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Old 14-12-2010, 07:18 AM   #11
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Post Re: मुल्ला नसरुद्दीन की कहानी

बूढ़े ने खाँसते हुए कहना शुरू किया,‘यह घटना पुराने अमीर के ज़माने की है। मुल्ला नसरुद्दीन के बुखारा से निकल जाने के लगभग अठारह महीने के बाद बाजा़रों में अफवाह फैली कि वह ग़ैर-क़ानूनी ढंग से चोरी-छिपे फिर बुखारा में लौट आया है और अमीर का मजा़क़ उड़ाने वाले गीत लिख रहा है। यह अफ़वाह अमीर के महल तक भी पहुँच गई। सिपाहियों ने मुल्ला नसरुद्दीन को बहुत खोजा, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। अमीर ने उसके पिता, दोनों भाइयों, चाचा और दूर तक के रिश्तेदारों और दोस्तों की गिरफ्*तारी का हुक्म दे दिया। साथ ही यह भी हुक्म दे दिया कि उन लोगों को तब तक यातानाएँ दी जाएँ जब तक कि वे नसरुद्दीन का पता न बता दें। अल्लाह का शुक्र है कि उसने उन लोगों को खामोश रहने और यातनाओं को सहने की ताक़त दे दी। लेकिन उसका पिता जीनसाज़ शेर मुहम्मद उन यातनाओं को सहन नहीं कर पाया। वह बीमार पड़ गया और कुछ दिनों बाद मर गया। उसके रिश्तेदारों और दोस्त अमीर के गुस्से से बचने के लिए बुखारा छोड़कर भाग गए। किसी को पता नहीं कि वे कहाँ हैं?....

‘लेकिन उन पर जोर-जुल्म क्यों किए गए?’मुल्ला नसरुद्दीन ने ऊँची आवाज़ में पूछा। उसकी आँखों में आँसू बह रहे थे। लेकिन बूढ़े ने उन्हें नहीं देखा।

‘उन्हें क्यों सताया गया? मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि मुल्ला नसरुद्दीन उस समय बुखारा में नहीं था।’‘यह कौन कह सकता है?’ बूढ़े ने कहा, ‘मुल्ला नसरुद्दीन की जब जहाँ मर्जी होती है, पहुँच जाता है। हमारा बेमिसाल मुल्ला नसरुद्दीन हर जगह है, और कहीं भी नहीं है।’ यह कहकर बूढ़ा खाँसते हुए आगे बढ़ गया। नसरुद्दीन ने अपने दोनों हाथों में अपना चेहरा छिपा लिया और गधे की ओर बढ़ने लगा। उसने अपनी बाँहें गधे की गर्दन में डाल दीं और बोला, ‘ऐ मेरे अच्छे और सच्चे दोस्त, तू देख रहा है मेरे प्यारे लोगों में से तेरे सिवा और कोई नहीं बचा। अब तू ही मेरी आवारागर्दी में मेरा एकमात्र साथी है।’गधा जैसे अपने मालिक का दुख समझ रहा था। वह बिल्कुल चुपचाप खड़ा रहा।

घंटे भर बाद मुल्ला नसरुद्दीन अपने दुख पर काबू पा चुका था। उसके आँसू सूख चुके थे।

‘कोई बात नहीं,’गधे की पीठ पर धौल लगाते हुए वह चिल्लाया,‘कोई चिंता नहीं। बुखारा के लोग मुझे अब भी याद करते हैं। किसी-न-किसी तरह हम कुछ दोस्तों को खोज ही लेंगे और अमीर के बारे में ऐसा गीत बनाएँगे-ऐसा गीत बनाएँगे कि वह गुस्से से अपने तख्त़ पर ही फट जाएगा और उसकी गंदी आँतें महल की दीवारों पर जा गिरेंगी। चल मेरे वफ़ादार गधे!आगे बढ़।
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Old 14-12-2010, 07:20 AM   #12
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मुल्ला नसरुद्दीन की दास्तान – 9
मुल्ला के शहर पहुंचा टैक्स अफसर

(पिछले बार आपने पढ़ाः मुल्ला अपने शहर में)

बुखारा में मुल्ला नसरुद्दीन को न तो अपने रिश्तेदार मिले और न पुराने दोस्त। उसे अपने पिता का मकान भी नहीं मिला।.....मुल्ला नसरुद्दीन कुछ देर तक नीची निगाह किए चुपचाप खड़ा रहा। पूरे बदन को कँपा देने वाली खाँसी की आवाज़ सुनकर वह चौंक पड़ा।...मुल्ला नसरुद्दीन ने उसे रोककर कहा, ‘अस्सलाम वालेकुम बुजुर्गवार, क्या आप बता सकते हैं कि इस जमी़न पर किसका मकान था?’ ‘यहाँ जीनसाज़ शेर मुहम्मद का मकान था।’ बूढ़े ने उत्तर दिया......‘मुल्ला नसरुद्दीन के बुखारा से निकल जाने के लगभग अठारह महीने के बाद बाजा़रों में अफवाह फैली कि वह ग़ैर-क़ानूनी ढंग से चोरी-छिपे फिर बुखारा में लौट आया है और अमीर का मजा़क़ उड़ाने वाले गीत लिख रहा है।....अमीर ने उसके पिता, दोनों भाइयों, चाचा और दूर तक के रिश्तेदारों और दोस्तों की गिरफ्*तारी का हुक्म दे दिया। लेकिन उसका पिता जीनसाज़ शेर मुहम्मद उन यातनाओं को सहन नहीं कर पाया। वह बीमार पड़ गया और कुछ दिनों बाद मर गया।......

.....मुल्ला यह सुनकर रोता है और फिर आगे बढ़ जाता है।)

उसके आगे..

मुल्ला के शहर पहुंचा टैक्स अफसर

तीसरे पहर का सन्नाटा चारों और फैला हुआ था। धूल से भरी सड़क के दोनों और के मकानों की कच्ची दीवारों और बाड़ों से अलसायी-सी गर्मी उठ रही थी। पोंछने से पहले ही पसीना मुल्ला नसरुद्दीन के चेहरे पर फैल जाता था।

बुखारा की चिरपरिचित सड़कों, मस्जिदों की मीनरों और कहवाखानों को उसने बड़े प्यार से पहचाना। पिछले दस वर्षों में बुखारा में रत्ती भर भी फर्क नहीं आया था। रँगे हुए नाख़ूनवाले हाथों से बुर्क़ा उठाए एक औरत बड़े सजीले ढंग से झुककर गहरे रंग के पानी में पतली-सी सुराही डुबो रही थी।

मुल्ला के सामने सवाल यह था कि खाना कहाँ से और कैसे मिले? उसने पिछले दिन से तीसरे बार पटका अपने पेट पर कसकर, बाँध लिया था। ‘कोई-न-कोई उपाय तो करना ही पड़ेगा मेरे वफादार गधे।‘ उसने कहा, ‘हम यहीं रुककर कोई उपाय सोचते हैं। सौभाग्य से यहाँ एक कहवाखाना भी है।‘

लगाम ढीली करके उसने गधे को एक खूँटे के आसपास पड़े तिपतिया घास के टुकड़ों को चरने के लिए छोड़ दिया और अपनी खिलअत का दामन सिकोड़कर एक नहर के किनारे बैठ गया।

अपने विचारों में डूबा मुल्ला नसुरुद्दीन सोच रहा था- ‘बुखारा क्यों आया? खाना खरीदने के लिए मुझे आधे तंके का सिक्का भी कहाँ से मिलेगा? क्या मैं भूखा ही रहूँगा? उस कमबख्त़ टैक्स वसूल करने वाले अफसर ने मेरी सारी रक़म साफ़ कर दी। डाकुओं के बारे में मुझसे बात करना कितनी बड़ी गुस्ताखी थी।’
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Old 14-12-2010, 07:21 AM   #13
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तभी उसे वह टैक्स अफसर दिखाई दे गया, जो उसकी बर्बादी का कारण था। वह घोड़े पर सवार कहवाखाने की ओर आ रहा था। दो सिपाही उसके अरबी घोड़े की लगाम थामे आगे-आगे चल रहे थे। उसके पास कत्थई-भूरे रंग का बहुत ही खूबसूरत घोड़ा था। उसकी गहरे रंग की आँखों में बहुत ही शानदार चमक थी। गर्दन सुराहीदार थी।

सिपाहियों ने बड़े अदब से अपने मालिक को उतरने में मदद दी। वह घोड़े से उतरकर कहवाखाने में चला गया। कहवाखाने का मालिक उसे देखते ही घबरा उठा। फिर स्वागत करते हुए उसे रेशमी गद्दों की ओर ले गया।

उसके बैठ जाने के बाद मालिक ने बेहतरीन कहवे का एक बढ़िया प्याला बनाया और चीनी कारीगिरी के एक नाजुक गिलास में डालकर अपने मेहमान को दे दिया। ‘जरा देखो तो, मेरी कमाई पर इसकी कितनी शानदार खा़तिरदारी हो रही है! मुल्ला नसरुद्दीन सोच रहा था।

टैक्स अफ़सर ने डटकर कहवा पिया और वहीं गद्दों पर लुढ़क कर सो गया। उसके ख़र्राटों से कहवाख़ाना भर गया। अफसर की नींद में खलल न पड़े, इस डर से कहवाखाने में बैठ फुस-फुसाकर बातें करने लगे। दोनों सिपाही उसके दोनों और बैठ गए और पत्तियों के चौरों में मक्खियाँ उड़ाने लगे।

कुछ देर बाद, जब उन्हें विश्वास हो गया कि उनका मालिक गहरी नींद में सो गया है तो उन्होंने आँखों से इशारा किया। उठकर घोड़े की लगाम खोल दी और उसके सामने घास का एक गट्ठर डाल दिया। वे नारियल का हुक्का लेकर कहवाख़ाने के अँधेरे हिस्से की ओर चले गए। थोड़ी देर बाद मुल्ला नसरुद्दीन की नाक के नथुनों से गाँजे की मीठी-मीठी गंध टकराई। सिपाही गाँजा पीकर मदहोश हो चुके थे।
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Old 14-12-2010, 07:23 AM   #14
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मुल्ला नसरुद्दीन की दास्तान – 10
(पिछले बार आपने पढ़ाः मुल्ला के शहर पहुंचा टैक्स अफसर)

अपने विचारों में डूबा मुल्ला नसुरुद्दीन सोच रहा था- ‘बुखारा क्यों आया? खाना खरीदने के लिए मुझे आधे तंके का सिक्का भी कहाँ से मिलेगा? उस कमबख्त़ टैक्स वसूल करने वाले अफसर ने मेरी सारी रक़म साफ़ कर दी। डाकुओं के बारे में मुझसे बात करना कितनी बड़ी गुस्ताखी थी।’
तभी उसे वह टैक्स अफसर दिखाई दे गया, जो उसकी बर्बादी का कारण था। वह घोड़े पर सवार कहवाखाने की ओर आ रहा था। दो सिपाही उसके अरबी घोड़े की लगाम थामे आगे-आगे चल रहे थे। उसके पास कत्थई-भूरे रंग का बहुत ही खूबसूरत घोड़ा था। उसकी गहरे रंग की आँखों में बहुत ही शानदार चमक थी।.....मुल्ला उसे देखकर फिर अपनी भूख मिटाने की सोचता है)

उसके आगे

मुल्ला ने बेचा टैक्स अफसर का घोड़ा

…..सुबह शहर के फाटक की घटनाओं की याद आते ही वह भयभीत होकर सोचने लगा कि कहीं ये सिपाही उसे पहचान न लें। उसने वहाँ से जाने का इरादा किया, लेकिन भूख से उसका बुरा हाल था। वह मन-ही-मन कहने लगा, ऐ तकदीर लिखने वाले मुल्ला नसुरुद्दीन की मदद करे। किसी तरह आधा तंका दिलवा दे, ताकि वह अपने पेट की आग बुझा सके।

तभी किसी ने उसे पुकारा, ‘अरे तुम हाँ, हाँ तुम ही जो वहाँ बैठे हो।’

मुल्ला नसरुद्दीन ने पलटकर देखा। सड़क पर एक सजी हुई गाड़ी खड़ी थी। बड़ा-सा साफ़ा बाँधे और क़ीमतों खिलअत पहने एक आदमी गाड़ी के पर्दों से बाहर झाँक रहा था।

इससे पहले कि वह अजनबी कुछ कहता, मुल्ला नसरुद्दीन समझ गया कि खुदा ने उसकी दुआ सुन ली है और हमेशा की तरह उसे मुसीबत में देखकर उस पर करम की नजर की है।

अजनबी ने खूबसूरत अरबी घोड़े को देखते हुए उसकी प्रशंसा करते हुए अकड़कर कहा, ‘मुझे यह घोड़ा पसंद है। बोल, क्या यह घोड़ा बिकाऊ है?’मुल्ला नसरुद्दीन ने बात बनाते हुए कहा, ‘दुनिया में कोई भी ऐसा घोड़ा नहीं, जिसे बेचा न जा सके।’

मुल्ला नसररुद्दीन तुरंत भाँप गया था कि यह रईस क्या कहना चाहता है। वह इससे आगे की बात भी समझ चुका था। अब वह खुदा से यही दुआ कर रहा था कि कोई बेवकूफ़ मक्खी टैक्स अफसर की गर्दन या नाक पर कूदकर उसे जगा न दे। सिपाहियों की उसे अधिक चिंता नहीं थी। कहवाख़ाने के अँधेरे हिस्से से आने वाले गहरे अँधेरे से स्पष्ट था कि वे दोनों नशे में धुत पड़े होंगे।

अजनबी रईस ने बुजुर्गों जैसे गंभीर लहजे में कहा, ‘तुम्हें यह पता होना चाहिए कि इस फटी खिलअत को पहनकर ऐसे शानदार घोड़े पर सवार होना तुम्हें शोभा नहीं देता। यह बात तुम्हारे लिए खतरनाक भी साबित हो सकती है, क्योंकि हर कोई यह सोचेगा कि इस भिखमंगे को इतना शानदार घोड़ा कहाँ से मिला? यह भी हो सकता है कि तुम्हें जेल में डाल दिया जाए’।
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Old 14-12-2010, 07:25 AM   #15
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मुल्ला नसरुद्दीन ने बड़ी विनम्रता से कहा, ‘आप सही फरमा रहे हैं, मेरे आका। सचमुच यह घोड़ा मेरे जैसों के लिए जरूरत से ज्यादा बढ़िया है। इस फटी खिलअत में मैं जिंदगी भर गधे पर ही चढ़ता रहा हूँ। मैं शानदार घोड़े पर सवारी करने की हिम्मत ही नहीं कर सकता।’

‘यह ठीक है कि तुम ग़रीब हो। लेकिन घमंड ने तुम्हें अंधा नहीं बनाया है। नाचीज़ ग़रीब को विनम्रता ही शोभा देता है, क्योंकि खूबसूरत फूल बादाम के शानदार पेड़ों पर ही अच्छे लगते हैं, मैदान की कटीली झाड़ियों पर नहीं। बताओ, क्या तुम्हें यह थैली चाहिए? इसमें चाँदी के पूरे तीन सौ तंके है।’, अजनबी रईस ने कहा।

मुल्ला नसरुद्दीन चिल्लाया, ‘चाहिए। जरूर चाहिए। चाँदी के तीन सौ तंके लेने से भला कौन इनकार करेगा? अरे, यह तो ऐसे ही हुआ जैसा किसी को थैली सड़क पर पड़ी मिल गई हो।’

अजनबी ने जानकारों की तरह मुस्काराते हुए कहा, ‘लगता है तुम्हें सड़क पर कोई दूसरी चीज मिली है। मैं यह रक़म उस चीज से बदलने को तैयार हूँ,’ जो तुम्हें सड़क पर मिली है। यह लो तीन सौ तंके।’

उसने थैली मुल्ला नसरुद्दीन को सौंप दी और अपने नौकर को इशारा किया। उसके चेचक के दागों से भरे चेहरे की मुस्कान और आँखों के काइयाँफ को देखते ही मुल्ला नसरुद्दीन समझ गया कि यह नौकर भी उतना ही बड़ा मक्कार है, जितना बड़ा मक्कार इसका मालिक है।

एक ही सड़क पर तीन-तीन मक्कारों का एक साथ होना ठीक नहीं है, उसने मन-ही-मन निश्चय किया। इनमें से कम-से-कम एक जरूर ही फालतू है। समय आ गया है कि यहाँ से नौ-दो ग्यारह हो जाऊँ।

अजनबी की उदारता की प्रशंसा करते हुए मुल्ला नसरुद्दीन झपटकर अपने गधे पर सवार हो गया और उसनए इतने जोर से एड़ लगाई कि आलसी होते हुए भी गधा ढुलकी मारने लगा।

थोड़ी दूर जाकर मुल्ला नसरुद्दीन ने मुड़कर देखा। नौकर अरबी घोड़े को गाड़ी से बाँध रहा था। वह तेजी से आगे बढ़ गया।…
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Old 14-12-2010, 07:28 AM   #16
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मुल्ला नसरुद्दीन-11
मुल्ला की मुलाकात रईस के सिपाही से

(पिछले बार आपने पढ़ाः मुल्ला ने बेचा टैक्स अफसर का घोड़ा)

…सुबह शहर के फाटक की घटनाओं की याद आते ही वह भयभीत होकर सोचने लगा कि कहीं ये सिपाही उसे पहचान न लें। ...तभी किसी ने उसे पुकारा...मुल्ला नसरुद्दीन ने पलटकर देखा।...बड़ा-सा साफ़ा बाँधे और क़ीमतों खिलअत पहने एक आदमी गाड़ी के पर्दों से बाहर झाँक रहा था।...अजनबी ने खूबसूरत अरबी घोड़े को देखते हुए उसकी प्रशंसा करते हुए अकड़कर कहा, ‘मुझे यह घोड़ा पसंद है। बोल, क्या यह घोड़ा बिकाऊ है?’मुल्ला नसरुद्दीन ने बात बनाते हुए कहा, ‘दुनिया में कोई भी ऐसा घोड़ा नहीं, जिसे बेचा न जा सके।’
......मुल्ला उसे टैक्स अफसर का घोड़ा बेचकर निकल जाता है)

उसके आगे

मुल्ला की मुलाकात रईस के सिपाही से

लेकिन थोड़ी दूर जाकर उसने फिर पीछे मुड़कर देखा। वह अजनबी रईस और टैक्स अफसर एक-दूसरे से गुथे हुए थे और एक-दूसरे की दाढ़ियाँ नोच रहे थे। सिपाही उन्हें अलग करने की बेकार कोशिश कर रहे थे।

‘अकलमंद लोग दूसरों के झगड़ों में दिलचस्पी नहीं लेते।’ मुल्ला नसरुद्दीन ने मन-ही-मन कहा और गली-कूचों में चक्कर काटता हुआ काफ़ी दूर निकल गया।

जब उसे विश्वास हो गया कि अब वह पीछा करने वालों से बच गया है, उसने गधे की लगाम खींची, ‘ठहर जा, अब कोई जल्दी नहीं है।’

लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। एक घुड़सवार तेज़ी से सड़क पर आ गया था। यह वही चेचक के दाग़ों से भरे चेहरे वाला नौकर था। वह उसी घोड़े पर सवार था। अपने पैर झुलाते हुए वह तेजी से मुल्ला नसरुद्दीन की बग़ल से गुज़र गया लेकिन अचानक घोड़े को सड़क पर आड़ा खड़ा करके रुक गया।

मुल्ला नसरुद्दीन ने बड़ी विनम्रता से कहा, ‘ओ भले मानस, मुझे आगे जान दे। ऐसी तंग सड़कों पर लोगों को सीधे-सीधे सवारी करनी चाहिए। आड़े-आड़े नहीं।’ नौकर ने हँसी के साथ कहा, ‘अब तुम जेल जाने से नहीं बच सकते। तुम्हें मालूम है, घोड़े के मालिक उस अफसर ने मेरे मालिक की आधी दाढ़ी नोच डाली है। मेरे मालिक ने उसकी नाक से खून निकाल दिया है। कुल तुम्हें अमीर की अदालत में पेश किया जाएगा।’

मुल्ला नसरुद्दीन ने आश्चर्य से पूछा, ‘क्या कह रहे हो तुम? ऐसे इज्ज़तदार लोगों की इस तरह झगड़ने की वजह क्या है? तुमने मुझे रोका क्यों है? मैं तो उनके झगड़े का फैसला कर नहीं सकता। अपने आप करने दो उन्हें फैसला।’

‘खामोश!’ नौकर चिल्लाया, ‘वापस चल। तुझे घोड़े के लिए जवाब देना होगा।’
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‘कौन-सा घोड़ा? तुम ग़लत कह रहे हो’, मुल्ला नसरुद्दीन बोला, ‘खुदा गवा है, इस मामले का घोड़े से कोई सरोकार नहीं है। तुम्हारे दरियादिल मालिक ने एक गरीब आदमी की मदद करने के इरादे से मुझसे पूछा कि क्या में चाँदी के तीन सौ तंके लेने पसंद करूँगा। मैंने उत्तर दिया, ‘हाँ, मैं यह रकम लेना पसंद करुँगा। तब उसने मुझे तीन सौ तंके दे दिए। अल्लाह उसे लंबी जिदंगी दे। रुपया देने से पहले उसने यह देखने के लिए कि मैं इस इनाम का हकदार हूँ भी या नहीं, मुझ नाचीज़ में विनम्रता है या नहीं, उसने कहा था- ‘मैं नहीं जानना चाहता कि यह घोड़ा किसका है और कहाँ से आया है?’

चाबुक से अपनी पीठ खुजाते हुए नौकर सुनता रहा।‘देखा तुमने, वह यह जानना चाहता था कि कहीं मैं झूठे घमंड में अपने को घोड़े का मालिक तो नहीं बता बैठा। लेकिन मैं चुप रहा। कहने लगा, ‘मेरे जैसों के लिए यह थोड़ा जरूरत से ज्यादा बढ़िया है।’ मैंने उसकी बात मान ली। इससे वह और भी खुश होकर बोला, ‘मैं सड़क पर ऐसी चीज पा गया हूँ, जिसके बदले में मुझे चाँदी के सिक्के मिल सकते हैं।’ इसका इशारा मेरे इस्लाम में मेरे विश्वास की ओर था।...इसके बाद उसने मुझे इनाम दिया। इस नेक काम से वह कुरान शरीफ़ में बताए गए बहिश्त के रास्ते में पड़ने वाले उस पुल पर से अपनी यात्रा और अधिक आसान बनाना चाहता था, जो बाल से भी अधिक बारीक़ है. तलवार की धर से भी ज़्यादा तेज है. इबादत करते समय मैं अल्लाह से तुम्हारे मालिक के इस नेक काम का हवाला देते हुए दुआ करुँगा कि वह उस पुल पर बाड़ लगवा दे।’

मुल्ला नसरुद्दीन के भाषण के समाप्त हो जाने पर परेशान कर डालने वाली काइयाँ हँसी के साथ नौकर ने कहा, ‘तुम ठीक कहते हो। मेरे मालिक के साथ तुम्हारी जो बातचीत हुई थी उसका मतलब इतना नेक है, मैं पहले समझ नहीं पाया था। लेकिन, क्योंकि उस दूसरी दुनिया के रास्ते के पुल को पार करने में तुमने मेरे मालिक की मदद करने का निश्चय कर लिया है तो अधिक हिफाजत तभी होगी जब पुल के दोनों और बाड़ लग जाए। मैं भी बड़ी खुशी से अल्लाह से दुआ करुँगा कि मेरे मालिक के लिए दूसरी ओर की बाड़ लगा दें।’

‘तो माँगो दुआ। तुम्हें रोकता कौन?’ मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा, ‘बल्कि ऐसा करना तो तुम्हारा फर्ज है। क्या कुरान में हिदायत नहीं है कि गुलामों और नौकरों को अपने मालिकों के लिए रोजाना दुआ माँगनी चाहिए और इसके लिए कोई खास इनाम अलग से नहीं माँगना चाहिए?’
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मुल्ला नसरुद्दीन-12
पिछले बार आपने पढ़ाः मुल्ला की मुलाकात रईस के सिपाही से)
…जब उसे विश्वास हो गया कि अब वह पीछा करने वालों से बच गया है, उसने गधे की लगाम खींची, ‘ठहर जा, अब कोई जल्दी नहीं है।’ लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। एक घुड़सवार तेज़ी से सड़क पर आ गया था। यह वही चेचक के दाग़ों से भरे चेहरे वाला नौकर था।....उसके आगे )

मूर्ख सिपाही से मुल्ला ने जान बचाई

घोड़े को एड़ लगाकर मुल्ला नसरुद्दीन को दीवार की ओर दबाते हुए नौकर ने सख़्ती से कहा, ‘अपना गधा वापस लौटा। चल, जल्दी कर। मेरा ज्यादा वक़्त बर्बाद मत कर।’

मुल्ला नसरुद्दीन ने उसे बीच में ही टोककर कहा, ‘ठहरो, मुझे बात तो ख़त्म कर लेने दो मेरे भाई। मैं तीन सौ तंकों के हिसाब से उतने ही लफ़्जों की दुआ काफ़ी रहेगी। मेरी ओर की बाड़ कुछ छोटी और पतली हो जाएगी। जहाँ तुम्हारा संबंध है तुम पचास लफ़्जों की दुआ माँगना। सब कुछ जानने वाला अल्लाह इतनी ही लकड़ी से तुम्हारी ओर भी बाड़ लगा देगा।’

‘क्यों? मेरी ओर की बाड़ तुम्हारी बाड़ का पाँचवाँ हिस्सा ही क्यों हो?’

‘वह सबसे ज्यादा खतरनाक जगह पर जो बनेगी।’

‘नहीं, मैं ऐसी छोटी बाड़ों के लायक नहीं हूँ। इसका मतलब तो यह हुआ कि पुल का कुछ हिस्सा बिना बाड़ का रह जाएगा। मेरे मालिक के लिए इससे जो खतरा पैदा होगा, मैं तो उसे सोचकर ही काँप जाता हूँ। मेरी राय में तो हम दोनों ही डेढ़-डेढ़ सौ लफ्जों की दुआ माँगे ताकि पुल के दोनों और एक ही लंबाई की बाड़ं हो। अगर तुम राजी नहीं होते तो इसका मतलब यह होगा कि तुम मेरे मालिक का बुरा चाहते हो। यह चाहते हो कि वह पुल पर से गिर जाएँ। तब मैं मदद माँगूँगा और तुम जेलखाने का सबसे पास का रास्ता पकड़ोगे।’

‘तुम जो कुछ कह रहे हो उससे लगता है कि पतली टहनियों की बाड़ लगा देना ही तुम्हारे लिए काफी रहेगा। क्या तुम समझ नहीं रहे कि बाड़ एक ओर मोटी और मजबूत होनी चाहिए, ताकि अगर तुम्हारे मालिक के पैर डगमगाएँ तो पकड़ने के लिए कुछ तो रहे।’ मुल्ला नसरुद्दीन ने गुस्से से कहा। उसे लग रहा था कि रुपयों की थैली पटके से खिसक रही है।

नौकर ने खुशी से चिल्लाते हुए कहा, ‘सचमुच तुमने ईमान और इंसाफ की बात कही है। बाड़ को मेरी ओर से मजबूत होने दो। मैं दो सौ लफ्जों की दुआ माँगने में आनाकानी नहीं करुँगा।’

‘तुम शायद तीन सौ लफ्जों की दुआ माँगना चाहोगे? मुल्ला नसरुद्दीन ने जहरीली आवाज़ में कहा?’

वे दोनों अलग हुए तो मुल्ला नसरुद्दीन की थ़ैली का आधा वजन कम हो चुका था। उन लोगों ने तय किया था कि मालिक के लिए बहिश्त के रास्ते वाले पुल के दोनों और बराबर-बराबर मजबूत और मोटी बाड़ लगायी जाए।

‘अलविदा, मुसाफिर। हम दोनों ने आज बड़े पुण्य का काम किया है।’ नौकर ने कहा। ‘अलविदा, वफ़दार और भले नौकर। अपने मालिक की बाड़ के लिए तुम्हें कितनी चिंता है! साथ ही मैं यह और कहे देता हूँ कि तुम बहुत जल्द मुल्ला नसरुद्दीन की टक्कर के हो जाओगे।’

नौकर के कान खड़े हो गए, ‘तुमने उसका जिक्र क्यों किया?’‘कुछ नहीं, यों ही। बस मुझे ऐसा लगा, मुल्ला नसरुद्दीन बोला और सोचने लगा, ‘यह आदमी बिल्कुल सीधा-सादा नहीं है।’

‘शायद उससे तुम्हारा कोई दूर का रिश्ता है। शायद तुम उसके खानदान के किसी आदमी को जानते हो?’‘नहीं, मैं उससे कभी नहीं मिला। और न मैं उसके किसी रिश्तेदार को ही जानता हूँ।’

नौकर ने जीऩ पर बैठे-बैठे थोड़ा सा झुककर कहा, ‘सुनो, मैं तुम्हें एक राज़ की बात बताऊँ। मैं उसका रिश्तेदार हूँ। असल में मैं उसका चचेरा भाई हूँ। हम दोनों बचपन में साथ-साथ रहे थे।’

लेकिन मुल्ला नसरुद्दीन खामोश ही रहा। चालबाज़ नौकर ने कहा, ‘अमीर भी कितना बेरहम है। बुखारा के सब वज़ीर बेवकूफ हैं। और हमारे शहरवाले अमीर भी उल्लू हैं। यह तो पूरे यकीन के साथ नहीं कहा जा सकता कि अल्लाह है भी या नहीं।’

मुल्ला नसरुद्दीन की जुबान पर एक करारा उत्तर आया, लेकिन उसने मुँह नहीं खोला। नौकर ने अत्याधिक निराश होकर एक गाली दी और घोड़े के एड़ लगाकर दो छलांग में ही गली का मोड़ पार करके गायब हो गया।

‘अच्छा तो मुझे एक रिश्तेदार मिल गया।’ मुल्ला नसरुद्दीन मुस्कुराया। उस बूढ़े ने झूठ नहीं कहा था। बुखारा में जासूस मक्खी-मच्छरों की तरह भरे पड़े हैं। यहाँ चालाकी से काम लेना ही ठीक रहेगा। पुरानी कहावत है- कुसूरवार जबान सिर के साथ काटी जाती है।
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Post Re: मुल्ला नसरुद्दीन की कहानी

मुल्ला नसरुद्दीन-13
(पिछले बार आपने पढ़ाः मूर्ख सिपाही से मुल्ला ने जान बचाई)

… मुल्ला नसरुद्दीन की जुबान पर एक करारा उत्तर आया, लेकिन उसने मुँह नहीं खोला। नौकर ने अत्याधिक निराश होकर एक गाली दी और घोड़े के एड़ लगाकर दो छलांग में ही गली का मोड़ पार करके गायब हो गया।.....उसके आगे )

मुल्ला ने लगाई पैसों की जुगाड़

शहर के दूसरें छोर पर पहुँचकर मुल्ला नसरुद्दीन रुक गया। अपने गधे को एक कहवाख़ाने के मालिक को सौंपकर खुद नानबाई की दुकान में चला गया। वहाँ बहुत भीड़ थी। धुआँ और खाना पकाने की महक आ रही थी। चूल्हे गर्म थे और कमर तक नंगे बावर्चियों की पसीने से तर पीठों पर चूल्हों की लपटों की चमक पड़ रही थी। पुलाव पक रहा था। सीख़ कबाब भुन रहे थे। बैलों का गोश्त उबल रहा था। प्याज, काली मिर्च, और भेड़ की दुम की चर्बी और गोश्त भरे समोसे तले जा रहे थे।

बड़ी मुश्किल से मुल्ला नसरुद्दीन ने बैठने के लिए जगह तलाश की। दब-पिसकर वह जहाँ बैठा, वह जगह इतनी तंग थी कि जिन लोगों की पीठ को धक्का देकर वह बैठा, वे जोऱ से गुर्रा उठे। लेकिन किसी ने कुछ कहा नहीं। मुल्ला नसरुद्दीन ने तीन प्याले कीमा, तीन प्लेट चावल और दो दर्जन समोसे डकार लिए।

खाना खाकर वह दरवाज़े की ओर बढ़ने लगा। पैर घसीटते हुए वह उस कहवाख़ाने तक पहुँचा, जहाँ अपना गधा छोड़ आया था। उसने कहवा मंगवाया और गद्दों पर आराम से पसर गया। उसकी पलकें झुकने लगीं। उसके दिमाग में धीरे-धीरे खू़बसूरत ख़याल तैरने लगे।

मेरे पास इस वक्त़ अच्छी-खासी रक़म है, घुमक्कड़ी छोड़ने का वक्त आ गया है। क्या मैं एक सुंदर और मेहरबान बीवी हासिल नहीं कर सकता? क्या मेरे भी एक बेटा नहीं हो सकता? पैगंबर की कसम, वह नन्हा और शोर मचानेवाला बच्चा बड़ा होकर मशहूर शैतान निकलेगा। मैं अपनी सारी अकलमंदी और तजुर्बे उसमें उड़ेल दूँगा। मुझे जीनसाज़ या कुम्हार की दुकान खरीद लेनी चाहिए।

वह हिसाब लगाने लगा, अच्छी दुकान की क़ीमत कम-से-कम तीन सौ तंके होगी। लेकिन मेरे पास हैं कुल डेढ़ सौ तंके। अल्लाह उस डाकू को अंधा कर दे। मुझसे वही रकम छीन ले गया, जिसकी किसी काम को शुरू करने के लिए मुझे जरूरत थी।

‘बीस तंके’ अचानक एक आवाज आई। और फिर ताँबे की थाली में पासे गिरने की आवाज सुनाई दी।


बरसाती के किनारे, जानवर बाँधने के खूँटों के बिल्कुल पास कुछ लोग घे़रा बनाए बैठे थे। कहवाख़ाने का मालिक उनके पीछे खड़ा था। जुआ, कुहनियों के सहारे उठते हुए मुल्ला नसरुद्दीन ने भाँप लिया। मैं भी देखूँ। जुआ तो नहीं खेलूँगा। ऐसा बेवकूफ़ नहीं हूँ। लेकिन कोई अकलमंद आदमी बेवकूफों को देखे क्यों नहीं?’ उठकर वह जुआरियों के पास चला गया।

‘बेवकूफ़ लोग,’ कहवाखा़ने के मालिक के कान में उसने फुसफुसाकर कहा-मुनाफे के लालच में अपना आखि़री सिक्का भी गँवा देते हैं। लेकिन उस लाल बालों वाले जुआरी की तकदीर देखो, लगातार चौथी बार जीता है। अरे, यह तो पाँचवीं बार भी जीत गया। इसने दौलत का झूठा सपना जुए की ओर खींच रखा है। फिर छठी बार जीत गया? ऐसी क़िस्मत मैंने कभी नहीं देखी। अगर यह सातवीं बार जीता तो मैं दाँव लगाऊँगा।

काश! मैं अमीर होता तो न जाने कब का जुआ बंद करा चुका होता।’ लाल बालों वाले ने पासा फेंका। वह सातवीं बार फिर जीत गया।

मुल्ला नसरुद्दीन खिलाड़ियों को हटाते हुए घेरे में जा बैठा। उसने भाग्य शाली विजेता के पासे ले लिए। उन्हें उलट पुलटकर अनुभवी आँखों से देखते हुए बोला, ‘मैं तुम्हारे साथ खेलना चाहता हूँ।’

‘कितनी रक़म?’ लाल बालों वाले ने भर्राए गले से पूछा। वह ज़्यादा-से-ज्यादा जीत लेने के लिए उतावला हो रहा था।
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मुल्ला नसरुद्दीन-14
(पिछले बार आपने पढ़ाः मुल्ला पुहंचा जुआखाना)

… शहर के दूसरें छोर पर पहुँचकर मुल्ला नसरुद्दीन रुक गया। अपने गधे को एक कहवाख़ाने के मालिक को सौंपकर खुद नानबाई की दुकान में चला गया। वहाँ बहुत भीड़ थी। धुआँ और खाना पकाने की महक आ रही थी। .....उसके आगे )


मुल्ला नसरुद्दीन ने खेला जुआं, पलटी किस्मत

मुल्ला नसरुद्दीन ने अपना बटुआ निकाला। जरूरत के लिए पच्चीस तंके छोड़कर बाक़ी निकाल लिए। ताँबे के थाल में चाँदी के सिक्के खनखनाकर गिरे और चमकने लगे। ऊँचे दाँवों का खेल शुरू हो गया।

लाल बालों वाले ने पासे उठा लिए। बहुत देर तक उन्हें खनखनाता रहा, जैसे उन्हें फेंकते हुए झिझक रहा हो। सब लोग साँस रोके देख रहे थे। आखि़र लाल बालों वाले ने पासे फेंके। खिलाड़ी गर्दन बढ़ाकर देखने लगे और फिर एक साथ ही पीछे की ओर लुढ़ककर बैठ गए। लाल बालों वाला पीला पड़ गया। उसके भिंचे हुए दाँतों से कराह निकल गई। जुआरी हार गया था।

अपने पर भरोसा करने के लिए तकरीद ने मुल्ला नसरुद्दीन को सबक सिखाने का इरादा कर लिया। इसके लिए उसने चुना उसके गधे, या कहो गधे की दुम को। गधा जुआरियों की ओर पल्टा और उसने दुम घुमाई। दुम सीधी उसके मालिक के हाथ से जा टकराई। पासे हाथ से फिसल गए। लाल बालों वाला जुआरी खुशी से भर्रायी चीख़ के साथ जल्दी से थालपर लेट गया और दाँव पर लगी रक़म अपने बदन से ढक ली।

मुल्ला नसरुद्दीन की फटी-फटी आँखों के सामने दुनिया ढहती-सी नजर आ रही थी। अचानक वह उछला। उसने एक डंडा उठा लिया और खूँटे के पास खदेड़ते हुए गधे को पीटने लगा।

‘कमबख्त़, बदबूदार जानवर, सभी जिंदा जानवरों के लिए लानत।’ मुल्ला नसरुद्दीन चिल्ला रहा था, क्या यही काफी़ नहीं था कि अपने मालिक के पैसे से जुआ खेले? क्या यह पैसा हारना भी जरूरी था। बदमाश, तेरी खाल खींच ली जाए तेरे रास्ते में अल्लाह गड्डा कर दे, ताकि तू गिरे और तेरे पैर टूट जाएँ। न जाने तू कब मरेगा? मुझे तेरा बदनुमा चेहरा देखने से कब छुट्टी मिलेगी?’

गधा रेंकने लगा। जुआरी खिलखिलाकर हँसने और चिल्लाने लगे। सबसे ज़्यादा जो़र से लाल बालों वाला जुआरी चिल्लाया। उसे अपनी खुशकिस्मती पर पक्का यक़ीन हो गया था। थके हाँफते हुए मुल्ला नसरुद्दीन ने डंडा फेंक दिया तो लाल बालों वाले ने कहा, ‘आओ, फिर खेल लो। दो-चार दाँव और लग जाएँ। तुम्हारे पास अभी पच्चीस तंके तो हैं ही।’

यह कहकर उसने बायाँ पैर फैला दिया और मुल्ला नसरुद्दीन के प्रति उपेक्षा प्रकट करते हुए उसे हिलाने लगा।

‘हाँ-हाँ, क्यों नहीं।’ मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा। वह सोच रहा था-जब सवा सौ तंके चले गए तो अब बाक़ी पच्चीस का ही क्या होगा? उसने लापरवाही से पासे फेंके और जीत गया। हारी हुई रकम थालपर फेंकते हुए लाल बालों वाले ने कहा, ‘पूरी रकम।’ मुल्ला नसरुद्दीन फिर जीत गया। लाल बालों को विश्वास नहीं हो रहा था कि किस्मत पलट गई। ‘पूरी रक़म,’ उसने फिर कहा। उसने लगातार सात बार यही कहा और हर बार हारता गया।

थाल रुपयों से भर चुका था। जुआरी खामोश बैठे थे। लाल बालों वाला चिल्लाया, ‘अगर शैतान ही तुम्हारी मदद कर रहा हो तो बात दूसरी है। वरना तुम हर बार जीत नहीं सकते।
कभी तो तुम हारोगे ही। थाल में तुम्हारे सोलह सौ तंके हैं। लगाओगे फिऱ एक बार पूरी रकम? कल मैं इस रकम से अपनी दुकान के लिए माल ख़रीदने वाला था। तो इसे भी दाँव पर लगाता हूँ।’

उसने सोने के सिक्कों, तिल्ले और तुमानों से भरी एक छोटी सी थैली निकाली। मुल्ला नसरुद्दीन उतावली भरी आवाज़ में चिल्लाया, ‘अपना सोना इस थाल में उड़ेल दे।’

इस कहवाखा़ने में ऐसे भारी दाँव देखे नहीं गए थे। मालिक उबलती हुई केतिलयों को भूल गया। जुआरियों की साँसें लंबी-लंबी चलने लगीं। लाल बालों वाले ने पासे फेंके और आँखें मूँद लीं। पास देखने में उसे डर लग रहा था।

‘ग्यारह’ सब एक साथ चिल्ला उठे। मुल्ला नसरुद्दीन अपने-आपको क़रीब-क़रीब हारा हुआ समझने लगा। अब केवल दो छक्के यानी बारह काने ही उसे बचा सकते थे। अपनी खुशी को छिपाए बिना लाल बालों वाला भी दोहराने लगा-ग्यारह-ग्यारह काने। देखो भई, मेरे ग्यारह हैं। तुम हार गए, हार गए-हार गए।’

मुल्ला नसरुद्दीन का जैसे सारा बदन ठंडा पड़ गया। उसने पास उठाए और फेंकने की तैयारी करने लगा। फिर अचानक उसने हाथ रोक लिया।

‘इधर पलट।’ उसने अपने गधे से कहा, ‘तू तीन काने पर हार गया था।’ ले, अब ग्यारह काने पर जीने की कोशिश कर। नहीं तो मैं तुझे इसी वक्त कसाई के यहाँ ले चलूँगा।’

बाएँ हाथ से गधे की दुम पकड़े-पकड़े उसने दाएँ हाथ से गधे को ठोका। लोगों की ऊँची-ऊँची आवाज़ों से कहवाख़ाना हिल उठा। मालिक कलेजा थामकर बैठ गया। यह तनाव उसकी बरदाश्त से बाहर था।

‘यह लो-एक-दो।’

पासों पर दो छक्के थे। लाल बालों वाले जुआरी की जैसे आँखें बाहर निकल पड़ीं और उसके सूखे सफेद चेहरे पर काँच की तरह जड़ी रह गईं। वह हौले से उठा और रोता, डगमगाता चला गया। मुल्ला नसरुद्दीन ने जीती हुई दौलत को थैलों में भर लिया। गधे को गले लगाया, उसका मुँह चूमा और बढ़िया मालपुए खिलाए। वह होशियार जानवर हैरान था कि अभी कुछ मिनट पहले ही उसके साथ बिल्कुल विपरीत व्यवहार हुआ था।
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