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27-03-2015, 08:54 PM | #1 |
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Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
मै उस पुराने दौर में चला जाता हुं जो कभी देखा ही नहीं है। विध्या सिंहा अब चाहे कैसी भी दिखती हो, कुछ भी करती हो...मैने तो उस दीपा को ही सत्य मान लिया है। वह सादी सी शर्मीली लडकी और उसके खोए खोए से खयाल। उसकी बेहद, बेहद खुबसुरत आंखे और उतनी ही सुंदर साडीयां। उसके लंबे बाल और मीठी मुस्कान। संजय का बेफिक्रपन, व्यवहार, नवीन के प्रति उदारता, ओफिस का टेन्शन, कितना एक्सेप्टेबल/स्वीकार्य है!
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27-03-2015, 08:54 PM | #2 |
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Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
ईब सव के बीच रजनीगंधा के वह फुल!
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27-03-2015, 08:55 PM | #3 |
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Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
मनु भंडारी की यह कहानी बासु दा को कैसे मिल गई और यह खुबसुरत फिल्म कैसे बन गई? नहीं 'छोटी सी बात' में 'रजनीगंधा' की छोटी सी बात भी नहीं लगती। वह फिल्म बहूत अलग है और यह बहूत अलग।
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27-03-2015, 08:55 PM | #4 |
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Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
मुल कहानी और फिल्म में फर्क तो होता ही है। संजय के केरेक्टर को यहां नवीन की लंबाई का कर दिया गया है। ईरा की बच्ची फिल्म में नहीं है। उसका व्यक्तित्व मुंबईया दिखाया गया है। नवीन को एड फिल्म का डिरेक्टर दिखाया गया है। फिर भी सब कुछ एकदम यथायोग्य है,स्वयं मनु भंडारी भी यह बात तो मानेंगे।
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27-03-2015, 08:58 PM | #5 |
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Re: मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में
फिर भी आज मन में यह गुस्ताख सी ख्वाहिश कैसे जागी? की एक फिल्म बनाउ? मुल कहानी में बदलाव किए बिना? यही कहानी फिर से मल्टीप्लेक्स के पर्दों पर दिखे तो? लेकिन विध्या सिंन्हा की जगह कौन ले सकता है? और अमोल की जगह किसी की कल्पना की जा सकती है? आज कल एक्सरिमेन्टल फिल्में भी चल रही है। क्या खयाल है?
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