10-03-2012, 07:59 PM | #32 |
Diligent Member
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Re: दोहावली
रहिमन जिह्वा बावरी, कहिगै सरग पाताल ।
आपु तो कहि भीतर रही, जूती खात कपाल ॥ रहिमन निज मन की विथा, मन ही राखो गोय । सुनि अठिलै है लोग सब, बांटि न लैहे कोय ॥ रहिमन जाके बाप को, पानी पिअत न कोय । ताकी गैर अकास लौ, क्यों न कालिमा होय ॥ रहिमन उजली प्रकृति को, नहीं नीच को संग । करिया वासन कर गहे, कालिख लागत अंग ॥ |
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