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![]() युद्ध के संहार में, हिंसा-अहिंसा कुछ नहीं है, मारना-मरना, विजय का मर्म स्वाभाविक समर का। युद्ध में वीणा नहीं, रणभेरियाँ या शंख बजते, युद्ध का है कर्म हिंसा, है अहिंसा धर्म घर का। कर रहे है युद्ध हम भी, लक्ष्य है स्वाधीनता का, खून का परिचय, ---- to read complete poem go to below link https://www.facebook.com/pages/Hindi...00201783375465 |
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