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Old 25-12-2012, 01:54 PM   #11
Ranjansameer
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Ranjansameer is on a distinguished road
Default Re: राजनीति के माध्यम से 'देश-सेवा' का ठेका

अन्ना हजारे के सहायक अरविन्द केजरीवाल ने आख़िरकार "आम आदमी पार्टी" को वास्तविकता की धरातल पर उतार ही दिया. अन्ना हजारे से समर्थन खोने के बाद या यु कहे की अन्ना के राजनीती में ना उतरने के फैसले के बाद इस पार्टी की सारी जिम्मेदारियां और दारोमदार अब अरविन्द केजरीवाल के कंधो पर आ गया. केजरीवाल राजनीति की पथरीली, कंटीली और ऊबड़-खाबड़ रास्ते पर चल पड़े है वो इसमें सफल होंगे या असफल इस प्रश्न का उत्तर भविष्य के गर्भ में छिपा है.

केजरीवाल स्वयं देश की जनता को यह बता रहे हैं कि राजनीतिक व्यवस्था और नेता आकंठ तक भ्रष्टाचार में डूबे हैं. उन्होंने कई राजनीतिज्ञों के काले कारनामो को मीडिया की सहायता से आम जनता को बताने की कोशिश की. लेकिन मेरा एक सवाल हैं उनसे की जब राजनीति काजल की कोठरी और भ्रष्टाचार के कीचड़ में सनी हुई है तो फिर केजरीवाल ने स्वयं इस कीचड़ में उतरने का निर्णय क्यों लिया? वर्तमान भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था और नेताओं से ऊबी जनता जिस भावना, जोश और आवेश के साथ इण्डिया अंगेस्ट करप्शन से जुड़ी थी क्या उसी तर्ज पर आम आदमी ‘आप’ से जुड़ेगा, यह अहम् प्रश्न है. राजनीति बड़ी कठोर, निर्दयी और संवेदनहीन होती है उसका कुछ अनुभव पिछले दो वर्षों में अरविंद को हो ही चुका है. क्या अरविंद को राजनीतिक दल बनाने के बाद पूर्व की भांति भारी जन समर्थन मिलेगा? क्या अरविंद राजनीति की काली कोठरी के काजल से स्वयं को बचा पाएंगे? क्या अरविंद राजनीति में सफल होने के लिए दूसरे राजनीतिक दलों व नेताओं की भांति वही तो करने लगेंगे जिसका अब तक वो विरोध करते आए हैं?

लेकिन इन सब बातों से दूर अरविन्द केजरीवाल व्यवस्था परिवर्तन की बात कर रहे हैं और शायद इसलिए उन पर देश के आम आदमी से लेकर विशेष तक सबकी दृष्टि लगी हुई है. पिछले दो वर्ष में इण्डिया अंगेस्ट करप्शन के बैनर तले लाखों की भीड़ जुटने का सबसे बड़ा कारण यही था कि देश की जनता सार्वजनिक जीवन में तेजी से बढ़ते और फैलते भ्रष्टाचार पर प्रभावी रोक लगाने के लिए जन लोकपाल बिल चाहती थी. लेकिन राजनीति की हठधर्मिता और अड़चनों से जनता का मनोबल टूट चुका है और भीड़ बिखर चुकी है. अन्ना और केजरीवाल अलग रास्तों पर चल पड़े हैं. अन्न अभी भी जनआंदोलनों में विशवास रखते हैं लेकिन केजरीवाल ने व्यवस्था परिवर्तन के लिए राजनीति की राह पकड़ी है. टीम अन्ना के टूटने से आम आदमी का जनआंदोलनों से विश्वास भी टूटा है. वर्तमान में आम आदमी राजनीतिक दलों और सामाजिक आंदोलनों से बराबर की दूर बनाये हुए है और वो चुपचाप सारे ड्रामे और उछल-कूद को देख रहा है. असल में आम आदमी अनिर्णय की स्थिति में पहुंच चुका है उसे यह समझ में नहीं आ रहा है कि वो किसका साथ दे और किससे किनारा करे. कौन सच्चा है या झूठा वो यह भी समझ नहीं पा रहा है.

यही द्वन्द स्थिति मेरे साथ भी हैं. मैं सब कुछ जानते हुए भी यह फैसला नहीं कर पा रहा हूँ की केजरीवाल का साथ दू या फिर अन्ना जी के जन आन्दोलन की. जब मेरे जैसा पढ़ा लिखा व्यक्ति यह भ्रम की स्थिति दूर नहीं कर पा रहा हैं तो देश अधिकांश अशिक्षित जनता क्या सोच रही होगी, इसका अनुमान तो आप लगा ही सकते हैं.

राजनीति सेवा की बजाय मेवा खाने और कमाने का जरिया बन चुकी है. देश की जनता और विशेषकर युवा पीढ़ी और लिखा-पढ़ा वर्ग राजनीति से दूरी बनाये हुए है. अरविंद के आंदोलन की सबसे बड़ी शक्ति देश के युवा, मध्यम वर्ग और पढ़े-लिखे लोग ही थे. ये वर्ग राजनीति और नेताओं को भ्रष्ट, स्वार्थी, अपराधी, गुण्डा, अनपढ़ और देश के विकास में बाधक मानता है, और अब केजरीवाल जब उसी रास्ते पर चल पड़े है जिसे वो अब तक कोसते रहे हैं. अहम् सवाल यही है कि केजरीवाल के आहवान पर लाखों की संख्या में रामलीला मैदान पहुंचने वाली भीड़ उनके साथ राजनीति के सफर में साथ चलेगी?

देखते हैं भविष्य में आम आदमी पार्टी कुछ कर पाती हैं जिसके सपने उन्होंने जनता को दिखाए थे या फिर यह भी दूसरी पार्टियों की तरह राजनीती के कीचड़ और दलदल में डूब जाएगी. जनता इस पार्टी को कितना समर्थन देती हैं यह तो आने वाले कुछ सालो में पता लग जायेगा. तब तक हम कयास लगाने के लिए बैठे ही हैं.
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Old 25-12-2012, 02:14 PM   #12
jitendragarg
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Default Re: राजनीति के माध्यम से 'देश-सेवा' का ठेका

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Originally Posted by arvind View Post
सामने वाले को गलत साबित कर खुद को सही सिद्ध करना - धूर्त राजनीतिज्ञो का यही तरीका है। खुद राजनीति कर रहे है तो सही, और अगर सामने वाला कर रहा है तो गलत। अगर टीम अन्ना का "असली मकसद" इन्हे दिख ही गया, तो इनके पेट मे मरोड़ क्यो होने लगा। "राजनीति" करने का "लाईसेंस" यही लोग देते है क्या? और क्या टीम अन्ना के लोग इनसे बिना "लाईसेंस" लिए ही "राजनीति" करने जा रहे है? दूसरे की तरफ अंगुली उठाने वाले, पहले ये भी देख ले की चार उंगुली उनके तरफ भी है। मगर बेशर्मी से कह देंगे की ये हमारे विरोधियों की चाल है।

अन्ना हज़ारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जब संधर्ष शुरू किया तो सारे भ्रष्टाचारी नेता, चाहे वो किसी भी दल के हो, पूरा दाना पानी लेकर टीम अन्ना के खिलाफ मुहिम मे जुट गए थे। सबका इतिहास ढूंढ रहे थे, अन्ना को सेना से भगोड़ा बताने के लिए एड़ी चोटी एक किए हुये थे, पाँच साल बाद अरविंद केजरीवाल के पास लाखो रुपये चुकाने के लिए विभागीय नोटिश आता है। वही सभी भ्रष्टाचारी नेता आराम से स्विस बैंक मे अपना बैंक बैलेन्स बढ़ाने मे लगे हुये रहते है। एक माननीय मंत्री जी संसद भवन खुलेआम अन्ना हज़ारे का माखौल उड़ाते है, और बाकी मंत्री बेशर्मी से उसपर ठहाका लगाते है। कोई उनको चुनाव लड़कर जीतने के लिए ललकारता है, कोई उनके दौड़ने पर आश्चर्य करता है.... हद हो गई भाई। मगर किसी ने इसके पीछे छिपी मंशा पर कुछ नहीं बोला। बोलते भी कैसे..... भला कोई अपने पैर मे कुल्हाड़ी कैसे मार सकता है? कैसे कह सकता है की देश मे भ्रष्टाचार खत्म होना चाहिये। कैसे कहे की मुझे जेल भेज दो। बेहतर है की अन्ना को ही जेल भेज दो। कैसे कहे की हम दोषी है, इसीलिए अन्ना को दोषी कह दो। कैसे कहे की भ्रष्टाचार खत्म करो, इसीलिए अन्ना को खत्म कर दो।
main aapki ek ek bat se sehmat hu.
__________________
jitendragarg is offline   Reply With Quote
Old 06-01-2013, 02:33 AM   #13
bharat
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Default Re: राजनीति के माध्यम से 'देश-सेवा' का ठेका

अन्ना हजारे जी एक कंफ्यूज्ड से कैरेक्टर लगे मुझे तो! ऐसा लगा जैसे अपनी कोई सोच समझ रखते ही नहीं है और कुछ भी कहकर पलट जाना या फैसले बदलना उनकी ख़ास आदत है! ठीक है आपने भ्रष्टाचारियों को सजा दिलवाई है पिछले कुछ सालों में (दिल्ली में रामदेव के साथ पहली बार मंच पर आये तब मुझे मालूम हुआ था की ये भी कोई हैं!, बाद में उसी रामदेव को आँख दिखाने लगे !) खैर ये मेरे निजी विचार हैं जो हाल फिलहाल की घटनाओं से मेरे मन में उपजे!
केजरीवाल को लेकर दिल में सिर्फ एक ही शंका है की बुरे लोगों या भ्रष्ट लोगों की आस्तीन में हाथ डालकर एकदम छोड़ क्यूँ देते हैं! सुब्रमण्यम स्वामी के शब्दों में कहूँ तो हिट एंड रन वाला फंडा किसी काम का तो नहीं है! बल्कि ऐसा जरूर लगता है की पुराणी बातों से ध्यान भटकाने के लिए नया कुछ खोज फिर उसे भी बीच में ही छोड़ दिया!
और उस पर नवीन जिंदल के बारे में कहीं एक भी शब्द न बोलना??? उसके खिलाफ भी भ्रष्टाचार के आरोप लगें हैं तो वहां आकर केज्ज्रिवाल जी की बहादुरी या भ्रष्ट लोगों को सजा दिलवाने की कसम को क्या हो जाता है!

(निजी विचार हैं, कृपया अपना मत दें!)
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