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Old 31-07-2012, 04:40 PM   #91
Dark Saint Alaick
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Default Re: डार्क सेंट की पाठशाला

समय को बरबाद क्यों करें

अक्सर हम यह कह देते हैं कि समय कम है। ऐसा कह कर हम बच नहीं सकते। यह तो जीवन की एक सच्चाई है। अगर समय कम है, तो फिर समझदारी इसी बात में दिखती है कि हम इसे जरा भी बर्बाद न करें। दरअसल जिंदगी में सफल वही होते हैं, जो जीवन से आखिरी बूंद की संतुष्टि और ऊर्जा भी निचोड़ लेते हैं। वे इसी सरल नियम पर अमल करके ऐसा करते हैं। वे अपने जीवन में उन चीजों पर ही ध्यान देते हैं, जिन पर उनका नियंत्रण होता है और फिर वे बस, मितव्ययिता से (समय की दृष्टि से) बाकी चीजों की चिंता छोड़ देते हैं। अगर कोई आपसे सीधे मदद मांगता है, तो आप मदद कर सकते हैं या इनकार भी कर सकते हैं। चुनाव आपका है, लेकिन अगर सारी दुनिया आपसे मदद मांगने लगे, तो आपके वश में कुछ खास नहीं होता। इस बात पर खुद को कोसने से कोई फायदा नहीं होगा, सिर्फ समय ही बर्बाद होगा। कई ऐसे क्षेत्र होते हैं, जिनमें आप व्यक्तिगत फर्क डाल सकते हैं और बाकी क्षेत्र ऐसे होते हैं, जहां आप सुई की नोक बराबर भी फर्क नहीं डाल सकते। अगर आप किसी ऐसी चीज को बदलने में वक्त बर्बाद कर रहे हैं, जो कभी नहीं बदलने वाली, तो जिंदगी आपके पास से फर्राटे से गुजर जाएगी और आप मौके चूक जाएंगे। दूसरी ओर, अगर आप खुद को ऐसी चीजों या क्षेत्रों में समर्पित करते हैं, जिन्हें आप बदल सकते हैं या जहां आप फर्क डाल सकते हैं, तो जिंदगी ज्यादा समृद्ध और सार्थक बन जाएगी। जाहिर है, अगर हममें से ज्यादातर लोग मिलकर कोशिश करें, तो हम कुछ भी बदल सकते हैं। खुद से शुरू करें और फिर इसे बाहर की ओर फैलने दें। इस तरह उन लोगों को उपदेश देने में हमारा वक्त बर्बाद नहीं होगा, जो सुनना ही नहीं चाहते। हम उन चीजों में अपनी कोशिश, ऊर्जा या संसाधन बर्बाद नहीं करेंगे, जिन पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है या जहां किसी भी तरह की सफलता तय नहीं है। जहां तक खुद को बदलने का सवाल है, परिणाम तय है। बेहतरीन परिणाम।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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Old 02-08-2012, 12:47 PM   #92
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Default Re: डार्क सेंट की पाठशाला

सपने को हकीकत में बदलें

अक्सर लोग अपने सपनों को बहुत सीमित कर लेते हैं, लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए। आप अपने सपनों को बख्श दें। उन पर कोई सीमा न लादें। यथार्थवादी तो योजनाओं को होना चाहिए, सपनों को नहीं। दरअसल लोग अपने सपनों को उसी तरह सीमित कर लेते हैं, जिस तरह वे अपनी जीत को कर लेते हैं। यह तय मानें कि बुरी से बुरी स्थिति में भी सपने हानिरहित होते हैं, इसलिए उन्हें सीमित न करें। आपको यह भी पूरी छूट है कि आप जितने चाहें उतने ऊंचे, लंबे-चौड़े, बड़े, असंभव, अतिरंजित, अजीबोगरीब, अनोखे या अयथार्थवादी सपने देखें। आपको इस बात की भी छूट है कि आप अपने दिल में कोई भी हसरत रख सकते हैं। हरसतें और सपने निजी मामले हैं। हसरतों पर पुलिस निगरानी नहीं करती है, न ही सपनों के डॉक्टर होते हैं, जो अयथार्थवादी मांगों के लिए इंजेक्शन लगा देंगे। यह आपके और सपनों के बीच का निजी मामला है। आपके अलावा कोई और है ही नहीं। हां, इस बारे में बहुत सतर्क रहें कि आप किस तरह की इच्छा करते हैं या सपने देखते हैं। ध्यान रहे कि आपकी इच्छा या सपना साकार हो सकता है। फिर आपका क्या होगा? बहुत से लोग सोचते हैं कि उन्हें सिर्फ यथार्थवादी सपने ही देखने चाहिए। यह गलत बात है। यथार्थवादी तो योजना होनी चाहिए और वह बिलकुल अलग चीज है। हर समझदार शख्स योजनाएं बनाता है और उन्हें पूरा करने के लिए तार्किक कदम उठाता है, लेकिन सपने तो असंभव हो सकते हैं। उन्हें इतना असंभव बनने की छूट है कि उनके साकार होने की रत्ती भर भी संभावना न हो और यह न सोचें कि आप खुली आंखों से सपने देखकर कुछ हासिल नहीं कर पाएंगे। सबसे सफल लोगों में से कई ऐसे थे, जिन्होंने सबसे ज्यादा सपने देखने का जोखिम लिया। यह महज संयोग नहीं है। इसलिए सपने देखें और उन्हें पूरा करने की भी ठानें। यह तय मानिए कि अगर आपने सपने को हकीकत में बदलने की ठान ली, तो आप कामयाब भी होंगे।
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Old 02-08-2012, 12:50 PM   #93
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Default Re: डार्क सेंट की पाठशाला

एक मां की अनूठी शिक्षा

एक बार व्यापार के लिए निकले एक अफगान व्यापारी बशीर मुहम्मद ने मालदा शहर के एक बड़े बगीचे में रात बिताई। सवेरे अपना सामान समेटकर वह वहां से आगे कि लिए चल पड़ा। कई मील दूर पहुंचने पर जब उसने अपना सामान देखा, तो याद आया कि रुपयों से भरी थैली तो उस बगीचे एक पेड़ की डाली पर ही लटकी रह गई है। यह जानकर वह काफी दुखी हुआ। उसने सोचा कि थैली तो मिलने से रही। उसे तो कोई ले ही गया होगा। फिर रुपयों के बिना व्यापार के लिए भी आगे नहीं जाया जा सकता। दुखी मन से वह वापस उसी ओर चल पड़ा। संयोगवश वीरेश्वर मुखोपाध्याय नामक एक बालक बगीचे में पहुंचा। खेलते - खेलते वह उस पेड़ के पास पहुंच गया, जिस पर रुपयों से भरी थैली टंगी थी। बालक ने उत्सुकतावश थैली को नीचे उतारा। उसके अंदर सोने की मुद्राएं देखकर वह हैरान रह गया। उसने बगीचे के रखवाले से पूछा कि यहां कौन आया था? रखवाले ने बताया कि काबुल का व्यापारी रात गुजारकर यहां से दक्षिण की ओर रवाना हुआ है। यह सुनते ही बालक थैली लेकर दक्षिण की ओर दौड़ चला। तभी उसे बशीर मुहम्मद उस ओर आता हुआ नजर आया। बालक ने उसकी पोशाक देखकर अंदाजा लगा लिया कि यही काबुली व्यापारी है। उधर बशीर मुहम्मद ने भी बालक के हाथ में अपनी थैली देखी। बालक बोला - महाशय शायद यह थैली आपकी ही है। मैं इसे आपको लौटाने के लिए आ रहा था। एक नन्हे बालक के मुंह से यह सुनकर बशीर मुहम्मद दंग होकर बोला - क्या तुम्हें रुपयों से भरी थैली देखकर लालच नहीं आया? यह सुनकर बालक सहजता से बोला - मेरी मां मुझे कहानियां सुनाते हुए बताया करती है कि दूसरे के धन को मिट्टी के समान समझना चाहिए। चोरी करना घोर पाप है। थैली देखकर मेरा मन जरा भी नहीं डगमगाया। बालक की बात पर बशीर मुहम्मद बोला - धन्य है तुम्हारी मां। अगर हरेक मां अपने बच्चे को ऐसी ही शिक्षा दे, तो समाज से बुराई पूरी तरह खत्म हो जाएगी। इसके बाद बशीर मुहम्मद बालक को आशीर्वाद देकर चला गया।
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Old 03-08-2012, 12:15 AM   #94
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Default Re: डार्क सेंट की पाठशाला

अतीत को भूल वर्तमान में जिएं

अतीत चाहे जैसा भी हो, जा चुका है। जो बीत चुका है, उसे बदलने के लिए आप कुछ नहीं कर सकते। इसलिए आपको अपना ध्यान वर्तमान की ओर मोड़ना चाहिए। जो गुजर गया, उसमें अटके रहने के प्रलोभन को छोड़ना मुश्किल होता है, लेकिन अगर आप जिंदगी में सफल होना चाहते हैं, तो आपको अपना ध्यान उस ओर मोड़ना होगा, जो इस वक्त हो रहा है। अतीत में फंसे रहना आपको इसलिए रास आ सकता है, क्योंकि वह या तो भयंकर था या फिर अद्भुत था। दोनों ही मामलों में आपको उसे पीछे छोड़ना होगा, क्योंकि सही तरह से जीने का इकलौता तरीका वर्तमान में है। अगर आप पश्चाताप की वजह से अतीत की यात्राएं कर रहे हैं, तो आपको यह समझना चाहिए कि आप पलटकर वहां नहीं जा सकते और अपनी की हुई चीज को पलट नहीं सकते। अपराध बोध का शिकार होकर आप सिर्फ खुद को नुकसान पहुंचा रहे हैं। हम सभी ने अपने अतीत में बुरे निर्णय लिए हैं, जिनकी वजह से हमारे आस-पास के लोगों को नुकसान हुआ है। जिनसे हम प्रेम करने का दावा करते हैं, उनके साथ हमने जाने-अनजाने में शर्मनाक बर्ताव किया है। आप स्लेट साफ करने के लिए कुछ नहीं कर सकते। आप तो सिर्फ यह संकल्प कर सकते हैं कि दोबारा इस तरह के बुरे निर्णय नहीं लेंगे। हमसे कोई इससे ज्यादा क्या उम्मीद कर सकता है कि हम यह मान लें कि हमने गड़बड़ की और हम उस चीज को न दोहराने की अपनी सबसे अच्छी कोशिश कर रहे हैं। अगर आपको अतीत बेहतर लगता था और आप पुराने सुनहरे दिनों के लिए लालायित हैं, तो उन यादों को सुहानी मानें, लेकिन आगे बढ़ जाएं और अपनी ऊर्जा वर्तमान की दिशा में लगाएं, ताकि अब आपको अलग तरह का अच्छा समय मिल सके। हर दिन जागने पर हमारी नई शुरुआत होती है और हम इसे जैसा चाहें, वैसा बना सकते हैं। इस पर खाली कैनवास की तरह जो चाहें, लिख सकते हैं। यहीं पर जिएं, अभी जिएं, वर्तमान पल में जिएं।
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Old 03-08-2012, 12:19 AM   #95
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एक वैज्ञानिक की उदारता

प्रसिद्ध वैज्ञानिक वॉटसन अक्सर अपने अनुसंधानों के लिए घर से बाहर रहते थे। इसके अलावा उन्हें कई देशों में व्याख्यानों के लिए भी जाना पड़ता था। वे जहां भी जाते थे, लोगों को विज्ञान से जुड़े बारीक से बारीक विषयों पर पूरी जानकारी भी दिया करते थे। इसके चलते लोगों में उन्हें सुनने और उनसे विज्ञान से जुड़ी जानकारियां हासिल करने की लालसा बनी ही रहती थी। इसी के चलते उन्हें कई-कई दिनों तक घर से बाहर रहना पड़ता था। उनकी पत्नी उनके लौटने का इंतजार ही करती रहती थी। एक बार लंबे विदेश दौरे से स्वदेश वापसी से पहले वॉटसन ने अपने घर पत्नी को संदेश भिजवाया कि मैं अमुक तारीख को वापस घर आ रहा हूं। तुम मुझे लेने गाड़ी लेकर जरूर स्टेशन पहुंच जाना। यह संदेश पाकर वॉटसन की पत्नी काफी प्रसन्न हुईं। उन्होंने अपने पति के स्वागत की तैयारी शुरू कर दी। निश्चित दिन वह नौकर को साथ लेकर गाड़ी से रेलवे स्टेशन पहुंच गईं। उन्होंने गाड़ी में बैठे-बैठे ही नौकर को अपने साहब को लेकर आने को कहा। नौकर नया था। उसे कुछ दिन पहले ही काम पर रखा गया था। वह वॉटसन को नहीं पहचानता था। उसने मालकिन से साहब की पहचान पूछी। वॉटसन की पत्नी ने कहा - तुम्हें सूट-बूट में कोई अधेड़ व्यक्ति अपने ब्रीफकेस के अलावा किसी और का भी सामान उठाया हुआ दिखाई दे, तो समझ लेना वही तुम्हारे साहब हैं। नौकर सुन हैरान रह गया। जब प्लेटफॉर्म पर पहुंचा, तो देखा कि शालीन कपड़े पहने, हैट लगाए एक सज्जन एक हाथ में ब्रीफकेस और दूसरे हाथ में एक वृद्धा का बड़ा ट्रंक उठाए चले आ रहे हैं। उनके चेहरे के हाव-भाव और सेवा भावना से नौकर समझ गया कि जरूर वही उसके साहब होंगे। वह उनके प्रति श्रद्धा से भर उठा। उसका अनुमान सही था। वही वॉटसन थे। उसने अपने मालिक को अपना परिचय दिया और उन्हें लेकर आ गया। वॉटसन इसी तरह हर मौके पर दूसरों की मदद का कोई अवसर नहीं चूकते थे। अनेक लोगों ने इसी कारण उन्हें अपना आदर्श माना था और वे उन्हीं के जैसा आचरण करने की कोशिश करते थे।
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Old 03-08-2012, 08:40 PM   #96
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जीवन का हर क्षण आनंददायक

आज के भौतिकवादी युग में धन, सुख, प्रतिष्ठा, अच्छा परिवार और ओहदा होने के बावजूद भी न जाने क्यों अधिकांश लोगों के चेहरे प्रफुल्लित नहीं दिखाई देते। एक खिंचाव और तनाव बना रहता है। थोड़ी सी भी प्रतिकूलता असहनीय हो जाती है और मन चिंतित और तन शिथिल होने लगता है। असमंजस का शिकार होते देर नहीं लगती। न जाने क्यों भूल जाते हैं कि मन के जीते जीत है और मन के हारे हार। दरअसल जीवन का हर क्षण एक दैवी आनंद, स्फूर्ति और प्रेरणा से भरपूर होता है। शायद हम उसे ही जीना चाहते हैं। सच मानिए, हम उस आनंदमय जीवन के ही अधिकारी हैं। बस, अपने कर्तव्य पथ पर चलते हुए तपस्वी बनना होगा। यही आदेश है करुणासागर, महान पथ प्रदर्शक एवं योगेश्वर भगवान कृष्ण का, जिन्होंने मोहग्रस्त अर्जुन को कर्तव्याभिमुख करने के लिए गीता का उपदेश देते हुए कहा था कि सफल और संतुष्ट जीवन जीने के लिए मानव को तीन तप करते रहना होगा। वे तीन तप हैं - शारीरिक, वाणी का तथा मानसिक तप। वस्तुत: तपाचरण का अर्थ मात्र शारीरिक उत्पीड़न नहीं होता, अपितु इसका प्रायोजन तो अपनी शक्तियों का संचय करके और फिर उन्हें रचनात्मक कार्यों में प्रयोग करके आत्मविकास एवं आत्म साक्षात्कार करना होता है। अपने नैतिक विकास के लिए हमारा यह कर्तव्य बनता है कि हम अपने आराध्य, आदर्श अथवा इष्ट या लक्ष्य के प्रति श्रद्धा, भक्ति, आदर एवं सम्मान भाव रखें तथा जिन सत्पुरुषों ने इस आदर्श को प्रस्तुत किया, उन विद्वानों, गुरुओं तथा इस आदर्श के अनुमोदक ज्ञानीजन के प्रति भी सदैव दिल से कृतज्ञ रहें। शारीरिक स्वच्छता के साथ-साथ हम अपने व्यवहार को भी सरल बनाने का यथासंभव प्रयास करते रहें, क्योंकि हमारा कुटिल व्यवहार हमारे व्यक्तित्व को विभाजित करके हमारे मानसिक संतुलन और शारीरिक सामर्थ्य के लिए खतरा बन सकता है। इन्द्रिय नियंत्रण और अहिंसा में निष्ठा आदि को शारीरिक तप की संज्ञा दी गई है। ज़ाहिर है कि इसी में आत्म-कल्याण निहित है।
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Old 03-08-2012, 08:43 PM   #97
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लालची वैद्य का इलाज

एक शहर में एक मशहूर वैद्य रहता था। उसकी दवाएं अचूक होती थीं। वह जिस भी रोगी का इलाज करता, वह कुछ समय बाद स्वस्थ हो जाता था। इसके चलते उस वैद्य की ख्याति दूर-दूर तक हो गई थी, लेकिन उसमें एक खराबी थी कि वह लालची बहुत था। एक बार एक महिला अपने बच्चे को लेकर वैद्य के पास आई। उसने कई जगहों पर जाकर कई वैद्यों से अपने बच्चे को दिखाया और इलाज करवाया था, किन्तु कोई भी बच्चे के मर्ज को न तो सही तरीके से समझ पाया था और न ही मर्ज के अनुसार इलाज कर पाया था। थक हार कर वह महिला काफी उम्मीद लेकर इस वैद्य के पास आई थी। वैद्य ने बच्चे को देखकर दवाई दी। संयोगवश दवा ने ऐसा असर दिखाया कि बच्चा कुछ समय बाद बिल्कुल ठीक हो गया। हर बार वह औरत वैद्य को कुछ नकद रुपए देती थी, लेकिन इस बार बच्चे के बेहतर होते स्वास्थ्य के बारे में जानकर उसे बहुत खुशी हुई और उसने उपहार में वैद्य को रेशम का एक कीमती बटुआ दिया। बटुआ देखकर वैद्य नाक - भौं सिकोड़ने लगा और बोला - बहनजी, मैं इलाज का केवल नकद रुपया ही लेता हूं। ऐसे उपहार मुझे स्वीकार नहीं हैं। कृपया आप आज के इलाज का शुल्क भी उपहार रूप में नहीं, बल्कि नकद देकर ही चुकाइए। वैद्य के मुंह से यह सुनकर महिला दंग रह गई और बोली - आप के आज के इलाज के कितने रुपए हुए? वैद्य बोला - तीन सौ रुपए। महिला ने झट से उस रेशमी बटुए में से तीन सौ रुपए निकाले और वैद्य की ओर बढ़ा दिए। इसके बाद वह महिला वैद्य से बोली - अच्छा हुआ तुमने अपनी लालची प्रवृत्ति मेरे सामने उजागर कर दी। दरअसल मैंने खुश होकर इस बटुए में पांच हजार रुपए रखे थे। ये रुपए मैं तुम्हें अपनी श्रद्धा से देना चाहती थी। मेरा बच्चा तुम्हारे इलाज से सही हुआ था, इसलिए मैंने अतिरिक्त इनाम तुम्हें देना चाहा था, किंतु तुमने नहीं लिया। यह सुनकर वैद्य लज्जित हो गया और उसने उसी क्षण निश्चय किया कि आगे से वह कभी लालच नहीं करेगा और प्रत्येक व्यक्ति का इलाज सेवा-भावना से करेगा।
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संयम की सूचक है वाणी

दरअसल हमारे पास स्वयं को अभिव्यक्त करने का जो सबसे सशक्त माध्यम है, वह है हमारी वाणी। यह हमारी बौद्धिक पात्रता, मानसिक शिष्टता एवं शारीरिक संयम की सूचक होती है। यही कारण है कि वाणी के सतत क्रियाशील रहने से हमारी शक्ति का सबसे अधिक अपव्यय होता है और इसके संयम से ही एक बड़ी मात्रा में अपनी शक्ति का संचय भी किया जा सकता है, लेकिन इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि हम मौन रहकर आत्मनाश या पर-उत्तेजन का कारण बनते रहें। वाक्शक्ति के सदुपयोग द्वारा हम अपने व्यक्तित्व को सुगठित कर सकते हैं, इसलिए जरुरी है कि हम बोलते समय सावधान रहें, ताकि हम जो बोलें वह सत्य, प्रिय और हितकारी हो। सत्यवाणी हमारी शक्ति को व्यर्थ नष्ट होने से बचाती है। शब्दों की कटुता का मोल हमें कई बार अपने जीवन में या तो असफलता अथवा अपने मित्र-बंधुओं को खो कर चुकाना पड़ता है। निरर्थक भाषण से तो हमें केवल थकान ही हुआ करती है। सत्य, प्रिय और हितकारी वाणी द्वारा सुरक्षित की गई अपनी शक्ति का सदुपयोग हम ज्ञानवर्धक साहित्य का अध्ययन करने में, उसके अर्थ को ग्रहण करने में और यथासंभव अपने जीवन को बेहतर बनाने में कर सकते हैं। यही होता है वाणी का तप, जिसके आधार पर एक मनुष्य केवल श्रेष्ठतर आनंद की प्राप्ति ही नहीं करता, बल्कि अपने वचनों से किसी निराश अथवा जीवन से हार मान चुके हुए व्यक्ति को फिर से जीवन के प्रति सकरात्मक बनाकर सम्मान के साथ जीने की प्रेरणा देने जैसा पुण्य कर्म करने से कभी भी पीछे नहीं हटता। मन की शांति से बढ़कर इस संसार में कुछ है ही नहीं और जब इस दुनिया के साथ हमारा संबंध स्नेह, प्रेम, समझ, ज्ञान, क्षमा और सहिष्णुता जैसे स्वस्थ मूल्यों पर आधारित होता है, तब हमारा मन सदैव एक दिव्य शांति का आभास किया करता है। इसी शांत मन में सौम्यत्व का निवास होता है अर्थात बिना मानसिक शांति के मानव प्राणिमात्र के प्रति प्रेम और कल्याण की भावना की अनुभूति नहीं कर सकता।
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उज्ज्वल वेषधारी बगुला

एक बड़े संत की यह आदत थी कि वे चलते-चलते भी अपने शिष्यों को उपदेश देते थे और रास्ते में जो भी घटित होता था, उसको उदाहरण के साथ पेश कर अपने उपदेश से जोड़ कर उसका हल भी बतलाया करते थे। एक बार एक वे संत अपने शिष्यों के साथ वन में चले जा रहे थे। संत आगे-आगे चल रहे थे और शिष्य पीछे-पीछे। तभी रास्ते में एक विशाल सरोवर आ गया। उस सरोवर के पास से गुजर रहे एक पक्षी पर संत की नजर पड़ी। वह एक बगुला था। बगुला बड़ी मंद गति से चल रहा था। ऐसा लग रहा था, जैसे कोई साधु काफी संभल-संभल कर अपना पथ देखते हुए चल रहा हो। यह देख कर संत ने शिष्यों से कहा - देखो तो, ये पक्षी कैसे संभल-संभल कर चल रहा है। मानो वह परम धार्मिक हो। चलते समय वह अपने पांव भी कितनी सावधानी से रख रहा है। ऐसा लग रहा है कि कहीं उसके पांव के नीचे दबकर कोई जीव मर न जाए। वास्तव में यह कोई बड़ा साधु हृदय पक्षी लगता है। बगुले की प्रशंसा में संत अपने शिष्यों से कुछ न कुछ कहे जा रहे थे। अचानक तभी सभी को सरोवर से एक आवाज आती सुनाई दी। आवाज आने पर संत और उनके शिष्यों का ध्यान उस ओर जाना स्वाभाविक था। दरअसल सरोवर से आने वाली वह आवाज एक मछली की थी। वह कह रही थी - अरे ओ दुग्ध हृदय संत। जैसा आपका दिल दूध जैसा सफेद है, वैसा ही आप उस बगुले को भी देख रहे हो, जबकि हकीकत तो यह है कि बगुले की उज्ज्वलता तो ऊपरी है। उसके भीतर की रहस्य भरी बातें आप क्या जानो। यह भले ही सफेद दिख रहा है, लेकिन इसके मन में तो कालापन भरा हुआ है। आप इसके पास नहीं रहते और पहली बार आपने इसे देखा है। ये बातें तो वे ही जान सकते हैं जो इस बगुले के आसपास ही रहते हैं। आपके इस उज्जवल वेषधारी बगुले ने मेरा वंश चुन-चुन कर समाप्त कर दिया है। उसकी इस साधना का रहस्य जानना हो, तो मुझसे जानिए। ऐसे बहुत सारे लोग मिल जाएंगे, जो अपने पाप ढंकने के लिए धार्मिक काम करते रहते हैं। ऐसे लोगों से सावधान रहना चाहिए।
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जज्बे और क्षमता पर भरोसा रखें

महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित करना किसी धार्मिक परंपरा का हिस्सा नहीं हो सकता। महिला अधिकार ही मानवाधिकार है और मानवाधिकार ही महिला अधिकार है। महिलाओं के अधिकारों की रक्षा किए बगैर आप मानवाधिकारों की रक्षा नहीं कर सकते। एक महिला जब तरक्की करती है, तो सच मानिए पूरा समाज तरक्की करता है। अब तो शिक्षा ने महिलाओं के विकास के नए दरवाजे खोले हैं। आज महिलाएं बड़ी कंपनियों का नेतृत्व कर रही हैं, बेहतरीन खिलाड़ी हैं, शिक्षा और राजनीति में भी उन्हें उच्च पद हासिल हुए हैं। महिलाएं सामाजिक कार्यों में भी पीछे नहीं हैं। शिक्षा महिलाओं के विकास के लिए ही नहीं बल्कि पूरे समाज के विकास के लिए बेहद जरूरी है। अगर किसी समाज को आगे बढ़ाना है तो सबसे पहले इसकी महिलाओं को शिक्षित करना होगा। महिलाओं को पीछे धकेलकर कोई समाज आगे नहीं बढ़ सकता। शिक्षा केवल महिलाओं को किताबी ज्ञान नहीं प्रदान करती बल्कि उनके अंदर आत्मविश्वास पैदा करती है। महिलाओं का आत्मविश्वास ही समाज की ताकत है। दुनिया के सामने इस समय कड़ी चुनौतियां हैं। आर्थिक मंदी, आतंकवाद, ग्लोबल वार्मिंग, यौन उत्पीड़न, बीमारियों का प्रकोप और बहुत कुछ। महिलाएं इन समस्याओं से निपटने में अहम भूमिका अदा कर सकती हैं। महिलाएं खुद अपने आदर्शो व विचारों की दूत हैं। उनको दुनिया का नेतृत्व करना है, इन तमाम चुनौतियों से निपटने के लिए। उनकी भूमिका केवल घर व समाज तक सीमित नहीं है। महिलाओं में समाज और दुनिया को चलाने की क्षमता है, कठिनाइयों से जूझने का जज्बा है। महिलाएं पुरुषों से कम नहीं हैं। हर क्षेत्र में उनका दखल होना चाहिए, हर क्षेत्र में उनका वजूद होना चाहिए, परंतु तरक्की के नए अवसरों के साथ ही महिला की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। वे अपने समाज का भविष्य तय कर सकती हैं और नई मिसाल कायम कर सकती हैं। महिलाओं को अपने जज्बे और क्षमता पर पूरा भरोसा करना चाहिए।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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