्य का सिंहासन न हो। उन्होंने तत्काल अपने कर्मचारियों को बुलाकर विचार-विमर्श किया और मज़दूर बुलवाकर टीले को फिर से खुदवाया। खुदवाने पर उनकी शंका सत्य निकली और सुरंग देखकर उन्हें पता चल गया कि चोरों ने वह सिंहासन चुरा लिया। अब उन्हें यह आश्चर्य हुआ कि वह राजा विक्रमादित्य के सिंहासन पर आरुढ़ कैसे हो गया? क्या वह राजा सचमुच विक्रमादित्य के समकक्ष गुणों वाला है? :.........
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09-01-2014, 04:54 PM | #450 |
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Re: महाराजा विक्रमादित्य जी से जुडी कथाये.................
कथा बत्तीसवीं पुतली रानी रूपवती की :.......... उन्होंने कुछ कर्मचारियों को लेकर उस राज्य जाकर सब कुछ देखने का फैसला किया। काफी दिनों की यात्रा के बाद वहां पहुंचे तो उस राजा से मिलने उसके दरबार पहुंचे। उस राजा ने उनका पूरा सत्कार किया तथा उनके आने का प्रयोजन पूछा। राजा भोज ने उस सिंहासन के बारे में राजा को सब कुछ बताया। उस राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने कहा कि उसे सिंहासन पर बैठने में कभी कोई परेशानी नहीं हुई। राजा भोज ने ज्योतिषियों और पंडितों से विमर्श किया तो वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि हो सकता है कि सिंहासन अब अपना सारा चमत्कार खो चुका हो। उन्होंने कहा कि हो सकता है कि सिंहासन अब सोने का न हो तथा रत्न और माणिक्य कांच के टुकड़े मात्र हों। उस राजा ने जब ऐसा सुना तो कहा कि यह असंभव है। चोरों से उसने उसे खरीदने से पहले पूरी जांच करवाई थी, लेकिन जब जौहरियों ने फिर से उसकी जांच की तो उन्हें घोर आश्चर्य हुआ। सिंहासन की चमक फीकी पड़ गई थी तथा वह एकदम पीतल का हो गया था। रत्न-माणिक्य की जगह कांच के रंगीन टुकड़े थे :.........
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