07-10-2014, 01:01 AM | #1 |
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Ek kahani :खुश खबरी
"हेलो" ! एक औरत की आवाज़ थी । "हाँ हेलो । आप कौन" ? "तेरी बड़ी दीदी बोल रही हु" । एक लम्बा विराम ,शायद उन्हें नमस्ते का इंतज़ार था| " हाँ बोलो क्या काम है ।" उसे याद है जब उसने पहली बार बिना किसी लल्लो-चप्पो के सीधा इसी तरह काम भर पूछा था तो कितनी चिल्ल-पौ मचायी थी इसी दीदी ने । कितना चिल्लाई थी … "बस काम के लिए फ़ोन करेंगे तुझे। । याद आई थी तेरी … तेरे भांजे को वीडियो गेम चाहिए .... कह रहा था मामा बम्बई से ला देंगे .... पर ये तो बड़े काम वाले हो गए … " । पर वो सुनता रहा पर उसे माफ़ी नहीं मांगी । और उसके बाद चीजे कितनी आसान हो गयी ,दोनों तरफ शायद फ़ोन के बिल काम आने लगे हो । "तू चाचा बन गया … भइया के ... " "अच्छा " वो ढूंढ ना पाया उसे क्या बोलना है । "सब कहा है?हॉस्पिटल में " "हां और कहा होंगे । बाहर निकले थे। सोचा तुम्हे भी बता दे "। "अच्छा"|… लम्बी … ख़ामोशी … उसे खुशी नहीं थी .... कुछ भी नहीं था … एक सूचना भर थी उसके लिए …… एक अपडेट । पर वो जनता था उसे खुश होना चाहिए था , काम से काम बाहर से . . उसने पूरी ताकत लगा कर हसते हुए कहा पर वो हंस ना पाया …… "'अच्छा ...." वो ऑफिस लेट से आया … । उसने सोचा वो लेट आने का कारण बताएगा ,पर उसने सोचा वो इस खबर को बचा कर रखेगा और कभी छुट्टी के लिए काम में लेगा ; जैसे उसने अपने दादा, दादी,चाचा के मरने की खबर को लिया था । सालो हो गया था उन्हें गुजरे ,… पर हर लम्बी छुट्टी पर उसने..... । शुरू में उसे लगता था की वो फिर मर रहे है | सब नेचुरल लगे इसलिए वो महसूस करने की कोशिश करता था ,जैसा उसे तब लगा था जब वो मर रहे थे । उसे याद है उसे ये खबरे भी इसी तरह फ़ोन पर दी गयी थी पर बहुत सारे लल्लो-चप्पो के साथ । उसने पूछा था की मै आऊ ? …। वो अक्सर सोचता है ये सारे लोग अगर उसकी आँखों के सामने मरे होते तो शायद थोड़ा नार्मल होता । किसी का दिमाग इस तरह काम नहीं करता की … एक फ़ोन पहले कोई हो .. उसके बाद नहीं । शायद यही कारण है की उसके सपनो में वो लोग अब भी जिन्दा है , हसते है .... उसी तरह … जैसे कुछ बदला ही ना हो । उसने आज किसी से ज्यादा बात नहीं की , बस अधमुंदी आँखे लिए काम करता रहा … लंच के लिए भी नहीं गया ..भुख नहीं थी ।पर किसी को इसमें कुछ अजीब नहीं लगा । वो इंटरनेट पर बच्चो के नाम ढूंढने लगा ....| तभी उसे महसूस हुआ की उसने पूछा ही नहीं की लड़का है या लड़की ...| ये तो वो पूछ सकता था। ।और वो पूछ सकता था की लड़की का वज़न कितना है?… सब ठीक है या नहीं। …। वो पूछ सकता था वही सब सवाल ,जो हर कोई पूछता है.. .इन् मौको पर.. हमेशा से ;शायद उसके पैदा होने पर भी यही सवाल पूछे होंगे लोगो ने । उसका बचपन याद आने लगा ; उसे लगता ही नहीं की कभी वो खुश था। । ये सब उसे शाम को देखे सपनो का हिस्सा भर लगते है । उसे याद आने लगा भइया किस तरह उसे सायकिल सिखाया करते थे ..... और भी बहुत कुछ याद आया उसे ;उसका शहर याद याद आया उसे जो अब उसका नहीं था । "मैंने कद्र नहीं की किसी की। " वो बुदबुदाया "क्या हुआ everything is ok ?" एक पल को बगल मे बैठे बन्दे ने कंप्यूटर से आँखे हटाई । "या। man " 'उसने भी एक पल को उसकी और देखा।.......... अब वो दोनो कंप्यूटर की और देख रहे थे । बस एक दूसरे से बच रहे थे । शाम को भी उसने डिनर नहीं लिया ; भूख नहीं थी ...उसकी आँखे लाल थी ; वो सबके चले जाने के बाद हलके से उठे। . पर किसी को इसमें कुछ अजीब नहीं लगा । अपने पिंजरे से रूम पर लौटे आया। । चैनल बदलता रहा। …। फिर सोने चला गया। ॥ रात के अँधेरे में उठा। ....... और बेतहशा रोने लगा। … जैसे किसी ने जोर से मारा हो या कोई मर गया हो | |
07-10-2014, 12:06 PM | #2 |
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Re: Ek kahani :खुश खबरी
एक गज़ब की कहानी हमसे शेयर करने के लिए आपका धन्यवाद, मित्र कृष्ण गोपाल जी. इस कहानी का परिवेश वर्तमान युग की देन है. आज व्यक्ति सामाजिकता से छिटक गया है. खोखले रिश्तों को ढोने के लिये विवश. आज उसकी स्थिति एक टापू जैसी हो गयी है जहाँ चारों ओर शून्य है, वीराना है, निराशा है और दूर तक कोई ऐसा नहीं जिसे दिल से अपना कहा जा सके. यही खालीपन या एकाकीपन जब हद से बढ़ जाता है तो व्यक्ति चीत्कार कर उठता है. यह है अरण्यरोदन जिसे सुनने वाला कोई नहीं. एक जटिल सामाजिक कार्य-व्यापार से उपजी यथार्थ कथा के लिए मेरी बधाई स्वीकार करें.
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07-10-2014, 05:07 PM | #3 |
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Re: Ek kahani :खुश खबरी
मित्र कृष्ण जी आपने इस लघु कथा में खोकले रिश्तों का बड़ा ही सुंदर विवेचन पस्तुत किया हें.........
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07-10-2014, 09:27 PM | #4 |
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Re: Ek kahani :खुश खबरी
अत्याधुनिक युग की शुरुवात में इन्सान को आगे संभल जाने का आवाहन है इस कहानी में. कहानी के माध्यम से आने वाले समय में इन्सान कितना अकेला हो जायेगा ये अभी हम सोच भी नही सकते ... अतिसुन्दर
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07-10-2014, 11:12 PM | #5 |
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Re: Ek kahani :खुश खबरी
बहुत ही अच्छी कहानी लिखी है आपने , दिल को छूने वाली और सोचने पे मजबूर करने वाली कि हम कहाँ जा रहे हैं और जिस ओर बढ़ रहे हैं वहां से क्या मिलेगा हमें ?
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09-10-2014, 01:46 AM | #6 |
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Re: Ek kahani :खुश खबरी
thank you rajnish sir ..for your kind words .....
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09-10-2014, 01:47 AM | #7 |
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Re: Ek kahani :खुश खबरी
thanks dr shree vijay for giving me and my story your time ...
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09-10-2014, 01:48 AM | #8 |
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Re: Ek kahani :खुश खबरी
thanks for your kind word .... i really need suggestion and guidance
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09-10-2014, 01:48 AM | #9 |
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Re: Ek kahani :खुश खबरी
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09-10-2014, 01:49 AM | #10 | |
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Re: Ek kahani :खुश खबरी
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