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Old 19-08-2011, 12:14 PM   #151
vijaysr76
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Default Re: बच्चो को सीख देने वाली कहानी

आस्था
एक शिष्य अपने गुरु से शिक्षा पाने के बाद स्वतंत्र रूप से चिंतन-मनन और ध्यान करने लगा। उसके कुछ सार्थक नतीजे सामने आए। वह अपने गुरु को बताने के लिए उत्सुक हो उठा। एक दिन तैयार होकर वह गुरु के दर्शन के लिए चल पड़ा। बारिश के दिन थे और रास्ते में एक गहरी नदी पड़ी। वह बरसात के पानी से उफन रही थी। बहाव बहुत तेज था। लेकिन शिष्य को अपने गुरु पर अपार श्रद्धा थी। नदी उसके मार्ग में बाधक बनना चाहती थी, पर जब वह नदी के किनारे पहुंचा तो उसने अपने गुरु का नाम लेते हुए पानी में कदम रखा और निर्विघ्न उस पार पहुंच गया। नदी के दूसरे किनारे पर ही उसके गुरु की कुटिया थी। गुरु ने अपने शिष्य को बहुत दिनों बाद देखा तो उनकी प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। शिष्य ने चरणस्पर्श किया और उन्होंने उसे बीच से ही उठा कर गले से लगा लिया। फिर पूछा कि ऐसी उफनती हुई बरसाती नदी को उसने पार कैसे किया। शिष्य ने बताया कि किस तरह हृदय में उसने गुरु का ध्यान धरा और नाम जपता हुआ इस पार पहुंच गया। गुरु ने सोचा, यदि मेरे नाम में इतनी शक्ति है तो जरूर मैं बहुत ही महान और शक्तिशाली संत हूं। अगले दिन बिना नाव का सहारा लिए उन्होंने नदी पार करने के लिए मैं..मैं..मैं.. कहकर जैसे ही कदम बढ़ाया, पांव फिसल गया और नदी की तेज धार उन्हें बहा ले गई। ऐसी चमत्कारी शक्ति किसी व्यक्ति में नहीं, उसकी आस्था में ही होती है।
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Old 25-08-2011, 06:30 PM   #152
MANISH KUMAR
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Default Re: बच्चो को सीख देने वाली कहानी

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Originally Posted by vijaysr76 View Post
आस्था
एक शिष्य अपने गुरु से शिक्षा पाने के बाद स्वतंत्र रूप से चिंतन-मनन और ध्यान करने लगा। उसके कुछ सार्थक नतीजे सामने आए। वह अपने गुरु को बताने के लिए उत्सुक हो उठा। एक दिन तैयार होकर वह गुरु के दर्शन के लिए चल पड़ा। बारिश के दिन थे और रास्ते में एक गहरी नदी पड़ी। वह बरसात के पानी से उफन रही थी। बहाव बहुत तेज था। लेकिन शिष्य को अपने गुरु पर अपार श्रद्धा थी। नदी उसके मार्ग में बाधक बनना चाहती थी, पर जब वह नदी के किनारे पहुंचा तो उसने अपने गुरु का नाम लेते हुए पानी में कदम रखा और निर्विघ्न उस पार पहुंच गया। नदी के दूसरे किनारे पर ही उसके गुरु की कुटिया थी। गुरु ने अपने शिष्य को बहुत दिनों बाद देखा तो उनकी प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। शिष्य ने चरणस्पर्श किया और उन्होंने उसे बीच से ही उठा कर गले से लगा लिया। फिर पूछा कि ऐसी उफनती हुई बरसाती नदी को उसने पार कैसे किया। शिष्य ने बताया कि किस तरह हृदय में उसने गुरु का ध्यान धरा और नाम जपता हुआ इस पार पहुंच गया। गुरु ने सोचा, यदि मेरे नाम में इतनी शक्ति है तो जरूर मैं बहुत ही महान और शक्तिशाली संत हूं। अगले दिन बिना नाव का सहारा लिए उन्होंने नदी पार करने के लिए मैं..मैं..मैं.. कहकर जैसे ही कदम बढ़ाया, पांव फिसल गया और नदी की तेज धार उन्हें बहा ले गई। ऐसी चमत्कारी शक्ति किसी व्यक्ति में नहीं, उसकी आस्था में ही होती है।

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